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Incest बहन की पहली बरसात (कुंवारी)
#2
सावन शुरू हो गया था। सावन की झड़ी लगी थी, घने बादल छाये थे। रेडियो पर गिरिजा देवी ‘बरसन लागी रे बदरिया अलाप रही थी। बाहर हरियाली छाई थी और मेरा मन खुशी से गा रहा था। मैं अपनी छोटी ननद मीता को छेड़ रही थी। मैं उसके हाथ में मेंहंदी लगा रहा थी, उसकी गोरी हथेली और नाजुक उंगलियों पर सुंदर डिजाइन बना रही थी पर मेरा मन कल रात में खोया था। मैं एक भी मिनट नही सोई थी, बाहर और कमरे में भी रात भर बरसात जो होती रही ।

वहां बादल धरती पर छाकर रस बरसा रहा थे, यहां मेरा पति मुझे पर छाया था और मैं उसके रस में भीगी जा रही थी। बिजली की हर गरज पर मैं उसे जकड़ लेती और वह अपना लंड मेरी चूत में पेल देता। रात भर चुदाई चली , पहले बिजली की कौंध जैसी प्रखर, पर उसके बाद एक धीमी सुरी ली लय में जैसे सावन का रस बरस रहा हो। रात भर मेरी छरहरी टांग. उसके कंधे पर टिकी रही थी।
मेरी ननद ने अपनी बड़ी-बड़ी आँख. उठाकर मुझे उलाहना दिया- “क्यों भाभी, कहां खो गयी, ये मेरे हाथ है, भैया के नही …”
मैं खिलखिलाकर बोली – “तुम्हारे भैया हाथ नहीं, कुछ और पकड़ते है…”

वह भी हँसने लगी और बोली – “हाँ मालूम है…”
अब बारी मेरी थी, मैंने झूठ मूठ का अचरज दिखाते हुए कहा- “तुम्हें कैसे मालूम, तुमने भी पकड़ा था क्या?”
वह शरमा गयी।
पर मैंने नहीं छोड़ा- “बन्नो, अब तो तुम्हारा सोलहवां सावन लग गया है…” और फिर हाथ उसके स्कर्ट के अंदर डालकर बोली – “अब तो इस केसर क्यारी में बरसात हो जानी चाहिये…”
वह भी इस नोक झौंक में शामिल होकर बोली – “अरे भाभी, आपके ताल में तो रोज दिन रात पानी बरसता है, पर मेरी भाभी को अपनी इस ननद की फिकर ही नहीं है…”
उसके दूसरे हाथ में मेंहंदी लगाते हुए मैंने कहा- “मेरी गलती… अबकी बरसात में तो ज़रूर तुम्हारी केसर क्यारी में बरसात करवा दूँगी और कोई नहीं मिला तो तुम्हारे भैया तो हैं ही , उनका भी स्वाद बदल जायेगा। और लेट मी टेल यू, ही इज़ रियली गुड। और वैसे मेरा कज़न संजय तो तुम्हारा दीवाना है ही , उसे तो जब चाहो…”

मीता ने नाक सिकोड़कर कहा- “अपने भैया से कहिये अपना मुँह धो आए.…”
मैं हँसकर बोली – “अरे वो मुँह क्या, तुम जो कहोगी वह सब कुछ धोकर आ जायेगा…” फिर मैंने उसे याद
दिलाया- “यू नो, पहले तुम्हारे लिए मैं क्या गाती थी?
हमरे गाँववाली गोरिया जब जवान होई, तब हमारा गंगा स्नान होई।
“तो अब गंगा स्नान करने का वक्त आ गया, चाहे तो मेरे भाई को और चाहो तो अपने भाई को या फिर दोनों को। इस बारिश में तो बरस जाओ जम के…”

मैंने फिर से वही गलती कर दी , कहानी को शुरू करने के पहले पात्र परिचय बहुत ज़रूरी है इसलिए मैं फिर शुरूवात करती हूँ। मेरा नाम रंजना है। डेढ़ साल पहले मेरी शादी राजीव से हुई, अच्छा ऊँचा पूरा खूबसूरत नौजवान है और उसकी एक ही पैशन है, मैं। मौका मिलते ही शुरू हो जाता है, कहीं भी कभी भी मुझे चोदने की ताक में रहता है। समझ लो मैंने उसे जोरू का गुलाम बना लिया है।
हम आपस में एकदम खुले और फ्रेंक है और वह मेरा एडिक्ट हो गया है। मेरी ननद मीता ने अभी मही ने पहले अपनी सोलहवीं वर्षगांठ मनायी है। ग्यारहवी में पढ़ती है। 5’4” कद है और उसका मासूम चेहरा और गदराया बदन, इससे वह बला की मादक लगती है। और यह उसे मालूम है। उसका गोरा रंग ऐसा है जैसे दूध में थोड़ा गुलाब घुला हो।
उसके कमसिन उरोज छोटे है, करीब 32” साइज़ के, पर उसके नाजुक बदन और पतली कमर के कारण काफ़ी बड़े लगते हैं। मुझसे वह बहुत खुली है और हमारा संबंध बहुत घनिष्ठ है।

