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प्रीति-मेरी बहन
#3
मैं आहिस्ता से प्रीति के बेड पर गया और उसके पास जाकर धीरे से बैठ गया। धीरे-धीरे उसको हिलाना शुरू किया पर वह नहीं उठी। अब उसको दो तीन बार नाम पुकार कर उठाया और उसके मुलायम गाल पर चार पांच थपकिया देने पर भी वह नहीं उठी। अब मुझे विश्वास हो गया कि लगभग अगले एक घंटे तक वह नहीं उठने वाली।

अब मुझसे रहा नहीं गया और मेने उसके शरीर से रजाई को हटा दी। उसके सुर्ख लाल गाउन में दमकता गोरा बदन और उसका प्यारा चेहरा देख कर मैं तो पागल हुआ जा रहा था, पर मुझे सब्र रखना था जिसका बहुत ही शानदार फल मुझे मिलना था।

मैंने घर के सारे खिड़की दरवाजे मजबूती से बंद किए और अपने बेडरूम का दरवाजा भी अच्छी तरह बंद कर दिया। वेसे मेरा बेडरूम घर के बीच में बना था और किसी भी प्रकार की आवाज ना तो अंदर आ सकती थी और ना ही बाहर जा सकती थी। वेसे बाहर बारिश भी इतनी जोर से हो रही थी कि कोई दूसरी आवाज उसमें सुनाई ही नहीं देगी। अब मैं और मेरी बहन प्रीति दोनों बेडरूम में थे और दूर-दूर तक हम दोनों को डिस्टर्ब करने वाला कोई भी नहीं था। बस प्रीति की रजामंदी चाहिए थी।

वह इस समय सीधे पीठ के बल लेटी थी और रजाई हटाने से ठंड के कारण उसने अपना शरीर थोड़ा सिकोड़ लिया था। ठंड तो मुझे भी बहुत ज़्यादा लग रही थी पर इसी ठंड का ही तो मुझे इलाज करना था।

मैंने उसके शरीर को सीधा किया और उसके हाथों को सावधानी से उठकर उसके सिर के ऊपर कर दिए, जिससे उसके बड़े-बड़े बूब्‍स ने फिर से अपनी अधिकतम ऊंचाई को प्राप्त कर लिया। अब सबसे मुख्य चुनौती थी प्रीति को नींद में ही नंगा करने की जो मेरे प्लान जा अगला चरण था। बिना प्रीति की नींद खुले यह करना बहुत मुश्किल था। पर इसका तरीका भी मेरे पास था। मैंने एक कैंची ली और प्रीति के नए गाउन को नीचे पैरों के बीच से काटना शुरू किया और कैंची उसके पेट और बूब्‍स के बीच से काटती हुई गले के पास आकर रुकी। अब

प्रीति का सुंदर गाउन बीच से दो हिस्सों में बंट गया था और उसके संगेमरमर से बदन को छुपाने में असमर्थ था। बस ब्रा और पेंटी ही उसके बदन को मेरी नजर से बचा पा रही थी। मैंने कटे हुए गाउन को आहिस्ता-आहिस्ता खींच कर उसके बदन के नीचे से निकाल लिया और एक कोने में फैंक दिया। अब बारी ब्रा और पेंटी की थी।

पर इससे पहले मैंने अपने आप को पूरी तरह नंगा किया। मैंने देखा कि मेरा लिंग वियाग्रा के असर के कारण लोहे की तरह कठोर हो गया है और उसकी मोटाई और लंबाई में भी कुछ बढ़त है। एक बार तो लगा कि पता नहीं प्रीति का क्या होगा, पर मैंने सोचा उस कॉल गर्ल की तरह आज भी आधे लिंग से ही काम चला लेंगे। अब मैं बेड पर गया और प्रीति की दोनों जांघों को चिपका कर जांघों के दोनों और अपने घुटनों के बल खड़ा हो गया और पहले पैंटी को कैंची से काट कर उसके शरीर से अलग किया। पैंटी हटने पर मैं अचंभित रह गया। उसकी योनि पर बिल्कुल बाल नहीं थे। लगता था कि जैसे हाल ही में वीट से बाल साफ किए है। मेरे लिए तो अच्छा ही था। अब बारी उसकी ब्रा कि थी। सबसे शानदार नजारा अब दिखना था। जैसे ही मैंने उसकी ब्रा को दोनों बूब्‍स के बीच से काटा, मानो किसी बाँध के टूटने पर जो तबाही होती ही वेसी ही तबाही उस नजारे में थी। मैंने अपने आप को संभाला और आगे की कार्यवाही शुरू की। अपने लिंग पर ढेर सारा नारियल का तेल लगाया ताकि आगे की कार्यवाही में असानी हो। इन सब गतिविधियों में आधा घंटा बीत चुका था और मेरे अनुमान से आधे घंटे बाद नींद की गोली का असर ख़त्म होने वाला था। अब मैंने हम दोनों के बदन पर रजाई ओढ़ ली और अपने शरीर का वजन अपनी कोहनी और घुटनों पर बांटते हुए उसके ऊपर मिशिनरी पोजिशन में आ गया और दोनों के शरीर पर रजाई ओढ़ ली। अब हिम्मत करके मेने उसके होंठों को चूसना शुरू किया। उसके होंठों को मेरे होंठों से पहला टच जैसे ही हुआ, मेरा बदन काँपने लगा। खुशी और डर एक साथ झलक रहे थे। पर उसके शरीर में कोई हलचल ना पाकर मुझमे हिम्मत बढ़ी और होंठों को अहिस्ता आहिस्ता चूसता रहा। इस बीच प्रीति के बूब्‍स की अधिक ऊंचाई के कारण मेरे सीने और प्रीति के बूब्‍स के बीच में दूरी बनाए रखना मेरे लिए मुश्किल साबित हो रहा था। जेसे ही मैं प्रीति के होंठों के चूसने लगता बूब्‍स के निप्पल मेरे सीने से टच होते और मुझे चरम सुख का एहसास होता। पर यह तो शुरुआत थी चरम सुख तो आना अभी बाकी था।

