20-06-2022, 05:51 PM
हम दोनों बेफिक्र होकर सेक्स के मजे ले रहे थे. उनका सिर्फ एक तिहाई लौड़ा ही मेरे मुँह में समा पा रहा था.
अब मेरे से बर्दाश्त नहीं हो पा रहा था. मेरी चूत सिकुड़ने और फैलने लगी थी. मैं खुद ही उन्हीं की बगल में सोफे पर चूतड़ उठा कर चुदने की पोजीशन में हो गयी.
मैंने उनकी जांघ थपथपाई और कहा- जेठ जी, आओ और अपनी भड़ास निकालो. मैं भी बहुत गर्म हो गई हूँ.
इतना सुनते ही वो उठे और उन्होंने प्यार से मेरे चूतड़ों पर हथेली से चार पांच बार थपथपाया और नीचे झुक कर मेरी गांड का छेद चाटने लगे. अपनी गांड के छेद पर जेठ जी की खुरदुरी जीभ के स्पर्श से मेरे तन बदन में काम वासना का सागर हिलोरें मारने लगा.
जब जब उनकी गर्म जीभ मेरी गांड के छेद पर घूम रही थी, एक अत्यंत आनन्ददायक लहर मेरे चूतड़ों से होती हुई मेरे दिमाग तक पहुंच रही थी. मेरी चूत ने फिर से पानी निकालना शुरू कर दिया.
जेठ जी के गर्म होंठ अब मेरी चूत पर मचलने लगे थे. मेरा भगांकुर उनके मुँह में फूल और पिचक रहा था. मेरी चूत में एक आग थी, जिसे अब उनका कड़क लौड़ा ही ठंडा कर सकता था. मैंने अपना दायां हाथ अपने चूतड़ों पर जोर से मारा ताकि उनका ध्यान चाटने से हट कर चोदने के लिए तत्पर हो जाए. मैं ये मौका किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ना चाहती थी.
मेरे चूतड़ों पर हुई आवाज सुनकर वो उठे और उन्होंने अपना गर्म सुपारा फिर से मेरे लम्बे कट पर घिसना शुरू कर दिया. उनकी इस हरकत से मेरा दिल बाग बाग होने लगा. मेरा मन हुआ की जेठ जी अपने बड़े लौड़े से मेरी चूत फाड़ दें.
तभी मेरे इतना सोचते ही फिर से सुपारा मेरी चूत में घुसता चला गया और मेरी मीठी कराह निकल गई. उन्होंने उसी वक्त मेरी गांड कस कर पकड़ ली और बेरहमी से मुझे चोदने लगे. मैं मीठे मीठे दर्द के कारण मजे में कुतिया की तरह मद्धिम स्वर में चीखने लगी.
मेरी फुद्दी की गहराई ज्यादा नहीं थी. मेरी तर्जनी उंगली मेरी बच्चेदानी को छू लेती थी. अब आप लोग खुद ही अंदाजा लगा लो कि बच्चेदानी करीब करीब हर धक्के में 4 -5 इंच पीछे धकेली जा रही थी. कभी कभी तो मुझे अपनी कमर बीच में से लौड़े को एडजस्ट करने के लिए गोलाकार करनी पड़ रही थी.
जेठ जी को मेरी चूत में धक्के मारते मारते करीब 10 मिनट हो गए थे. वो इस बार पता नहीं बाहर से क्या खा कर आए थे कि उनका वीर्य स्खलन ही नहीं हो रहा था.
फिर तो उस वक्त गजब ही हो गया, जब उन्होंने अपना दायां पैर सोफे पर रखा और बायां जमीन पर … और मेरी चूत के चिथड़े उड़ाने लगे.
पर मैं भी इतनी जल्दी हार मानने वाली नहीं थी. बस फिर हम दोनों मादरजात नंगे होकर उस काम में मशगूल हो गए, जो एक सभ्य समाज में किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं हो सकता. पर अब हमें दुनिया से कुछ लेना देना नहीं था.
उन्होंने अपने हाथ से कस कर मेरी चोटी पकड़ ली और एकदम बहशी बन गए. मेरी फुद्दी से फच्च फच्च फच्च की आवाजें आने लगीं. मुझे यही डर लग रहा था कि कहीं मेरी काम आसक्त आह आह की आवाजें सुन कर मेरी सास न आ जाएं. पर ये सिर्फ डर था.
खैर उन्होंने फिर अपना बायां पैर सोफे कर मुझे हचक कर चोदा. करीब पांच मिनट तक उनका पिस्टन मेरी चूत के इंजिन में सटासट चलता रहा. वो झड़ने का नाम नहीं ले रहे थे और मेरी सांसें रुकने लगी थीं.
फिर उन्हें पता नहीं क्या सूझा, मेरी छाती के नीचे अपनी बांह का घेरा बनाया और एक हाथ पेट नीचे लगा कर मुझे ऊपर उठा लिया. उनका लौड़ा अभी भी मेरी ही चूत में घुसा हुआ था. ये हरकत देख कर मैं कांप उठी, पर अब कुछ नहीं हो सकता था. मैंने खुद मुसीबत बुलाई थी.
