01-07-2022, 02:55 PM
(This post was last modified: 14-07-2022, 05:16 PM by rashmimandal. Edited 1 time in total. Edited 1 time in total.)
पब में शराब और श़बाब दोनों अपने चरम पर था. मुलाक़ात होने के बाद सब, एक जगह पर अपनी जगह बुक करके बैठ गये. एंट्री फीस के बाद शराब तो फ्री ही था. रश्मि बीच में और सब उसे घेर कर बैठे हुए थे. सबको जानना था सलेक्शन प्रोसेस में क्या हुआ. एक-एक करके सब उससे कुछ सवाल पूछते और वह उसका जवाब देती. सबके हाथ में अपना-अपना पेग था, धीरे धीरे सब अपना सिप लगाते रश्मि को मंत्रमुग्ध होकर सुन रहे थे. रश्मि के ठीक सामने शाहीन अपनी आंख्ने बड़ी करके आश्चर्य से रश्मि को देखते हुए बैठी थी. वह सोच रही थी हमारे बीच की रश्मि ने कितना बड़ा काम कर दिया है और एक मैं हूँ जो ढंग से बात भी नहीं कर पाती हूँ. शाहीन बहुत ज्यादा पीती नहीं थी, कभी-कभी 1-2 पेग, उतना ही उसके लिए काफी था. अमर सिंह ने फटाफट अपना दूसरा पेग ख़त्म किया और उठ कर अगला पेग लेने काउंटर की और बढ़ गया. उसके दिमाग में बहुत कुछ चल रहा था. पहले उसे ज्यादा पता नहीं था रश्मि ने क्या तीर मारा है. पहले उसे बस लगता था रश्मि को एक नौकरी मिली है. उसने ना पहले कभी जानने का प्रयास किया और ना ही कभी ध्यान दिया. पर आज सबकी बातें सुनकर उसे समझ आया कि रश्मि बड़ी जगह पहुँच गयी है. रश्मि को पाने की उसके मन में जो कामना थी उसको वह रश्मि के डर से पहले भी पूरी नहीं कर पाया, अब तो उसे लगा यह असंभव हो गया. काउंटर पहुँचते ही उसने पहले उसने तुरंत एक काउंटर शॉट लगाया और फिर अगला पेग लेकर वह लौट गया. अमर अब हलके नशे में झूम रहा था, शराब उसके दिमाग में बातें बहुत तेजी से चला रही थी. फिर उसने वैसे ही नशे की हालत में अपना अंतिम निर्णय लिया, जो भी हो जाये मौका मिलते ही मैं आज किसी ना किसी पर प्रयास तो करूँगा ही. चाहे वो शाहीन ही क्यों हो, उसने सोचा. फिर उसने खुद से ही कहा, शाहीन? नहीं. फिर वह अपने आप को समझाते हुए आया, शाहीन भी चलेगी. मुझे जो चाहिए वो तो मिलेगा ही. यह सब सोचते वह वापस आकर अपनी जगह पर बैठ गया.
मैंने, रीमा शर्मा को अपने इंटरव्यू राउंड के बारे में बताते हुए अपना पेग ख़त्म किया. यह शायद मेरा तीसरा पेग था, मैं हल्के-हल्के सुरूर में थी. मैं रीमा को बता रही थी कि इंटरव्यू पैनल में 7 लोग थे, जिनमें से सभी मुझसे लगातार एक के बाद एक प्रश्न पूछ रहे थे. जिनमें से एक आई.आई.ए. के चीफ भी थे. यह सब बताते हुए मैं अपना अगला पेग लेने के लिए उठने लगी. उठने के लिए जैसे ही मैं थोड़ा झुकी सामने शाहीन के बगल में बैठा सचिन श्रीवास्तव मेरे सफ़ेद शर्ट में से ऊपर के दो खुले हुए बटनों में से झांकते वक्षों को निहार रहा था. वैसे तो मुझे उसे ललचाने में बड़ा ही मजा आता था. बहुत बार मैं जानबूझकर ऐसी हरकत उसे तड़फाने के लिए करती थी, कभी-कभी उससे अपना काम निकलवाने के लिए तो कभी-कभी तरस खाकर उसके साथ मजे लेने के लिए. पर आज मुझे उसका मेरी स्तनों की ओर झांकते हुए पाए जाने पर बड़ा गुस्सा आया. शायद यह सबके बीच में होने के कारण था. पतले-दुबले शरीर और साढ़े पांच फुट की ऊंचाई का सचिन, थोड़ा शर्मीला टाइप का लड़का है. उसका खुद का कुछ नहीं है, ना कोई प्लान, ना कोई सोच, वह बस हम जो करते उसमें शामिल हो जाता. मैंने उसकी आँखों में ऑंखें डाली और कहा, "सचिन, मेरे लिए एक पेग ले आएगा क्या?"
