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Incest बहन की पहली बरसात (कुंवारी)
#6
उसकी बात काट कर उसके फिर से जागते हुए लंड को पकड़कर मैं बोली – “अरे यार, आजकल तो लोग सगी को नहीं छोड़ते और फिर वह तो तुम्हारी … जानते हो कई मज हबों में तो ऐसे रिश्तों में बाकायदा शादी भी होती है…

फिर? अच्छा ये बताओ, तुम्हें वह कैसी लगती है?”
“अच्छी लगती है…”
“अच्छा और आज उसकी चुचियों को देखकर तुम्हारा लंड खड़ा हो गया था ना?” कहते हुए मैंने उसके सुपाड़े पर से चमड़ी नीचे कर दी । अब वह फिर करीब करीब पूरा खड़ा हो गया था।
“वो…वो…वो मैंने बोला तो था तुम्हें… अब देखकर तो हो जायेगा…”

“अच्छा तुम्हें उसकी चूची के अलावा क्या मस्त लगता है? उसके चूतड़ कैसे लगते हैं? अगर उसकी गान्ड मारने को मिले? सोचो मस्त-मस्त भारी गान्ड लेकिन एकदम कसा-कसा छेद, कैसे फँस-फँसकर तुम्हारा ये मूसल जायेगा…”
अब मेरी बात का जवाब उसके लंड ने उचक कर दिया। सिर्फ़ मेरी वर्णन से ही वह फिर ट न्ना गया था और मेरी मुट्ठी के बाहर आ गया था।
“देखो मेरी ननद के चूतड़ और उसकी गान्ड के बारे में सोच करके ही कितने कस के खड़ा हो गया। इसका मतलब है कि तुम्हारा उसकी लेने का कितना मन करता है…” अब मैं उसके लंड को कसकर मुठिया रही थी-
“एक बार उसकी कुँवारी कसी गान्ड मार लो…”
अब वह इतना कामो त्तेजित हो गया था कि मुझे पटककर मुझपर चढ़ बैठा- “ननद की गान्ड तो मैं बाद में मारूँगा पर आज भाभी की नहीं छोड़ूंगा…”
मुझे फिर कोहनियों और घुटनों पर खड़ा करके उसने पीछे से मेरी चूत में लंड डाल दिया। कुछ देर चोदने के बाद लंड बाहर खींचकर उसने मेरे चुतड़ों के बीच उतार दिया। ओह क्या दर्द हुआ? और कितना मदभरा दर्द? क्या सुख मिला? मैं पहली बार गान्ड नहीं मरा रही थी, कई बार हम ऐसा गुदा सIभोग करते थे।

पहले धक्के में लंड का छोर बस मेरी गान्ड के छल्ले को पार कर सका। पर उसने पेलना जारी रखा और धीरे- धीरे उसका सुपाड़ा पूरा मेरी गान्ड में घुस गया। अब वह रुक गया और उसकी दो उंगलियां मेरे चूत में घुसकर चूतमंथन करने लगीं। दूसरे हाथ से वह मेरा स्तनमर्दन करने लगा। इस दोहरी मीठl मार के आगे मेरा दर्द हवा हो गया और अचानक मेरी दोनों चूंचियाँ हाथों से कुचलकर उसने एक जोरदार धक्का लगाया। मेरी चीख निकलते-निकलते बची। शायद आधा लंड मेरी गान्ड में घुस गया था। अब मुझे भी मजा आने लगा था।
मेरी स्थिति देखकर कि मैं सम्भल गयी हूँ, वह अब मेरी गान्ड मारने लगा। उसकी दो उंगलियां मेरी चूत के अंदर घुसकर मेरा चरम बिंदु ढूँढ़ रही थीं और अंगूठा मेरी क्लिट पर चल रहा था। दर्द और मादक सुख का वह एक अद्भुत मिश्रण था। मैं जानती थे कि वह आज दो बार पहले ही झड़ चुका है इसलिए मेरी गान्ड की अच्छी मराई होगी। मीता के बारे में मेरे ताने सुन-सुनकर वह आपे के बाहर हो गया था और घचाघच मेरी गान्ड चोद रहा था पर मुझे बहुत आनंद आ रहा था।
मैंने अपनी गुदा सिकोड़कर उसके लंड को पकड़ा तो वह समझ गया कि अब मुझे मजा आ रहा है। उसने करीब-करीब पूरा लंड सुपाड़े तक बाहर खींचकर निकाला और फिर धीरे-धीरे अंदर धँसाने लगा। मैंने फिर छेड़ा-