फिर जेठ जी ने मुझसे कहा- बहू, आगे घुटनों पर झुक जा और अपनी गांड उठा दे पीछे से.
अब मेरे से बर्दाश्त नहीं हो पा रहा था. मेरी चूत सिकुड़ने और फैलने लगी थी. मैं खुद ही उन्हीं की बगल में सोफे पर चूतड़ उठा कर चुदने की पोजीशन में हो गयी.
मैंने उनकी जांघ थपथपाई और कहा- जेठ जी, आओ और अपनी भड़ास निकालो. मैं भी बहुत गर्म हो गई हूँ.
इतना सुनते ही वो उठे और उन्होंने प्यार से मेरे चूतड़ों पर हथेली से चार पांच बार थपथपाया और नीचे झुक कर मेरी गांड का छेद चाटने लगे. अपनी गांड के छेद पर जेठ जी की खुरदुरी जीभ के स्पर्श से मेरे तन बदन में काम वासना का सागर हिलोरें मारने लगा.
जब जब उनकी गर्म जीभ मेरी गांड के छेद पर घूम रही थी, एक अत्यंत आनन्ददायक लहर मेरे चूतड़ों से होती हुई मेरे दिमाग तक पहुंच रही थी. मेरी चूत ने फिर से पानी निकालना शुरू कर दिया.
जेठ जी के गर्म होंठ अब मेरी चूत पर मचलने लगे थे. मेरा भगांकुर उनके मुँह में फूल और पिचक रहा था. मेरी चूत में एक आग थी, जिसे अब उनका कड़क लौड़ा ही ठंडा कर सकता था. मैंने अपना दायां हाथ अपने चूतड़ों पर जोर से मारा ताकि उनका ध्यान चाटने से हट कर चोदने के लिए तत्पर हो जाए. मैं ये मौका किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ना चाहती थी.
मेरे चूतड़ों पर हुई आवाज सुनकर वो उठे और उन्होंने अपना गर्म सुपारा फिर से मेरे लम्बे कट पर घिसना शुरू कर दिया. उनकी इस हरकत से मेरा दिल बाग बाग होने लगा. मेरा मन हुआ की जेठ जी अपने बड़े लौड़े से मेरी चूत फाड़ दें.
तभी मेरे इतना सोचते ही फिर से सुपारा मेरी चूत में घुसता चला गया और मेरी मीठी कराह निकल गई. उन्होंने उसी वक्त मेरी गांड कस कर पकड़ ली और बेरहमी से मुझे चोदने लगे. मैं मीठे मीठे दर्द के कारण मजे में कुतिया की तरह मद्धिम स्वर में चीखने लगी.
मेरी फुद्दी की गहराई ज्यादा नहीं थी. मेरी तर्जनी उंगली मेरी बच्चेदानी को छू लेती थी. अब आप लोग खुद ही अंदाजा लगा लो कि बच्चेदानी करीब करीब हर धक्के में 4 -5 इंच पीछे धकेली जा रही थी. कभी कभी तो मुझे अपनी कमर बीच में से लौड़े को एडजस्ट करने के लिए गोलाकार करनी पड़ रही थी.
जेठ जी को मेरी चूत में धक्के मारते मारते करीब 10 मिनट हो गए थे. वो इस बार पता नहीं बाहर से क्या खा कर आए थे कि उनका वीर्य स्खलन ही नहीं हो रहा था.
फिर तो उस वक्त गजब ही हो गया, जब उन्होंने अपना दायां पैर सोफे पर रखा और बायां जमीन पर … और मेरी चूत के चिथड़े उड़ाने लगे.
पर मैं भी इतनी जल्दी हार मानने वाली नहीं थी. बस फिर हम दोनों मादरजात नंगे होकर उस काम में मशगूल हो गए, जो एक सभ्य समाज में किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं हो सकता. पर अब हमें दुनिया से कुछ लेना देना नहीं था.
उन्होंने अपने हाथ से कस कर मेरी चोटी पकड़ ली और एकदम बहशी बन गए. मेरी फुद्दी से फच्च फच्च फच्च की आवाजें आने लगीं. मुझे यही डर लग रहा था कि कहीं मेरी काम आसक्त आह आह की आवाजें सुन कर मेरी सास न आ जाएं. पर ये सिर्फ डर था.
खैर उन्होंने फिर अपना बायां पैर सोफे कर मुझे हचक कर चोदा. करीब पांच मिनट तक उनका पिस्टन मेरी चूत के इंजिन में सटासट चलता रहा. वो झड़ने का नाम नहीं ले रहे थे और मेरी सांसें रुकने लगी थीं.
फिर उन्हें पता नहीं क्या सूझा, मेरी छाती के नीचे अपनी बांह का घेरा बनाया और एक हाथ पेट नीचे लगा कर मुझे ऊपर उठा लिया. उनका लौड़ा अभी भी मेरी ही चूत में घुसा हुआ था. ये हरकत देख कर मैं कांप उठी, पर अब कुछ नहीं हो सकता था. मैंने खुद मुसीबत बुलाई थी.
फिर जेठ जी ने मुझसे कहा- बहू, आगे घुटनों पर झुक जा और अपनी गांड उठा दे पीछे से.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.