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Thriller रश्मि का आरंभ- रश्मि मंडल
#19
अमर मेरी बी.एम.डब्लू. चला रहा था. मैं बाजू वाले सीट पर बैठी हुई थी.नशे के कारण हम दोनों आधे बेसुध थे. अमर सिंह  की छुवन ने मेरे पूरे शरीर में खलबली मचा दी थी. हम दोनों की आँखों में लाल डोरे तैर रहे थे. अमर रह-रह कर तिरछी नज़रों से मेरी खुले हुए बटन से झांकते उभारों को देखने का प्रयास कर रहा था. इतने सालों में अमर ने आज पहली बार मुझे इस तरह से छूने की हिम्मत की थी. और मैं बीच मंजधार में उससे अलग हो गयी थी. जब वह मुझसे चिपक कर खड़ा था, मैंने उसके कमर के नीचे कड़े होते अंग को महसूस किया था. मैं उससे अलग हुई तो बेचारा पक्का जलभुन गया होगा. मुझे पक्का यकीन है अगर वहाँ मैं थोड़ी देर और उसके साथ रहती तो वह अपना हाथ पीछे से आगे की ओर ले जाकर मेरी जांघों के बीच के मुलायम, चिकनी और प्यासी बिल्ली को भी छू लेता. यह ख्याल आते ही मुझे नीचे अपनी टांगों के बीच गीलेपन का अहसास हुआ. मैं तुरंत अपने विचारों से बाहर निकली. यह मैं क्या सोचने लगी, मैंने अपने आप से कहा. मै वैसे खुले विचारों वाली लड़की थी, ये सब मेरे लिए बड़ी बात नहीं थी. पर अमर मुझे पहले कुछ खास पसंद नहीं था.
मैंने अपने दिमाग में चलते उधेड़बुन से बाहर निकल कर अमर की ओर देखा. वैसे अमर में एक सम्पूर्ण मर्दों वाली सारी बात थी. वह ताकतवर था, बलिष्ट था पर थोड़ा सा चेंप और अय्याश टाइप का लड़का था. अमर और सचिन दोनों की नज़रों को मैं अच्छी तरह जानती थी और सचिन को मैंने कई बार जानबूझकर अपने मादक कहर ढाते अंगों की झलक दिखाई थी. मुझे बड़ा मजा आता था जब सचिन मेरी नशीली अंगों को देखकर लार टपकाता था.
तभी मुझे अमर ने कहा "रश्मि, तू ठीक है? हम तेरे घर पहुँच गये". "मेरे घर!! कहाँ?" मुझे सब पता था पर मैंने जानबूझकर कहा. उसने मेरी और देखा और कहा "ये तो सामने तेरा घर है, लगता है तुझे ज्यादा ही चढ़ गयी है, दे मुझे चाबी उसने मेरी दूधिया गोलाइयों पर एक नजर फेरते हुए कहा" उसकी आँखों में वासना के डोरे तैर रहे थे. मेरे भरे हुए कठोर उभारों को देखने से वह अपने आप को रोक नहीं पा रहा था. मैंने उसे चाबी दी, उसने जाकर सामने का दरवाजा खोला. फिर आकर वह कार में बैठ कर उसे स्टार्ट कर पोर्च में ले गया.

अपनी सीट से उतर कर, मेरी ओर आकर मेरी तरफ का दरवाजा खोल कर उसने मुझे पूछा "अन्दर चली जाएगी?" "हाँ, बिलकुल" मैंने अपनी भौं उठाते हुए कहा. मैं कार से नीचे उतरी, उसने गेट बंद किया. मैं घर की ओर मुड़ी तभी अचानक वह मेरे बाएँ बाजू में आकर अपना एक हाथ मेरे दायें कंधे पर रखकर मुझे सहारा देते हुए चलने लगा. मैं आराम से घर जा सकती थी, पर मैंने उसे कुछ नहीं कहा. मेरी कन्धों पर रखे उसके दायें हाथ को दो तीन बार मैंने बगल से आहिस्ता, जैसे गलती से ओ रहा हो, अपने वक्षों को छूते हुए पाया. मैं मंद-मंद मुस्कुरा उठी. हम दोनों थोड़ा लड़खड़ाते हुए घर के गेट तक पहुंचे. अमर ने ताला खोला. वह मुझे लेकर सीधे मेरी बेडरूम की तरफ बढ़ने लगा. उसे पता था मैं कहाँ सोती हूँ, वह पहले मेरे घर आ चुका था. मेरे बिस्तर पर मखमली चादर बिछा हुआ था, हम पास आए. उसने अपने मजबूत हाथों से मेरे दोनों बाजुओं को पकड़ कर मुझे बेड पर बैठा दिया. बेड पर बैठते समय मेरे घुटनों के ऊपर से शुरू होता मिनी स्कर्ट थोड़ा और ऊपर खिसक गया. अमर लगातार मेरे केले की तने जैसी गदराई जांघों को निहारे जा रहा था.

