17-06-2022, 04:36 PM
मेरे अण्डकोषों को धीरे-धीरे सहलाकर वो मुझे उसकी योनि को दाँतों से काटने पर मजबूर कर देती थी। मैं भी उसकी योनि के दोनों होंठों को अपने मुँह में भर कर चूसने लगा.
उसके मुँह में मेरा लिंग होने की वज़ह से वो सीत्कार भी नहीं पा रही थी, मगर उसके नितंब सिकुड़ जाते थे।
“मैं झड़ने वाला हूँ!” मैंने उत्तेजना को संभालते हुए कहा.
तभी उसने मेरे लिंग का अपने मुँह में और दबाव बढ़ा दिया, वो सच में सारा वीर्य निचोड़ लेना चाहती थी. लिंग ने भी उसके मुँह में झटके मारना शुरू कर दिया और लिंग ने सारा गर्म-गर्म लावा रेनू के मुँह में छोड़ दिया.
रेनू ने मेरे वीर्य की एक-एक बूंद को लिंग के अंदर से चूस लिया। उसकी योनि भी मुझे प्यासा नहीं छोड़ रही थी. इस बार उसकी योनि ने ढे़र सारा गर्म योनिरस छोड़ दिया.
उसके नितंब अकड़ से गये, मानो सारा योनिरस बाहर फेंक देना चाहते हों. मैंने सारा योनिरस चाट-चाट कर साफ कर दिया. अब उसकी योनि योनिछिद्र से अंदर तक गुलाबी दिख रही थी।
रेनू और मैं हांफने लगे।
मगर दोनों की आंखों में एक संतुष्टि थी, जैसे आज वर्षों की प्यास बुझ गयी हो।
मैंने समय देखा तो उसने कहा- अरे अभी तो बहुत समय है, अभी तो इसको एक और चढ़ाई करनी है.
… और कहते हुए उसने मेरे लिंग को मुँह में भर लिया।
एक लाजवाब मुखमैथुन के बाद हम दोनों ने काफी देर तक आराम किया।
फिर उसने पूछा- खाने में क्या खाओगे?
“जो तुम अच्छा बनाती हो वो बना लो.” मैंने भी प्यार से जवाब दे दिया.
उसने सारी तैयारी पहले से ही कर रखी थी। वो किचन का काम बिना कपड़ों के ही कर रही थी. उसको इस तरह बिना कपड़ों में काम करते देखना सच में शब्दों में वर्णित करना मुश्किल है।
आटा गूँथते समय उसके माँसल नितंबों में जो कंपन हो रहा था वो मुझे फिर उसके पास खींच रहा था. उसके स्तन मानो आटा गूँथने में हाथों की मदद कर रहे हों।
जितनी ताकत से वो हाथ चलाती उतनी गति से उसका वक्षस्थल हिल रहा था। उसकी शारीरिक गतिविधियों ने लिंग में फिर से रक्तसंचार बढ़ा दिया।
मैंने किचन से नारियल तेल उठाया और उसके माँसल नितंबों पर मलना शुरू कर दिया।
रेनू को मेरे लक्ष्य का अनुमान नहीं था. मैंने धीरे-धीरे उसके गुदाद्वार में नारियल के तेल से भीगी हुई उंगलियां घुसानी शुरू कर दीं।
नारियल की चिकनाहट उसे दर्द का अहसास नहीं होने दे रही थी और वो रोटियाँ बनाने में व्यस्त रही। मेरी उंगलियों ने नारियल के तेल के साथ उसके गुदाद्वार का रास्ता थोड़ा सा सुगम कर दिया.
रेनू इस अप्राकृतिक मैथुन का भरपूर आनंद ले रही थी।
फिर मैंने उसे थोड़ा सा झुकाया और गुदाद्वार को ध्यान से देखा.
छेद थोड़ा सा चौड़ा हो गया था.
अब तक रेनू आता गूँथ चुकी थी.
मैंने अपने तने हुए लिंग को नारियल के तेल में डुबोकर लिंगमुण्ड उसकी गुदाद्वार पर रखा।
वो शायद इस हमले से अंजान थी. मैंने थोड़ा सा झुक कर एक हल्का सा झटका मारा तो लिंग छेद से फिसल गया.
मैंने थोड़ा सा नितंबों को चौड़ा कर फिर छेद पर निशाना लगाया.
इस बार लिंग उसके सँकरे गुदाद्वार में आधे से ज्यादा घुस चुका था।
रेनू के मुँह से चीख सी निकल गयी और वो सीधी खड़ी हो गयी. अपने गुदाद्वार को सहलाने लगी।
“अरे डरो मत … वैसे भी रास्ता तो बन ही गया है, अब तो मजे ले लो.” मैंने उसको मनाते हुए कहा.
मगर वो नहीं मानी.
मैंने फिर उंगलियों से गुदामैथुन जारी रखा.
नारियल का तेल उसकी गुदा में अंदर तक भर गया था.
धीरे-धीरे रेनू भी नितंबों को सिकोड़ने लगी. उसे असीम आनंद की अनुभूति होने लगी थी।
इसी समय मैंने उसे रसोई की स्लैब पर पूरा झुकाया और चिकने लिंग को गुदाद्वार में धीरे से घुसाना शुरू कर दिया.
इस बार रेनू लिंग लेने को तैयार थी.
जैसे-जैसे लिंग अंदर जा रहा था, लिंग को उतनी ही मेहनत करनी पड़ रही थी. आगे गुदा मार्ग बहुत संकीर्ण था।
अथक प्रयास और रेनू के सहयोग से पूरा लिंग उसकी गुदा में समा गया.
उसके मुँह से एक आह … निकली। मैंने धीरे-धीरे लिंग आगे-पीछे करना शुरू किया.
