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Incest बहन की पहली बरसात (कुंवारी)
#9
चाय का पानी अब उबल रहा था। मैंने चाय उड़ेलकर दो ट्रे बनायीं। एक मैंने मीता को देते हुए कहा- “हे, जरा यह मेरे भाई को दे के आओ। रात भर में तुमने उसकी सारी मलाई निकाल ली , अब थोड़ा रीप्लेनिश भी करो।

और हाँ, बेड-टी देने के पहले उसके हथियार को गुड मॉर्निंग का एक गरम-गरम किस दे के उठाना…”
“हाँ… मैं कह दूँगी कि यह किस मेरी भाभी की ओर से है…” अपने जवान नितंबों को हिलाते हुए वह बोली और जाने लगी।
“अच्छा चारा खाकर चिड़िया बहुत बोलने लगी है, आज मैंने अपने सैयाँ से तुम्हारी ये कोरी -कोरी गान्ड न मरवायी तो कहना…”

“ठीक है भाभी, आपके भैया को देख लिया, अब आपके सैयाँ को भी देख लूंगी…” किसी खिलती छिनार जैसे अपने चूतड़ मटकाकर वह बोली और चली गयी।
मैं भी अपने पति के लिए बेड-टी लेकर ऊपर आयी। उन्हें जल्दी जाना था इसलिए वे तैयार हो रहे थे। जब वे बाहर आये तो आंगन में फिर सावन भादों की झड़ी लग गयी थी। उन्हें छेड़ती हुई मैं बोली –
“तेरी दो टकिया की नौकरी, मेरा लाखों का सावन जाये।
हाय हाय ये मजबूरी, ये मौसम और ये दूरी…”
उसने मुझे बाहों में भींचकर कहा कि जानती हो, इस मौसम में मेरा बस एक ही मन करता है कि तुम्हें खींच के बारिश में ले जाऊँ , और वहां हम लोग खूब जमकर भीगें और वही तुम्हें मैं रस ले-लेके चोदू उसके होंठ मेरे होंठों के अमृत का पान कर रहे थे और उसके हाथ मेरे बालों में चल रहे थे।
“तो फिर देर क्या है? मैं भी हूँ और बारिश भी है…” आँख. मटकाकर मैंने उन्हें चेलेंज किया और फिर मेरा मतलब साफ करने के लिए उनकी पैंट में फिर से सरसराते हुए उनके लंड को पकड़ लिया।

“यू नो, आज मैं चार बजे तक जल्दी घर आने की सोच रहा था, उसके बाद… लेकिन यू नो, इट विल नाट बी पासिबल…” वे बोले।
“डालिग. , मैं जानती हूँ कि तमु किस प्राबलम की बात कर रहे हो पर अगर मैं वह प्राबलम साल्व कर दूं तो बस मेरी एक छोटी सी शर्त है, तुम्हें एक काम करना होगा…” अब तक मैंने उनका जिप खोल लिया था और ब्रीफ़ के
ऊपर से उसका करीब-करीब पूरा तन्नाया लंड सहला रही थी।
“बोलो ना क्या शर्त है तुम्हारी , यू नो, मैं वैसे ही जोरू का गुलाम हूँ, जो कहोगी वह करूँगा …” मुझे भूखे की तरह आलिगन में लेकर मेरा पल्लू उठाकर मेरे स्तन जोर से मसलते हुए उन्होने कहा।
“ओके, तो जिसके साथ, जैसे, जो भी कहूंगी… करना पड़ेगा, कोई भी नखरा नहीं चलेगा…” मेरा हाथ अब उसके ब्रीफ़ में घुसकर उसके सुपाड़े की चमड़ी नीचे कर रहा था।
“हाँ, हाँ, जिसके साथ, जैसे भी, जो भी कहोगी करूँगा, करूँगा, करूँगा, लेकिन आज शाम को…”

