17-06-2022, 04:33 PM
मगर इतने वर्षों के बाद आज भी हम दोनों आपस में बेहद खुले हुए बहुत अच्छे मित्र थे किंतु फिर भी बात नहीं कर पाते थे।
यही सोचता रहा कि मित्रता पर वासना का बोझ पड़ गया तो वो संबंध कहीं टूट न जाये.
कुछ वक्त और बीत जाने के बाद आखिरकार रेनू ने मुझे मिलने की स्वीकृति दे दी. उस वक्त मेरे मन उपवन में हर्ष के हजारों फूल खिल उठे थे. मेरे घर से उसके घर की दूरी मात्र 20 मिनट की ही थी.
मैंने शाम का खाना हल्का ही खाया ताकि स्वास्थ्य खराब ना हो। रात में सही से नींद नहीं आ रही थी. 8-9 साल पहले मिली उस नवयौवना का यौवन बार-बार नेत्रों के सामने आ रहा था।
उसके उन माँसल नितंबों को न जाने मैंने कितनी बार कामुक कल्पनाओं में दुलारा था। उसने वैभव के दफ्तर जाने के बाद सुबह 9 बजे बुलाया था।
उस सुबह का समय पहाड़ जैसा प्रतीत हो रहा था। 8.45 बजे उसकी कॉल आयी और मैं उस रास्ते पर निकल पड़ा जिस पर पर मैंने कई बार कल्पनाओं का सफर किया था।
दरवाजे पर पहुंचकर कांपते हाथों से डोरबेल बजाई.
जैसे ही दरवाजा खुला और सामने साक्षात रतिरूपी उस अप्सरा को साड़ी में देखा तो जैसे कामदेव ने बाणों की बरसात कर दी।
“दरवाजे से ही देख कर जाना है क्या?” उसने हँसते हुए कहा और धीरे से हाथ पकड़ कर मुझे अन्दर बुला लिया।
उस दिन पहली बार उसने मेरे शरीर को छुआ था.
मानो जिस्म में करंट सा दौड़ गया हो. अंदर आकर मैंने उसके चेहरे को देखा जिस पर एक मादक मुस्कान थी।
वो पहले से और ज्यादा सम्मोहक हो गयी थी. उसका हर अंग पहले से ज्यादा मादक और मांसल हो गया था।
समय ने उसके जिस्म में और भी अधिक सौंदर्य भर दिया था। उसने अपनी 3 साल की बेटी को दूसरे कमरे में टी.वी. चलाकर बाहर से बन्द कर दिया।
“चाय लोगे या ठंडा?” उसने तंद्रा भंग करते हुए कहा.
मैंने मुस्कराकर कर उसके होंठों की तरफ इशारा किया और वो किचन की ओर चल दी. आज भी वो माँसल नितंबों का घर्षण वैसा ही था जो किसी भी पुरूष का पुरूषत्व हिला दे।
वो इठलाती हुई रसोई में चली गई. उसको भी अपनी कमनीय काया का ज्ञान था।
ये नजारा देखने के बाद मेरे कई सालों के संयम के बाँध की दीवारें कमजोर होकर उसके नितम्बों के घर्षण से टूट चुकी थीं।
वासना से वशीभूत होकर मैं रसोई में गया और उसके माँसल और सुपुष्ट नितंबों को देखने लगा. उसने पीछे मुड़कर देखा और मुस्करा दी। उसने मानो मौन स्वीकृति दे दी थी.
मैंने उसके मजबूत कंधों को अपने हाथों से पकड़कर उसकी गर्दन पर चुम्बन अंकित कर दिए।
वो चुम्बनों से सिहर उठी और पलट कर मेरे सीने से चिपट गयी और सीने के बालों में उंगलियां फिराने लगी।
मेरे हाथ उसके सौंदर्य के पर्वतीय स्थलों का भ्रमण करने लगे और उसके माँसल नितंबों को पहली बार सहलाया।
चाय और कामुकता दोनों ही उफान पर थे. अब या तो चाय पीनी थी या यौवनरस।
कामुकता ने यौवनरस चुना और मैं रेनू को उठाकर बेडरूम में ले आया.
उसकी आंखों में वासना और प्यास के डोरे तैर रहे थे।
उसकी साड़ी को उसके मादक जिस्म के आगोश से मैंने अलग किया.