वह बिना कोई पल गंवाए अपनी जगह से उठ गया. दायाँ हाथ जिससे वह अपना पेग पी रहा था उससे उसने अपने गिलास को बाएं हाथ में लिया और दायाँ हाथ मेरी और बढ़ाते हुए कहा "हाँ, मैं ले आता हूँ ना, मैं खुद के लिए पेग लेने जाने ही वाला था". मुझसे गिलास लेकर वह काउंटर की ओर बढ़ गया. रीमा ने मुझे मुस्कुराते हुए देखा, फिर वह खिलखिला कर हंस दी. रीमा काफी समझदार लड़की थी. भले ही इस मामले में हमारी बात नहीं हुई थी पर उसे बखूबी पता था मैं कैसे सचिन से अपना काम निकलवाती हूँ. और शायद वह जानती थी मैं उससे काम निकलवाने के लिए क्या हथकंडे अपनाती हूँ. मैंने रीमा को ध्यान से देखा, रीमा ने पीते हुए अपनी स्लीवलेस टॉप के ऊपर पीते हुए थोड़ा शराब गिरा दिया था. भींगे हुए कपड़ों से उसकी काली रंग की ब्रा और उसके ऊपर का नज़ारा हल्का सा दिख रहा था. 5 फुट 9 इंच की रीमा अपने आप में क़यामत थी. उसके गोल, सुडौल और पुष्टता से परिपूर्ण गोलाइयों का अहसास ऊपर से हो रहा था. मुझे हमेशा से पता था कि रीमा बेइंतहा खूबसूरत है पर फिर भी मेरी ऐसी नजरें उस पर कभी नहीं गयी. यह शायद शराब के इस हल्के-हल्के सुरूर की करामात थी. इतने में ही सचिन वहां मेरे लिए पेग लेकर हाजिर हुआ. मैंने उससे पेग लिया और हम सब फिर से अपनी बातों में लग गये.
कुछ देर के गप और मस्ती के बाद, शाहीन को छोड़ कर लगभग हम सब नशे में धुत्त थे. मैंने कुछ ज्यादा ही पी लिया था. हम सब एक के बाद एक डांस फ्लोर की तरफ बढ़े. मैं खूब मस्त होकर नाच रही थी, पूरी तरह से फ्री. नाचते समय मेरे मादक यौवन से भरे स्तनयुगल बेतरतीब कम्पन कर रहे थे. फ्लोर पर सबकी नजर मेरे गदराये बदन पर थी. लड़के क्या लड़कियां भी मेरे मखमली पेट और और कठोर, पुष्ट टांगों को देखकर जल भुन रही थीं. कुछ लड़के पास आकर मेरे गदराये हुए, हाहाकारी, अप्रतिम बदन को छूने और मुझसे बात करने का प्रयास करने लगे. वैसे तो मैं किसी भी उल्टी-सीधी हरकत से खुद का ध्यान रख सकती हूँ पर यहाँ अमर मेरा रक्षक बना हुआ था. वह मेरे साथ-साथ मेरे आस पास ही नाच रहा था. बीच-बीच में वह मेरे साथ ऐसे चिपक जाता था जैसे वह मेरा बॉयफ्रेंड हो. अमर तगड़ा और बलिष्ठ शरीर का मालिक है. इसलिए किसी की उसके बाद हिम्मत भी नही हो रही थी. इस नशे के सुरूर में मैंने अपनी गर्दन घुमा कर बाकी तीनों को देखने का प्रयास किया. रीमा, शाहीन कुरैशी और सचिन एक अलग जगह थे. उनकी शायद कुछ और ग्रुप के लोगों से दोस्ती हो गयी थी, जहाँ वे साथ में किसी बात पर जोर-जोर से हंस रहे थे.
