17-06-2022, 02:18 PM
उधर मेरी नज़र में एक और खूबसूरत औरत चढ़ गई, बस यह जानना था कि वो रहती कहाँ है, इतना पता था साली है शादीशुदा और चालू भी लगती थी। उसे मेरे बारे में सब मालूम था, बस मुझे उसके बारे में मालूम करना था।
लेकिन मैं करता भी कैसे? औरत घर होती उससे जान पहचान निकलवा देता !
वो अक्सर शाम को सब्जी लेने जाती थी, यूँ कहो कि मुझे देखने आती थी। नज़रों नज़रों में बात काफी आगे चली गई। उसके कपड़े देखने लायक होते थे गहरे गले के कमीज पहनती थी पीछे जिप वाले ! उसके मम्मे देखने लायक थे, एक बात बताऊँ- मेरी कमजोरी है औरत की छाती ! वो ऐसे सूट पहनती जिससे उसके आधे उभार उभर-उभर बाहर आने को होते थे, दिल करता था वहीं दबोच लूँ साली को !
आखिर मैंने उस तक पहुँचने का माध्यम ढूंढ ही लिया लेकिन उसके लिए मुझे किसी को मक्खन लगाना पड़ना था, वो थी मेरी कामवाली कमलेश ! वैसे तो वो साली भी किसी से कम नहीं थी, मुझे कहीं से मालूम चला वो उसके घर भी काम करती है, बस अब उसका घर देखना था, लड़का होता तो पीछा कर लेता, इतनी ठाठबाठ अफसरी थी तो !
कमलेश का रंग सांवला था, लेकिन उसकी फिगर बहुत मस्त थी। पहले मैंने कभी उस पर ध्यान नहीं दिया था, जिस दिन से मुझे उससे काम निकलवाना था और उस दिन जब मैंने उसे देखा, मुझे लगा उसको मसल कर मजा भी ले लूँगा और उसके ज़रिये साली उस रांड तक पहुँच जाऊँगा।
उस दिन से मैंने कमलेश पर डोरे डालने शुरु किये, वो साली तो मुझ पर पहले से मरती थी, मैंने सोचा कि उस पर जयादा वक़्त बर्बाद नहीं करना, सीधा पकड़ लेना है साली को !
वो जब काम करती, अपनी चुन्नी उतार परे रख देती ! साली जब झाड़ू मारने के लिए झुकती तो अपने मम्मे हिलाते हुए झाड़ू लगाती, फिर पोचा भी !
एक दिन दोपहर को मैंने उसको कहा- मेरा खाना भी बना दिया कर ! उसके लिए अलग पगार मिलेगी !
बोली- आज शाम से कर लूंगी !
हाँ ! उस वक़्त ज़रा साफ़ सफाई रख कर आया करना ! कह मैंने वासना आँखों से छोड़ दी।
शाम को जब कमलेश आई तो मैं देखता रह गया, क्या पटाखा थी ! मेरा लौड़ा फोड़ देने वाली थी !
“बोली- साब, बनाना क्या है?”
जो तू बना देगी, खा लेंगे ! कह कर मैं मुस्कुरा दिया- ऐसा कर, आज मिक्स दाल बना दे ! साथ चावल, सलाद वगैरा काट लेना !
बोली- साब, पहली बार है ! आपके स्वाद का मालूम नहीं है, नमक-मसाला वगैरा !
“नमक हिसाब से डालना ! तू खुद नमकीन है, मिर्ची भी हिसाब से, तू भी मिर्ची है !”
“क्या साब आप भी?”
मेरा दिल करने लगा कि उसको दबोच लूँ साली को। हौंसला बढ़ाने के लिए मैंने दारु की बोतल बार से निकाली, बर्फ डाली, तभी प्रिया की कॉल आने लगी, बोली- जानू, आज वो शहर से बाहर हैं, दिल बहुत है करवाने को !
“हाँ हाँ ! आ जाऊँगा रानी ! घबरा मत !”
मैंने पटियाला डाल एक सांस में खींच लिया, बैठे बैठे दूसरा भी ! मुझे दारु जल्दी नहीं चढ़ती, मैं हौंसला करके रसोई में घुस गया और कमलेश के कंधे पर हाथ रख दिया।
वो सिकुड़ सी गई।
“बहुत खुशबू आ रही है खाने में से?”
“साहब खुशबू तो महंगे मसालों से है !”