“हाँ, ऐसे ही कल मेरी ननद की गान्ड मारना…”
मेरी बात सुनकर उसका लंड मेरी गान्ड में उछलने लगा और जवाब में उसने मेरे क्लिट को मसलते हुए कसकर मेरी चूची दबायी और एक शक्तिशाली धक्के में अपना लंड जड़ तक मेरी गान्ड में उतार दिया। फिर झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोला- “उसकी तो मैं कल मारूँगा पर आज तुम अपनी गान्ड मरवा लो…”
जवाब में मैंने अपने चूतड़ पीछे धकेले और बोली – “चलो मेरे राजा मान तो गये कि कल मेरी ननद की गान्ड मारोगे…”
हम आधे घंटे तक इस गुदा सIभोग का मजा लेते रहे और फिर वह मेरी गान्ड में झड़ गया। पर तब तक उसकी उंगलियों के जादू ने मेरा भी दो बार काम तमाम कर दिया था। रात ढलने को आ गयी थी और एक दूसरे की बाहों में सिमटकर हम आखिर गहरी नींद सो गये।
***** *****
सुबह मैं जल्दी उठ गयी और नीचे आकर चाय बनाने लगी। कुछ देर में मीता भी आयी पर उसकी चाल देखकर ही मैं समझ गयी कि चिड़िया ने चारा घोंट लिया है। चाय का पानी मैंने बढ़ा दिया। उसकी चूची को उसके फ्रोक पर से ही मसलते हुए मैंने पूछा- “क्यों रानी, कैसी गुजरी रात? फट गयी कि बच गयी?”

शरमा कर मुस्कुराते हुए वह बोली – “फट गयी…”
पर मैं उसे ऐसे थोड़े छोड़ने वाली थी। उसकी छोटी -छोटी चूंचियाँ पकड़कर दबाते हुए मैमे पूछा- “वाऊ… कितनी बार?”
“तीन बार…” उसने स्वीकार किया। अब लज्जा से उसके गाल लाल हो गये थे।
मैं बोली – “चलो, हाल खुलासा बयान करो। और एकदम शुरू से, कोई चीज छुपाना नहीं…”
वह बोली – “भाभी, एकदम शुरू से?”
मैंने कहा हाँ।
मीता ने अपनी कहानी शुरू की- “भाभी, तुम्हें याद है कि जब कल रात संजय आया था तो भीगा हुआ था और फिर उसने कुरता पजामा पहन लिया था। मैंने उसे तौलिया दिया और उसकी गीली पैंट सुखाने को ले गयी। जब
उसके पाकेट में देखा तो उसका बटुआ था।

उसे छेड़ते हुए मैं बोली – “तुम्हारा बटुआ खाली कर देती हूँ, अंदर जो भी होगा वह सब मेरा…”
यह सुनकर वह पागल सा हो गया और पर्स छुड़ाने की कोशिस करने लगा। पर मैं छूट कर भाग आयी और अंदर देखा। अंदर देखा तो एक फोटो था। मैं उसे निकालने लगी तो वह अपनी बात पर अड़ गया- “देखो मीता, तुम सारे पैसे ले लो पर यह फोटो मुझे दे दो…”
“क्यों? तुम्हारी गर्लफ्रेंड है क्या? बड़ी खूबसूरत और लकी होगी जो तुम्हें काबू में कर लिया…”
वह बार-बार मुझसे याचना कर रहा था कि मैं फोटो न देखूं।
मैं भी अड़ी रही – “क्यों, ऐसी कौन सी हूर है कि मैं देख भी नहीं सकती, मैं तो ज़रूर देखूँगी, देखकर बस वापस कर दूँगी…”
वह फिर से फोटो छुड़ाने की कोशिस करने लगा पर मैंने ऐसी जगह अपना हाथ डालकर उसे छुपा लिया जहाँ कोई हाथ नहीं डालेगा, जो लड़कियों के लिए सबसे सेफ जगह है, याने मेरी ब्रा में। पर वह इतना व्याकुल था कि उसने हाथ वहां भी डाल दिया और फोटो ढूँढ़ने को इधर-उधर टटोलने लगा।

