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Thriller रश्मि का आरंभ- रश्मि मंडल
#24
जड़ होकर खड़ा अमर सिंह अचानक, जैसे छोटा बच्चा अपने प्रिय खिलौने को देख कर कूद पड़ता है वैसे ही मेरे आमंत्रण से अपने आप को रोक नहीं पाया. मैंने अपना स्कर्ट पूरा अपनी पैंटी तक खींच दिया था. अमर एक झटके के साथ नीचे आया और अपना दोनों हाथ मेरी एक-एक मांसल जांघों पर रख कर घुटने के ऊपर मेरी दायें जांघ को अपनी जीभ निकाल कर फिराने लगा. उसका गरम साँस मैं अपने मखमली जांघों पर पर महसूस कर रही थी. घुटनों के तीन मिलीमीटर ऊपर से वह अपनी जीभ रख कर तेजी से मेरी दायें जांघ के ऊपरी कटाव, जहाँ तक मेरी पैंटी का निचला किनारा था, पहुँच गया. अगर मैंने अपने दायें हाथ से उसका बाल जोर से पकड़ कर उसका सिर नहीं खींचा होता तो वह सीधे मेरी पैंटी के अन्दर के कोमल और चिकने जन्नत को खा रहा होता. वैसे अमर इस मामले में अनुभवी आदमी था पर इतनी देर की तड़प और नशे के कारण वह वह बेसब्र और उतावला हो उठा था. मैंने जैसे ही उसका बाल पकड़ कर खींचा वह दर्द से कराहते हुए अपनी आँखें ऊपर उठा कर एक आज्ञाकारी बच्चे की तरह मुझे देखने लगा. मेरी साँस तेज चल रही थी और मेरे सीने के उन्नत उभार तेजी से ऊपर नीचे होकर मेरे शर्ट के बटन को तोड़ने का प्रयास कर रहे थे. मैंने नशीली, कातिल निगाहों से उसकी आँखों में देखा, और उसका बाल जोर से पकड़ कर फिर से उसका मुंह अपनी बायीं जांघ पर घुटनों के ऊपर रख दिया.

वह फिर से उसी तरह हरकत करने लगा. वह मेरी जांघ को पूरी तरह चाट जाना चाहता था. मैं आनंद की तरंगों से सराबोर हो गयी. मैं आँख बंद कर उसके होंठों का चुम्मन और उसके जीभ का छुवन अपनी जांघ पर अनुभव कर रही थी. उसका दोनों हाथ अभी भी मेरी एक-एक जांघों पर था. वह अपने हाथों से मेरी मांसल, गदराई जांघों को मसल रहा था. अमर का सिर दो जन्नत की, दूधिया और सम्पूर्णता से तराशी गयी कन्दली खम्भों के बीच थी. मैं अपना हाथ उत्तेजना से उसके बाल पर फेर रही थी. तभी चूमते हुए, अपना मुंह खोल उसने कर मेरी जंघा पर अपना दांत गड़ा दिया. मैं कराह उठी. उसका दोनों हाथ अब ऊपर की ओर सफ़र तय करने लगा. मेरी पुष्ट जांघों को सहलाते, मसलते उसका हाथ अब मेरी जांघों के बगल से होते हुए स्कर्ट के अन्दर से ही मेरे नितम्भों तक पहुँच गया. उसका हाथ अपने पैंटी के ऊपर से ही अपने नितम्भों पर महसूस कर मैं मदमस्त हो उठी. वह बड़े अनुभवी तरीके से अपना पूरा पंजा खोल कर मेरे दोनों नितम्भों को मसल रहा था. ना चाहते हुए भी मेरे मुंह से, "स्स्स्सस्स्स्स आआह्ह" की आवाज निकल पड़ी.

मैं ऐसे मौकों पर भरपूर आनंद तो लेती थी पर मजाल है कोई मुझपर नियंत्रण स्थापित कर ले. मैं संयम के साथ पूरा संचालन अपने पास रखती थी ताकि किसी भी परिस्थिति में सब कुछ मेरे हिसाब से चलते रहे. और अब मैं इंडियन इंटेलीजेंट एजेंसी की एजेंट भी हूँ. अब मुझे और सावधान एवं चौकन्ना रहना होगा. मेरे दिमाग में जूलिया मैंम के साथ घटी घटनाएँ घूमने लगी, शायद वह यही परखना चाह रही थीं. शायद वह यही जानना चाह रही थीं कि मैं उत्तेजित होने के बाद भी संयमित रह पाती हूँ या नहीं!!

