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Misc. Erotica आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद)
Heart 
भाग 95

सोनू ने पतले लहंगे के पीछे छुपे सुगना के मादक नितंबों को अपनी जांघों और पेडू प्रदेश पर महसूस करना शुरू कर दिया जैसे-जैसे सोनू का ध्यान केंद्रित होता गया उसके लंड में तनाव आने लगा.. सोनू के लंड का सुपाड़ा सुगना की कमर से सट रहा था शायद यह लंबाई में अंतर होने की वजह से था।


सोनू पूरी तरह सुगना से सटा हुआ था.. उसके मजबूत खूंटे जैसे लंड में तनाव आए और सुगना को पता ना चले यह संभव न था। सोनू के लंड में आ रहे तनाव को देखकर सुगना आश्चर्यचकित थी.. और अब वह स्वयं को असहज महसूस कर रही थी…. उसके दिमाग में सोनू के लंड की तस्वीर घूमने लगी…

अब आगे



सोनू का लंड सुगना पहले भी देख चुकी थी..लाली की बुर में तेजी से आगे पीछे होते हुए सोनू के मजबूत लंड की तस्वीर उसके दिलो-दिमाग पर छप चुकी थी और न जाने कितनी बार वह अपने स्वप्न में वह उस लंड को देख चुकी थी। उस दिन हैंडपंप के नीचे सोनू नहाते समय जिस तरह अपने लंड को और उसके सुपाड़े को सहला रहा था वह बेहद उत्तेजक था … सुगना के दिमाग में वही दृश्य घूमने लगे..

सुगना सोच रही थी… क्या सोनू के लंड में आया हुआ तनाव उसकी वजह से था? उसे अपने भाई से ऐसी उम्मीद नहीं थी। सुगना ने अगल-बगल नजर दौड़ाई और सोनू के लंड में आए इस तनाव का कारण जानने की कोशिश की।

एक और युवती सुगना से कुछ ही दूर पर खड़ी थी परंतु उसके शरीर की बनावट देखकर सुगना समझ गई निश्चित ही यह तनाव उस युवती की वजह से न था… तो क्या उसके भाई सोनू का लंड उसके लिए ही खड़ा हुआ था?.

हे भगवान अब वह क्या करें? सुगना अब असहज महसूस कर रही थी। उसका रोम-रोम सिहर उठा। ह्रदय की धड़कन तेज हो गई। जिस अवस्था में वह थी कुछ कर पाना संभव न था। वह इस बारे में सोनू से कुछ भी बोल पाने की स्थिति में न थी।

फिर भी सुगना ने अपने शरीर को थोड़ा अगल-बगल कर सोनू को यह एहसास दिलाने की कोशिश की कि वह उससे दूर हो जाए। परंतु यह सोनू के लिए भी संभव न था। सोनू के पीछे भी एक दो व्यक्ति खड़े थे और पीछे जाना संभव न था। सुगना के हिलने डुलने की वजह से सोनू को भी हिलना पड़ा और गाहे-बगाहे सोनू का लंड सुगना के नितंबों के बीच आ गया।

लंड का सुपाड़ा सुगना की पीठ पर था परंतु लंड का निचला भाग सुगना की नितंबों के बीच की घाटी में आ चुका था।

ट्रेन और वासना धीरे-धीरे रफ्तार पकड़ रहीं थी..

ट्रेन के आउटर स्टेशन और मुख्य स्टेशन के बीच ट्रेन न जाने कितनी बार पटरियां बदलती है और पटरियां बदलते समय ट्रेन की हिलने डुलने की गति और बढ़ जाती है।

आज यह गति सोनू को बेहद प्यारी लग रही थी जब भी ट्रेन हिलती सुगना और उसके बीच में एक घर्षण होता और वह सोनू के लंड एक बेहद सुखद एहसास देता..

सोनू अपनी कमर हिला कर अपने आनंद को और बढ़ाना चाह रहा था परंतु अपनी बड़ी बहन सुगना की नजरों में गिरना नहीं चाह रहा था। जिस सुखद पल को नियति ने उसे स्वाभाविक रूप से प्रदान किया था उस अहसास को अपने हाथों से गवाना नही चाहता था।

लाली के साथ भरपूर कामुक क्रियाकलाप करते करते सोनू में अब धैर्य आ चुका था…

उसने यथासंभव अपने आप को संतुलित रखते हुए ट्रेन के हिलने से अपने लंड में हो रहे कोमल घर्षण और हलचल को महसूस करने लगा…

ट्रेन के हिलने से सुगना और सोनू के बीच का दबाव कभी कम होता कभी ज्यादा परंतु सोनू के लंड और सुगना के नितंबों का साथ कभी ना छूटता.. और कभी इसकी नौबत भी आती तो सोनू स्वतः ही उस दबाव को बढ़ा देता… यह मीठा और उत्तेजक एहसास सोनू को बेहद पसंद आ रहा था..