मुझे क्या!! मैं तो मदमस्त होकर अपने अंग-अंग हिलाते हुए डांस कर रही थी. शराब का भरपूर नशा, डिम और नशीली लाईट और पैरों को थिरका देने वाला म्यूजिक मुझे मस्त कर दे रहा था. अमर भी मेरे सामने ही मस्त था. उसने अपनी कमर हिलाते हुए, अपना मुंह मेरे कान के एकदम पास लाकर कहा. "रश्मि, आर यू ओके ?" भरपूर नशे में डूबी मैं, मुझे अहसास हो रहा था कि मैंने हद से ज्यादा पी ली है. मैंने उससे लड़खड़ाते हुए कहा "मैं ठीक हूँ, बस थोड़ा ज्यादा हो गया है आज. टाइम कितना हुआ? रात नहीं हुई अभी तक?" मैं बेफिक्र थी पूरी तरह से, इतने दिनों की व्यस्तता इसका कारण था. "रात काफी हो गयी है मैडम" उसने कहा. "अच्छा", मैंने कहा. अमर खुद भी काफी नशे में था. उसने पास आकर अपने बाएं हाथ से मेरी दायें हाथ को पकड़ लिया. वह मुझसे काफी पास मुझसे चिपक कर कर खड़ा था. मैं उसके कठोर सीने को अपने गदराई गोलाईयों के अग्र बिंदुओं पर महसूस कर रही थी. धीरे से मैंने उसका दायाँ हाथ अपने बाएं नितंभ पर सरसराता हुआ पाया. वह बड़े इत्निनान से मेरी कठोर नितंभ पर स्कर्ट के ऊपर से अपना हाथ फेर रहा था. उसकी उँगलियाँ अब थोड़ा ऊपर जहाँ स्कर्ट और शर्ट के बीच का भाग था, मेरे कमर के निचले हिस्से में मेरे नंगी मुलायम और चिकने शरीर पर था. वह स्त्रियों को छूने में दक्ष था. उसकी छुवन से मेरे शरीर पर मादकता की लहरें हिलोरें मारने लगी.
हौले से उसने अपनी हथेली मेरे स्कर्ट के इलास्टिक के भीतर डालना प्रारंभ किया. उसकी उँगलियाँ मेरे स्कर्ट के अन्दर, मेरी मांसल और पुष्ट नितंभ के ऊपर जाकर मेरी पैंटी पैंटी के ऊपरी बॉर्डर को छूने लगा. मैं अपनी आँखें बंद कर उसकी हरकतों को अपने पीछे के उभारों पर महसूस कर रही थी. उसकी छुवन ने मेरे रोम-रोम में मीठा सा तरंग प्रवाहित करना आरम्भ कर दिया. अपनी दो उँगलियाँ मेरी पैंटी के अन्दर डालकर अमर मेरी नंगी, चिकनी और गदराई नितम्भों पर गोलाकार गति से फेरने लगा. फिर अचानक उसने अपनी पूरी हथेली मेरे पैंटी के अन्दर डाल कर मेरी मांसल और कठोर नितंभ को मसल दिया. "आहहहह" मेरे मुंह से निकला.
तभी मुझे एक आवाज सुनाई दी "रश्मि". यह रीमा की आवाज थी. मैं अमर से तुरंत अलग हुई और आंख्ने खोली. अपने चारों तरफ देखा. रीमा काफी दूर थी, उसे शायद हमारी स्थिति का ज्ञान नहीं था. "हाँ" मैंने कहा और रीमा हमारी ओर आने लगी. मैंने अपने आस-पास देखा तो वहां कई जोड़े एक-दूसरे से लिपटे परस्पर यौन अग्नि में जल रहे थे. मेरे पीछे तो एक जवान सा लड़का अपनी साथ वाली लड़की के टी-शर्ट के ऊपर से उसके एक स्तन को एक हाथ से बेरहमी से दबा रहा था और दुसरे वक्ष को ऊपर से ही अपने मुंह के अन्दर समा लेने को आतुर था. मैं काफी नशे में थी और अमर की हरकतों ने मेरे रोम-रोम में आग लगा दी थी. नशे की गिरफ्त में दिखती रीमा अब हमारे पास पहुँच चुकी थी. उसने कहा "चलते हैं यार, काफी टाइम हो गया, सोना है अब मुझे". मैंने उसकी ओर देखते हुए कहा "ठीक है बेबी". मेरी जुबान लड़खड़ा रही थी. "बाकी दोनों कहाँ हैं" मैंने उसे कहा. "बाहर" उसने जवाब दिया.