उसके हाथों का मेरे स्तनों को स्पर्श होना ही था कि मेरे रोम-रोम में सिहरन सी दौड़ गयी। असल में मैंने फोटो अपने दूसरे हाथ में छुपा लिया था इसलिए चुपचाप नजर. हटाकर देख लिया कि किसका फोटो है। फोटो देखते ही मैं रोमांचित हो उठी और अपने धड़कते सीने पर हाथ रख लिया। इससे अंजाने में उसका हाथ मेरे उरोजो पर और दब सा गया।
वह फिर से फोटो छुड़ाने की कोशिस करने लगा पर मैंने ऐसी जगह अपना हाथ डालकर उसे छुपा लिया जहाँ कोई हाथ नहीं डालेगा, जो लड़कियों के लिए सबसे सेफ जगह है, याने मेरी ब्रा में। पर वह इतना व्याकुल था कि उसने हाथ वहां भी डाल दिया और फोटो ढूँढ़ने को इधर-उधर टटोलने लगा। उसके हाथों का मेरे स्तनों को स्पर्श होना ही था कि मेरे रोम-रोम में सिहरन सी दौड़ गयी। असल में मैंने फोटो अपने दूसरे हाथ में छुपा लिया था इसलिए चुपचाप नजर. हटाकर देख लिया कि किसका फोटो है। फोटो देखते ही मैं रोमांचित हो उठी और अपने
धड़कते सीने पर हाथ रख लिया। इससे अंजाने में उसका हाथ मेरे उरोजो पर और दब सा गया।
“हे, किसका फोटो था? जरा बता तो…” मैं भी अपनी उत्सुकता नहीं छुपा पायी।

मीता बोली – “मेरा…” फिर आगे की कहानी बताते हुए बोली – “अब मुझे समझ में आया कि वह क्यों उसे छुपाने को इतना उत्सुक था। मैं शरमा गयी, मन में एक खुशी की ऐसी लहर दौड़ी कि अनजाने में मैंने अपना हाथ अपने धड़कते दिल पर रख लिया जिससे उसका हाथ मेरे स्तनों पर और दब गया। संजय भी थोड़ी दुविधा में था, मुझसे मिन्नत करने लगा कि किसी से कहना नहीं…”
मैं सातव. आसमान पर थी इसलिए कुछ कहने सुनने की स्थिति में नहीं थी। संजय ने फिर से मुझे पूछा कि मैंने बुरा तो नहीं माना। अब तक मुझे उसके हाथ के अपने उरोजो पर दबाव का अहसास हो गया था और वह भी अपना हाथ छुड़ाने की कोशिस कर रहा था। मैंने अपने होश संभाले और उसे अपना हाथ मेरी ब्रा में से खींचने की इजाजत दे दी पर एक बार उसकी ओर मुस्कुराकर फिर से उसे पल भर के लिए छाती पर दबा लिया।
इससे उसका हौसला बढ़ा और उसने भी मुस्कुराते हुए अपना हाथ खींच लिया।
उसकी ओर मुँह बनाते हुए मैंने कहा- “एकदम बुरा माना, बुरा क्या, हम तो गुस्सा भी हो गये…”
अब वह भी थोड़ी ढीठ हो गया था। मेरी चुचियों को घूरते हुए बोला- “अच्छा किस बात का बुरा माना?”

