17-06-2022, 04:32 PM
इससे पहले वैभव और रेनू अपने पारीवारिक घर में रहते थे. संयोगवश उसकी नौकरी मेरे शहर में लग गयी.
मैं यहां पर पहले से ही अकेला रह रहा था तो इसी बिल्डिंग में मैंने उनको ये फ्लैट वाजिब किराये में दिलवा दिया था जो मेरे फ्लैट के एकदम साथ ही था.
पहले वैभव और मैं ज्यादा नहीं मिलते थे क्योंकि उसके पापा मेरे सगे चाचा नहीं थे.
पर अब उसकी रेनू को देखने के बाद तो वैभव मुझे अपने सगे से भी अधिक प्रिय हो गया. उसकी 21 वर्षीय पत्नी का यौवन देखकर मेरे नीरस जीवन में जैसे बहार आ गयी थी.
अभी तक मैं अपने लिंग को अश्लील फिल्मों और कहानियों के माध्यम से ही बहलाता आ रहा था.
रेनू को देखने के बाद जैसे मेरे लिंग को एक मंजिल मिल गयी.
वो मंजिल थी रेनू की नयी नवेली योनि जिसके ख्वाब मेरे लिंग ने पहले दिने से ही देखने शुरू कर दिये.
फिर बस जितनी बार मौका मिला मैंने उस सुंदरी के यौवन का मूक रसास्वादन किया।
उसका सौंदर्य किसी पर्वतीय स्थल जैसा था. ना जाने क्यों नेत्र बार-बार उस सौंदर्य के उतार-चढ़ाव में भटक से रहे थे।
मैंने बहुत बारीकी से उस यौवना के यौवन का निरीक्षण किया। उसका हर अंग मादक और सम्पूर्ण था। जब वो चलती थी तो लगता था कि किसी झरने से पानी गिर रहा हो।
उसके नितंब इतने माँसल थे कि मानो वस्त्रों से बाहर निकल आएंगे. दोनों नितंबों के बीच का घर्षण किसी भी नर को कामरस में सराबोर कर सकता था। न चाहते हुए भी मैं उस यौवना के सौंदर्य का उपासक सा हो गया।
धीरे-धीरे दिन गुजरते गए मगर उस यौवना का आकर्षण कब प्रेम में परिवर्तित हो गया पता भी न चला। जब कभी मुझे मौक़ा मिला, मैं उसके बाथरूम में जाकर उसके अंतःवस्त्रों को हाथ में लेकर ऐसा महसूस करता कि जैसे वो मेरे आगोश में हो।
समय सदैव एक सा नहीं रहता. इतने दिनों से उसके यौवन के रसस्वादन और दर्शन की जो कल्पनायें की थीं वो एक सब अधूरी सी छोड़कर वैभव और रेनू यह फ्लैट छोड़कर चले गये.
उन दोनों में मतभेद रहते थे और शायद वे अपने झगड़े को मेरे सामने उजागर करना नहीं चाहते थे.
आप कितना भी बचिए लेकिन विपरीत लिंगी के लिए प्रेम के साथ कहीं न कहीं वासना दबे पैर आ ही जाती है. एकांत के क्षणों में तो कामदेव वासना के रथ पर सवार रहते हैं।
वो चली गयी लेकिन जैसे मेरी आत्मा को साथ ले गयी.
जो आकर्षण एक अरसे से दबा हुआ था वो बाहर आने को मचलने लगा। मैंने उसे व्हाट्सएप पर फॉलो करना शुरू कर दिया. उसके हर फ़ोटो को सेव करना, स्टेटस पर कमेंट देना शुरू कर दिया।
उसने मुझसे व्हाट्सएप पर बातचीत शुरू कर दी. मैंने उसे सब कुछ सच-सच बता दिया।
मेरा सच सामने आया तो उसका भी दिल खुल गया और उसने बताया कि वो भी मुझे पसंद करती थी.
उस दिन मैंने अपनी किस्मत को खूब कोसा. जिस रूप की देवी को मैं अपने इतने करीब रहते हुए पूज सकता था, मैं उस मौके से चूक गया.
