07-07-2022, 03:53 PM
तुने जो किया सो किया पर मैं जानती हूँ…तू अब बड़ा हो चूका है….तू क्या करता है…. कही तू अपने शरीर को बर्बाद….तो नहीं…कर रहा है”मैंने इसका मतलब नहीं समझ पाया. हक्का बक्का सा दीदी का मुंह ताकता रहा. दीदी ने मेरे से फिर पूछा “कही….तू कही….अपने हाथ से तो नहीं….”. अब दीदी की बात मेरी समझ में आ गई.
दीदी का ये सवाल पूछना वाजिब था क्योंकि मेरी हरकतों से उन्हें इस बात का अहसास तो हो ही चूका था की मैंने आज तक किसी लड़की के साथ कुछ किया नहीं था और उन्हें ये भी पता था की मेरे जैसे लड़के अपने हाथो से काम चलाते है. पर मैं ये सवाल सुन कर हक्का बक्का सा रह गया गया. मेरे होंठ सुख गए और मैं कुछ बोल नहीं पाया. दीदी ने फिर से मेरी बाँहों को पकड़ मुझे झकझोरा और पूछा “बोलता क्यों नहीं है….मैं क्या पूछ रही हूँ….तू अपने हाथो से तो नहीं करता…” मैंने नासमझ होने का नाटक किया और बोला “हाथो से दीदी…म म मैं समझा नहीं…”
“देख….इतना तो मैं समझ चुकी हु की तू लड़कियों के बारे में सोचता..है…इसलिए पूछ रही हु तू अपने आप को शांत करने के लिए….जैसे तू अभी मेरे साथ…उफ़ बोलने में भी शर्म आ रही पर….अभी जब तेरा….ये तन जाता है तो अपने हाथो से शांत करता है क्या…इसे…” मेरे पैंट के उभरे हुए भाग की तरफ इशारा करते हुए बोली. अब दीदी अपनी बात को पूरी तरह से स्पष्ट कर चुकी थी मैं कोई बहाना नहीं कर सकता था गर्दन झुका कर बोला “दी…दीदी…वो वो…मुझे माफ़ कर…माफ़…” एक बार फिर से दीदी का हाथ चला और मेरी गाल फिर से लाल हो गई
दीदी का ये सवाल पूछना वाजिब था क्योंकि मेरी हरकतों से उन्हें इस बात का अहसास तो हो ही चूका था की मैंने आज तक किसी लड़की के साथ कुछ किया नहीं था और उन्हें ये भी पता था की मेरे जैसे लड़के अपने हाथो से काम चलाते है. पर मैं ये सवाल सुन कर हक्का बक्का सा रह गया गया. मेरे होंठ सुख गए और मैं कुछ बोल नहीं पाया. दीदी ने फिर से मेरी बाँहों को पकड़ मुझे झकझोरा और पूछा “बोलता क्यों नहीं है….मैं क्या पूछ रही हूँ….तू अपने हाथो से तो नहीं करता…” मैंने नासमझ होने का नाटक किया और बोला “हाथो से दीदी…म म मैं समझा नहीं…”
“देख….इतना तो मैं समझ चुकी हु की तू लड़कियों के बारे में सोचता..है…इसलिए पूछ रही हु तू अपने आप को शांत करने के लिए….जैसे तू अभी मेरे साथ…उफ़ बोलने में भी शर्म आ रही पर….अभी जब तेरा….ये तन जाता है तो अपने हाथो से शांत करता है क्या…इसे…” मेरे पैंट के उभरे हुए भाग की तरफ इशारा करते हुए बोली. अब दीदी अपनी बात को पूरी तरह से स्पष्ट कर चुकी थी मैं कोई बहाना नहीं कर सकता था गर्दन झुका कर बोला “दी…दीदी…वो वो…मुझे माफ़ कर…माफ़…” एक बार फिर से दीदी का हाथ चला और मेरी गाल फिर से लाल हो गई
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.