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Incest बहन की पहली बरसात (कुंवारी)
#5
वह बोली – “नहीं भाभी, मैं दोनों का खयाल रखूंगी…” मीता का टाइट फ्रोक लो कट था और जब वह झुकती, दोनों पुरुष उसके मचलते स्तनों और बीच की घाटी के सौंदर्य का मजा लेते। मैंने अपने पति की पैंट में दिखते तंबू का अंदाजा लिया। वह फिर से अपना सिर उठा रहा था। उसे दबाते हुए मैंने मीता को फिर ताना मारा- “देखो, जैसे मैं रोज तुम्हारे भाई का खयाल रखती हूँ, वैसे ही तुम मेरे भाई का खयाल रखो…”

मेरी बात का दुहरा अर्थ समझकर वह शर्मा गई पर उलट कर बोली – “दे तो रही हूँ आपके भाई को पर वे ही शरमा रहे हैं…”
खाने भर हमारी यह छेड़छाड़ और हँसी मजाक चलते रहे। राजीव का अब पूरा खडा हो गया था, शायद मेरी किशोरी ननद के जवान जोबन के लगातार दर्शन, मेरी उंगलियों की उसके लंड से खेल और सावन की लगातार झड़ी ने उसे मदहोश कर दिया था। एक जम्भाइ देकर दर्शाते हुए कि वह थक गया है, राजीव उठा और जाने के पहले मुझे जल्दी आने को कह गया।

मीता मुझे बोली – “भाभी, भैया को नींद आ रही है, जाके सुला दी जिये…”
मैने उसके गाल पर चुन्टी काट कर कहा- “ठीक है, उन्हें तो मैं रोज सुलाती हूँ, पर तुम आज जरा मेरे भाई को ठीक से सुलाना…”
संजय के सोने का इंतजाम मैंने मीता के पास वाले कमरे में ही किया था। वह कमरा असल में करीब-करीब मीता के कमरे का ही एक भाग था, बीच में बस एक दरवाजा था। मैं दो _गलास दूध लाई और मीता को देते हुए बोली – “एक तुम्हारे लिए और एक मेरे भैया के लिए, उन्हें जरा अपने हाथ से पिला देना…”
वह हँस पड़ी और संजय को छेड़ते हुए बोली – “अरे मुझे नहीं मालूम था कि साले जी अब तक दूध पीते हैं…”
मैंने संजय का पक्ष लेते हुए कहा- “अरे अगर तुम्हारे जैसी पिलाने वाली हो तो वह रात भर मुँह लगाकर पीता रहे…”
इस बार मीता ने तुरंत पलटकर जवाब दिया- “भाभी, आपके भैया तो मुँह खोलते ही नहीं…”
मैंने मीता की चूची दबाकर कहा- “अरे बन्नो, ये मेरे सामने मुँह नहीं खोल रहा है, अभी मेरे जाने के बाद देखना क्या-क्या खोलता है…”