मेरे कूल्हों को मसलते हुए अमर अपना मुंह मेरी जंघा से हटा कर उठ खड़ा हुआ. मैं अभी भी बिस्तर के किनारे पर ही बैठी थी. अमर मेरे सामने सीधा खड़ा था. मेरी आंख्ने उसके कमर की नीचे जीन्स के ऊपर के उभरे हुए कड़े भाग पर गया. उसका मोटा और लम्बा सा उभार मुझे मदमस्त कर रहा था. मैंने अपना बायां हाथ आगे किया और जीन्स के ऊपर से ही उसके कड़े होते लिंग को अपनी हथेली पूरी खोल कर दबोच लिया. "आआअह्ह्ह्ह रश्मि" यह पहली बार था जब अमर के मुंह से कुछ आवाज निकला. उसने फटा-फट मेरे शर्ट के ऊपर के खुले हुए हिस्से से अपने हाथों को अन्दर डाल कर मेरे दोनों सुडौल मखमली कन्धों पर हाथ रख कर मुझे धक्का देते हुए बिस्तर पर लिटा दिया. उसका हाथ मेरी ब्रा के पट्टी के ऊपर था. मैंने अपने सुलगते बदन को ढीला छोड़ दिया. अब मैं कमर से ऊपर बिस्तर पर लेटी थी और मेरे दोनों टांग नीचे थे. अमर मेरे ऊपर छाने लगा. वह बिस्तर पर गिरे हुए मेरे मिस्र की देवियों जैसी, सुडौल, पुष्ट और एक-एक अंग फुर्शत से तराशी हुई बदन पर चढ़ गया. मेरा स्कर्ट पूरा ऊपर होकर अभी भी मेरे कमर पर फंसा हुआ था, जिसके नीचे मेरी मखमली और थोड़ी पारदर्शी सफ़ेद पैंटी था. और पैंटी के अन्दर मेरी गुलाबी, चिकनी और मुलायम रतिगृह. पैंटी के नीचे मेरी खुली, मांसल, दूध की तरह गोरी जांघें नंगी थी.

ऊपर फुल स्लीव शर्ट अस्तव्यस्त था, ऊपर के दो बटन पहले से खुले हुए थे. शर्ट बमुश्किल से मेरी सफ़ेद इनर और उसके अन्दर के सफ़ेद ब्रा को ढंक पा रही थी. मेरे पुष्ट और दूधिया उभारों के ऊपरी भाग का मादक नजारा सामने था. उसके नीचे हल्के भूरे गुलाबी पुष्पपथ सा मेरा सपाट और चिकना पेट जो शुरू से आवरण रहित था. उदर के बीच में अन्दर की ओर लघु गहराई लेता हुआ नाभि. मेरे खुले हुए बाल बिस्तर पर इधर-उधर सर्प की तरह फैले हुए थे. कुल मिला कर कामुकता की देवी मैं, साक्षात् आसमान से उतरी अप्सरा की तरह दिख रही थी. अमर तो क्या कोई भी पुरुष, यहाँ तक की कोई भी स्त्री मुझे अभी ऐसे देख कर आपा खोने से अपने आप को नहीं रोक पाएगा.  

