20-06-2022, 05:52 PM
मैं भी अच्छी तरह चुदना चाहती थी, फिर पता नहीं आज के बाद चांस मिले या न मिले, तो जैसा जेठ जी ने कहा. मैं हो गई.
बस फिर तो उन्होंने मुझे घोड़ी बना कर जो चुदाई शुरू की, तो लगभग पांच मिनट धकापेल गतिमान एक्सप्रेस की तरह लंड को चूत की पटरी पर दौड़ा दिया. मेरी हालत मरी सी कुतिया जैसी हो गई थी मगर मैं बता नहीं सकती कि वो आनन्द मुझे आज तक कभी नहीं मिला था. वो मेरे चूतड़ों पर लगभग आधे खड़े हुए थे और मेरी कमर उन्होंने कस कर पकड़ी हुई थी.
अब मैं भी झड़ने वाली थी. वो भी लगभग इसी हालत में थे. अचानक उनके पैर तेजी से कांपने लगे और फिर रह रह कर मेरी चूत में उनका गर्म गर्म वीर्य झटके ले लेकर गिरता रहा. जब वो रुक गए, तो मैं बिस्तर पर पेट के बल पसर गयी और वो भी धीरे धीरे झुकते हुए मेरी पीठ पर लेट गए. मेरे चूतड़ जो करीब 34 इंच चौड़े थे, उनकी मजबूत और जांघों के नीचे पिस गए.
आह … उनकी ऐसी मर्दानगी देख कर मैं उन्हें दिल दे बैठी. हम दोनों अपनी सांसें नियंत्रित करने में लगे थे.
लगभग 2 मिनट बाद उन्होंने मेरे गाल चूमे और फुसफुसा कर मेरे कान में ‘आई लव यू …’ कहा.
अब जाकर मेरे दिल को चैन पड़ा. ये शब्द मैं अपने पति अभिषेक से सुनने के लिए तरस गयी थी.
इसके बाद वो मेरी पीठ से उतर गए और मेरी साइड में सीधे लेट गए.
मैंने करवट ली और उनकी जांघ पर अपनी बायीं जांघ उठा कर रख दी. मैंने भी उनकी चौड़ी छाती पर तीन चार बार किस किया और उनका साढ़े सात इंची लम्बा लंड पकड़ लिया. लंड अब थोड़ा ढीला पड़ गया था और मोटाई थोड़ी सी कम हो गयी थी. उनके लौड़े का सुपारा खाल से आधा बाहर निकला हुआ था.
मैंने दीवार घड़ी की तरफ़ देखा तो रात के करीब पौने दो बज चुके थे. मेरी दूसरी चुदाई करीब 1.20 पर शुरू हुई थी, यानि कि मैं लगभग 25 मिनट नॉन स्टॉप चोदी गयी थी. मुझे खुद पर भरोसा नहीं हो रहा था कि जेठ जी का लौड़ा मेरी चूत की सैर करके थक चुका था.
मैं बिस्तर से उठी और मैं उनकी मर्दानगी देखने लालच नहीं रोक पायी. मैंने बड़ा वाला सीएफ़एल बल्ब जला दिया.
आह, उनकी सफ़ेद बेडशीट पर मेरी झांटों के और कुछ उनके काले घुंघराले बाल झड़े हुए थे, जो मेरी रगड़ाई के दौरान झड़े होंगे. जैसे ही मेरी नजर उनके चेहरे पड़ी, तो मैं शरमा गयी. पर उन्होंने तुरंत उठ कर मुझे अपने आलिंगन में ले लिया. अब मैं अपने को काफी संतुष्ट महसूस कर रही थी.
बाहर बारिश अब भी लगातार हो रही थी. बेडशीट पर मेरी फुद्दी से उनका वीर्य निकल कर फ़ैल गया था जो कि चिपचिपा सा था.
मैंने कहा- जेठ जी, मैं सुबह ये चादर धो दूंगी.
उन्होंने कहा- नहीं बहू, ये चादर मैं संदूक में ताला लगा कर रखूंगा, तू चिंता मत कर. ये चादर अब आम चादर नहीं रही क्योंकि इस पर हमारी कुलवधू सो चुकी है.
उनकी इस बात के बाद अब मेरे पास कहने को कुछ शब्द नहीं थे.
मैं जल्दी से बेड से उतरी और मैंने अपना पेटीकोट पहना और ब्लाउज़ के बटन लगाए.
उन्होंने मुझे अपनी बांहों में एक बार फिर से भर लिया और होंठों पर कुछ सेकंड अपने होंठ रख दिए. वो सीन मुझे आज भी याद है. वो शायद कुछ कहना चाह रहे थे, उनके होंठ लरजने लगे थे. शायद वो मुझसे बिछुड़ना नहीं चाह रहे थे या मुझसे माफ़ी मांग रहे थे.
खैर मैंने भी झुक कर उनके चरण छुए और उनकी छाती पर दो किस देकर बाहर जाने को हुई.
तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर कहा- बहू ठहरो.
फिर उन्होंने दोनों बल्ब ऑफ़ किए और कुण्डी खोल दी. मैं सधे क़दमों से अपने कमरे की ओर चल पड़ी.
मैं कमरे में आयी और अन्दर से कुण्डी लगा कर लाइट ऑन की. मैंने उत्सुकतावश छोटा शीशा उठाया. अपनी दायीं जांघ ड्रेसिंग टेबल पर रखी. शीशे को जैसे ही मैंने अपनी जांघों के बीच में लगाया, तो शॉक्ड हो गयी. मेरी चूत के होंठ बाहर निकल चुके थे. मेरी चूत थोड़ी सूजी हुई थी और भरी सी लग रही थी.
