04-07-2022, 01:54 PM
स समय उनकी नजरों में मुझे वासना के डोरे दिखने लगते थे, मगर वो कुछ कहती नहीं थीं.
हम दोनों के बीच काफी बार ऐसी बातें हो जाती थीं, जिससे मुझे लगने लगता था कि बड़ी दीदी के मन में सेक्स को लेकर कुछ चल रहा है.
मगर मैं अपनी तरफ से कुछ भी पहल करने में डरता था.
मैंने देखा था कि जीजा जी से बड़ी दीदी ज्यादा खुश नहीं रहती थीं.
कुछ दिन बाद जब दीदी की बच्ची पैदा हुई थी, तब से मुझे उनको चोदने का और मन करने लगा था. वो अपनी बच्ची को कई बार दूध पिलाते पिलाते अपने मम्मे खोलकर ही सो जाती थीं और उनके बड़े चूचे देखकर मेरे लंड में करंट दौड़ जाता था.
ऐसे ही कुछ दिन बीत गए.
अब तो शायद वो जानबूझ कर ही मेरे सामने ही अपने दूध खुला छोड़ देती थीं.
ये सब बातें मुझे कुछ इशारे से महसूस होते थे कि बड़ी दीदी भी मेरे लंड से चुदना चाहती हैं.
एक दो बार तो ऐसा हुआ कि दीदी मेरे पास आकर मेरे कंधे से अपने बूब्स सटाने लगती थीं और मेरी जांघ पर हाथ रख देती थीं.
या उसी समय अपनी बच्ची को दूध पिलाने लगती थीं और बेबी के निप्पल खींचने से मेरी तरफ देख कर आह कर उठती थीं.
वो कराहते हुए बेबी से कहती थीं- अरे खींच मत न … पी ले बस.
ये सब देख सुन कर मैंने एक दिन पूछ लिया- क्या हुआ दी?
तो दीदी फट से बोलीं- ये गुड़िया मेरे निप्पल खींचती है न … तो दर्द सा होने लगता है. ये नहीं कि चुपचाप दूध पी ले.
उनके मुँह से ये सब इतना खुला सुनकर अब मुझसे कंट्रोल नहीं हो रहा था.
फिर जब जीजाजी नाईट डयूटी में जाते थे तो मैं दीदी के कमरे में जाने लगा था.
उस समय तक सब सो जाते थे.
तब मैं दीदी के पास जाकर उनको चैक करता था … उनके मम्मे खुले पड़े रहते थे.
चार दिन लगातार जाने के बाद मेरा मन भी हुआ कि दीदी की चूची को छूकर देखूं.
उस रात मैंने धीरे से अपना हाथ दीदी के मम्मे से लगा कर उसे सहलाया तो मुझे बड़ा मजा आया.
दीदी भी बेसुध सो रही थीं.
मैंने उनके मम्मे को दबा कर देखा और बाहर आकर मुठ मार ली.
अगले दिन मैं फिर से दीदी के कमरे में गया तो देखा कि दीदी ने आज ब्रा नहीं पहनी थी और उनका ब्लाउज पूरा खुला हुआ था.
दीदी के दोनों मम्मे खुले हुए थे.
हम दोनों के बीच काफी बार ऐसी बातें हो जाती थीं, जिससे मुझे लगने लगता था कि बड़ी दीदी के मन में सेक्स को लेकर कुछ चल रहा है.
मगर मैं अपनी तरफ से कुछ भी पहल करने में डरता था.
मैंने देखा था कि जीजा जी से बड़ी दीदी ज्यादा खुश नहीं रहती थीं.
कुछ दिन बाद जब दीदी की बच्ची पैदा हुई थी, तब से मुझे उनको चोदने का और मन करने लगा था. वो अपनी बच्ची को कई बार दूध पिलाते पिलाते अपने मम्मे खोलकर ही सो जाती थीं और उनके बड़े चूचे देखकर मेरे लंड में करंट दौड़ जाता था.
ऐसे ही कुछ दिन बीत गए.
अब तो शायद वो जानबूझ कर ही मेरे सामने ही अपने दूध खुला छोड़ देती थीं.
ये सब बातें मुझे कुछ इशारे से महसूस होते थे कि बड़ी दीदी भी मेरे लंड से चुदना चाहती हैं.
एक दो बार तो ऐसा हुआ कि दीदी मेरे पास आकर मेरे कंधे से अपने बूब्स सटाने लगती थीं और मेरी जांघ पर हाथ रख देती थीं.
या उसी समय अपनी बच्ची को दूध पिलाने लगती थीं और बेबी के निप्पल खींचने से मेरी तरफ देख कर आह कर उठती थीं.
वो कराहते हुए बेबी से कहती थीं- अरे खींच मत न … पी ले बस.
ये सब देख सुन कर मैंने एक दिन पूछ लिया- क्या हुआ दी?
तो दीदी फट से बोलीं- ये गुड़िया मेरे निप्पल खींचती है न … तो दर्द सा होने लगता है. ये नहीं कि चुपचाप दूध पी ले.
उनके मुँह से ये सब इतना खुला सुनकर अब मुझसे कंट्रोल नहीं हो रहा था.
फिर जब जीजाजी नाईट डयूटी में जाते थे तो मैं दीदी के कमरे में जाने लगा था.
उस समय तक सब सो जाते थे.
तब मैं दीदी के पास जाकर उनको चैक करता था … उनके मम्मे खुले पड़े रहते थे.
चार दिन लगातार जाने के बाद मेरा मन भी हुआ कि दीदी की चूची को छूकर देखूं.
उस रात मैंने धीरे से अपना हाथ दीदी के मम्मे से लगा कर उसे सहलाया तो मुझे बड़ा मजा आया.
दीदी भी बेसुध सो रही थीं.
मैंने उनके मम्मे को दबा कर देखा और बाहर आकर मुठ मार ली.
अगले दिन मैं फिर से दीदी के कमरे में गया तो देखा कि दीदी ने आज ब्रा नहीं पहनी थी और उनका ब्लाउज पूरा खुला हुआ था.
दीदी के दोनों मम्मे खुले हुए थे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.