तभी राजीव ने मुझे आवाज लगायी, कि एक _गलास पानी लेकर आऊँ ।
मीता बोली – “भाभी, जल्दी जाइये, भैया की प्यास नहीं बुझी तो…”
मैं उसकी बात काट कर बोली – “ठीक है, मैं चली तुम्हारे भाई की प्यास बुझाने और तुम मेरे भाई की प्यास बुझाओ…”
जब मैं ऊपर अपने बेडरूम में पहुँची तो देखा कि अब बात हद तक बढ़ गयी थी। राजीव पलंग पर पूर्ण नग्नावस्था में लेटा हुआ था और उसका लंड शान से झंडे जैसा सिर उठाकर खड़ा था। मैंने फटाफट अपने कपड़े उतारे और उसके उस महाकाय लंड का चुंबन लिया।
मैंने होंठों को उसके सुपाड़े पर रगड़ा और उसपर जीभ चलाते हुए पूछा- “लगता है कि आज मेरी किशोरी ननद की उभरती चूंचियाँ देखकर एकदम मस्त हो गये हो। घबराओ मत, जल्दी ही उसके कुंवारे होंठ तुम्हें चाट रहे होंगे और तुम उसके सारे रसीले छेदो का मजा लोगे…”
मेरे पति ने बात काट कर कहा- “ये क्या बोल रही हो, और किससे बोल रही हो?”
मैंने उसके लोहे जैसे सख़्त लंड को दबाते राजीव को आँख मारते हुए कहा- “अपने इस मस्त यार से जो आज मेरी कमसिन ननद की चूंचियाँ देखकर मस्त हो गया है। मैं उसको बोल रही हूँ कि उसे छोटी मस्त चूची वाली का मजा चखाऊँगी। आखिर यह मुझे इतना मजा देता है, मुझे भी तो इसका खयाल रखना चाहिये…
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” इतना कहकर मैंने मुँह खोलकर एक बार में ही उसका फूला हुआ लाल तपता सुपाड़ा अपने जलते होंठों के बीच ले लिया। मेरी लंबी स्लिम उंगलियां अब उसकी गोटियां सहला रही थीं। मेरी जीभ उसके मूंड छिद्र ~ को छेड़कर उसके डंडे को चाटने लगी थी, साथ ही मेरी उंगलियां उसकी गोटियों और गुदा के बीच के भाग को हौले-हौले रगड़ रही थीं।
अब वह बुरी तरह उत्तेजित था और मुझसे और करने की याचना कर रहा था। आखिर मैं कौन होती थी, अपने ननद के भाई को भूखा रखने वाली ? इसलिए मैंने उसे जोर से चूसना शुरू कर दिया। वह अपने चूतड़ उचका-उचका कर और मजा लेने की कोशिस कर रहा था। कुछ देर जोर से चूसने के बाद मैंने उसके लंड को मुँह से निकाला और अपने निचले मुँह के होंठों से उसे छेड़ने लगी। मैंने उसके हाथ अपने हाथ में पकड़े हुए थे और मेरी मस्त 36डीडी का जोबन उसकी छाती पर रगड़ रही थी।
अब वह बुरी तरह उत्तेजित था और मुझसे और करने की याचना कर रहा था। आखिर मैं कौन होती थी, अपने ननद के भाई को भूखा रखने वाली ? इसलिए मैंने उसे जोर से चूसना शुरू कर दिया। वह अपने चूतड़ उचका-उचका कर और मजा लेने की कोशिस कर रहा था। कुछ देर जोर से चूसने के बाद मैंने उसके लंड को मुँह से निकाला और अपने निचले मुँह के होंठों से उसे छेड़ने लगी। मैंने उसके हाथ अपने हाथ में पकड़े हुए थे और मेरी मस्त 36डीडी का जोबन उसकी छाती पर रगड़ रही थी।

बाहर कुछ देर पहले की बूंदा-बांदी अब घनघोर वर्षा में परवर्तित हो गयी थी। खिड़की पर बूँदों के गिरने की आवाज के साथ-साथ मैं अपनी चूत उसके तन्नाये लंड पर घिस रही थी। अब वह मुझसे याचना करते हुए कह रहा था- “प्लीज़, टेक इट, मेरा लंड ले लो, ओह, ओह…”
मैंने एक धीमे धक्के के साथ बस उसके लंड का छोर अपनी चूत में ले लिया और फिर रुक गयी- “ओके, मैं अभी खूब जम के चुदाई कराऊँगी पर पहले एक बात इमानदारी से बताओ…” मुझे मालूम था कि लंड का छोर चूत में फँसा हो तो इस हालत में कोई पुरुष झूठ नहीं बोल सकता।
“हाँ पूछो…” बेचारा राजीव विवश होकर बोला।
“जब तुमने मेरी ननद का जोबन देखा तो तुम्हारा खड़ा हुआ था कि नहीं?” मैंने पूछा।
“किसी का भी हो जायेगा, एक किशोरी का खिलता जोबन देखकर…” वह बोला।
“नहीं मैं तुम्हारा पूछ रही हूँ, सच सच बताओ मीता का देखकर तुम्हारा खड़ा हो गया था कि नहीं?”

“हाँ हो गया था एकदम हो गया था…” उसने स्वीकार किया “पर प्लीज़ चोदो ना…”
मैंने अपनी पतली कमर से धक्का दिया और उसका सुपाड़ा अपनी चूत में लेकर फिर रुक गयी। चूत को सिकोड़कर उसे पकड़ते हुए मैंने अपनी पूछताछ जारी रखी- “तो तुमको लगता है कि वह मस्त माल हो गयी है चोदने लायक…”
“हाँ लेकिन अभी तो तुम मुझे चोदो…”
उसके इस बात को स्वीकारने के बाद मैंने जोर से धक्का लगाया और उसक लंड गप से मेरी गीली चूत में समा गया। मतवाले मौसम के साथ-साथ मीता के बारे में की हुई मेरी छेड़-छाड़ के कारण उसका लंड लोहे के राड जैसा खड़ा हो गया था। मेरी म्यान में घुसकर उसे चौड़ा करता हुआ अंदर से मेरी कोमल नलिका को वह जोर से घिस रहा था।
अब मैं भी न रुक सकी और उछल-उछलकर उसे चोदने लगी। मेरी कसी मस्त चुचियों को वह मसल कुचल रहा था। मैं उसके कंधे पकड़कर ऊपर से धक्के लगा रही थी और उसके मतवाले लंड को अपनी चूत में निगल कर चोद रही थी।

