29-06-2022, 03:27 PM
एक दिन मैं और सौरभ उसके घर बैठे थे. सौरभ अकेला रहता था और उसका और दीपिका का घर आस पास थे. सर्दियों के दिन थे और सौरभ चाय बना रहा था. तभी उसके ऑफिस से फोन आया और वो ऑफिस चला गया. वो मुझे बोल कर गया था कि अगर दीपिका आएगी तो उसे बता देना की वो ऑफिस गया है.
बाहर का दरवाजा खुला था और मुझे नींद आने लगी. मैं लाइट बंद कर के कम्बल ओढ़ के सो गया. जल्दी ही मुझे नींद भी आ गई. अचानक कम्बल के हिलने से मेरी नींद खुली तो मैंने महसूस किया कि कोई लड़की कम्बल में घुस रही है. कमरे में बिल्कुल अंधेरा था. और उसकी पायल और चूड़ियों की आवाज आ रही थी. मुझे यकीन था कि ये दीपिका ही होगी. वो मुझे सौरभ समझ रही थी. वो मुझसे चिपक कर लेट गई और मेरे कान में बोली, "ठंड लग रही थी मुझे बुला लेते, कम्बल में क्यों छुपा रहे हो!"
उसने अपनी चूचियां मेरी छाती पर दबा दीं और मेरी पैंट में हाथ घुसा कर मेरे लंड से खेलने लगी.
"ओह, मेरा बेबी.ब्देखो मेरे लिए कैसे तड़प रहा है," उसने मेरे लंड को दबाया तो मेरे मुंह से सिसकारी निकल गई.
मेरी और सौरभ की कद काठी एक सी है और हमारे लंड भी लगभग बराबर हैं. मेरा लंड अभि पूरा खड़ा नहीं हुआ था. मुझे यकीन था खड़ा लंड पकड़ती तो दीपिका समझ जाती की मैं सौरभ नहीं हूं. मैंने दीपिका का हाथ अपने लंड से हटाया और उसे अपनी बाहों में ले कर उसकी गांड़ को भींच दिया. उसने सिर्फ पैंटी पहनी थी. मैंने उसकी कमर पे हाथ फेरा तो उसने ब्रा के आलावा कुछ नहीं पहना था.
वो मेरे कान मैं धीरे से बोली, "जब सब उतारना ही है तो बिस्तर में घुस कर कपड़े क्यों खराब करने."
मैंने ब्रा की पट्टी खींच के जोर से छोड़ दी जो उसकी कमर में लगी और वो सिसक गई.
उसने मेरा हाथ अपनी पेंटी में डाल लिया, एक दम छोटी सी चूत अन्दर से गज़ब की गीली हो रही थी. दीपिका ने मेरा हाथ अपनी पेंटी से निकला और जो ऊँगली उसकी चूत को टच हुई थी निकाल कर सेक्सी तरीके से चाटने और चूसने लगी, मैं सब कुछ भूल कर उस पर पिल पड़ा तो बोली, "धीरे धीरे आगे बढ़ो ना ऐसे क्या हमला कर रहे हो, पहली बार थोड़े ही कर रहे हो सौरभ!"
उसने मेरा हाथ अपनी ब्रैस्ट पर रख दिया और मेरे होंठों को चूमने लगी, मैंने भी उसके होठों को चूमना शुरू किया वो इतने अच्छे से चूम रही थी की मुझे मज़ा आने लगा अब उसने अपनी जीभ से मेरी जीभ के साथ खेलना शुरू किया, मुझे ये खेल इतना अच्छा लगने लगा था की मैं इस में खो सा गया था.
पर दीपिका नहीं खोई क्यूंकि उसे तो और चाहिए था इसलिए उस ने मेरा हाथ अपने छोटे छोटे मौसंबी जैसे बूबिज़ पर रख कर उन्हें दबाना शुरू किया. मैंने उसकी खुशबु और इस फ्लो में ऐसा लयबद्ध हो गया था की बहता ही चला गया और उसके प्यारे गुलाबी बूबीज़ को चूमते और चूसते वक़्त मुझे उसके कॉलेज स्टूडेंट होने का ख़याल तक नहीं रहा, वो भी "ओह आह ऊह्ह और पियो निप्प्ल्स से खेलो सौरभ" बोलती हुई और गरम होती जा रही थी. मैंने उसके निप्प्ल्स को अपने दांतों से थोड़ा चुभलाया तो वो बेड पर उछलने लगी, मैंने भी उसके उछलने से खुश हो कर उसकी ड्रेस खोल कर उसके लेफ्ट बूबी को अपने मुंह में पूरा भर लिया तो वो सिसक उठी और बोली "अब दूसरा भी लो ना ऐसे ही" तो मैंने दूसरा भी ले लिया.