मैंने अमर की तरफ देखा, वह आँखों में लाल डोरे लिए अभी भी मुझे निहार रहा था. हमारी नजरें मिलने ही उसने कहा "थोड़ी देर और रुक जाते हैं". "नहीं, अब हम घर जायेंगे मैंने चिल्ला कर कहा" और रीमा की तरफ मुड़ गयी. रीमा आगे आगे और मैं उसके पीछे. अमर अब क्या ही कर पाता? वह भी मेरे पीछे आने लगा.
रीमा के पीछे चलती मेरी नजर रीमा के मटकते हुए कूल्हों पर पड़ी. मैं खुद को बोलने से नहीं रोक पाई "क्या शानदार फिगर का रीमा का". बाहर सचिन और शाहीन हमारा इन्तजार कर रहे थे. सचिन, रीमा के साथ और शाहीन मेरे साथ जाने वाली थी. मेरी लड़खड़ाहट को देखते हुए अमर ने कहा "घर तक गाड़ी ड्राइव कर लेगी?" मैंने होंठों पर कटीली मुस्कान लाते हुए कहा "नहीं, तू छोड़ दे". उसने अचंभित होकर मेरी और देखते हुए कहा "हाँ, मुझे कोई दिक्कत नहीं है". हमने निर्णय लिया, सचिन मेरी कार ले जायेगा और शाहीन को उसके घर छोड़ देगा. रीमा अकेली चली जाएगी और अमर मुझे छोड़ देगा. हमने एक दूसरे को सी ऑफ़ किया और अपनी-अपनी मंजिल की और चल पड़े.
मैंने, रीमा शर्मा को अपने इंटरव्यू राउंड के बारे में बताते हुए अपना पेग ख़त्म किया. यह शायद मेरा तीसरा पेग था, मैं हल्के-हल्के सुरूर में थी. मैं रीमा को बता रही थी कि इंटरव्यू पैनल में 7 लोग थे, जिनमें से सभी मुझसे लगातार एक के बाद एक प्रश्न पूछ रहे थे. जिनमें से एक आई.आई.ए. के चीफ भी थे. यह सब बताते हुए मैं अपना अगला पेग लेने के लिए उठने लगी. उठने के लिए जैसे ही मैं थोड़ा झुकी सामने शाहीन के बगल में बैठा सचिन श्रीवास्तव मेरे सफ़ेद शर्ट में से ऊपर के दो खुले हुए बटनों में से झांकते वक्षों को निहार रहा था. वैसे तो मुझे उसे ललचाने में बड़ा ही मजा आता था. बहुत बार मैं जानबूझकर ऐसी हरकत उसे तड़फाने के लिए करती थी, कभी-कभी उससे अपना काम निकलवाने के लिए तो कभी-कभी तरस खाकर उसके साथ मजे लेने के लिए. पर आज मुझे उसका मेरी स्तनों की ओर झांकते हुए पाए जाने पर बड़ा गुस्सा आया. शायद यह सबके बीच में होने के कारण था. पतले-दुबले शरीर और साढ़े पांच फुट की ऊंचाई का सचिन, थोड़ा शर्मीला टाइप का लड़का है. उसका खुद का कुछ नहीं है, ना कोई प्लान, ना कोई सोच, वह बस हम जो करते उसमें शामिल हो जाता. मैंने उसकी आँखों में ऑंखें डाली और कहा, "सचिन, मेरे लिए एक पेग ले आएगा क्या?"
वह बिना कोई पल गंवाए अपनी जगह से उठ गया. दायाँ हाथ जिससे वह अपना पेग पी रहा था उससे उसने अपने गिलास को बाएं हाथ में लिया और दायाँ हाथ मेरी और बढ़ाते हुए कहा "हाँ, मैं ले आता हूँ ना, मैं खुद के लिए पेग लेने जाने ही वाला था". मुझसे गिलास लेकर वह काउंटर की ओर बढ़ गया. रीमा ने मुझे मुस्कुराते हुए देखा, फिर वह खिलखिला कर हंस दी. रीमा काफी समझदार लड़की थी. भले ही इस मामले में हमारी बात नहीं हुई थी पर उसे बखूबी पता था मैं कैसे सचिन से अपना काम निकलवाती हूँ. और शायद वह जानती थी मैं उससे काम निकलवाने के लिए क्या हथकंडे अपनाती हूँ. मैंने रीमा को ध्यान से देखा, रीमा ने पीते हुए अपनी स्लीवलेस टॉप के ऊपर पीते हुए थोड़ा शराब गिरा दिया था. भींगे हुए कपड़ों से उसकी काली रंग की ब्रा और उसके ऊपर का नज़ारा हल्का सा दिख रहा था. 5 फुट 9 इंच की रीमा अपने आप में क़यामत थी. उसके गोल, सुडौल और पुष्टता से परिपूर्ण गोलाइयों का अहसास ऊपर से हो रहा था. मुझे हमेशा से पता था कि रीमा बेइंतहा खूबसूरत है पर फिर भी मेरी ऐसी नजरें उस पर कभी नहीं गयी. यह शायद शराब के इस हल्के-हल्के सुरूर की करामात थी. इतने में ही सचिन वहां मेरे लिए पेग लेकर हाजिर हुआ. मैंने उससे पेग लिया और हम सब फिर से अपनी बातों में लग गये.