उसके लंड को मेरी चूत अपनी माँस पेशियों को सिकोड़कर कसकर पकड़ लेती और कभी मैं उसे अपनी चूत से करीब-करीब पूरा निकाल देती। सिर्फ़ सुपाड़ा अंदर रह जाता। उसे कुछ देर तंग करने के बाद मैं उसकी पीठ अपने लंबे नाखूनों से खरोंच कर फिर उसका लंड पूरा अंदर ले लेती।
एक हवा के झोंके के साथ खिड़की खुल गयी और वर्षा की फुहार. अंदर आकर मेरी ज़ुल्फो से खेलने लगी। ठंडी हवा ने मेरी पीठ को सहलाया और हवा के एक और झोंके ने वर्षा की बूँदों से मेरे स्तनों के उभार को रस में
भिगो दिया। मेरे पति ने मुझे कसकर बाहों में लेकर मेरे स्तन अपनी छाती पर भींच लिए। मेरे कान में फुसफुसा कर वह बोला- “बहुत मजा आ रहा है…”
उसे छेड़ने का एक भी मौका मैं हाथ से नहीं जाने देती थी। बोली – “कल जब मीता को चोदोगे ना तो इससे भी ज़्यादा मजा आयेगा…”
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दिखावे का गुस्सा करते हुए वह मुझपर झपटा और मुझे मेरी पीठ के बल नीचे पटक दिया। पर ऐसा करने में उसका लंड मेरी चूत से बाहर आ गया। उसने मेरे पैर मोड़कर उन्हें मेरे सिर के पास लाकर मेरी गठरी बना दी और अपना लंड मेरे क्लिट पर रगड़ने लगा- “मुझे बहनचोद बनाने चली थी, चलो पहले तुम तो चुदाओ फिर अपनी ननद की बात करना…
अपनी चूत सिकोड़कर मैंने उसे लंड अंदर डालने से रोका और ताना मारा- “मन तो करता है मिल जाये… अरे मैं तो चुदवाऊँगी ही पर…” अचानक बिजली जोर से कौंधी और मैं एक चीख के साथ उससे चिपक गयी। मौका देखकर राजीव ने एक बार में अपना लंड जड़ तक मेरी चूत में उतार दिया।
बाहर लगातार गरज के साथ वर्षा हो रही थी और हम उसी लय में चुदाई कर रहे थे। हम ऐसे मदहोश हुए कि समय का कोई ध्यान हमें नहीं रहा। मैं भी राजीव के हर धक्के के जवाब में उतने ही जोर से नीचे से अपने चूतड़ उछालती थी। बहुत देर चोद-चोदकर आखिर हम एक साथ स्खलित हुए।
बिजली भी चली गयी थी और घना अंधेरा छा गया था। हम एक दूसरे की बाहों में लिपटे रहे। बिजली की कौंध में हमारे आपस में लिपटे नग्न तन क्षणभर को दिखाई देते और फिर गायब हो जाते। मेरे पति ने धीरे-धीरे मेरे कान को अपने दाँतों से कतरना शुरू कर दिया। बादलों की गरज अब बंद हो गयी थी और रिमझिम पानी बरस रहा था

इसलिए हमने कमरे की सब खिड़कियां खोल दी थीं। रस की बौछार. हमें बार-बार भिगा जातीं। पानी की बूँदों से मेरे फिर से उत्तेजित निपल गीले हो गये थे और एक बूँद निपल के छोर पर आकर थम गयी थी। मेरा पति उसका लोभ न पचा पाया और उसने वो बूंद जीभ से चाट ली । धीरे-धीरे नीचे की ओर बढ़ता हुआ वह मेरे गोरे पेट पर जमी नन्हीं बूँदों को चाटने लगा।
वहां से मेरी कामना की घाटी तक पहुँचने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई। अपने होंठों से मेरी स्वादिष्ट रसीली चूत को खोलते हुए उसकी जीभ मेरी चूत में घुसकर उसे चाटने लगी। मैं असहनीय सुख से अधमरी सी हो गयी थी।
वहां से मेरी कामना की घाटी तक पहुँचने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई। अपने होंठों से मेरी स्वादिष्ट रसीली चूत को खोलते हुए उसकी जीभ मेरी चूत में घुसकर उसे चाटने लगी। मैं असहनीय सुख से अधमरी सी हो गयी थी।
बाल्कनी के खुले दरवाजे को देखकर उसे एक बात सूझी। मुझे खींचकर वह बाहर ले गया। मैं कहती ही रह गयी कि अरे ये क्या करते हो, मैं कुछ पहन तो लूं, पर वह एक न माना। रात की मखमली काली चादर ने हमें ओढ़ा रखा था। हम दोनों उस बरसते अमृत में भीगते हुए उस स्वर्गसुख का आनंद लेने लेगे।