उसने दोनों हाथों से अपने पूर्णविकसित वक्षस्थल को छुपा लिया।
यही सोचता रहा कि मित्रता पर वासना का बोझ पड़ गया तो वो संबंध कहीं टूट न जाये.
कुछ वक्त और बीत जाने के बाद आखिरकार रेनू ने मुझे मिलने की स्वीकृति दे दी. उस वक्त मेरे मन उपवन में हर्ष के हजारों फूल खिल उठे थे. मेरे घर से उसके घर की दूरी मात्र 20 मिनट की ही थी.
मैंने शाम का खाना हल्का ही खाया ताकि स्वास्थ्य खराब ना हो। रात में सही से नींद नहीं आ रही थी. 8-9 साल पहले मिली उस नवयौवना का यौवन बार-बार नेत्रों के सामने आ रहा था।
उसके उन माँसल नितंबों को न जाने मैंने कितनी बार कामुक कल्पनाओं में दुलारा था। उसने वैभव के दफ्तर जाने के बाद सुबह 9 बजे बुलाया था।
उस सुबह का समय पहाड़ जैसा प्रतीत हो रहा था। 8.45 बजे उसकी कॉल आयी और मैं उस रास्ते पर निकल पड़ा जिस पर पर मैंने कई बार कल्पनाओं का सफर किया था।
दरवाजे पर पहुंचकर कांपते हाथों से डोरबेल बजाई.
जैसे ही दरवाजा खुला और सामने साक्षात रतिरूपी उस अप्सरा को साड़ी में देखा तो जैसे कामदेव ने बाणों की बरसात कर दी।
“दरवाजे से ही देख कर जाना है क्या?” उसने हँसते हुए कहा और धीरे से हाथ पकड़ कर मुझे अन्दर बुला लिया।
उस दिन पहली बार उसने मेरे शरीर को छुआ था.
मानो जिस्म में करंट सा दौड़ गया हो. अंदर आकर मैंने उसके चेहरे को देखा जिस पर एक मादक मुस्कान थी।
वो पहले से और ज्यादा सम्मोहक हो गयी थी. उसका हर अंग पहले से ज्यादा मादक और मांसल हो गया था।
समय ने उसके जिस्म में और भी अधिक सौंदर्य भर दिया था। उसने अपनी 3 साल की बेटी को दूसरे कमरे में टी.वी. चलाकर बाहर से बन्द कर दिया।
“चाय लोगे या ठंडा?” उसने तंद्रा भंग करते हुए कहा.
मैंने मुस्कराकर कर उसके होंठों की तरफ इशारा किया और वो किचन की ओर चल दी. आज भी वो माँसल नितंबों का घर्षण वैसा ही था जो किसी भी पुरूष का पुरूषत्व हिला दे।
वो इठलाती हुई रसोई में चली गई. उसको भी अपनी कमनीय काया का ज्ञान था।
ये नजारा देखने के बाद मेरे कई सालों के संयम के बाँध की दीवारें कमजोर होकर उसके नितम्बों के घर्षण से टूट चुकी थीं।
वासना से वशीभूत होकर मैं रसोई में गया और उसके माँसल और सुपुष्ट नितंबों को देखने लगा. उसने पीछे मुड़कर देखा और मुस्करा दी। उसने मानो मौन स्वीकृति दे दी थी.
मैंने उसके मजबूत कंधों को अपने हाथों से पकड़कर उसकी गर्दन पर चुम्बन अंकित कर दिए।
वो चुम्बनों से सिहर उठी और पलट कर मेरे सीने से चिपट गयी और सीने के बालों में उंगलियां फिराने लगी।
मेरे हाथ उसके सौंदर्य के पर्वतीय स्थलों का भ्रमण करने लगे और उसके माँसल नितंबों को पहली बार सहलाया।
चाय और कामुकता दोनों ही उफान पर थे. अब या तो चाय पीनी थी या यौवनरस।
कामुकता ने यौवनरस चुना और मैं रेनू को उठाकर बेडरूम में ले आया.
उसकी आंखों में वासना और प्यास के डोरे तैर रहे थे।
उसकी साड़ी को उसके मादक जिस्म के आगोश से मैंने अलग किया.
उसने दोनों हाथों से अपने पूर्णविकसित वक्षस्थल को छुपा लिया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