जिस तरह सोनू अपनी बड़ी बहन सुगना को खुद से दूर नहीं करना चाहता था ठीक उसी प्रकार सोनू का लंड सुगना के नितंबों के कोमल और मादक के स्पर्श से दूर नहीं होना चाहता था..

ट्रेन के पटरी या बदलने से खटखट की आवाजें ट्रेन में आ रही परंतु न तो यह सुगना को सुनाई दे रही थी और नहीं सोनू को ….सुगना और सोनू के दिमाग में इस समय कुछ और ही चल रहा सोनू अपने सपने में देखी गई बातों को याद कर रहा था और अपने मन में सुगना के कोमल और मादक बदन को अनावृत कर रहा था.. और उधर सुगना सोनू के लंड के स्पर्श को महसूस कर रही थी और सोनू के लंड के आकार का अनुमान लगा रही थी..

एक पल के लिए सोनू के मन में आया कि वह दरवाजे के सपोर्ट को छोड़कर अपने दोनों हाथ सुगना की चुचियों पर ले आए और उसे मसलते हुए अपने लंड को उसके नितंबों के बीच पूरी तरह घुसा दे..

परंतु यह सोच सिर्फ और सिर्फ उसके उत्तेजक खयालों की देन थी.. हकीकत में ऐसा कर पाना संभव न था। सुगना के साथ ऐसी ओछी हरकत करने का परिणाम भयावह हो सकता था…

कामुक सोच और उत्तेजना में चोली दामन का संबंध है..

सोनू अपनी सोच में सुगना को और नग्न करता गया और …. उसका लंड और भी संवेदनशील होता गया..

सरयू सिंह अब भी सूरज के साथ बातें कर रहे और मधु अपनी मां सुगना के कंधे पर सर रखकर सो रही थी।

सोनू की उत्तेजना अब परवान चढ़ चुकी थी। लाली को घंटों चोद चोद कर थका देने वाला सोनू का वह मजबूत लंड आज सुगना के नितंबों के सानिध्य में आकर जैसे अपना तनाव खोने को तत्पर था।

सुगना स्वयं अपने मन में चल रहे गंदे संदे खयालों से जूझ रही थी.. और उसकी बुर हमेशा की तरह उसकी बातों को नजरअंदाज करते हुए अपने होठों से लार टपक आने लगी थी। न जाने वह निगोडी क्यों सोनू के लंड के ख्याल मात्र से सुगना से विद्रोह पर उतारू हो जाती ऐसा लगता जैसे उसके लिए रिश्तो की मर्यादा का कोई मोल ना हो।

सुगना असहज हो रही थी उसने सोनू को खुद से दूर करने की सूची और अपने नितंबों को पीछे की तरफ हल्का धकेल कर सोनू को दूर करने की कोशिश की।

यही वह वक्त था जब सुगना के नितंबों ने सोनू के लंड पर एक बेहद मखमली दबाव बना दिया… सोनू के सब्र का बांध टूट गया।

सोनू का अपनी बड़ी बहन के प्रति भावनाओं का सैलाब फूट पड़ा.. अंडकोशो ने वीर्य उगलना शुरू कर दिया सोनू स्खलित होने लगा उसका लंड उछल उछल कर वीर्य वर्षा करने लगा….

परंतु हाय री किस्मत सोनू की सारी भावनाएं सोनू की पजामी को न भेद सकीं और उसका ढेर सारा वीर्य उसकी पजामी को गीला करता रहा।

स्खलित होता हुआ लंड एक अलग ही कंपन पैदा करता है जिन स्त्रियों में इस कलित होते हुए लंड को अपने हाथों में पकड़ा होगा वह वीर्य के बाहर निकलते वक्त उसके कंपन को अपनी उंगलियों पर अवश्य महसूस किया होगा…

सुगना को तो जैसे इसमें महारत हासिल थी वैसे भी नियति ने अब तक उसके भाग्य में जो दो पुरुष दिए थे वह दोनों अपनी जांघों के बीच विधाता की अनुपम धरोहर के लिए घूमते थे…

सरयू सिंह और सुगना के धर्मपति रतन दोनो एक मज़बूत लंड के स्वामी थे …

सुगना अपने नितंबों पर लंड की वह थिरकन महसूस कर रहीं थी।.दिल में भूचाल लिए वह एकदम शांत थी…हे भगवान सोनू स्खलित हो रहा था…. और वह अनजाने में अपने ही छोटे भाई सोनू को स्खलित होने में मदद कर रही थी..