कुछ देर के गप और मस्ती के बाद, शाहीन को छोड़ कर लगभग हम सब नशे में धुत्त थे. मैंने कुछ ज्यादा ही पी लिया था. हम सब एक के बाद एक डांस फ्लोर की तरफ बढ़े. मैं खूब मस्त होकर नाच रही थी, पूरी तरह से फ्री. नाचते समय मेरे मादक यौवन से भरे स्तनयुगल बेतरतीब कम्पन कर रहे थे. फ्लोर पर सबकी नजर मेरे गदराये बदन पर थी. लड़के क्या लड़कियां भी मेरे मखमली पेट और और कठोर, पुष्ट टांगों को देखकर जल भुन रही थीं. कुछ लड़के पास आकर मेरे गदराये हुए, हाहाकारी, अप्रतिम बदन को छूने और मुझसे बात करने का प्रयास करने लगे. वैसे तो मैं किसी भी उल्टी-सीधी हरकत से खुद का ध्यान रख सकती हूँ पर यहाँ अमर मेरा रक्षक बना हुआ था. वह मेरे साथ-साथ मेरे आस पास ही नाच रहा था. बीच-बीच में वह मेरे साथ ऐसे चिपक जाता था जैसे वह मेरा बॉयफ्रेंड हो. अमर तगड़ा और बलिष्ठ शरीर का मालिक है. इसलिए किसी की उसके बाद हिम्मत भी नही हो रही थी. इस नशे के सुरूर में मैंने अपनी गर्दन घुमा कर बाकी तीनों को देखने का प्रयास किया. रीमा, शाहीन कुरैशी और सचिन एक अलग जगह थे. उनकी शायद कुछ और ग्रुप के लोगों से दोस्ती हो गयी थी, जहाँ वे साथ में किसी बात पर जोर-जोर से हंस रहे थे.
मुझे क्या!! मैं तो मदमस्त होकर अपने अंग-अंग हिलाते हुए डांस कर रही थी. शराब का भरपूर नशा, डिम और नशीली लाईट और पैरों को थिरका देने वाला म्यूजिक मुझे मस्त कर दे रहा था. अमर भी मेरे सामने ही मस्त था. उसने अपनी कमर हिलाते हुए, अपना मुंह मेरे कान के एकदम पास लाकर कहा. "रश्मि, आर यू ओके ?" भरपूर नशे में डूबी मैं, मुझे अहसास हो रहा था कि मैंने हद से ज्यादा पी ली है. मैंने उससे लड़खड़ाते हुए कहा "मैं ठीक हूँ, बस थोड़ा ज्यादा हो गया है आज. टाइम कितना हुआ? रात नहीं हुई अभी तक?" मैं बेफिक्र थी पूरी तरह से, इतने दिनों की व्यस्तता इसका कारण था. "रात काफी हो गयी है मैडम" उसने कहा. "अच्छा", मैंने कहा. अमर खुद भी काफी नशे में था. उसने पास आकर अपने बाएं हाथ से मेरी दायें हाथ को पकड़ लिया. वह मुझसे काफी पास मुझसे चिपक कर कर खड़ा था. मैं उसके कठोर सीने को अपने गदराई गोलाईयों के अग्र बिंदुओं पर महसूस कर रही थी. धीरे से मैंने उसका दायाँ हाथ अपने बाएं नितंभ पर सरसराता हुआ पाया. वह बड़े इत्निनान से मेरी कठोर नितंभ पर स्कर्ट के ऊपर से अपना हाथ फेर रहा था. उसकी उँगलियाँ अब थोड़ा ऊपर जहाँ स्कर्ट और शर्ट के बीच का भाग था, मेरे कमर के निचले हिस्से में मेरे नंगी मुलायम और चिकने शरीर पर था. वह स्त्रियों को छूने में दक्ष था. उसकी छुवन से मेरे शरीर पर मादकता की लहरें हिलोरें मारने लगी.