अमर अपनी दोनों टांगे मेरे कमर के इर्द-गिर्द रखकर मुझ पर चढ़ा हुआ था. अपने कन्धों पर मैं उसके हाथों का दबाव महसूस कर रही थी. वह झुका और उसने अपने तपते होंठों को मेरी गुलाब की पंखुड़ियों जैसी कोमल और गुलाबी अधरों पर रख दिया. वह मुझे बेतहाशा चूमे जा रहा था. मैं भी उसका उसी तरह साथ दे रही थी. उसका दाहिना हाथ मेरे बाएँ कंधे से उतर कर मेरी बाएँ उभारों अग्र बिंदु को टटोलने लगा. शर्ट के अन्दर और ब्रा तथा इनर से ऊपर से वह मेरे बाएँ वक्ष को पकड़ लेना चाहता था. उसका पूरा हथेली खुला हुआ था और मेरा उन्नत स्तन उसमें समाने का असफल प्रयास कर रहा था. उसके छुवन से मेरे उभारों के अग्र बिंदु कठोर हो चले. उसने मेरा बायाँ स्तन अपनी पूरी हथेली में लेकर जोर से मसल दिया. "अआह्ह' मेरे मुंह से निकला. हम दोनों एक दूसरे के होंठों का बेदर्दी से रसपान कर रहे थे. उसकी हरकत ने मेरे तन बदन में आग लगा दी. अपने टांगों के बीच मैं गीलापन का अनुभव करने लगी. अचानक अमर ने अपना हाथ निकाल कर मेरे शर्ट का अंतिम बटन जो काफी देर से तड़प रहा था, खोल दिया. मेरा शर्ट, बिस्तर पर पीठ के बल लेटे मेरे बदन के इर्द गिर्द फ़ैल गया. अमर मेरे सफ़ेद ब्रा के ऊपर के हल्के पारदर्शी सफ़ेद इनर को तक रहा था. वह दोनों कपड़ों के ऊपर से मेरे खरबूजे जैसे पुष्ट स्तन को अपनी आँखों में समा लेना चाहता था. उसकी हालत दयनीय थी. उसके सामने वह साक्षात् स्वर्ग सुंदरी आधे कपड़ों में थी जिसे वह कई वर्षों से पाना चाहता था. मेरे मादक, गदराई बदन की गर्मी से उसका पूरा शरीर जल रहा था. अपने कमर के पास मैं उसके कठोर, मोटे और लम्बे अंग को महसूस कर रही थी.