सोनू का स्खलन पूर्ण होते ही…. वासना न जाने कहां फुर्र हो गई सिर्फ और सिर्फ आत्मग्लानि थी …आज सोनू ने अपनी बड़ी और सम्मानित बहन सुगना के नितंबों पर अपना लंड रगड़ते हुए खुद को स्खलित कर लिया था ..पर अब शर्मिंदगी महसूस कर रहा था..

वासना के अधीन होकर की गई बातें और कृत्य वासना का उफान खत्म होने के बाद हमेशा अफसोस का कारण बनते हैं जिह्वा और हरकतों पर लगाम न लगाने वाले अपने अंतर्मन में चल रहे अति उत्तेजना और अपने अपेक्षाकृत घृणित विचारों को अपने साथी को बता जाते हैं। यह उनके चरित्र को उजागर करता है।

जब तक सोनू कुछ और सोचता ट्रेन में एक बार फिर गहमागहमी चालू हो गई थी ट्रेन लखनऊ स्टेशन के प्लेटफार्म पर आ रही थी अंदर फसे यात्री अब उग्र हो रहे थे परंतु सोनू शांत था और सुगना भी।

सरयू सिंह ने सुगना के लिए रास्ता बनाया और सोनू से कहा

"संभाल के उतर जाईह"

सुगना इस स्थिति में न थी कि वह सोनू से कुछ कह पाती और न सोनू इस स्थिति में था कि वह सुगना से प्यार से विदा ले पाता… अब से कुछ देर पहले उसने जो किया था या जो हुआ था उसका गुनाहगार सिर्फ और सिर्फ सोनू था परंतु नियति सुगना को भी उतना ही कसूरवार मान रही थी..

खैर जो होना था वह हो चुका था सोनू को सुगना का लखनऊ आगमन रास आ गया था.. शायद उसने अपने विधाता से आज इतना मांगा भी न था जितना नियत ने उसे प्रदान कर दिया था..

सोनू प्लेटफार्म पर उतर कर कुछ देर और खड़ा रहा सुगना ट्रेन के अंदर आ चुकी थी दोनों बच्चे सोनू की तरफ देख रहे थे सोनू ट्रेन की खिड़की से अपने हाथ अंदर डाल कर सूरज के साथ खेल रहा था परंतु सुगना अपनी नजर झुकाए हुए थी.. सोनू से हंसी ठिठोली करने वाली सुगना आज शांत थी… न जाने जिस अपराध का गुनाहगार सोनू था उस अपराध के लिए सुगना क्यों अपनी नजर झुका रही थी..

कुछ देर बाद ट्रेन चल पड़ी सोनू ने अपने हाथ हवा में लहरा कर अपने परिवार के सदस्यों को विदा करने लगा ट्रेन के अंदर से सब ने हाथ हिलाए परंतु सुगना अब भी शांत थी पर जैसे ही सुगना को लगा कि अब वह सोनू को और नहीं देख पाएगी उसका धैर्य टूट गया..

उसने सोनू की तरफ देखा और अपने हाथ हिला कर उसका अभिवादन किया सुगना की आंखों में आंसू स्पष्ट तौर पर देखे जा सकते थे यह आंसू क्यों थे यह तो हमारे संवेदनशील पाठक ही जाने परंतु सुगना असमंजस में थी।

आज अपने ही भाई के साथ वह जिस अनोखी घटना की भागीदार और साक्षी बनी थी वह निश्चित ही पाप था एक घोर पाप पर सोनू का परित्याग करना या उसके साथ कुछ भी गलत करना सुगना को कतई गवारा ना था सोनू अब भी सुगना को उतना ही प्यारा था शायद इसी वजह से सुगना सोनू को विदा करते समय अपने हाथ हिलाने से खुद को ना रोक पाई…

सुगना और सोनू का प्यार निराला था ..