अभी से पहले तक वह मुझे चोर नजरों से देखने की कोशिश कर रहा था. पब वाली घटना के बाद भी उसके मन में अपने आप को मुझसे ना पकड़े जाने का अहसास था. पर यहाँ मेरे घर में, मेरे बेडरूम पर, मैं बैठी थी और वह मेरे सामने खड़े होकर ललचाई नजरों से मेरे दोनों पैरों के बीच के मांसल हिस्से को निहार रहा था. मैंने उसकी आँखों में वासना के चरम को लहराते हुए देखा. "अमर" मैंने कहा, वह थोड़ा सकपकाया फिर मेरी ओर देखते हुए कहा "लगता है मुझे अब चलना चाहिए". मैंने अपना दोनों हाथ ऊपर  उठाया  और अपने सीने को तानते हुए  भरपूर अंगड़ाई लेते हुए कहा "रात काफी हो गयी है, यहाँ गेस्ट रूम में ही सो जा, वैसे भी नशे की हालत में कहाँ इतनी दूर जायेगा अभी!!". "हूँ" उसने धीरे से कहा. मेरे अंगड़ाई लेते ही उसकी नजरें नीचे से मेरे शर्ट के ऊपर के खुले बटनों से झांकते दूधिया उभारों पर टिक गयी. मेरा शर्ट थोड़ा अस्त व्यस्त हो गया था. दो बटन पहले से खुले थे, तीसरा बटन मेरे उभारों को बांधने का असफल प्रयास कर रहा था. मैं अब भी बिस्तर पर बैठी थी और अमर अब भी मेरे सामने चकित सा खड़ा था. वह मेरे बड़े-बड़े ठोस गुदाज उभारों का जायजा ले रहा था. उसकी आँखों में लाल डोरे थे, उसकी नजरें मुझे अपने बदन में छूती हुई महसूस हो रही थी. और अब मैं भी उस प्यास की खेल में बहक रही थी.

मैंने उसकी ओर देखा, उसने अपनी नजर मेरे सीने से हटाई. हमारी नजरें मिली, दोनों शांत थे और शराब के नशे का प्रभाव ने ज्यादा सोचने भी नहीं दे रहा था. मैं बेड के एकदम किनारे पर अपनी दोनों टांग नीचे रख कर बैठी थी. दोनों पैरों के बीच थोड़ा फासला था, जहाँ से वह मेरी चिकनी जांघों को पहले निहार रहा था. मैं थोड़ा पीछे खिसक कर, बेड में और ऊपर की तरफ बैठ गयी. मेरे पैर अभी भी बेड के नीचे थे पर अब मेरे ऊपर खिसकते ही फैले हुए पैरों के बीच से मांसल जांघें अब ज्यादा नुमाया थीं. मैंने उसे देखा, वह ललचाई नजरों से मेरी गदरायी, सुडौल और पूर्णतः तराशी हुई जांघों को फिर से देख रहा था. मैंने धीरे से अपना दोनों हाथ उठाया, दायाँ हाथ दायीं जांघ की दायीं ओर, बायाँ हाथ बायीं जांघ की बायीं ओर, और अपने डार्क ग्रीन रंग के मिनी स्कर्ट को दोनों जांघों के बगल से पकड़ कर धीरे-धीरे ऊपर उठाने लगी. अमर एक टक, बुत बना हुआ मेरे अनावृत्त होते कन्दली, चिकनी, सुडौल जांघों को देख रहा था. मैंने स्कर्ट को खिसकाते-खिसकाते वहाँ तक ऊपर ला दिया जहाँ से उसे अब मेरी दोनों जांघों के कटाव के पास सफ़ेद रंग का मखमली पैंटी दृष्टिगोचर होने लगा.
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RE: रश्मि का आरंभ- रश्मि मंडल - by rashmimandal - 12-07-2022, 07:48 PM



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