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Thriller रश्मि का आरंभ- रश्मि मंडल
#14
फर्राटे से कार ड्राइव करते हुए मै हमारे पार्टी वेन्यू में पहुँच गयी. वेन्यू मुंबई के शानदार पब में से एक था, हम कॉलेज टाइम  कभी-कभी वहां जाते थे. किसी को बड़ी पार्टी देनी हो तो यह जगह हमारे लिए फिक्स थी. मैं 22 की उम्र में अकेली क्यों रहती हूँ? मेरा घर कहाँ है? और मेरे मम्मी-पापा कहाँ हैं? क्या करते हैं? ये सब एक लम्बी कहानी  है. समय ने और मेरे जीवन के अनुभव ने मुझे अत्यधिक प्रैक्टिकल इन्सान बनाया है. मैं भावनाओं में नहीं बहती. कब,कहाँ,कैसे, क्यों की समझ मुझे अच्छी थी क्यूंकि भावनात्मक भटकाव मुझमें नहीं था. मैंने अपने जिंदगी में इतना कुछ देखा था, समझा था इसलिए अब मैं 22 की उम्र में भी बहुत गंभीर और समझदार थी. शायद यही कारण है मेरे आई.आई.ए. में पहला स्थान प्राप्त होने का. उन्हें जो चाहिए था वो सब मुझमें है. मैं बला की खूबसूरत हूँ, ऐसा फिगर की किसी की भी लार टपका दे, प्रक्टिकल हूँ. चालाक हूँ, समझदार हूँ, तेज तर्रार और किसी से ठन जाए तो उतनी ही घातक भी. मार्शल आर्ट, कराटे और किक बॉक्सिंग की चैम्पियन भी. कोई लड़की क्या, कोई  लड़का भी मुझसे भिड़े तो मैं मार-मार के उसका कचूमर निकाल दूँ. कॉलेज में मेरी दो-तीन भिडंत हुई थी, इसलिए यह सब जानते थे. मुझे 7 भाषाओँ का ज्ञान था और अभी 3 और सीख रही थी. मैं आई.आई.ए. को जैसा चाहिए वैसा एक परफेक्ट एजेंट थी.

[अपने घर की बात करूँ तो मेरे पिता उदय प्रताप सिंह राणा जैसलमेर के राज परिवार से नाता रखते थे. उन्हें मेरी माँ स्वाति मंडल से कॉलेज में इश्क हुआ और उन्होंने उनसे प्रेम विवाह कर लिया. जिसका उनके परिवार ने पहले खूब विरोध किया पर बाद में अपना लिया. शादी के बाद उन दोनों की जिंदगी में काफी दिनों तक सब कुछ बहुत अच्छे से चला. मैं पैदा हो गयी और बड़ी होने लगी. बड़ी होने के बाद मैंने कई बार अपने पापा और मम्मी को लड़ते हुए देखा, बहुत पूछने पर भी मुझे कुछ नहीं बताया गया. फिर मुझे पढ़ने यहाँ भेज दिया गया. 5 साल पहले जब मैं छुट्टियों में घर गयी तो एक रात मैंने पापा और मम्मी को बहुत ज्यादा लड़ते हुए पाया. मैंने बीच बचाओ की, उसके बाद मम्मी हम जिस घर में रहते थे वहां से हमारा एक और घर था वहां चली गयी. दूसरे दिन सुबह 12 बजे मम्मी की एक्सीडेंट में मारे जाने की खबर आई. वो यहाँ के लिए आ रही थी और एक ट्रक से कार टक्कर होने के कारण घटनास्थल पर ही वो चली बसीं थी. मैं खबर सुन कर आवाक रह गयी. मैं बहुत रोई पर पापा को कोई फर्क नहीं पड़ा, वो वैसे के वैसे ही थे. हमने उनका संस्कार किया. इस बात के एक सप्ताह बीत जाने के बाद भी उनकी मौत कैसे हुई, क्या हुआ कुछ पता नहीं चला. पापा हमेशा की तरह अपने काम में बिजी रहते और घर लेट से आते. इस बीच ढूढ़ने पर मुझे  मम्मी के रूम से एक डायरी मिली थी, जिसे पढ़ कर मुझे पता चला कि दोनों के लड़ाई का मुख्य कारण पापा के अफेयर्स और मामा और उनके बीच कुछ जमीन का प्रॉब्लम थी. और मम्मी ने यह भी लिख रखा था कि बात इतनी पढ़ गयी है कि मुझे इनसे जान का खतरा है.