बस फिर तो उन्होंने मुझे घोड़ी बना कर जो चुदाई शुरू की, तो लगभग पांच मिनट धकापेल गतिमान एक्सप्रेस की तरह लंड को चूत की पटरी पर दौड़ा दिया. मेरी हालत मरी सी कुतिया जैसी हो गई थी मगर मैं बता नहीं सकती कि वो आनन्द मुझे आज तक कभी नहीं मिला था. वो मेरे चूतड़ों पर लगभग आधे खड़े हुए थे और मेरी कमर उन्होंने कस कर पकड़ी हुई थी.
अब मैं भी झड़ने वाली थी. वो भी लगभग इसी हालत में थे. अचानक उनके पैर तेजी से कांपने लगे और फिर रह रह कर मेरी चूत में उनका गर्म गर्म वीर्य झटके ले लेकर गिरता रहा. जब वो रुक गए, तो मैं बिस्तर पर पेट के बल पसर गयी और वो भी धीरे धीरे झुकते हुए मेरी पीठ पर लेट गए. मेरे चूतड़ जो करीब 34 इंच चौड़े थे, उनकी मजबूत और जांघों के नीचे पिस गए.
आह … उनकी ऐसी मर्दानगी देख कर मैं उन्हें दिल दे बैठी. हम दोनों अपनी सांसें नियंत्रित करने में लगे थे.
लगभग 2 मिनट बाद उन्होंने मेरे गाल चूमे और फुसफुसा कर मेरे कान में ‘आई लव यू …’ कहा.
अब जाकर मेरे दिल को चैन पड़ा. ये शब्द मैं अपने पति अभिषेक से सुनने के लिए तरस गयी थी.
इसके बाद वो मेरी पीठ से उतर गए और मेरी साइड में सीधे लेट गए.
मैंने करवट ली और उनकी जांघ पर अपनी बायीं जांघ उठा कर रख दी. मैंने भी उनकी चौड़ी छाती पर तीन चार बार किस किया और उनका साढ़े सात इंची लम्बा लंड पकड़ लिया. लंड अब थोड़ा ढीला पड़ गया था और मोटाई थोड़ी सी कम हो गयी थी. उनके लौड़े का सुपारा खाल से आधा बाहर निकला हुआ था.
मैंने दीवार घड़ी की तरफ़ देखा तो रात के करीब पौने दो बज चुके थे. मेरी दूसरी चुदाई करीब 1.20 पर शुरू हुई थी, यानि कि मैं लगभग 25 मिनट नॉन स्टॉप चोदी गयी थी. मुझे खुद पर भरोसा नहीं हो रहा था कि जेठ जी का लौड़ा मेरी चूत की सैर करके थक चुका था.
मैं बिस्तर से उठी और मैं उनकी मर्दानगी देखने लालच नहीं रोक पायी. मैंने बड़ा वाला सीएफ़एल बल्ब जला दिया.
आह, उनकी सफ़ेद बेडशीट पर मेरी झांटों के और कुछ उनके काले घुंघराले बाल झड़े हुए थे, जो मेरी रगड़ाई के दौरान झड़े होंगे. जैसे ही मेरी नजर उनके चेहरे पड़ी, तो मैं शरमा गयी. पर उन्होंने तुरंत उठ कर मुझे अपने आलिंगन में ले लिया. अब मैं अपने को काफी संतुष्ट महसूस कर रही थी.
बाहर बारिश अब भी लगातार हो रही थी. बेडशीट पर मेरी फुद्दी से उनका वीर्य निकल कर फ़ैल गया था जो कि चिपचिपा सा था.
मैंने कहा- जेठ जी, मैं सुबह ये चादर धो दूंगी.
उन्होंने कहा- नहीं बहू, ये चादर मैं संदूक में ताला लगा कर रखूंगा, तू चिंता मत कर. ये चादर अब आम चादर नहीं रही क्योंकि इस पर हमारी कुलवधू सो चुकी है.
उनकी इस बात के बाद अब मेरे पास कहने को कुछ शब्द नहीं थे.
मैं जल्दी से बेड से उतरी और मैंने अपना पेटीकोट पहना और ब्लाउज़ के बटन लगाए.
उन्होंने मुझे अपनी बांहों में एक बार फिर से भर लिया और होंठों पर कुछ सेकंड अपने होंठ रख दिए. वो सीन मुझे आज भी याद है. वो शायद कुछ कहना चाह रहे थे, उनके होंठ लरजने लगे थे. शायद वो मुझसे बिछुड़ना नहीं चाह रहे थे या मुझसे माफ़ी मांग रहे थे.
खैर मैंने भी झुक कर उनके चरण छुए और उनकी छाती पर दो किस देकर बाहर जाने को हुई.
तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ कर कहा- बहू ठहरो.
फिर उन्होंने दोनों बल्ब ऑफ़ किए और कुण्डी खोल दी. मैं सधे क़दमों से अपने कमरे की ओर चल पड़ी.
मैं कमरे में आयी और अन्दर से कुण्डी लगा कर लाइट ऑन की. मैंने उत्सुकतावश छोटा शीशा उठाया. अपनी दायीं जांघ ड्रेसिंग टेबल पर रखी. शीशे को जैसे ही मैंने अपनी जांघों के बीच में लगाया, तो शॉक्ड हो गयी. मेरी चूत के होंठ बाहर निकल चुके थे. मेरी चूत थोड़ी सूजी हुई थी और भरी सी लग रही थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