आधा घंटा इस प्रक्रिया में कैसे गुजरा पता ही नहीं चला। लगभग रात 11 बजे का समय था और प्रीति के शरीर में कुछ हलचल शुरू हो गई थी और उसके चेहरे और माथे पर कुछ शिकन आने लगी थी। इस बीच मेरे लिंग और प्रीति की चूत के बीच मैंने आधे से एक इंच की दूरी मैंटेन रखी थी। पर मेरे अधिक कामुक होने के कारण लिंग से ढेर सारा प्री-कम निकल कर प्रीति की चूत की दरार में एकत्रित हो गया था जिससे मेरा काम और असान होने वाला था। वेसे मोसम बहुत ठंडा था। लगभग 10-12 डिग्री बेडरूम का तापमान होगा पर एक ही रजाई में मेरा प्रीति का नंगा बदन था, हालाकि मैंने बड़ी मुश्किल से दोनों के बदन के बीच थोड़ी दूरी बना के रखी थी इसके बाद भी रजाई के अंदर गर्मी का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हो कि मेरा बदन पर पसीने की बूँदे एकत्रित होने लगी थी और प्रीति के बदन की गर्मी थोड़ी दूरी होने के बाद भी मैं मेरे शरीर पर महसूस कर पा रहा था, शायद इसी गर्मी के कारण प्रीति के माथे पर भी पसीने की बूँदे जमा होने लगी थी और इस कारण वह थोड़ी हिलने लगी थी और उसके चेहरे पर थोड़ी परेशानी दिखने लगी थी। अब समय आ गया था अंतिम संघर्ष का।

मैंने मोर्चा संभालते हुए अपने पैरों के घुटनों और जांघों के बीच प्रीति के पैरों को अच्छी तरह से जकड़ लिया और उसके दोनों हाथों को उसके सिर के ऊपर ही अपने एक हाथ से मजबूती से जकड़ लिया और दूसरे हाथ की कोहनी से दोनों के बदन की दूरी बनाने के लिए उपयोग में रखा। इस जकड़न के कारण प्रीति की नींद पूरी तरफ़ खुल गई। उसने जैसे ही आँखे खोली और अपने खूबसूरत चेहरे के बिल्कुल नजदीक मेरे चेहरे को पाया वह घबरा गई। वह चिल्लाती या मुझे कुछ बोल पाती उससे पहले ही मैंने अपने हाथ से उसके मुह को दबा दिया। मेरी एसी हरकत देखकर उसकी आँखें बड़ी हो गई और शरीर मेरे द्वारा बनाई जकड़ से छूटने के लिए वह पुरजोर ताकत लगाने लगी। पर ताकत में तो मैं ही मजबूत था इस कारण 2-3 मिनट की झटपटाहट के बाद उसने शरीर ढीला कर दिया और उसकी बड़ी आँखो से आँसू आने लगे।

प्लान के मुताबिक अब बारी मेरी थी।

मैंने अपनी इमोशनल स्पीच शुरू की "प्रीति मेरी प्यारी बहन, प्लीज मुझे माफ कर देना। तेरे जैसी लड़की पाने की लालसा में मुझसे कितनी बड़ी गलती हो गई। मुझे पता है कि तेरे जैसी कोई भी लड़की मुझे इस जन्म में तो क्या अगले कई जन्मों में नहीं मिल सकती। एक तू ही है जिसे भी भगवान ने मेरी बहन बना दिया। तुझे नहीं पता कि तेरे लिए ना जाने कितनी रातें तड़पा हूँ मैं, इसलिए आज एसी हरकत करने को मजबूर हो गया। क्या करूँ तुझसे दूरी सहन ही नहीं कर पा रहा था। मर जाऊँगा मैं अगर तू नहीं मिली मुझे तो। पर तू आंसू मत बहा, तुझे रोता भी नहीं देख सकता मैं। तेरी इच्छा के बिना मैं तुझसे कोई जबर्दस्ती नहीं करूंगा। अब तक मुझसे जो भी हरकत हुई उसके लिए मुझे माफ कर देना और मम्मी पापा को कुछ मत बताना वरना मुझे जान देना पड़ेगी। अब अगर तू हाँ करती है तो ही मैं तुझे हासिल करूंगा और अगर तू अभी ना कर देती है तो मैं हट जाऊँगा यहाँ से।"

मैने लड़खड़ाते स्वर में बोला "बोल... हाँ... या... ना..."
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: प्रीति-मेरी बहन - by neerathemall - 29-06-2022, 03:52 PM



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