“ओके, हो जायेगा, डार्लिंग, तुम्हारे लिए कुछ भी … पर अपना प्रामिस याद रखना…” अपना हाथ निकालते हुए मैंने कहा- “पर अभी तो नास्ते पर चलो, मीता और संजय इंतेजार कर रहे होंगे…”
नास्ते की टेबल पर मीता और संजय साथ-साथ बैठे थे। संजय का हाथ मीता के कंधे पर था। मेरे ढले पल्लू को देखकर मीता ने मजाक किया- “भाभी, मैं तो सोच रही थी कि आप भैया को कमरे में ही नाश्ता करा रही हैं…”
“अरे मैं इत्ते दिनों से तुम्हारे भैया को नाश्ता करा रही हूँ लेकिन अब आज से तुम उनको नाश्ता कराओ, उनका भी टेस्ट बदल हो जायेगा। पर ये बताओ कि तुमने मेरे भैया को कराया कि नहीं?” मैंने उसी तरह का जवाब दिया।
कल की धुआंधार रति के बाद मीता आज एकदम बदल गयी थी। अपने भैया की प्लेट में हलवा परोसते हुए अपनी चूंचियाँ तानकर बड़ी शैतानी भरी मुस्कान के साथ बोली – “ठीक है, ली जिये भैया, ये मैंने अपने हाथ से बनाया है, सिर्फ़ भाभी क्यों, मैं भी करा सकती हूँ…”
यह नोंक झौंक सुनकर मैंने टेबल के नीचे से राजीव के लंड पर हाथ रखा तो वह पूरा तन्नाकर खड़ा हो गया था।

“और हाँ भाभी, ये मत कहियेगा कि मैं अपने भाई का खयाल नहीं रखती हूँ, जरा देखिये…” उस भरी प्लेट की ओर इशारा करते हुए वह आगे बोली ।
“ठीक है, खयाल तो रखना ही चाहिये… पर आपको भी मेरी ननद का खयाल रखना होगा, अरे जरा केला तो पास कीजिये मीता को…” एक प्लेट में रखे मोटे ताजे केलों की ओर इशारा करती हुई मैं अपने पति से बोली ।
उसने सबसे मोटा केला उठाकर मेरी किशोरी ननद को दे दिया जिसने उसे बड़े प्यार से पकड़कर धीरे-धीरे उसे छीला, बिलकुल इस अंदाज में जैसे वह सुपाड़े पर की चमड़ी उतार रही हो, और फिर उसे चाटते हुए अपने मादक होंठों के बीच ले लिया।
यह अब राजीव के सब्र की सीमा के बाहर था क्योंकी अब उसका लंड जिपर तोड़कर बाहर आने को आमादा हो गया था।
मैंने अब विषय बदला और संजय को पूछा- “हे, आज शाम को तो तुम फ्री हो?”
“हाँ, पर रात को दस बजे तक लौट जाऊँगा…”

“तो ठीक है, मीता तुम जानती हो ना, वेव्ज, जो नया वाला वाटर पार्क है, वहां आज शाम को रेन डांस है, शाम चार बजे से, और कपल्स के लिए है, उन्होने इन्विटेशन भेजा है, और ये देर से आते हैं तो हम लोग तो जा नहीं पाएँगे, तो संजय तुम मीता को लेकर चले जाना। थोड़ा दूर है इसलिए तुम लोग तीन बजे ही निकल लेना। और तुम्हें मालूम है, कुछ बड़े एक्साइटिन्ग खेल हैं। और डेयरिंग कपल्स के लिए प्राइज़ेज़ भी हैं। मुझे यकीन है कि तुम और मीता बहुत से प्राइज़ेज़ लेकर लौटोगे…”
संजय बोला कि ठीक है।
मीता भी खुशी से फूलकर कुप्पा हुई जा रही थी।
पर जब मैंने अपने पति की ओर देखा तो सबसे ज़्यादा खुशी उन्हें हुई थी। जब मैं उसे छोड़ने और गुडबाइ किस देने को दरवाजे तक गयी, तो मुझे कसकर आलिगन में लेकर वे बोले “सो मेनी थॅंक्स टु यू, मैं ठीक चार बजे तक आ जाऊँगा, पर वह शर्त क्या है?”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: बहन की पहली बरसात (कुंवारी) - by neerathemall - 07-07-2022, 02:49 PM



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