दीपिका इस सब से इतनी गरम हो चुकी थी की उसकी पेंटी पूरी गीली लग रही थी, मैंने उसकी पेंटी नीचे खिसकाई और उसकी गुनगुनी चूत में अपनी ऊँगली सरकाई जिस से वो कराह उठी और बोली, "जितनी बड़ी तुम्हारी ऊँगली है उतना तो मेरे लास्ट बॉय फ्रेंड का लंड था."
मुझे झटका सा लगा. दीपिका का पहले भी कोई बॉयफ्रेंड था! मुझे आज तक लगता था कि सौरभ ने ही उसकी सील तोडी थी. में इससे पूछता तो वो मेरी आवाज पहचान लेती. में उससे खेलता रहा और दीपिका और गरम होती रही.
"और कितना तड़पाओगे बाबू?" दीपिका ने मेरी कमर में हाथ डाला और मुझे अपने ऊपर खींच लेने की कोशिश करने लगी. मैंने उसकी कमर पकड़ी और उसे अपनी बाहों में के कर घूम गया. दीपिका मेरे नीचे दबी थी. आह! कितना नरम बदन था उसका. मैंने उसके होठ फिर से अपने होठों में भर लिए और दीपिका ने अपनी जीभ मेरे मुंह में डाल दी. आज मुझे पता चल रहा था क्यों सौरभ इस पारी का दीवाना था और क्यों में पहले दिन से ही इसे चोदना चाहता था. दीपिका शहद जैसी मीठी और मक्खन जैसी मुलायम थी. मैंने उसकी पैंटी खींच कर उसके बदन से अलग कर दी और अपनी घुटने से उसकी टांगे खोल दी. दीपिका जबरदस्त गरम थी. उसके हाथ मेरी गांड़ पर घूमने लगे और उसने मेरा अंडर वियर खींच कर मुझे भी नंगा कर लिया. मेरा लंड लोहे जैसा सख्त हो गया था और उसकी मखमली चूत पर दस्तक दे रहा था. दीपिका ने अपना हाथ हम दोनों के बदन के बीच में घुसा के मेरा लंड पकड़ लिया.
बाहर का दरवाजा खुला था और मुझे नींद आने लगी. मैं लाइट बंद कर के कम्बल ओढ़ के सो गया. जल्दी ही मुझे नींद भी आ गई. अचानक कम्बल के हिलने से मेरी नींद खुली तो मैंने महसूस किया कि कोई लड़की कम्बल में घुस रही है. कमरे में बिल्कुल अंधेरा था. और उसकी पायल और चूड़ियों की आवाज आ रही थी. मुझे यकीन था कि ये दीपिका ही होगी. वो मुझे सौरभ समझ रही थी. वो मुझसे चिपक कर लेट गई और मेरे कान में बोली, "ठंड लग रही थी मुझे बुला लेते, कम्बल में क्यों छुपा रहे हो!"
उसने अपनी चूचियां मेरी छाती पर दबा दीं और मेरी पैंट में हाथ घुसा कर मेरे लंड से खेलने लगी.
"ओह, मेरा बेबी.ब्देखो मेरे लिए कैसे तड़प रहा है," उसने मेरे लंड को दबाया तो मेरे मुंह से सिसकारी निकल गई.
मेरी और सौरभ की कद काठी एक सी है और हमारे लंड भी लगभग बराबर हैं. मेरा लंड अभि पूरा खड़ा नहीं हुआ था. मुझे यकीन था खड़ा लंड पकड़ती तो दीपिका समझ जाती की मैं सौरभ नहीं हूं. मैंने दीपिका का हाथ अपने लंड से हटाया और उसे अपनी बाहों में ले कर उसकी गांड़ को भींच दिया. उसने सिर्फ पैंटी पहनी थी. मैंने उसकी कमर पे हाथ फेरा तो उसने ब्रा के आलावा कुछ नहीं पहना था.
वो मेरे कान मैं धीरे से बोली, "जब सब उतारना ही है तो बिस्तर में घुस कर कपड़े क्यों खराब करने."