उसने आव देखा ना ताव और अपने दोनों बलिष्ट बाँहों को मेरे छाती के अगल-बगल रख, मुझे पकड़, बल देकर मेरे पूरे बदन को उठाते हुए ऊपर की ओर सरका दिया. अब मेरे टांग भी बिस्तर पर थे, मेरा पूरा मांसल बदन बिस्तर पर उल्टा पड़ा हुआ था. उसने बहुत ही जल्दबाजी में मेरे इनर के दोनों निचले छोरों को पकड़ा और मेरे ऊपरी बदन को थोड़ा ऊपर उठाते हुए मेरे सिर से इनर को बाहर निकालते हुए फेंक दिया. उसने सामने अब मेरे कसे हुए स्तन बड़े स्तन सिर्फ सफ़ेद ब्रा में कैद थे. अमर वासना के चरम आग में जल रहा था. उसने मेरा दोनों हाथ अपने मजबूत बाँहों में दबोच लिया और उन्हें खिसकाते हुए ऊपर की ओर ले जाकर मेरे मखमली बिस्तर पर दबा दिया. अपना होंठ मेरे चिकने गले, मेरे गाल, मेरे कान और मेरे भरे हुए स्तन के उपरी हिस्से पर ले जाकर चुम्बन की बरसात कर दी. मैं निढाल थी, मेरे कामदेवी जैसे शरीर के हर हिस्से में आनंद की सुनामी लहर उछाल ले रही थी. अब मैं चाहती थी की वह जल्दी ही मुझे आवरण विहीन करे और मेरी प्यासी, गीली हो चुकी योनी को अपने प्रचंड हथियार से घायल कर दे. अब तक मैं सारा नियंत्रण अमर को दे रखी था, अगर अब भी वह मेरी स्थिति जान कर मुझ पर प्रहार ना करता तो मैं उस पर चढ़ कर खुद उसका लिंग अपने अन्दर ले लेती. पर अमर अनुभवी था, उसे इस क्रीड़ा में महारत हासिल थी.
उसने एक झटके से अपने   दायें हाथ से मेरी  बाएं वक्ष के ऊपर के ब्रा को पकड़ कर उसे मसलते हुए  नीचे कर दिया. "आआह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्" मैं कराह उठी. मुझे उसकी यह हरकत बहुत पसंद आई. मेरी  पुष्ट कठोर उरोज उसके सामने पूरी तरह   नंगी थी, जिसका अग्र नुकीला भाग कड़ा होकर उसको आमंत्रण दे रहा था. पता नहीं उसने कितने बार उसे सोच कर खुद से मेहनत की होगी. उसने बिना कोई पल गंवाए नीचे झुक कर वह अग्र कठोर भाग अपने मुंह में ले लिया. और उसे चूस-चूस कर अपनी प्यास बुझाने लगा. अपने दूसरे हाथ से वह मेरा दूसरा वक्ष मर्दन कर रहा था. मेरी टाँगें फैली हुई थी, उसका कमर  मेरे दोनों टांगों के बीच मुझे हौले-हौले धक्के लगा रहा था. मैं बेसब्र थी, मैंने अपने  हाथ छुड़ाए और दोनों हाथ नीचे ले जाकर उसका बेल्ट खोलने लगी. मैंने फिर उसके जीन्स का बटन खोल दिया, उसके जिप को नीचे कर दिया. वह मुझसे थोड़ा अलग हुआ और अपना जीन्स निकाल फेंका, मैंने उसे टी-शर्ट निकालने को इशारा किया. उसने अपना टी-शर्ट भी निकाल फेंका. मैंने अपना हाथ पीछे मोड़ कर अपनी ब्रा का हुक खोल दिया और ब्रा बिस्तर पर फेंक दिया. फिर मैंने दोनों हाथ नीचे ले जाकर अपनी पैंटी को अपने पैरों से सरका कर निकाल फेंका. अब मैं स्वर्ग की अप्सरा पूरी आदमजात नंगी थी. मेरे बदन का एक-एक तराशा हुआ अंग, पूरे कमरे को चकाचौंध कर रहा था. पुष्ट, मांसल और गदराई शरीर, जिसका हर अंग सम्पूर्ण गोलाईयां लिए, तने हुए दो कठोर दूध, सपाट चिकना पेट, और उसके नीच दो कन्दली सम्पूर्ण गोलाईयां लिए जांघें, जांघों के कटाव के बीच में मेरी चिकनी ललचाती योनी. मुझे ऐसे देख कर किसी भी उम्र का व्यक्ति अपने होशो हवास खो बैठता था. अमर मेरे सामने मुझे आवक निहार रहा था.
मैंने अपना हाथ आगे बढ़ा कर उसके अंडरवीयर के ऊपर से ही उसका लिंग अपने हाथों में समेट लिया. "आआअह्हह्हह्ह, रश्मि. तू मुझे इतने दिनों तक क्यों नहीं मिली अमर ने कहा" "चुप चाप जो कर रहा है कर, ज्यादा बात मत कर" मैंने उसे कहा और उसका अंतिम वस्त्र उसके शरीर से निकल दिया. अमर सिंह ऊपर नीचे, सब तरफ से एक भरपूर मर्द था. उसके लम्बे और कड़े लिंग में नसों की रेखाएं स्पष्ट दिखाई दे रही थी. मैं उसके विशाल लिंग को अपनी हाथ में लिया और मसलने लगी. वह "आःह्ह्ह, रश्मि अआह्ह" की आवाजें निकाल रहा था. मेरी टांगों की बीच की जगह पूरी तरह गीली थी, मेरे सब्र का बांध टूट रहा था. मैंने उसके लिंग को पकड़ कर अपनी ओर खींचा और उसका लाल अग्र भाग ले जाकर अपने योनी के मुहाने पर रख दिया. उत्तेजित अमर मुझ पर टूट पड़ा, वह मुझे बिस्तर पर गिरा कर मेरे पैरों पर चढ़ गया. मैं चाहती भी यही थी. मेरी टांगों को फैला कर उसने अपनी उँगलियाँ मेरी योनी द्वार पर रख दी. उँगलियों से वह मेरी योनी को मसल रहा था. "आआह्हह्हह, नहीं. अब हो गया, अब जो अन्दर डाला जाता है, डाल दे" मैंने कहा. काम वासना के चरम पर पर बैठे अमर ने अपने लिंग को पकड़ कर एक झटके से मेरी पूरी योनी के अन्दर डाल दिया. "आह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्हह्ह्ह्हह्ह्ह्हह्ह" मैं कराह उठी. वह बिना रुके और बिना सुने, मेरे दोनों बाँहों को अपने हाथों से दबोच कर, मेरी टांगों के बीच अपने लिंग को घुसा कर बड़े ही तीव्र गति से धक्के लगाने लगा. बीच-बीच में वह मेरा निप्पल मुंह में लेकर चूसता और काटता. वह किसी वहशी की तरह मेरे बदन को रेते जा रहा था. "आःह्ह्ह स्स्स्स आआह्ह स्स्स्स स्स्स्स" मैं आनंद से कराह रही थी. वह बहुत ही उत्तेजित होकर बेसब्री से, लगातार मुझपे वॉर कर रहा था. वह ऐसे उस क्रीड़ा में लिप्त था जैसे उसने जिंदगी में पहली बार यह किया हो. जबकि मैं अच्छे से जानती थी, अमर ने अब तक पचासों लड़कियों को दबोचा होगा. हो सकता है यही उसका तरीका हो.