काश ये हिम्मत मैं कुछ साल पहले कर पाता.
फिर इससे पहले कि मेरा प्यार परवान चढ़ता … उसके पति ने उसके फोन में मेरे मैसेज देख लिए।
उस वक्त सब कुछ ख़त्म हो गया।
मगर वो आकर्षण उसी स्तर पर था जो उससे पहली बार मिलकर उत्पन्न हुआ था।
उसको लेकर मन में न जाने कितनी बार कितने प्रकार के कामुक विचार आये और कितनी बार संयम टूटा।
बीतते वक्त के साथ अब वो एक बेहद समझदार और सुलझी हुई महिला में परिवर्तित हो चुकी थी।
मैं भी विवाहित हो चुका था किंतु मेरी पत्नी भी रेनू के लिए मेरी आसक्ति को तृप्त न कर पायी थी.
रेनू के सपने उसे हमेशा से व्यथित करते थे. वो एक स्वावलंबी और स्वतंत्र जीवन जीना चाहती थी। उसके अंदर की छटपटाहट को मैंने कई बार महसूस किया था। उसका ज्ञान और दर्शन सीमित था और पारिवारिक दायित्वों ने पैरों में बेड़ियां डाल रखी थीं.
खुले आसमान में उड़ने की ख़्वाहिशों को दफ़न कर वो जमीं पर चलने में ही संतोष किये हुए थी.
मैंने उसे कई बार वासना के सागर में उतारने की कोशिश की मगर उसकी तैरने की क्षमता पर संदेह था मुझे.
पुरुष शुरू से ही काम-वासना से पीड़ित रहा है, ना जाने कितने रजवाड़े इस वासना की आग में जल गए। स्त्री अगर रतिरूप है तो वो ज्ञानपुंज भी है।
स्त्रियों ने सदैव पुरुषों को मार्गदर्शित किया है. पुरूष की काम वासना का अंत ही स्त्री है. चाहे वो किसी रूप में करे, गुरु बनकर या रति के रूप में। मेरे लिये वो एक मार्गदर्शक बन गयी।
मैं यहां पर पहले से ही अकेला रह रहा था तो इसी बिल्डिंग में मैंने उनको ये फ्लैट वाजिब किराये में दिलवा दिया था जो मेरे फ्लैट के एकदम साथ ही था.
पहले वैभव और मैं ज्यादा नहीं मिलते थे क्योंकि उसके पापा मेरे सगे चाचा नहीं थे.
पर अब उसकी रेनू को देखने के बाद तो वैभव मुझे अपने सगे से भी अधिक प्रिय हो गया. उसकी 21 वर्षीय पत्नी का यौवन देखकर मेरे नीरस जीवन में जैसे बहार आ गयी थी.
अभी तक मैं अपने लिंग को अश्लील फिल्मों और कहानियों के माध्यम से ही बहलाता आ रहा था.
रेनू को देखने के बाद जैसे मेरे लिंग को एक मंजिल मिल गयी.
वो मंजिल थी रेनू की नयी नवेली योनि जिसके ख्वाब मेरे लिंग ने पहले दिने से ही देखने शुरू कर दिये.
फिर बस जितनी बार मौका मिला मैंने उस सुंदरी के यौवन का मूक रसास्वादन किया।
उसका सौंदर्य किसी पर्वतीय स्थल जैसा था. ना जाने क्यों नेत्र बार-बार उस सौंदर्य के उतार-चढ़ाव में भटक से रहे थे।
मैंने बहुत बारीकी से उस यौवना के यौवन का निरीक्षण किया। उसका हर अंग मादक और सम्पूर्ण था। जब वो चलती थी तो लगता था कि किसी झरने से पानी गिर रहा हो।
उसके नितंब इतने माँसल थे कि मानो वस्त्रों से बाहर निकल आएंगे. दोनों नितंबों के बीच का घर्षण किसी भी नर को कामरस में सराबोर कर सकता था। न चाहते हुए भी मैं उस यौवना के सौंदर्य का उपासक सा हो गया।
धीरे-धीरे दिन गुजरते गए मगर उस यौवना का आकर्षण कब प्रेम में परिवर्तित हो गया पता भी न चला। जब कभी मुझे मौक़ा मिला, मैं उसके बाथरूम में जाकर उसके अंतःवस्त्रों को हाथ में लेकर ऐसा महसूस करता कि जैसे वो मेरे आगोश में हो।
समय सदैव एक सा नहीं रहता. इतने दिनों से उसके यौवन के रसस्वादन और दर्शन की जो कल्पनायें की थीं वो एक सब अधूरी सी छोड़कर वैभव और रेनू यह फ्लैट छोड़कर चले गये.