मैंने ब्रा की पट्टी खींच के जोर से छोड़ दी जो उसकी कमर में लगी और वो सिसक गई.
उसने मेरा हाथ अपनी पेंटी में डाल लिया, एक दम छोटी सी चूत अन्दर से गज़ब की गीली हो रही थी. दीपिका ने मेरा हाथ अपनी पेंटी से निकला और जो ऊँगली उसकी चूत को टच हुई थी निकाल कर सेक्सी तरीके से चाटने और चूसने लगी, मैं सब कुछ भूल कर उस पर पिल पड़ा तो बोली, "धीरे धीरे आगे बढ़ो ना ऐसे क्या हमला कर रहे हो, पहली बार थोड़े ही कर रहे हो सौरभ!"
उसने मेरा हाथ अपनी ब्रैस्ट पर रख दिया और मेरे होंठों को चूमने लगी, मैंने भी उसके होठों को चूमना शुरू किया वो इतने अच्छे से चूम रही थी की मुझे मज़ा आने लगा अब उसने अपनी जीभ से मेरी जीभ के साथ खेलना शुरू किया, मुझे ये खेल इतना अच्छा लगने लगा था की मैं इस में खो सा गया था.
पर दीपिका नहीं खोई क्यूंकि उसे तो और चाहिए था इसलिए उस ने मेरा हाथ अपने छोटे छोटे मौसंबी जैसे बूबिज़ पर रख कर उन्हें दबाना शुरू किया. मैंने उसकी खुशबु और इस फ्लो में ऐसा लयबद्ध हो गया था की बहता ही चला गया और उसके प्यारे गुलाबी बूबीज़ को चूमते और चूसते वक़्त मुझे उसके कॉलेज स्टूडेंट होने का ख़याल तक नहीं रहा, वो भी "ओह आह ऊह्ह और पियो निप्प्ल्स से खेलो सौरभ" बोलती हुई और गरम होती जा रही थी. मैंने उसके निप्प्ल्स को अपने दांतों से थोड़ा चुभलाया तो वो बेड पर उछलने लगी, मैंने भी उसके उछलने से खुश हो कर उसकी ड्रेस खोल कर उसके लेफ्ट बूबी को अपने मुंह में पूरा भर लिया तो वो सिसक उठी और बोली "अब दूसरा भी लो ना ऐसे ही" तो मैंने दूसरा भी ले लिया.
दीपिका इस सब से इतनी गरम हो चुकी थी की उसकी पेंटी पूरी गीली लग रही थी, मैंने उसकी पेंटी नीचे खिसकाई और उसकी गुनगुनी चूत में अपनी ऊँगली सरकाई जिस से वो कराह उठी और बोली, "जितनी बड़ी तुम्हारी ऊँगली है उतना तो मेरे लास्ट बॉय फ्रेंड का लंड था."
मुझे झटका सा लगा. दीपिका का पहले भी कोई बॉयफ्रेंड था! मुझे आज तक लगता था कि सौरभ ने ही उसकी सील तोडी थी. में इससे पूछता तो वो मेरी आवाज पहचान लेती. में उससे खेलता रहा और दीपिका और गरम होती रही.
"और कितना तड़पाओगे बाबू?" दीपिका ने मेरी कमर में हाथ डाला और मुझे अपने ऊपर खींच लेने की कोशिश करने लगी. मैंने उसकी कमर पकड़ी और उसे अपनी बाहों में के कर घूम गया. दीपिका मेरे नीचे दबी थी. आह! कितना नरम बदन था उसका. मैंने उसके होठ फिर से अपने होठों में भर लिए और दीपिका ने अपनी जीभ मेरे मुंह में डाल दी. आज मुझे पता चल रहा था क्यों सौरभ इस पारी का दीवाना था और क्यों में पहले दिन से ही इसे चोदना चाहता था. दीपिका शहद जैसी मीठी और मक्खन जैसी मुलायम थी. मैंने उसकी पैंटी खींच कर उसके बदन से अलग कर दी और अपनी घुटने से उसकी टांगे खोल दी. दीपिका जबरदस्त गरम थी. उसके हाथ मेरी गांड़ पर घूमने लगे और उसने मेरा अंडर वियर खींच कर मुझे भी नंगा कर लिया. मेरा लंड लोहे जैसा सख्त हो गया था और उसकी मखमली चूत पर दस्तक दे रहा था. दीपिका ने अपना हाथ हम दोनों के बदन के बीच में घुसा के मेरा लंड पकड़ लिया.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.