पापा के आने के बाद यह बात मैंने  उनसे पूछी. उन्होंने कुछ जवाब नहीं दिया और उल्टा मम्मी को बुरा भला कहने लगे. मैंने उन्हें चिल्ला कर कहा "मुझे  समझ नहीं आता आप यह जानने का प्रयास ही नहीं कर रहे हैं कि क्या हुआ था, क्यों?" उसका भी उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. हमारे बीच खूब बहस हुई. और अब यह आए दिन होने लगा. इसी बीच मुझे लगा कि शायद मेरी माँ की मृत्यु में मेरे बाप का ही हाथ है. मैं अपने बाप के प्रति नफरत की आग में जलने लगी. हमारे बीच सिर्फ बहस होती थी. एक महीने बाद मैं फिर कभी घर वापस ना जाने की कसम खा कर वापस मुंबई आ गयी. मैंने अपने बाप से बात करना, यहाँ तक की पैसे लेना भी बंद कर दिया और अपने नाम से अपने बाप का सरनेम हटा कर अपनी मां का सरनेम लिखना शुरू कर दिया. मेरा काम मम्मी द्वारा मेरे अकाउंट में जमा किये गये पैसे से चल जाता था. यहाँ आ कर मैं अपने कॉलेज के क्रियाकलापों व्यस्त हो गयी. पर मेरे दिमाग में हमेशा उस बात को जानने की इच्छा रही. इस तरह दो साल बीत गये. एक दिन एक वकील मेरे पास आया और बताया कि मेरे पापा की भी बिलकुल उसी तरह कार एक्सीडेंट में मृत्यु हो गयी है जब वो दूसरे घर से आ रहे थे और अपने जाने के बाद उन्होंने अपनी सारी प्रॉपर्टी मेरे नाम कर दी थी. मैं कुछ दिनों तक व्यथित रही और अब मुझे क्या हुआ था क्यों हुआ था हर हाल में जानना था. वहां से मैंने ठाना आई.आई.ए. ज्वाइन करना और मैं पूरी तैय्यारी में लग गयी]-------------------------------(यह कहानी हम दुसरे भाग में पूरी पढेंगे)

पब में पहुँचते ही रीमा, अमर, सचिन और शाहीन ने गरमजोशी से मेरा स्वागत किया और मुझे बधाई दी. मैंने एक डार्क ग्रीन रंग की मिनी स्कर्ट और सफ़ेद रंग की फुल स्लीव शर्ट पहन रखी थी. पैरों में सफ़ेद रंग का ही एक सैंडल थी. स्कर्ट मेरे घुटनों के थोड़े ऊपर से शुरू हो रहा था. मेरी कन्दली गोरी और मांसल जांघों का निचला भाग जहाँ से नुमाया था. पीछे से देखने पर मेरे गोल और पुष्ट नितंभ स्कर्ट से उभरते नजर आ रहे थे. सामने शर्ट के तीन बटनों में से ऊपर के दो बटन खुले हुए थे जहाँ से मेरे खरबूजे जैसे वक्षों का नजारा दिख रहा था. शर्ट के नीचे सफ़ेद इनर और फिर उसके नीचे सफ़ेद ब्रा मेरे स्तनों को बांध कर रखने का प्रयास कर रहीं थीं. शर्ट और स्कर्ट के बीच में मेरी चिकनी पेट दिखाई दे रही थी. स्कर्ट मैंने नाभि के ऊपर से पहना हुआ था. बाल मेरे खुले हुए दोनों कन्धों पर फैले हुए थे. मैं शानदार और कामुक लग रही, पब के अन्दर घुसते ही सबकी नजरें मुझ पर टिक गयीं.