उन दोनों में मतभेद रहते थे और शायद वे अपने झगड़े को मेरे सामने उजागर करना नहीं चाहते थे.
आप कितना भी बचिए लेकिन विपरीत लिंगी के लिए प्रेम के साथ कहीं न कहीं वासना दबे पैर आ ही जाती है. एकांत के क्षणों में तो कामदेव वासना के रथ पर सवार रहते हैं।
वो चली गयी लेकिन जैसे मेरी आत्मा को साथ ले गयी.
जो आकर्षण एक अरसे से दबा हुआ था वो बाहर आने को मचलने लगा। मैंने उसे व्हाट्सएप पर फॉलो करना शुरू कर दिया. उसके हर फ़ोटो को सेव करना, स्टेटस पर कमेंट देना शुरू कर दिया।
उसने मुझसे व्हाट्सएप पर बातचीत शुरू कर दी. मैंने उसे सब कुछ सच-सच बता दिया।
मेरा सच सामने आया तो उसका भी दिल खुल गया और उसने बताया कि वो भी मुझे पसंद करती थी.
उस दिन मैंने अपनी किस्मत को खूब कोसा. जिस रूप की देवी को मैं अपने इतने करीब रहते हुए पूज सकता था, मैं उस मौके से चूक गया.
काश ये हिम्मत मैं कुछ साल पहले कर पाता.
फिर इससे पहले कि मेरा प्यार परवान चढ़ता … उसके पति ने उसके फोन में मेरे मैसेज देख लिए।
उस वक्त सब कुछ ख़त्म हो गया।
मगर वो आकर्षण उसी स्तर पर था जो उससे पहली बार मिलकर उत्पन्न हुआ था।
उसको लेकर मन में न जाने कितनी बार कितने प्रकार के कामुक विचार आये और कितनी बार संयम टूटा।
बीतते वक्त के साथ अब वो एक बेहद समझदार और सुलझी हुई महिला में परिवर्तित हो चुकी थी।
मैं भी विवाहित हो चुका था किंतु मेरी पत्नी भी रेनू के लिए मेरी आसक्ति को तृप्त न कर पायी थी.
रेनू के सपने उसे हमेशा से व्यथित करते थे. वो एक स्वावलंबी और स्वतंत्र जीवन जीना चाहती थी। उसके अंदर की छटपटाहट को मैंने कई बार महसूस किया था। उसका ज्ञान और दर्शन सीमित था और पारिवारिक दायित्वों ने पैरों में बेड़ियां डाल रखी थीं.
खुले आसमान में उड़ने की ख़्वाहिशों को दफ़न कर वो जमीं पर चलने में ही संतोष किये हुए थी.
मैंने उसे कई बार वासना के सागर में उतारने की कोशिश की मगर उसकी तैरने की क्षमता पर संदेह था मुझे.
पुरुष शुरू से ही काम-वासना से पीड़ित रहा है, ना जाने कितने रजवाड़े इस वासना की आग में जल गए। स्त्री अगर रतिरूप है तो वो ज्ञानपुंज भी है।
स्त्रियों ने सदैव पुरुषों को मार्गदर्शित किया है. पुरूष की काम वासना का अंत ही स्त्री है. चाहे वो किसी रूप में करे, गुरु बनकर या रति के रूप में। मेरे लिये वो एक मार्गदर्शक बन गयी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.