“आओ आज तुम्हें सावन की फुहार का पूरा मजा देता हूँ…”
उसकी इस बात से मैं कहाँ पीछे हटने वाली थी। उससे चिपटते हुए मैने कहा- “मजा तो मैं दूँगी चलो उधर सावन बरसे इधर तुम बरसो…” और यह कहते हुए मैंने अपनी अंदर और बाहर से पूरी गीली चूत उसके लंड पर रगड़ना शुरू कर दिया। अंधेरा ज़रूर था पर बादल छँट रहे थे
और बीच-बीच में चांद बादलों के पीछे से ऐसे निकल आता जैसे कोई दुल्हन साजन की एक झलकी के लिए घूंघट उठाकर देख रही हो। चंद्रमा का बढ़ता घटता प्रकाश हमारे शरीर पर रंगोली सी बना रहा था। मैं उसका लंड पकड़े थी और वह मेरी चूत से खेल रहा था। हम
दोनों वर्षा में भीगते हुए फिर तप उठे थे।
बाल्कनी की मुंडेर देखकर मेरे पति ने मुझे चारों खाने नीचे हो जाने को कहा। मैं तुरंत कोहनियों और घुटनों पर जम गयी।
वर्षा की बूंदे अब मेरी पीठ पर पड़कर मेरे नितंबों की चीर में से जलधारा बनाते हुए बह रही थीं। तेज फुहार मेरे उरोजो पर चुभ रही थीं। जल्दी ही मेरे पति ने मेरे पीछे से एक हाथ से मेरी चूची पकड़ी और अपना लंड मेरी चूत में एक बार में आधे से ज़्यादा गाड़ दिया- “मेरी बहुत दिन से इक्षा थी कि सावन में भीगते हुए खूब जमकर चुदाई करूँ.…” वह सिसक कर बोला।

“हाँ, और मेरी भी…” कहते हुए मैंने चूत से उसके लंड को जकड़ लिया और उसके अगले प्रहार की प्रतीक्षा करने लगी। पर हमारे भाग्य में यह नहीं था। बिजली लौट आयी और उजाला हो गया। हमने जल्दी में बाल्कनी का लाइट आन रहने दिया था। हम शायद फिर भी जुटे रहते पर पास के फ्लेट से आवाज आने से हमारी हिम्मत नहीं हुई।
हम भागकर अंदर आये और दरवाजा लगा लिया। अंदर हमें रोकने वाला कोई नहीं था। मैं अपने साजन के गोद में बैठ गयी और उसका लंड अपनी चूत में ले लिया।
वह बोला- “चलो आज तुम्हें सावन के झूले का मजा दूं.…” और मेरी पतली कमरिया दोनों हाथों में पकड़कर वह मुझे झुलाने के अंदाज में चोदने लगा। हम लोगों ने खूब आसन बदल-बदल कर चुदाई की। बाहर पानी तेज हो गया था और उसके साथ हमारी चुदाई की रफ़्तार भी। आखिर राजीव ने मुझे पलंग पर पटका, झुक कर मेरी टांग. उठाकर अपने कंध1 पर रखीं और फिर हचक-हचक कर मुझे चोदने लगा। मेरी चूची की खूब जमकर रगड़ाई हो रही थी और चूत की जमकर चुदाई।
करीब करीब आधे घंटे की घमासान रति के बाद हम झड़े। दोनों थक कर चूर हो गये थे। मैं उसके पीछे उससे चिपट कर लेटी थी और मेरी चूची उसकी पीठ पर रगड़ते हुए उसके कान हौले-हौले काट रही थी। हम इसी तरह स्पून आसन में बहुत देर पड़े रहे। अब चांद निकल आया था

और कमरे में शुभ्र चांदनी फैल गयी थी। मैंने फिर उसके लंड को मुट्ठी में लेकर सहलाना शुरू कर दिया पर दो बार की भरपूर चुदाई के बाद अब वह लस्त होकर मुरझाया पड़ा था। मैंने फिर से हल्की फुल्की बातचीत चालू कर दी ।
“मीता तुम्हारी सगी बहन तो नहीं है ना?”
“ना, तुम जानती हो मेरी …”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



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RE: बहन की पहली बरसात (कुंवारी) - by neerathemall - 07-07-2022, 02:18 PM



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