05-07-2022, 12:08 PM
करीब पांच मिनट की घनघोर चुदाई से अनु दीदी दूसरी बार झड़ते हुए पीठ के बल तख्त के ऊपर गिर पड़ीं.
स्वर्ग की अप्सरा का ऐसा रुझान देख कर मैं मदहोश होने लगा था.
दीदी ने अपनी ढाई इंच की चुत के दोनों तरफ गदरायी जांघों को फैला कर रखा था.
उनकी हालत कोई उड़ने को तैयार पंछी सी लग रही थी. दीपक की पूरी ताकत से हुई चुदाई से अनु दीदी बहुत खुश नजर आ रही थीं.
अनु दीदी की खुशी में मैं भी अपने को रोक नहीं पाया और सीधे जमीन पर खड़ी रंजू के पीछे लंड टिका दिया.
अचानक हुए हमले से कांप गई रंजू के हाथ से अनु दीदी की बांहें छूट गई थीं.
अनु दीदी को अपनी बांहों के छूट जाने का मौका मिला, तो उन्होंने दीपक को धकेल कर तख्त पर गिरा दिया और फिर से उसके लंड पर अपनी चुत को सैट करके उछलने लगीं.
गजब की तेजी से उछलने में दीदी की चुचियां उनके चेहरे तक मार कर रही थीं.
मैंने आज़ तक कभी भी अनु दीदी का ऐसा विध्वंसक रूप नहीं देखा था.
दीदी, दीपक का आठ इंच लंबा लंड घपा घप जकड़कर अपनी चुत में अन्दर ले रही थीं.
अनु दीदी की मस्त जवान चुत से बाहर निकल रहे गर्म पानी को अपने हाथों में लेकर मैंने रंजू की गांड और चुत पर मल दिया, जिससे उसकी पानी छोड़ रही चुत में चिकनाई हो गई.
मैंने फिर एक बार कमर पीछे खींच कर पानी छोड़ चुकी रंजू की चुत में एक झटके से पूरा लंड उतार दिया.
रंजू कसमसा कर रह गई, क्योंकि पेट के बल तख्त पर लेटे हुए अपने दोनों पैरों से जमीन पर खड़ी थी.
इस समय रंजू हिल डुल भी नहीं पा रही थी.
मैंने अपने दोनों हाथों को आगे बढ़ा दिया और रंजू की दोनों चूचियों को पकड़ कर ज़ोर-ज़ोर से मसलते हुए उसकी पीठ पर होंठों से चूमने लगा. चौड़ी छाती, पतली कमर से होते हुए अपने मस्त गोल गोल चूतड़ों वाली इकहरी काया की रंजू के पैर जमीन से ऊपर उठ रहे थे.
ऐसा नजारा देखकर मेरा जोश और बढ़ गया. देखते ही देखते मैं उसकी चुत की फांकों में मोटा लौड़ा अन्दर तक पेल कर उसकी चुदाई करने लगा.
वो किसी नन्हीं सी जान सी अपने गले से घुटी-घुटी मस्त सिसकारियां निकाल रही थी.
रंजू मेरा ये तीव्र हमला झेल ही नहीं पाई और जल्द ही झड़ गई.
मैं अभी भी लगा था और उसकी चूचियों के निप्पलों को अपनी उंगलियों में पकड़ कर कभी जोर से मसल देता, तो वो छटपटा उठती. उसके निप्पल इस वक़्त अकड़ कर कड़े हो गए थे.
कुछ ही पलों बाद रंजू के गले से अजीब-अजीब सी आवाजें निकलने लगीं.
मैं लगातार अपनी कमर हिलाने लगा और धीरे धीरे चुदाई की अपनी गति बढ़ा देने से रंजू के गुदाज़ चूतड़ों से थप थप फट फट की धुन बजने लगी.
मात्र उन्नीस साल की कमसिन रंजू की चुत में लंड बहुत टाइट जा रहा था इसलिए रंजू अपनी टांगें और खोल दीं और दीवान को झुक कर मजबूती से पकड़ लिया.
मैंने भी धीरे से अपना लौड़ा थोड़ा सा बाहर खींचा और उसे फिर से रंजू की चूत में जबरदस्त झटके के साथ घुसेड़ दिया.
रंजू की चूत ने मेरा लंड कस कर पकड़ रखा था और इस वजह से मुझे लंड को अन्दर-बाहर करने में थोड़ी सी मेहनत करनी पड़ रही थी.
