05-07-2022, 12:04 PM
रीना दीदी तीखे नैन-नक्श वाली एक पुरानी संस्कृति की शर्मीली लड़की थीं. उनकी झील जैसी गहरी आंखें, सुराहीदार गर्दन और दो रसीले नर्म 34 साइज़ के चूचे जबरदस्त थे. चूचों के नीचे उनकी पतली कमर और उसके नीचे गोल गोल मांसल चूतड़ों के साथ उनकी 34-30-36 की काया ने कमरे में वासना के उफनते दरिया को और अधिक आंदोलित कर दिया था.
रीना दीदी ने मेरे भ़ी बचे हुए कपड़े निकाल दिए थे और वो खुद मेरे लंड से खेल रही थीं.
अनु दीदी ने रंजू की हसीन काया को मादरजात नंगी कर दिया था. रंजू की 19 साल की कमसिन जवानी कमरे में दमक रही थी. उसकी बड़ी बड़ी आंखें, दूध भरे कटोरे जैसी दो चुचियां, उन चूचों के नीचे रंजू की गहरी नाभि देख कर वो मुझे काम की देवी लग रही थी.
कमरे में तख्त पर रीना दीदी, दीपक रंजू और हम चारों नंगे बदन हो गए थे. सिर्फ़ अनु दीदी ने अपना गाउन पहना हुआ था. उनके गाउन को रंजू नहीं निकाल पा रही थी.
अब दीपक ने अनु दीदी को तख्त से नीचे उतार कर उनकी गांड में उंगली डाल दी. दीदी ने इस हमले से बचने के लिए अपने चूतड़ों को उचकाया.
उतने में रंजू ने अनु दीदी के गाउन को खींच कर निकाला और दूर फेंक दिया.
इस कारण से अनु दीदी हम सबके सामने सिर्फ़ अपनी मस्त ब्रा और पैंटी में रह गई थीं.
एक बहुत सुंदर नेट की ब्रा में कैद दीदी के गोल गोल मांसल सफ़ेद चूचे और उनके नीचे केले के तने जैसी चिकनी मोटी मोटी जांघों के ऊपर कसी हुई पैंटी में भी खूब लेस लगी हुई थी. नेट की ब्रा में से दीदी की चूचियों के आधे से अधिक दर्शन भी हो रहे थे.
मेरी आंखें दीदी के नग्न पेट और उनकी दिलकश नाभि पर जा टिकी थीं. दीदी की पैंटी इतनी टाइट थी कि मुझे उनके पैरों के बीच उनकी चूत की दरार साफ़-साफ झलक रही थी.
अनु दीदी को देखते-देखते मेरा लौड़ा फुंफकारने लगा और उसमें से लार निकलने लगी.
कमरे में जवान जिस्मों की चुदाई पार्टी अपने पूरे शवाब पर थी, जहां उन्नीस साल की रंजू, बाईस साल की अनु दीदी और रीना दीदी तीन परियां नंगी चुदवाने को राज़ी थीं. लेकिन उम्र के हिसाब से दोनों बहनों से अनु दीदी बहुत ज्यादा सेक्सी और मांसल माल लग रही थीं.
दीपक ने अनु दीदी के साथ मस्ती में उनकी ब्रा-पैंटी के साथ-साथ अपना अंडरवियर भी उतार दिया.
मैंने दीदी की गीली पैंटी को उठा लिया और उसे उल्टा किया, तो देखा कि जहां पर दीदी की चूत का छेद था … वहां पर सफ़ेद मलाई सा चूत का पानी लगा हुआ था.
दीदी की पैंटी को अपनी नाक के पास ले जाकर उस जगह को सूंघा, तो नशा सा छा गया. अनु दीदी की चुत के पानी की महक मेरे नाक में से मेरे फेफड़ों तक जा रही थी और उस मदमस्त महक से मैं पागल हुआ जा रहा था.
रीना दीदी ने मेरे भ़ी बचे हुए कपड़े निकाल दिए थे और वो खुद मेरे लंड से खेल रही थीं.
अनु दीदी ने रंजू की हसीन काया को मादरजात नंगी कर दिया था. रंजू की 19 साल की कमसिन जवानी कमरे में दमक रही थी. उसकी बड़ी बड़ी आंखें, दूध भरे कटोरे जैसी दो चुचियां, उन चूचों के नीचे रंजू की गहरी नाभि देख कर वो मुझे काम की देवी लग रही थी.
कमरे में तख्त पर रीना दीदी, दीपक रंजू और हम चारों नंगे बदन हो गए थे. सिर्फ़ अनु दीदी ने अपना गाउन पहना हुआ था. उनके गाउन को रंजू नहीं निकाल पा रही थी.
अब दीपक ने अनु दीदी को तख्त से नीचे उतार कर उनकी गांड में उंगली डाल दी. दीदी ने इस हमले से बचने के लिए अपने चूतड़ों को उचकाया.
उतने में रंजू ने अनु दीदी के गाउन को खींच कर निकाला और दूर फेंक दिया.
इस कारण से अनु दीदी हम सबके सामने सिर्फ़ अपनी मस्त ब्रा और पैंटी में रह गई थीं.
एक बहुत सुंदर नेट की ब्रा में कैद दीदी के गोल गोल मांसल सफ़ेद चूचे और उनके नीचे केले के तने जैसी चिकनी मोटी मोटी जांघों के ऊपर कसी हुई पैंटी में भी खूब लेस लगी हुई थी. नेट की ब्रा में से दीदी की चूचियों के आधे से अधिक दर्शन भी हो रहे थे.
मेरी आंखें दीदी के नग्न पेट और उनकी दिलकश नाभि पर जा टिकी थीं. दीदी की पैंटी इतनी टाइट थी कि मुझे उनके पैरों के बीच उनकी चूत की दरार साफ़-साफ झलक रही थी.
अनु दीदी को देखते-देखते मेरा लौड़ा फुंफकारने लगा और उसमें से लार निकलने लगी.
कमरे में जवान जिस्मों की चुदाई पार्टी अपने पूरे शवाब पर थी, जहां उन्नीस साल की रंजू, बाईस साल की अनु दीदी और रीना दीदी तीन परियां नंगी चुदवाने को राज़ी थीं. लेकिन उम्र के हिसाब से दोनों बहनों से अनु दीदी बहुत ज्यादा सेक्सी और मांसल माल लग रही थीं.
दीपक ने अनु दीदी के साथ मस्ती में उनकी ब्रा-पैंटी के साथ-साथ अपना अंडरवियर भी उतार दिया.
मैंने दीदी की गीली पैंटी को उठा लिया और उसे उल्टा किया, तो देखा कि जहां पर दीदी की चूत का छेद था … वहां पर सफ़ेद मलाई सा चूत का पानी लगा हुआ था.
दीदी की पैंटी को अपनी नाक के पास ले जाकर उस जगह को सूंघा, तो नशा सा छा गया. अनु दीदी की चुत के पानी की महक मेरे नाक में से मेरे फेफड़ों तक जा रही थी और उस मदमस्त महक से मैं पागल हुआ जा रहा था.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