“हाँ, मगर मसाले डालने भी आने चाहिए !” दूसरा हाथ भी उसके कंधे पर टिका दिया।
वो और सिकुड़ी।
“क्या हुआ कमलेश? कुछ कुछ होता है क्या?”
लेकिन मैं करता भी कैसे? औरत घर होती उससे जान पहचान निकलवा देता !
वो अक्सर शाम को सब्जी लेने जाती थी, यूँ कहो कि मुझे देखने आती थी। नज़रों नज़रों में बात काफी आगे चली गई। उसके कपड़े देखने लायक होते थे गहरे गले के कमीज पहनती थी पीछे जिप वाले ! उसके मम्मे देखने लायक थे, एक बात बताऊँ- मेरी कमजोरी है औरत की छाती ! वो ऐसे सूट पहनती जिससे उसके आधे उभार उभर-उभर बाहर आने को होते थे, दिल करता था वहीं दबोच लूँ साली को !
आखिर मैंने उस तक पहुँचने का माध्यम ढूंढ ही लिया लेकिन उसके लिए मुझे किसी को मक्खन लगाना पड़ना था, वो थी मेरी कामवाली कमलेश ! वैसे तो वो साली भी किसी से कम नहीं थी, मुझे कहीं से मालूम चला वो उसके घर भी काम करती है, बस अब उसका घर देखना था, लड़का होता तो पीछा कर लेता, इतनी ठाठबाठ अफसरी थी तो !
कमलेश का रंग सांवला था, लेकिन उसकी फिगर बहुत मस्त थी। पहले मैंने कभी उस पर ध्यान नहीं दिया था, जिस दिन से मुझे उससे काम निकलवाना था और उस दिन जब मैंने उसे देखा, मुझे लगा उसको मसल कर मजा भी ले लूँगा और उसके ज़रिये साली उस रांड तक पहुँच जाऊँगा।
उस दिन से मैंने कमलेश पर डोरे डालने शुरु किये, वो साली तो मुझ पर पहले से मरती थी, मैंने सोचा कि उस पर जयादा वक़्त बर्बाद नहीं करना, सीधा पकड़ लेना है साली को !
वो जब काम करती, अपनी चुन्नी उतार परे रख देती ! साली जब झाड़ू मारने के लिए झुकती तो अपने मम्मे हिलाते हुए झाड़ू लगाती, फिर पोचा भी !
एक दिन दोपहर को मैंने उसको कहा- मेरा खाना भी बना दिया कर ! उसके लिए अलग पगार मिलेगी !
बोली- आज शाम से कर लूंगी !
हाँ ! उस वक़्त ज़रा साफ़ सफाई रख कर आया करना ! कह मैंने वासना आँखों से छोड़ दी।
शाम को जब कमलेश आई तो मैं देखता रह गया, क्या पटाखा थी ! मेरा लौड़ा फोड़ देने वाली थी !
“बोली- साब, बनाना क्या है?”
जो तू बना देगी, खा लेंगे ! कह कर मैं मुस्कुरा दिया- ऐसा कर, आज मिक्स दाल बना दे ! साथ चावल, सलाद वगैरा काट लेना !
बोली- साब, पहली बार है ! आपके स्वाद का मालूम नहीं है, नमक-मसाला वगैरा !
“नमक हिसाब से डालना ! तू खुद नमकीन है, मिर्ची भी हिसाब से, तू भी मिर्ची है !”
“क्या साब आप भी?”
मेरा दिल करने लगा कि उसको दबोच लूँ साली को। हौंसला बढ़ाने के लिए मैंने दारु की बोतल बार से निकाली, बर्फ डाली, तभी प्रिया की कॉल आने लगी, बोली- जानू, आज वो शहर से बाहर हैं, दिल बहुत है करवाने को !
“हाँ हाँ ! आ जाऊँगा रानी ! घबरा मत !”
मैंने पटियाला डाल एक सांस में खींच लिया, बैठे बैठे दूसरा भी ! मुझे दारु जल्दी नहीं चढ़ती, मैं हौंसला करके रसोई में घुस गया और कमलेश के कंधे पर हाथ रख दिया।
वो सिकुड़ सी गई।
“बहुत खुशबू आ रही है खाने में से?”
“साहब खुशबू तो महंगे मसालों से है !”
“हाँ, मगर मसाले डालने भी आने चाहिए !” दूसरा हाथ भी उसके कंधे पर टिका दिया।
वो और सिकुड़ी।
“क्या हुआ कमलेश? कुछ कुछ होता है क्या?”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.