मैंने अपनी स्पीड बढ़ाना शुरू कर दी. रंजू भी मेरे साथ-साथ अपनी कमर नचा नचा कर मेरे हर धक्कों का जबाब बदस्तूर दे रही थी.
मैं चूत में रगड़-रगड़ कर लंड पेलने लगा और रंजू ने मस्ती में अपनी गांड उठा-उठा करके मेरे हर धक्के का माकूल ज़बाव देना शुरू कर दिया.
रंजू काम वासना में मतवाली कसमसा कर बोलने लगी- आह … मेरी चूत में चींटियां रेंग रही हैं. अपने लंड की रगड़ से मेरी खाज दूर कर दो … ओ माई गॉड चोदो … और ज़ोर-ज़ोर से चोदो मुझे.
मैं भी अपनी रौ में उसे गले देते हुए चोदने में लगा था- ले साली छिनाल … भैन की लौड़ी लंड खा ले हरामिन … आह.
वो भी मेरी गाली का जबाव देते हुए कहने लगी थी- हां चोद न भोसड़ी के … कितना दम है तुझमें … मेरी चुत फाड़ दे कुत्ते.
मैंने देखा कि पहले से ज्यादा माहिर हो चुकी किसी चुदक्कड़ रांड की तरह उसकी चुत से कामरस टपक कर जांघों पर बह रहा था.
अब मेरा लंड उसकी बच्चेदानी में आराम से पूरा सात इंच अन्दर समाहित होकर ठोकर दे रहा था.
ये मेरी उत्तेजना को हर पल बढ़ा रहा था.
उधर मेरे लंड के हर झटके पर अपनी गांड को पीछे धकेल कर पूरा लंड अन्दर लेने को बेताब रंजू मुझे नशे से गाफिल किये हुए थी.
काफी देर तक चली इस जुझारू चुदाई के बाद हर एक झटके पर रंजू चीखते हुए भलभला कर ऐसे झड़ने लगी मानो महीनों से बचाई हुई दौलत आज शोहरत में लुटा रही थी.
उसकी चुत से जैसे जलधारा फूट पड़ी थी.
उसकी कमसिन चुत की जवानी के पानी की खुशबू कमरे में महकने लगी थी.
इधर मेरा चरमोत्कर्ष आते आते वापस रुक जाता … फिर दुगुने जोश से लबरेज, झटके पर झटके मारते हुए आखिरकार मैंने भी अपने लंड का गर्म कामरस रंजू की कमसिन चुत में छोड़ दिया.
स्वर्ग की अप्सरा का ऐसा रुझान देख कर मैं मदहोश होने लगा था.
दीदी ने अपनी ढाई इंच की चुत के दोनों तरफ गदरायी जांघों को फैला कर रखा था.
उनकी हालत कोई उड़ने को तैयार पंछी सी लग रही थी. दीपक की पूरी ताकत से हुई चुदाई से अनु दीदी बहुत खुश नजर आ रही थीं.
अनु दीदी की खुशी में मैं भी अपने को रोक नहीं पाया और सीधे जमीन पर खड़ी रंजू के पीछे लंड टिका दिया.
अचानक हुए हमले से कांप गई रंजू के हाथ से अनु दीदी की बांहें छूट गई थीं.
अनु दीदी को अपनी बांहों के छूट जाने का मौका मिला, तो उन्होंने दीपक को धकेल कर तख्त पर गिरा दिया और फिर से उसके लंड पर अपनी चुत को सैट करके उछलने लगीं.
गजब की तेजी से उछलने में दीदी की चुचियां उनके चेहरे तक मार कर रही थीं.
मैंने आज़ तक कभी भी अनु दीदी का ऐसा विध्वंसक रूप नहीं देखा था.
दीदी, दीपक का आठ इंच लंबा लंड घपा घप जकड़कर अपनी चुत में अन्दर ले रही थीं.
अनु दीदी की मस्त जवान चुत से बाहर निकल रहे गर्म पानी को अपने हाथों में लेकर मैंने रंजू की गांड और चुत पर मल दिया, जिससे उसकी पानी छोड़ रही चुत में चिकनाई हो गई.
मैंने फिर एक बार कमर पीछे खींच कर पानी छोड़ चुकी रंजू की चुत में एक झटके से पूरा लंड उतार दिया.
रंजू कसमसा कर रह गई, क्योंकि पेट के बल तख्त पर लेटे हुए अपने दोनों पैरों से जमीन पर खड़ी थी.
इस समय रंजू हिल डुल भी नहीं पा रही थी.