मैंने ध्यान दिया अमर जब मुझसे गले मिला तो उसने अपना दायाँ हाथ ले जाकर हौले से मेरी नितम्भों को छुआ. अमर 5 फुट 10 इंच की ऊंचाई का जवान, हैंडसम बंदा है. मेरे लिए उसकी नजर कैसी थी मैं सब जानती थी. उसका बस चले तो वह अभी मुझे पकड़ कर मेरे सारे कपड़े फाड़ डाले. पर उसकी हिम्मत मेरे साथ ज्यादा कुछ कर पाने की हो नहीं पाती थी. मैं कभी-कभी सोचती थी, कितना फट्टू है यह. वह शानदार और बलिष्ठ जवान लड़का था, वह हिम्मत करता तो शायद मैं भी उसके सामने अपनी टांगें फैला देती. वैसे भी मेरी प्यारी बिल्ली बहुत दिनों से प्यासी थी.

सचिन हमेशा की तरह उससे बहुत खुश होते हुए जल्दी आकर गले मिला और फिर अलग हो गया. उसके चेहरे पर बेइन्तहां ख़ुशी अभी भी थी. रश्मि से गले मिलना उसके लिए अपने आप में एक उपलब्धि थी. चूँकि सचिन रश्मि से ऊँचाई में छोटा था, रश्मि से गले मिलते समय सचिन हमेशा अपने मुंह के निचले हिस्से पर टकराते हुए रश्मि के खरबूज जैसे गोल मांसल भागों को महसूस करता. रश्मि उसके लिए एक सपना ही थी. शाहीन हमेशा की तरह सलवार सूट पहने हुई आई और रश्मि से गले मिली. उसने रश्मि को बधाई भी दी.
एक लॉन्ग प्लाजो और एक स्लीवलेस टॉप पहने रीमा अब रश्मि के सामने आई. टॉप के ऊपर से रीमा के गोल और कड़क उभार स्पष्ट दिखाई दे रहे थे. उसकी मांसल खुली चिकनी बाहें लौकी की तरह सुडौल और गोल थी. रीमा ने भी अपनी जुल्फें सामने कन्धों पर राखी थी. रीमा आकर रश्मि से गले मिली. रश्मि को अहसास हुआ कि रीमा शर्मा उसकी सफलता से सच में बहुत खुश है और उसने अपनत्व के साथ उसे अपनी बाँहों में भर लिया. रीमा उसे बधाई दे रही थी, उसकी आँखों में ख़ुशी के आंसू थे.
ऐसा नहीं था कि अमर सिंह की कामुक नजरें सिर्फ रश्मि के लिए थी. वह थोड़ा ऐय्याश किस्म का आदमी था. मौका मिले तो वह किसी को ही दबोच ले. अमर की एकटक नजरें अभी अभी गले मिलती हुईं रश्मि और रीमा के सीने के बीच थी, जहाँ उन दोनों के कयामती और पुष्ट स्तन एक दूसरे से टकरा कर सामने वाले को हटाने का प्रयास कर रही थीं. अमर सिंह अपने नीचे कुछ कड़ापन महसूस करने लगा. उसका बस चले तो वो दोनों को एक साथ दबोच ले. पर रश्मि के कारण उसकी हिम्मत होती नहीं थी. रश्मि और रीमा बहुत अच्छे दोस्त थे इसलिए वह रीमा पर भी हिम्मत नहीं कर पता था. अमर सिंह ने सोचा आज वह किसी न किसी तरह मौका निकाल कर रहेगा. आज आर या पार.
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RE: रश्मि का आरंभ- रश्मि मंडल - by rashmimandal - 29-06-2022, 12:27 PM



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