वह लगातार, काफी देर तक उसी गति से मुझे भोगता रहा. उसका एक-एक धक्का मैं अपने पेट के अंदरूनी गहराई में महसूस कर रही थी. वह मेरे बड़े दूधों को चूसता, उन्हने मसलता और फिर से उसी गति से मेरी योनी में लिंग भेदन करता. मैं आनंद की चरम सीमा पर थी. यह रात मेरे जीवन के काम क्रीड़ाओं की यादगार रात बन गयी. हमने रात भर में तीन-चार बार अपने हवास की आग को बुझाया. कभी वह ऊपर तो कभी वह नीचे. मैं आनंद से सराबोर हो उठी. ऐसा नहीं था कि मुझे काम क्रीड़ा का कोई अनुभव ना हो पर मेरी 22 वर्ष की उम्र में पहली बार मैं इतनी उत्तेजित और आनंदित हुई. अंतिम बार के बाद हम पूरी तरह से थक कर चूर होकर वैसे ही सो गये.

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दूसरे दिन सुबह मेरे जॉइनिंग का दिन था, सुबह 8 बजे मुझे आई.आई.ए. के ऑफिस में रिपोर्ट करना था. जब मैं सुबह 6 बजे उठी तो अमर वैसे ही घोड़े बेचकर सो रहा था. खैर मुझे उससे क्या था. मुझे तो अपने भविष्य के यात्रा की शुरुवात करनी थी. मैं जल्दी से गयी, फ्रेश होकर नहा कर अपने ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़े होकर अपने हाहाकारी बदन को आईने में देखकर गर्वान्वित हो रही थी. मेरे बदन के सांचे में ढले एक-एक हिस्से में मुझे गर्व था. अगर मैं याद करूँ तो आज तक मुझे दो ही लोग मिले हैं जिनके बदन और रूप रंग से मैं प्रभावित थी. जिसकी तुलना मैं खुद से कर सकती थी. एक तो रीमा शर्मा और एक जूलिया एन मैंम. रीमा तो फिर भी मुझसे 19 ही थी पर जूलिया मैंम, उनके सामने मैं कुछ भी नहीं. मैं आश्चर्यचकित थी कि कैसे इस उम्र में भी वो हर तरह से मुझसे बेहतर थीं. क्या शानदार बदन है उनका. बड़े-बड़े वक्ष, शानदार गोलाईयां लिए मांसल और पुष्ट बदन. वैसे ही लगभग साढ़े 6 फुट की ऊंचाई उनकी. वो सी.आई.ए. के एक तेज तर्रार सीनियर एजेंट थीं. मैं सच में उनसे काफी प्रभावित थी. "क्या मेरी आज उनसे मुलाकात होगी" यही सब सोचते मैं कपड़े पहन कर, आईने से सामने खड़े होकर निश्चिन्त अवस्था में अपने बालों पर कंघी कर रही थी. समय कम था 7 बज रहे थे, तभी किसी ने पीछे से आकर अपने दोनों हाथों को आगे ले जाकर टॉप के ऊपर से मेरे दोनों वक्षों को पकड़ लिया. मैं तुरंत सक्रीय हुई और मैंने अपने दायें हाथ की कोहनी से एक भरपूर वार पीछे की ओर मारा. मार बहुत जोरदार थी, वह अमर ही था. वह 4-5 फूट दूर जाकर जमीन में गिरा. उसे तुरंत अहसास हुआ होगा कि रात में अगर मैं उसके नियंत्रण में थी तो अपनी मर्जी से. वरना मुझसे भिड़ने का अंजाम बहुत बुरा होता है. वह अपने सीने पर चोट वाले स्थान पर हाथ रख कराहते हुए मुझे देख बोला "क्या था रश्मि यह?" "रात में जो कुछ भी हुआ वह नशे के कारण था, उससे ज्यादा कुछ उम्मीद मत रखना मुझसे" मैंने कहा.

"कितनी निर्दयी हो तुम उसने उठते हुए कहा" "मैं ऐसी ही हूँ" मैंने कहा. "चल अपना बोरिया बिस्तर बांध और निकल यहाँ से, मुझे तुरंत कहीं जाना है" कहते हुए मैं फिर से आईने की तरफ  मुड़ गयी. अमर ने तुरंत अपना कपड़ा पहना और वहां से चलते बना.
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RE: रश्मि का आरंभ- रश्मि मंडल - by rashmimandal - 14-07-2022, 03:30 PM



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