मैंने अपने दोनों हाथों को आगे बढ़ा दिया और रंजू की दोनों चूचियों को पकड़ कर ज़ोर-ज़ोर से मसलते हुए उसकी पीठ पर होंठों से चूमने लगा. चौड़ी छाती, पतली कमर से होते हुए अपने मस्त गोल गोल चूतड़ों वाली इकहरी काया की रंजू के पैर जमीन से ऊपर उठ रहे थे.
ऐसा नजारा देखकर मेरा जोश और बढ़ गया. देखते ही देखते मैं उसकी चुत की फांकों में मोटा लौड़ा अन्दर तक पेल कर उसकी चुदाई करने लगा.
वो किसी नन्हीं सी जान सी अपने गले से घुटी-घुटी मस्त सिसकारियां निकाल रही थी.
रंजू मेरा ये तीव्र हमला झेल ही नहीं पाई और जल्द ही झड़ गई.
मैं अभी भी लगा था और उसकी चूचियों के निप्पलों को अपनी उंगलियों में पकड़ कर कभी जोर से मसल देता, तो वो छटपटा उठती. उसके निप्पल इस वक़्त अकड़ कर कड़े हो गए थे.
कुछ ही पलों बाद रंजू के गले से अजीब-अजीब सी आवाजें निकलने लगीं.
मैं लगातार अपनी कमर हिलाने लगा और धीरे धीरे चुदाई की अपनी गति बढ़ा देने से रंजू के गुदाज़ चूतड़ों से थप थप फट फट की धुन बजने लगी.
मात्र उन्नीस साल की कमसिन रंजू की चुत में लंड बहुत टाइट जा रहा था इसलिए रंजू अपनी टांगें और खोल दीं और दीवान को झुक कर मजबूती से पकड़ लिया.
मैंने भी धीरे से अपना लौड़ा थोड़ा सा बाहर खींचा और उसे फिर से रंजू की चूत में जबरदस्त झटके के साथ घुसेड़ दिया.
रंजू की चूत ने मेरा लंड कस कर पकड़ रखा था और इस वजह से मुझे लंड को अन्दर-बाहर करने में थोड़ी सी मेहनत करनी पड़ रही थी.
मैंने अपनी स्पीड बढ़ाना शुरू कर दी. रंजू भी मेरे साथ-साथ अपनी कमर नचा नचा कर मेरे हर धक्कों का जबाब बदस्तूर दे रही थी.
मैं चूत में रगड़-रगड़ कर लंड पेलने लगा और रंजू ने मस्ती में अपनी गांड उठा-उठा करके मेरे हर धक्के का माकूल ज़बाव देना शुरू कर दिया.
रंजू काम वासना में मतवाली कसमसा कर बोलने लगी- आह … मेरी चूत में चींटियां रेंग रही हैं. अपने लंड की रगड़ से मेरी खाज दूर कर दो … ओ माई गॉड चोदो … और ज़ोर-ज़ोर से चोदो मुझे.
मैं भी अपनी रौ में उसे गले देते हुए चोदने में लगा था- ले साली छिनाल … भैन की लौड़ी लंड खा ले हरामिन … आह.
वो भी मेरी गाली का जबाव देते हुए कहने लगी थी- हां चोद न भोसड़ी के … कितना दम है तुझमें … मेरी चुत फाड़ दे कुत्ते.
मैंने देखा कि पहले से ज्यादा माहिर हो चुकी किसी चुदक्कड़ रांड की तरह उसकी चुत से कामरस टपक कर जांघों पर बह रहा था.
अब मेरा लंड उसकी बच्चेदानी में आराम से पूरा सात इंच अन्दर समाहित होकर ठोकर दे रहा था.
ये मेरी उत्तेजना को हर पल बढ़ा रहा था.
उधर मेरे लंड के हर झटके पर अपनी गांड को पीछे धकेल कर पूरा लंड अन्दर लेने को बेताब रंजू मुझे नशे से गाफिल किये हुए थी.
काफी देर तक चली इस जुझारू चुदाई के बाद हर एक झटके पर रंजू चीखते हुए भलभला कर ऐसे झड़ने लगी मानो महीनों से बचाई हुई दौलत आज शोहरत में लुटा रही थी.
उसकी चुत से जैसे जलधारा फूट पड़ी थी.
उसकी कमसिन चुत की जवानी के पानी की खुशबू कमरे में महकने लगी थी.
इधर मेरा चरमोत्कर्ष आते आते वापस रुक जाता … फिर दुगुने जोश से लबरेज, झटके पर झटके मारते हुए आखिरकार मैंने भी अपने लंड का गर्म कामरस रंजू की कमसिन चुत में छोड़ दिया.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.