हौले से उसने अपनी हथेली मेरे स्कर्ट के इलास्टिक के भीतर डालना प्रारंभ किया. उसकी उँगलियाँ मेरे स्कर्ट के अन्दर, मेरी मांसल और पुष्ट नितंभ के ऊपर जाकर मेरी पैंटी पैंटी के ऊपरी बॉर्डर को छूने लगा. मैं अपनी आँखें बंद कर उसकी हरकतों को अपने पीछे के उभारों पर महसूस कर रही थी. उसकी छुवन ने मेरे रोम-रोम में मीठा सा तरंग प्रवाहित करना आरम्भ कर दिया. अपनी दो उँगलियाँ मेरी पैंटी के अन्दर डालकर अमर मेरी नंगी, चिकनी और गदराई नितम्भों पर गोलाकार गति से फेरने लगा. फिर अचानक उसने अपनी पूरी हथेली मेरे पैंटी के अन्दर डाल कर मेरी मांसल और कठोर नितंभ को मसल दिया. "आहहहह" मेरे मुंह से निकला.
तभी मुझे एक आवाज सुनाई दी "रश्मि". यह रीमा की आवाज थी. मैं अमर से तुरंत अलग हुई और आंख्ने खोली. अपने चारों तरफ देखा. रीमा काफी दूर थी, उसे शायद हमारी स्थिति का ज्ञान नहीं था. "हाँ" मैंने कहा और रीमा हमारी ओर आने लगी. मैंने अपने आस-पास देखा तो वहां कई जोड़े एक-दूसरे से लिपटे परस्पर यौन अग्नि में जल रहे थे. मेरे पीछे तो एक जवान सा लड़का अपनी साथ वाली लड़की के टी-शर्ट के ऊपर से उसके एक स्तन को एक हाथ से बेरहमी से दबा रहा था और दुसरे वक्ष को ऊपर से ही अपने मुंह के अन्दर समा लेने को आतुर था. मैं काफी नशे में थी और अमर की हरकतों ने मेरे रोम-रोम में आग लगा दी थी. नशे की गिरफ्त में दिखती रीमा अब हमारे पास पहुँच चुकी थी. उसने कहा "चलते हैं यार, काफी टाइम हो गया, सोना है अब मुझे". मैंने उसकी ओर देखते हुए कहा "ठीक है बेबी". मेरी जुबान लड़खड़ा रही थी. "बाकी दोनों कहाँ हैं" मैंने उसे कहा. "बाहर" उसने जवाब दिया.
मैंने अमर की तरफ देखा, वह आँखों में लाल डोरे लिए अभी भी मुझे निहार रहा था. हमारी नजरें मिलने ही उसने कहा "थोड़ी देर और रुक जाते हैं". "नहीं, अब हम घर जायेंगे मैंने चिल्ला कर कहा" और रीमा की तरफ मुड़ गयी. रीमा आगे आगे और मैं उसके पीछे. अमर अब क्या ही कर पाता? वह भी मेरे पीछे आने लगा.
रीमा के पीछे चलती मेरी नजर रीमा के मटकते हुए कूल्हों पर पड़ी. मैं खुद को बोलने से नहीं रोक पाई "क्या शानदार फिगर का रीमा का". बाहर सचिन और शाहीन हमारा इन्तजार कर रहे थे. सचिन, रीमा के साथ और शाहीन मेरे साथ जाने वाली थी. मेरी लड़खड़ाहट को देखते हुए अमर ने कहा "घर तक गाड़ी ड्राइव कर लेगी?" मैंने होंठों पर कटीली मुस्कान लाते हुए कहा "नहीं, तू छोड़ दे". उसने अचंभित होकर मेरी और देखते हुए कहा "हाँ, मुझे कोई दिक्कत नहीं है". हमने निर्णय लिया, सचिन मेरी कार ले जायेगा और शाहीन को उसके घर छोड़ देगा. रीमा अकेली चली जाएगी और अमर मुझे छोड़ देगा. हमने एक दूसरे को सी ऑफ़ किया और अपनी-अपनी मंजिल की और चल पड़े.