ट्रेन पटरीओं पर दौड़ लगाती ओझल हो गई परंतु सुगना अब भी सोनू के दिमाग में घूम रही थी …सुगना के हाथ [b]हीलाए जाने से सोनू प्रसन्न हो गया था और अब उसके होठों पर मुस्कान थी…सोनू हर्षित मन से स्टेशन के बाहर आया और ऑटो रिक्शा कर अपने हॉस्टल की तरफ निकल गया…


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##


अगली सुबह सरयू सिंह सुगना के साथ बनारस आ चुके थे। मदमस्त सोनी नहा कर बाहर आई थी। आधुनिकता के इस दौर में सोनी भी नहा कर नाइटी पहन कर बाहर आ जाया करती थी जैसे ही सोनी ने दरवाजा खोला सरयू सिंह सामने खड़े थे…अब भी सरयू सिंह ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति थे जिनके सामने घर की स्त्रियां अब भी कुछ पर्दा कर लिया करती थी परंतु आज जिस अवस्था में उन्होंने सोनी को देखा था वह बेहद उत्तेजक और निगाहों में अभद्र थी। सोनी उनके चेहरे के भाव देख कर घबरा गई। उसने न तो सरयू सिंह के चरण छुए और न सुगना के अपितु उल्टे पैर भागते हुए सुगना के कमरे में आ गए….

सरयू सिंह सोनी को अंदर जाते हुए देख रहे थे। सोनी की काया में आया बदलाव सरयू सिंह बखूबी महसूस कर रहे थे। शायद सोनी अपनी उम्र से कुछ ज्यादा बड़ी दिखाई पड़ने लगी थी और हो भी क्यों न विकास से कई दिनों तक जी भर कर चुदवाने के बाद सोनी में निश्चित ही शारीरिक बदलाव आया गया था…आज भी जब कभी उसे मौका मिलता वह अपने कामुक खयालों में खो जाया करती थी और अपनी छोटी सी बुर को मसल मसल कर स्खलित होने पर मजबूर कर देती थी…

शायद उसे भी अपनी कामुक अवस्था का ध्यान आ गया था .. इसीलिए वह सर्विसिंग के सामने ज्यादा देर खड़ी ना हो पाई …सोनी ने अपने वस्त्र पहने और फिर आकर सरयू सिंह और सुगना के चरण छुए। सरयू सिंह ने सोनी को आशीर्वाद दीया परंतु उसकी कामुकता या उनके दिमाग में अभी घूम रही थी…

सरयू सिंह का लंड तो न जाने लंगोट की अंधेरी कैद में भी न जाने कैसे सुंदर और कामुक युवतियों को अंदाज लेता था..

सूरज तो जैसे अपनी सोनी मौसी से मिलने के लिए बेचैन था.. वह झटपट सोनी की गोद में आ गया और फिर क्या था उसने सोनी के कोमल होठों को चूम लिया… सरयू सिंह की निगाह सूरज पर पड़ गई। उन्होंने कुछ कहा नहीं परंतु वह यह देखकर आश्चर्य में थे कि सोनी ने उसे रोका तक नहीं अपितु वह उसका साथ दे रही थी। सूरज की यह क्रिया बाल सुलभ थी या आने वाले समय की झांकी यह कहना कठिन था पर जो कुछ हो रहा था वह असामान्य था छोटे बच्चों को भी कामुक महिलाओं के होंठ चूमने का कोई अधिकार नहीं है ऐसा सरयू सिंह का मानना था..

लाली अब तक चाय लेकर आ चुकी थी सरयू सिंह चाय पी रहे थे और लाली सोनू के बारे में ढेर सारी बातें पूछ रही थी.. लाली का सोनू के बारे में जानने की इतनी इच्छा …..लाली का यह व्यवहार बुद्धिमान सरयू सिंह की बुद्धि के परे था… 


##

उधर सोनी सूरज को लेकर कमरे में आ गई थी ….

सूरज अभी भी सोनी की गोद में था और कभी उसके गाल कभी होठों को चूम रहा था… सोनी ने सूरज को बिस्तर पर खड़ा कर दिया और हमेशा की तरह एक बार फिर उसके जादुई अंगूठे को सहला दिया …आगे क्या होना था यह सबको पता था सूरज में अपनी सोनी मौसी के बाल पकड़े और उसे खींचकर नीचे झुका दिया सोनी ने जी भर कर उस अद्भुत मुन्नी के दर्शन किए जो अब विकास के लंड के बराबर अपना आकार बढ़ा चुकी थी सोनी को निदान पता था… उसने अपने होंठ अपने कार्य पर लगा दिए कुछ ही देर में सूरज खिलखिलाते हुआ सोनी के बाल सहलाने लगा…सोनी की जांघों के बीच गर्माहट बढ़ गई थी…

"सोनी सूरज के भेज बिस्कुट खा ली" सुगना ने आवाज लगाई..