पर तभी तुम आ गयीं और हम अलग-अलग चल दिये। पर मैंने महसूस किया कि हमारे बीच का रस्ता अब बदल सा गया है। मैं भी ज़्यादा नखरा करने लगी और बोल्ड हो गयी। खाने पर तुम्हारी छेड़छाड़ ने तो हमें और करीब ला दिया।
“ऐ, मुद्दे पर आओ, असली बात बताओ रानी…” मैं अब बेचैन हो रही थी।
“बताती हूँ बाबा…” कहकर मीता ने बात. आगे शुरू की। रात को तुम्हारे जाने के बाद- “हे मुन्ना दुदू पीना है?” मैंने शैतानी भरे स्वर में पूछा।
उसने जवाब दिया- “लेकिन जैसे मैं चाहूं वैसे पिलाना पड़ेगा जैसे दी दी कह रही थी…”
“ठीक है तुम जैसे चाहे पी लो अगर हिम्मत हो तो, एक लड़की से छुपाकर उसकी फोटो रखे हो और… चलो मैं तुम्हारे दूध में शक्कर मिला देती हूँ…” और मैंने ग्लास को मुँह लगाकर एक घूंट पी लिया। जब ग्लास मैंने उसे दिया तो उसने वही मुँह लगाया जहाँ मेरे होंठों के निशान ग्लास पर थे। जब आधा ग्लास खाली हो गया
तो तो मैंने उसके हाथ से लेकर फिर वैसा ही किया। हम दोनों अब मदहोश से हो रहे थे, इसलिए बात आगे न बढ़ी इसलिए मैं उसे गुडनाइट करके अपने कमरे में जाने लगी।
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तभी उसने मुझे पकड़कर कहा- “एक गुड नाइट किस तो दो पहले…” और मेरे दहकते होंठों पर अपने होंठ रख दिये। बिना उसकी ओर देखे अपने आपको अलग करके मैं अपने कमरे में चली गयी पर अपना दरवाजा मैंने खुला रखा।
तभी उसने मुझे पकड़कर कहा- “एक गुड नाइट किस तो दो पहले…” और मेरे दहकते होंठों पर अपने होंठ रख दिये। बिना उसकी ओर देखे अपने आपको अलग करके मैं अपने कमरे में चली गयी पर अपना दरवाजा मैंने खुला रखा।
“फिर क्या हुआ…” उत्सुकता से मैंने पूछा।
मीता आगे बोलने लगी- भाभी आप तो जानती हैं कि कल मौसम कितना सेक्सी था। मेरे कमरे में खिड़की से ठंडी हवा आ रही थी और पानी तेजी से बरस रहा था। ऊपर के कमरे से आप लोगों की मादक आहो की आवाज भी आ रही थी। जैसा आपने और भाभी ने झूले पर मुझे वहां छुआ था, मेरा हाथ अपने आप वहां चला गया, और यू नो मैं एकदम गीली थी। मैं संजय के बारे में और आज शाम हुई सब घटनाओं के बारे में सोच रही थी और मेरी उंगलियां धीरे-धीरे वहां चल रही थीं। मैं सोने की कोशिस कर रही थी तभी जोर से बिजली कौंधी।

आप तो जानती हैं कि मुझे बिजली से कितना डर लगता है और मैं चीख पड़ी और यह सुनकर वह अंदर आ गये। मैंने उससे प्रार्थना की कि थोड़ी देर मेरे पास लेट जाओ और वह मान कर मेरे पास सो गया। मेरा दिल धड़क रहा था और इसलिए मैंने उसका हाथ फ्रोक के अंदर मेरे दिल पर रख दिया। तभी बिजली फिर चमकी, इस बार वह इतनी प्रखर थी कि मैंने उसे पकड़ लिया और कहा- “प्लीज़, मुझे कस के पकड़ लो…” और उसका हाथ मेरे स्तनों पर दबा दिया।
उसके बाद वह मुझे धीरे-धीरे सहलाने लगा। मेरे सारे बटन उन्होने खोल दिये और ब्रा का हुक भी निकाल दिया।
जब तक मैं समझती, मेरे दोनों उरोज उनके हाथ में थे और वे बड़े प्यार से धीरे-धीरे उन्हें सहला रहे थे। मैं थोड़ा अपराधीपन महसूस कर रही थी और अच्छा भी लग रहा था। मुँह से मैं कह रही थी कि नहीं नहीं पर… यह उसको भी समझ में आ गया।
उन्होने मेरा फ्रोक उतारने की कोशिस की तो मैंने मना कर दिया- “नहीं, प्लीज़ नहीं…”
उसने गिड़गिड़ा कर कहा- “मीता, प्लीज़, मेरा बहुत दिनों से मन है। मैं बस तुम्हें कस के बाहों में लेना चाहता हूँ। लगता है कि मैं तुम्हें भींच लूं और हमारे बीच में कुछ भी न हो…”

मैंने बेमन से इजाजत दे दी – “ठीक है, पर प्लीज़, थोड़ी देर के लिए, मुझे बहुत शर्म लग रही है…” तभी बिजली गुल हो गयी।
“तो मैं फ्रोक उतार दूँ? ” वह बोला।
मैंने धीरे से कहा- “हाँ…”
उसने खींचकर उतार दिया। हम शीट के नीचे थे इसलिए मुझे यकीन था कि वह मेरा नग्न शरीर नहीं देख पायेगा। उसने भी बनियान उतार दिया था और उसकी चौड़ी छाती मेरी छाती से भिड़ी हुई थी। मेरी झिझक भी अब जाती रही थी और मैं अपनी कमसिन जवान चूंचियाँ उसकी छाती पर दबा रही थी। हम आपस में पागल1 जैसी चूमाचाटी कर रहे थे।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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RE: बहन की पहली बरसात (कुंवारी) - by neerathemall - 07-07-2022, 02:20 PM



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