29-06-2022, 03:55 PM
री हँसी नहीं रुक रही थी यह देख कर प्रीति को भी हंसी आने लगी। मैंने कहा रुको कुछ करता हूँ।
मैंने दोनों हाथों से प्रीति की कमर के निचले हिस्से को पकड़ कर प्रीति की शरीर को नीचे बेड की और दबाया और साथ ही अपनी कमर को ऊपर खींचा। इससे लिंग का कुछ हिस्सा योनि के बाहर आ गया। अब मेने अपने दोनों हाथों से प्रीति के दोनों हाथों को उसके सिर के ऊपर खींचा और उभरे हुए बड़े-बड़े बूब्स को चूसते हुए कमर के झटके प्रारम्भ किए। मैंने जैसे ही पहला झटका नीचे की और दिया निकला हुआ लिंग फिर अंदर चला गया। अब मेने बिना रुके झटके देना शुरू कर दिए। मैं जितनी बार मेरी कमर को ऊपर खीचता प्रीति का शरीर लिंग में फँस कर ऊपर उठ आता और जैसे ही नीचे झटका देता प्रीति के कूल्हे बेड से टकराते जिससे मेरा लिंग किसी कील की भांति प्रीति की योनि में धंस जाता। यह बिल्कुल वैसा ही थे जैसे हम किसी कुल्हाड़ी के अंदर लकड़ी का हत्था ठोकते हैं। इस प्रक्रिया में मेरे लिंग दो इंच बाहर आकर ढाई इंच अंदर चले जाता था। 10-15 मिनट के झटकों में ही मेने किला फतह कर लिया था और पूरा का पूरा लिंग योनि में प्रवेश कर गया था और प्रीति चीखते सिसकारते हुए पहली बार स्खलित हुई और बेसुध हो गई थी। मुझे उस पर दया आ गई और मैं रुक गया। लगभग 5-10 मिनट उसकी बेहोशी की अवस्था में उसे प्यार करता रहा, उसके होठों को चूसा और बालों को सहलाता रहा। कुछ देर बाद उसने आँखें खोली और बोली भैया तुमने तो सच में मुझे जन्नत के दर्शन करा दिए। मैंने कहा "एक खुश खबरी और है" , वह बोली "क्या?"
मैं बोला तुम्हारी इच्छा पूरी हो गई, पूरा लिंग अंदर ले ही लिया अखिर तुमने और तुमसे जीत भी गया मैं। तुम पहली बार झड़ चुकी हो और मैं नहीं झड़ा हूँ अभी।
प्रीति बोली "क्या सच में? पूरा चला गया अंदर? मुझे यकीन नहीं हो रहा है।"
प्रीति ने राहत की साँस लेते हुए कहा "मतलब अब इससे ज़्यादा दर्द नहीं सहना है मुझे।"
मैंने कहा "मेरा भी स्पर्म बाहर आने में योगदान करो मेरी बहन तुम्हारा भाई भी जन्नत के मजे लेना चाहता है।"
प्रीति ने अपने पैरों को दूर करते हुए और मेरे मुँह को पकड़ कर एक प्यारा चुंबन लिया और मेरी आँखो में झाँकते हुए बोली "तो आओ मेरे प्यारे भईया, देखते हैं अपनी बहन को पहली बार झड़ने से पहले कितनी बार जन्नत दिखा पाते हो।" ऎसा कहकर वह मेरे चेहरे को अपने बूब्स पर ले गई अपने निप्पल को मेरे मुँह में पिलाकर अपने हाथों को सिर के ऊपर ले जाकर कामुकता भारी अंगड़ाई लेने लगी।