मीता असल में मेरे पति की चचेरी बहन है पर मेरी इकलौती ननद होने की वजह से उसे मेरे और मेरी सहेलियों की रंगीली छेड़छाड़ सहनी पड़ती है। यह छेड़छाड़ सिर्फ़ बोलने सुनने की नहीं है, बहुत बार हम उसकी चूंचियाँ भी मसल देते हैं। होली में उसकी बचने की हर कोशिस नाकाम करके मैंने जबसे उसके टाप में हाथ डालकर उसका जोबन दबाया था, तबसे हमारे बीच के सब बांध टूट गये हैं। वह हमारी कामुक छिछोलेदार बातों और नान-वेज चुटकुलों का मजा तो लेती ही है, बल्कि खुद भी हमारी बातों का दो टूक जवाब देने की कोशिस में रहती है।
मेरे पति के साथ भी जब मैं बात. करती हूँ तो मीता के बारे में भी हम ऐसी ही बात. करते हैं।
कल रात भी जब हमारी धुआंधार चुदाई चल रही थी तो मैंने अपने पति को छेड़ा “क्यों, मीता की याद आ रही है जो आज इतने जोश में हो?”
उसने मेरी चूची दबाई और जवाब में अपना लंड बाहर निकालकर एक बार में फिर पूरा अंदर कर दिया। मेरे
गाल1 पर दांत लगाते हुए वह बोला- “अभी वह छोटी है…”
मैंने अपने चूतड़ उछालकर कहा- “उसकी चिंता न करो, एक बार बरसात होने के बाद वह एकदम बड़ी हो जायेगी। वैसे भी तुम जब कहो, मैं ट्राई करा दूँगी, वह छोरी तुम्हारा ये पूरा मूसल घोंट जायेगी…”

इस बात पर उसने मेरे खड़े मम्मों को काट खाया और बोला- “मुझे क्या बहनचोद समझ रखा है?”
मैंने अपने लंबे नाखून1 से उसकी पीठ खरोंचते हुए कहा- “और क्या, मुझे तो शुरू में ही पता चल गया था कि मेरी सारी ननद. छिनार है और ससुराल के सारे मर्द बहनचोद। वैसे तुम्हें आपत्ति हो तो मैं अपने भैया संजय से उसका उद्घाटन करा दूँगी। हाँ चाहो तो पीछे वाली का उद्घाटन तमु कर देना।
(मेरा पति नितंबों का रसिया है, गुदा सIभोग का बहुत शौकीन और हर दो तीन दिन में मेरी गान्ड का बाजा बज ही जाता है। मैंने बहुत बार उसे मीता के कमसिन भरे नितंबों को घूरते हुए देखा है) और इस तरह बात बराबर हो जायेगी…”
इससे वह इतना मस्त हुआ और उस रात मेरी ऐसी चुदाई हुई जो बस जिंदगी में कभी-कभी होती है। मैं उसे
मीता के सामने भी छेड़ा करती थी और वे दोनों इस बात पर शरमा से जाते थे पर मन में दोनों के लड्डू फूटते थे, यह मुझे पक्का मालूम है।

एक दिन मैं अपने पति के साथ लिगरी खरीदने को गयी और कुछ सेक्सी चीज़. पसंद की। मैंने मीता के लिए भी एक दो ली और अपने राजीव को दिखाई। वह समझा कि ये मेरे लिए है इसलिए उसने सुझाव दिया कि गुलाबी रंग की पुश-अप टाइप की भी ले लूं। मैंने वे पैक कराईं और कुछ चाकलेट भी ले लिए। जब हम घर पहुँचे तो मैंने पैकेट उसके हाथ में देकर उसे मीता को देने को कहा। उसे लगा कि चाकलेट का पैकेट है और वह मीता को देने लगा।
मैंने कहा कि खोलकर दो।
जब उसने पैकेट खोला तो वो गुलाबी ब्रा देखकर एकदम झेंप गया। मैं खिलखिला उठी और मीता को छेड़ने लगी- “मीता, ये तुम्हारे भैया खुद तुम्हारे लिए पसंद करके लाये हैं…”
फिर राजीव को बोली – “अरे इतने प्यार से लाये हैं तो पहना भी दी जिये…”

मीता शरमा कर भाग गयी। राजीव भी शरमा गया था पर इतना उत्तेजित हो गया था कि कपड़े बदलते समय उसका खड़ा लंड साफ दिख रहा था। उन्होने उसी समय मुझे झुका कर मेरी इतनी जबरदस्त चुदाई की मजा आ गया।
हाँ, तो मैं कहाँ थी?
मैंने मेरी छोटी ननद के हाथ में मेंहंदी लगाने का काम पूरा कर लिया था और वह उसे सुखाने में लगी थी।
बरसात अब कम हो गयी थी और सिर्फ़ बूंदा-बांदी हो रही थी। तभी मेरी सहेली चम्पा ने आकर हमें बाहर झूला झूलने को बुलाया। हमारे घर के पीछे घनी अमराई है जहां एक पेड़ पर झूला बंधता है और अड़ोस पड़ोस की सभी औरत. और लड़कियां आकर झूला झूलते हैं और कजरी गाते हैं।
चम्पा भाभी कामुक रसीले चुटकुले सुनाने और दोहरे अर्थ की बात. करने में एक्सपर्ट थी। मेरी ननद होने की वजह से मीता बेचारी सबका निशाना बनती थी। जब सब औरत. साथ होती तो कोई किसी तरह की शरम या बंधन नहीं पालता था। हम अपनी रातों के अनुभव भी एक दूसरे को बताते।

मीता यह जानती थी इसलिए मेरे साथ आने में हिचकिचा रही थी। इसलिए उसने बहाना बना लिया कि हाथ की मेंहंदी सूखी नहीं है तो झूले की रस्सी वह कैसे पकड़ेगी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: बहन की पहली बरसात (कुंवारी) - by neerathemall - 07-07-2022, 02:13 PM



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