लिंग खींचते समय उसकी गुदा की अंदरूनी त्वचा भी लिंग के साथ खिंचती हुई सी प्रतीत होती थी.
उसके मुँह में मेरा लिंग होने की वज़ह से वो सीत्कार भी नहीं पा रही थी, मगर उसके नितंब सिकुड़ जाते थे।
“मैं झड़ने वाला हूँ!” मैंने उत्तेजना को संभालते हुए कहा.
तभी उसने मेरे लिंग का अपने मुँह में और दबाव बढ़ा दिया, वो सच में सारा वीर्य निचोड़ लेना चाहती थी. लिंग ने भी उसके मुँह में झटके मारना शुरू कर दिया और लिंग ने सारा गर्म-गर्म लावा रेनू के मुँह में छोड़ दिया.
रेनू ने मेरे वीर्य की एक-एक बूंद को लिंग के अंदर से चूस लिया। उसकी योनि भी मुझे प्यासा नहीं छोड़ रही थी. इस बार उसकी योनि ने ढे़र सारा गर्म योनिरस छोड़ दिया.
उसके नितंब अकड़ से गये, मानो सारा योनिरस बाहर फेंक देना चाहते हों. मैंने सारा योनिरस चाट-चाट कर साफ कर दिया. अब उसकी योनि योनिछिद्र से अंदर तक गुलाबी दिख रही थी।
रेनू और मैं हांफने लगे।
मगर दोनों की आंखों में एक संतुष्टि थी, जैसे आज वर्षों की प्यास बुझ गयी हो।
मैंने समय देखा तो उसने कहा- अरे अभी तो बहुत समय है, अभी तो इसको एक और चढ़ाई करनी है.
… और कहते हुए उसने मेरे लिंग को मुँह में भर लिया।
एक लाजवाब मुखमैथुन के बाद हम दोनों ने काफी देर तक आराम किया।
फिर उसने पूछा- खाने में क्या खाओगे?
“जो तुम अच्छा बनाती हो वो बना लो.” मैंने भी प्यार से जवाब दे दिया.
उसने सारी तैयारी पहले से ही कर रखी थी। वो किचन का काम बिना कपड़ों के ही कर रही थी. उसको इस तरह बिना कपड़ों में काम करते देखना सच में शब्दों में वर्णित करना मुश्किल है।
आटा गूँथते समय उसके माँसल नितंबों में जो कंपन हो रहा था वो मुझे फिर उसके पास खींच रहा था. उसके स्तन मानो आटा गूँथने में हाथों की मदद कर रहे हों।
जितनी ताकत से वो हाथ चलाती उतनी गति से उसका वक्षस्थल हिल रहा था। उसकी शारीरिक गतिविधियों ने लिंग में फिर से रक्तसंचार बढ़ा दिया।
मैंने किचन से नारियल तेल उठाया और उसके माँसल नितंबों पर मलना शुरू कर दिया।
रेनू को मेरे लक्ष्य का अनुमान नहीं था. मैंने धीरे-धीरे उसके गुदाद्वार में नारियल के तेल से भीगी हुई उंगलियां घुसानी शुरू कर दीं।
नारियल की चिकनाहट उसे दर्द का अहसास नहीं होने दे रही थी और वो रोटियाँ बनाने में व्यस्त रही। मेरी उंगलियों ने नारियल के तेल के साथ उसके गुदाद्वार का रास्ता थोड़ा सा सुगम कर दिया.
रेनू इस अप्राकृतिक मैथुन का भरपूर आनंद ले रही थी।
फिर मैंने उसे थोड़ा सा झुकाया और गुदाद्वार को ध्यान से देखा.
छेद थोड़ा सा चौड़ा हो गया था.
अब तक रेनू आता गूँथ चुकी थी.
मैंने अपने तने हुए लिंग को नारियल के तेल में डुबोकर लिंगमुण्ड उसकी गुदाद्वार पर रखा।
वो शायद इस हमले से अंजान थी. मैंने थोड़ा सा झुक कर एक हल्का सा झटका मारा तो लिंग छेद से फिसल गया.
मैंने थोड़ा सा नितंबों को चौड़ा कर फिर छेद पर निशाना लगाया.
इस बार लिंग उसके सँकरे गुदाद्वार में आधे से ज्यादा घुस चुका था।
रेनू के मुँह से चीख सी निकल गयी और वो सीधी खड़ी हो गयी. अपने गुदाद्वार को सहलाने लगी।
“अरे डरो मत … वैसे भी रास्ता तो बन ही गया है, अब तो मजे ले लो.” मैंने उसको मनाते हुए कहा.
मगर वो नहीं मानी.
मैंने फिर उंगलियों से गुदामैथुन जारी रखा.
नारियल का तेल उसकी गुदा में अंदर तक भर गया था.
धीरे-धीरे रेनू भी नितंबों को सिकोड़ने लगी. उसे असीम आनंद की अनुभूति होने लगी थी।
इसी समय मैंने उसे रसोई की स्लैब पर पूरा झुकाया और चिकने लिंग को गुदाद्वार में धीरे से घुसाना शुरू कर दिया.
इस बार रेनू लिंग लेने को तैयार थी.
जैसे-जैसे लिंग अंदर जा रहा था, लिंग को उतनी ही मेहनत करनी पड़ रही थी. आगे गुदा मार्ग बहुत संकीर्ण था।
अथक प्रयास और रेनू के सहयोग से पूरा लिंग उसकी गुदा में समा गया.
उसके मुँह से एक आह … निकली। मैंने धीरे-धीरे लिंग आगे-पीछे करना शुरू किया.
लिंग खींचते समय उसकी गुदा की अंदरूनी त्वचा भी लिंग के साथ खिंचती हुई सी प्रतीत होती थी.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.


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