मैं तो इसी बात का इंतजार कर रहा था। रात के दो लगभग दो बज चुके थे और मेरा जोश अब भी अपने चरम पर था। अब मैंने प्रीति की टांगों को ऊपर उठकर फिर से उसे चोदना शुरु किया। इस बार मैं मेरा लिंग प्रीति के स्खलन के कारण असानी से अंदर बाहर कर पा रहा था। जैसे ही मैंने पहली बार लिंग को पूरा बाहर किया प्रीति ने मुझे इस तरह जकड़ा कि मैं कही भाग रहा हूँ। यह देख कर मुझे हंसी आ गई तो प्रीति बोली "उसे अंदर करो जल्दी भईया वर्ना मेरी जान निकल जाएगी।" मैंने भी गपाक से पूरा 9 इंच लिंग उसकी योनि में डाल दिया और प्रीति ने कामुक सिसकारी के साथ राहत की साँस ली। अब शुरू हुआ मेरा तांडव। मेरे झटकों का सैलाब जो शुरू हुआ तो लगातार चलता ही रहा। किसी पिस्टन की भांति मेरा भीमकाय लिंग प्रीति की कामसीन योनि में 9 इंच का लंबा रास्ता तय कर रहा था। कई हजारों बार मैंने लिंग से प्रीति को बिना रुके और बिना अपनी झटकों की रफ्तार कम किए ना जाने कितनी देर तक चौदता रहा। प्रीति की मादक सिसकारीयाँ मेरे कानो में आती रही और मेरा जोश बढ़ता रहा। लगभग हर 15 मिनट में-में मुझे महसूस होता रहा कि प्रीति झड़ गई है पर मैं रुका नहीं। अचानक मुझे लगने लगा कि अब मैं झाड़ सकता हूँ तो मैंने प्रीति के कान में कहा कि क्या करना है बाहर निकलना है कि अन्दर ही झड़ जाऊँ। पर प्रीति तो पूरी तरह से बेसुध हो चुकी थी, मेरी बात सुनते ही वह बोली नहीं बाहर नहीं पागल अंदर ही चाहिए मुझे तेरा प्यार, प्लीज।
यह सुनकर मैंने प्रीति को पूरी शक्ति लगाकर बाहों में जकड़ा और अपने लिंग के झटकों की रफ्तार को अलग ही लेवल पर ले गया और अखिर एक तेज वीर्य की पिचकारी मेने प्रीति की योनि की अंतिम गहराई में छोड़ दी और लगभग उसी समय प्रीति भी अंतिम बार झड़ी।
मैंने दोनों हाथों से प्रीति की कमर के निचले हिस्से को पकड़ कर प्रीति की शरीर को नीचे बेड की और दबाया और साथ ही अपनी कमर को ऊपर खींचा। इससे लिंग का कुछ हिस्सा योनि के बाहर आ गया। अब मेने अपने दोनों हाथों से प्रीति के दोनों हाथों को उसके सिर के ऊपर खींचा और उभरे हुए बड़े-बड़े बूब्स को चूसते हुए कमर के झटके प्रारम्भ किए। मैंने जैसे ही पहला झटका नीचे की और दिया निकला हुआ लिंग फिर अंदर चला गया। अब मेने बिना रुके झटके देना शुरू कर दिए। मैं जितनी बार मेरी कमर को ऊपर खीचता प्रीति का शरीर लिंग में फँस कर ऊपर उठ आता और जैसे ही नीचे झटका देता प्रीति के कूल्हे बेड से टकराते जिससे मेरा लिंग किसी कील की भांति प्रीति की योनि में धंस जाता। यह बिल्कुल वैसा ही थे जैसे हम किसी कुल्हाड़ी के अंदर लकड़ी का हत्था ठोकते हैं। इस प्रक्रिया में मेरे लिंग दो इंच बाहर आकर ढाई इंच अंदर चले जाता था। 10-15 मिनट के झटकों में ही मेने किला फतह कर लिया था और पूरा का पूरा लिंग योनि में प्रवेश कर गया था और प्रीति चीखते सिसकारते हुए पहली बार स्खलित हुई और बेसुध हो गई थी। मुझे उस पर दया आ गई और मैं रुक गया। लगभग 5-10 मिनट उसकी बेहोशी की अवस्था में उसे प्यार करता रहा, उसके होठों को चूसा और बालों को सहलाता रहा। कुछ देर बाद उसने आँखें खोली और बोली भैया तुमने तो सच में मुझे जन्नत के दर्शन करा दिए। मैंने कहा "एक खुश खबरी और है" , वह बोली "क्या?"
