05-07-2022, 01:18 PM
वहां पर हम लोग बिल्कुल नये थे. इसलिए हमें कोई जानता भी नहीं था जो हमारे लिये बहुत अच्छी बात थी. अच्छी इसलिए कह रही हूं क्योंकि जब पास में पड़ोसी जानने वाले हों तो खुलकर कुछ भी नहीं किया जा सकता.
मगर हम दोनों खुल्लम खुल्ला चुदाई किया करते थे. घर का कोई कोना नहीं बचा था जहां पर हमने चुदाई का मजा न लिया हो.
मैरिड कपल की चुदाई का नजारा कौन नहीं लूटना चाहेगा? रात में हम लोग लाइट जलाकर सेक्स किया करते थे. हमारे पड़ोसी भी हमारे लाइव सेक्स का मजा लिया करते थे.
वो तो मुझे बाद में पता चला कि हमारी देसी पोर्न फिल्म को पड़ोसी भी देख रहे होते थे. हम तो बस अपनी चुदाई में ही खोये रहते थे.
हमें कोई डिस्टर्ब करने वाला नहीं था और देहरादून की मीठी मीठी ठंड में लंड का मजा लेकर मैं पूरा दिन गर्म रहती थी. पूरे दो महीने तक हमारी चुदाई का सीन चलता रहा. एक बार तो हमने बालकनी में भी सेक्स किया था.
अमित घर पर न होने का भी मैं खूब फायदा उठाती थी. जब भी अमित बाहर होता था तो मैं सेक्सी ड्रेस पहन कर अपनी बालकनी या अपने घर की टेरिस पर आ जाती थी. अपने जिस्म की गर्मी से मैं देहारदून की ठंड को दूर करने की कोशिश किया करती थी.
मेरी इन हरकतों का परिणाम ये हुआ कि कुछ दिन के अंदर ही मेरी मस्त जवानी के आसपास कई भंवरे घूमने लगे. शायद मैं भी यही चाहती थी कि मर्द मेरी तरफ आकर्षित हों. मुझे अपनी शादीशुदा चूत चुदवाने की प्यास हमेशा लगी रहती थी.
जिस तरह से फूल की खुशबू भंवरे को अपनी ओर खींच लेती है उसी तरह मैं भी नीचे से बिना पैंटी पहने छत पर जाकर अपनी चूत की खुशबू फैलाती थी और पड़ोसी मर्दों को अपनी ओर खींचने की कोशिश किया करती थी.
मगर हम दोनों खुल्लम खुल्ला चुदाई किया करते थे. घर का कोई कोना नहीं बचा था जहां पर हमने चुदाई का मजा न लिया हो.
मैरिड कपल की चुदाई का नजारा कौन नहीं लूटना चाहेगा? रात में हम लोग लाइट जलाकर सेक्स किया करते थे. हमारे पड़ोसी भी हमारे लाइव सेक्स का मजा लिया करते थे.
वो तो मुझे बाद में पता चला कि हमारी देसी पोर्न फिल्म को पड़ोसी भी देख रहे होते थे. हम तो बस अपनी चुदाई में ही खोये रहते थे.
हमें कोई डिस्टर्ब करने वाला नहीं था और देहरादून की मीठी मीठी ठंड में लंड का मजा लेकर मैं पूरा दिन गर्म रहती थी. पूरे दो महीने तक हमारी चुदाई का सीन चलता रहा. एक बार तो हमने बालकनी में भी सेक्स किया था.
अमित घर पर न होने का भी मैं खूब फायदा उठाती थी. जब भी अमित बाहर होता था तो मैं सेक्सी ड्रेस पहन कर अपनी बालकनी या अपने घर की टेरिस पर आ जाती थी. अपने जिस्म की गर्मी से मैं देहारदून की ठंड को दूर करने की कोशिश किया करती थी.
मेरी इन हरकतों का परिणाम ये हुआ कि कुछ दिन के अंदर ही मेरी मस्त जवानी के आसपास कई भंवरे घूमने लगे. शायद मैं भी यही चाहती थी कि मर्द मेरी तरफ आकर्षित हों. मुझे अपनी शादीशुदा चूत चुदवाने की प्यास हमेशा लगी रहती थी.
जिस तरह से फूल की खुशबू भंवरे को अपनी ओर खींच लेती है उसी तरह मैं भी नीचे से बिना पैंटी पहने छत पर जाकर अपनी चूत की खुशबू फैलाती थी और पड़ोसी मर्दों को अपनी ओर खींचने की कोशिश किया करती थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.