सुगना यह बात भली-भांति जानती थी कि अब भी सोनी एकांत पाकर अपनी हरकत करने से बाज नहीं आएगी परंतु सुगना को सोनी की आदत से कोई विशेष तकलीफ न थी…. सूरज भी खुश था और सोनी भी….


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घर में सब के चेहरों पर खुशियां व्याप्त थी परंतु सुगना असहज थी जब जब उसे ट्रेन की वह घटना याद आती वह खुद को उस घटना के लिए जिम्मेदार मानती जिसमें शायद उसका सक्रिय योगदान न था वह तो सोनू ही था जो अपनी बहन की सुंदरता और मादक शरीर पर फिदा हुआ जा रहा था…

यदि सुगना अपना सुखद वैवाहिक जीवन जी रही होती तो शायद सोनू इस गलत विचारधारा में न पड़ता परंतु इसे परिस्थितियों का दोष कहें या स्त्री पुरुष के बीच स्वाभाविक आकर्षण परंतु सोनू अब बेचैन हो उठा था।…

सुगना नहाने जा चुकी थी…सोनू द्वारा दी गई लहंगा और चोली उतारते समय उसे एक बार फिर सोनू की याद आ गई दिमाग में ट्रेन के दृश्य घूमने लगे जैसे-जैसे सुगना नग्न होती गई वासना उसे अपनी आगोश में लेती गई।

सुगना ने अपनी कोमल और उदास बुर को सर झुका कर देखना चाहा..

ट्रेन में छाई उत्तेजना ने सुगना की जांघों पर भी प्रेमरस के अंश छोड़ दिए थे…दिमाग में सोनू की मजबूत लंड की कल्पना और नितंबों की बीच उसे प्रभावशाली घर्षण ने सुगना की बुर को लार टपकाने के लिए विवश कर दिया था…

जैसे जैसे सुगना उस सुख चुकी लार को साफ करने लगी..उसकी बुर ने और उत्सर्जन प्रारंभ कर दिया..

सुगना ने अपनी अभागन बुर को थपकियां देकर धीरज रखने को कहा पर न उसकी उंगलियों ने उसकी बात मानी और न बुर ने…सोनू ….आ ….ई………सुगना के होंठ न जाने क्या क्या बुदबुदा रहे थे सुगना की मनोस्थिति पढ़ पाना नियति के लिए भी एक दुरूह कार्य था…

कुछ ही देर में सुगना ने अपना अधूरा स्खलन पूर्ण कर लिया…
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##

सोनू ने अगले दो-तीन दिनों में अपना सामान बांधा और बनारस आने की तैयारी करने लगा।

सोनू की पोस्टिंग बनारस से कुछ ही दूर जौनपुर में हुई थी। सोनू बेहद प्रसन्न था। जौनपुर से बनारस आना बेहद आसान था सोनू मन ही मन अपने ख्वाब बुनने लगा …

सोनू के मन में सिर्फ एक ही चिंता थी कि अब जब वह सुगना के सामने आएगा तो वह उससे कैसा व्यवहार करें कि क्या उसने उसे ट्रेन में हुई घटना के लिए माफ कर दिया होगा?

सोनू के पास सिर्फ और सिर्फ प्रश्न थे उसे सुगना का सामना करना ही था। उसने अपने इष्ट से सब कुछ सामान्य और अनुकूल रहने की कामना की और अपना सामान बांध कर बनारस विस्तृत सुगना के घर आ गया..सामन पैक करते वक्त उसे रहीम और फातिमा की चूदाई गाथा की वह फटी किताब भी दिखाई पड़ गई और सोनू मुस्कुराने लगा.. उसने न जाने क्या सोच कर उस अधूरी किताब को भी रख लिया…

अगली सुबह सोनू अपना ढेर सारा सामान आटो में लाद कर सुगना के घर के सामने खड़ा था..

उसका कलेजा धक धक कर रहा था..


शेष अगले भाग में..
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RE: आह... तनी धीरे से... दुखाता... (ORIGINAL WRITER = लवली आनंद) - by Snigdha - 05-07-2022, 11:55 AM



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