मैं बोला तुम्हारी इच्छा पूरी हो गई, पूरा लिंग अंदर ले ही लिया अखिर तुमने और तुमसे जीत भी गया मैं। तुम पहली बार झड़ चुकी हो और मैं नहीं झड़ा हूँ अभी।
प्रीति बोली "क्या सच में? पूरा चला गया अंदर? मुझे यकीन नहीं हो रहा है।"
प्रीति ने राहत की साँस लेते हुए कहा "मतलब अब इससे ज़्यादा दर्द नहीं सहना है मुझे।"
मैंने कहा "मेरा भी स्पर्म बाहर आने में योगदान करो मेरी बहन तुम्हारा भाई भी जन्नत के मजे लेना चाहता है।"
प्रीति ने अपने पैरों को दूर करते हुए और मेरे मुँह को पकड़ कर एक प्यारा चुंबन लिया और मेरी आँखो में झाँकते हुए बोली "तो आओ मेरे प्यारे भईया, देखते हैं अपनी बहन को पहली बार झड़ने से पहले कितनी बार जन्नत दिखा पाते हो।" ऎसा कहकर वह मेरे चेहरे को अपने बूब्स पर ले गई अपने निप्पल को मेरे मुँह में पिलाकर अपने हाथों को सिर के ऊपर ले जाकर कामुकता भारी अंगड़ाई लेने लगी।
मैं तो इसी बात का इंतजार कर रहा था। रात के दो लगभग दो बज चुके थे और मेरा जोश अब भी अपने चरम पर था। अब मैंने प्रीति की टांगों को ऊपर उठकर फिर से उसे चोदना शुरु किया। इस बार मैं मेरा लिंग प्रीति के स्खलन के कारण असानी से अंदर बाहर कर पा रहा था। जैसे ही मैंने पहली बार लिंग को पूरा बाहर किया प्रीति ने मुझे इस तरह जकड़ा कि मैं कही भाग रहा हूँ। यह देख कर मुझे हंसी आ गई तो प्रीति बोली "उसे अंदर करो जल्दी भईया वर्ना मेरी जान निकल जाएगी।" मैंने भी गपाक से पूरा 9 इंच लिंग उसकी योनि में डाल दिया और प्रीति ने कामुक सिसकारी के साथ राहत की साँस ली। अब शुरू हुआ मेरा तांडव। मेरे झटकों का सैलाब जो शुरू हुआ तो लगातार चलता ही रहा। किसी पिस्टन की भांति मेरा भीमकाय लिंग प्रीति की कामसीन योनि में 9 इंच का लंबा रास्ता तय कर रहा था। कई हजारों बार मैंने लिंग से प्रीति को बिना रुके और बिना अपनी झटकों की रफ्तार कम किए ना जाने कितनी देर तक चौदता रहा। प्रीति की मादक सिसकारीयाँ मेरे कानो में आती रही और मेरा जोश बढ़ता रहा। लगभग हर 15 मिनट में-में मुझे महसूस होता रहा कि प्रीति झड़ गई है पर मैं रुका नहीं। अचानक मुझे लगने लगा कि अब मैं झाड़ सकता हूँ तो मैंने प्रीति के कान में कहा कि क्या करना है बाहर निकलना है कि अन्दर ही झड़ जाऊँ। पर प्रीति तो पूरी तरह से बेसुध हो चुकी थी, मेरी बात सुनते ही वह बोली नहीं बाहर नहीं पागल अंदर ही चाहिए मुझे तेरा प्यार, प्लीज।
यह सुनकर मैंने प्रीति को पूरी शक्ति लगाकर बाहों में जकड़ा और अपने लिंग के झटकों की रफ्तार को अलग ही लेवल पर ले गया और अखिर एक तेज वीर्य की पिचकारी मेने प्रीति की योनि की अंतिम गहराई में छोड़ दी और लगभग उसी समय प्रीति भी अंतिम बार झड़ी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.