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मुझे दीदी ना कहो
#4
उसने अपनी बाहें मेरी कमर में डाल कर मुझे दबा लिया और अपने अधरों से मेरे अधर दबा लिये। मैं जान करके घू घू करती रही। उसने मेरे होंठ काट लिये और अधरपान करने लगा। एक क्षण को तो मैं सुध बुध भूल गई और उसका साथ देने लगी।

उसके हाथ मेरे ब्लाऊज को खोलने में लगे थे … मैंने अपने होंठ झटक दिये।

“यह क्या कर रहे हो …? प्लीज ! बस अब बहुत हो गया … अब जाओ तुम !” मेरे नखरे और बढ़ने लगे।

पर मेरे दोनों कबूतर उसकी गिरफ़्त में थे। वो उसे सहला सहला कर दबा रहा था। मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी। मेरे दिल की धड़कन तेज होती जा रही थी। बस जुबान पर इन्कार था, मैंने उसके हाथ अपने नर्म कबूतरों से हटाने की कोशिश नहीं की। उसने मेरा टॉप ऊपर खींच दिया, मैं ऊपर से नंगी हो चुकी थी। मेरे सुडौल स्तन तन कर बाहर उभर आये। उनमें कठोरता बढ़ती जा रही थी। मेरे चुचूक सीधे होकर कड़े हो गये थे। मैं अपने हाथों से अपना तन छिपाने की कोशिश करने लगी।

तभी उसने बेशर्म होकर अपनी पैंट उतार दी और साथ ही अपनी चड्डी भी। यह मेरे मादक जोबन की जीत थी। उसका लण्ड 120 डिग्री पर तना हुआ था और उसके ऊपर उसके पेट को छू रहा था। बेताबी का मस्त आलम था। उसका लण्ड लम्बा था पर टेढा था। मेरा मन हुआ कि उसे अपने मुख में दबा लूँ और चुसक चुसक कर उसका माल निकाल दूँ। उसने एक झटके में मुझे खींच कर मेरी पीठ अपने से चिपका ली। मेरे चूतड़ों के मध्य में पजामे के ऊपर से ही लण्ड घुसाने लगा। आह्ह ! कैसा मधुर स्पर्श था … घुसा दे मेरे राजा जी … मैंने सामने से अपनी चूचियाँ और उभार दी। उसका कड़क लण्ड गाण्ड में घुस कर अपनी मौजूदगी दर्शा रहा था।

“वो क्या है? … उसमें क्या तेल है …?”

“हाँ है … पर ये ऐसे क्या घुसाये जा रहा है … ?”

उसने मेरी गर्दन पकड़ी और मुझे बिस्तर पर उल्टा लेटा दिया। एक हाथ बढ़ा कर उसने तेल की शीशी उठा ली। एक ही झटके में मेरा पाजामा उसने उतार दिया,”बस अब ऐसे ही पड़े रहना … नहीं तो ध्यान रहे मेरे पास चाकू है … पूरा घुसेड़ दूँगा।”

मैं उसकी बात से सन्न रह गई। यह क्या … उसने मेरे चूतड़ों को खींच कर खोल दिया और तेल मेरे गाण्ड के फ़ूल पर लगाने लगा। उसने धीरे से अंगुली दबाई और अन्दर सरका दी। वो बार बार तेल लेकर मेरी गाण्ड के छेद में अपनी अंगुली घुमा रहा था। मेरे पति ने तो ऐसा कभी नहीं किया था। उफ़्फ़्फ़्… कितना मजा आ रहा था।

“आलोक, देख चाकू मत घुसेड़ना, लग जायेगी …” मैंने मस्ती में, पर सशंकित होकर कहा।

पर उसने मेरी एक ना सुनी और दो तकिये नीचे रख दिये। मेरी टांगें खोल कर मेरे छेद को ऊपर उठा दिया और अपना सुपाड़ा उसमें दबा दिया।

“देख चाकू गया ना अन्दर …”

“आह, यह तो तुम्हारा वो है, चाकू थोड़े ही है?”

“तो तुम क्या समझी थी सचमुच का चाकू है मेरे पास … देखो यह भी तो अन्दर घुस गया ना ?”

उसका लण्ड मेरी गाण्ड में उतर गया था।

“देख भैया, अब बहुत हो गया ना … तूने मुझे नहीं छोड़ा तो मैं चिल्लाऊँगी …” मैंने अब जानबूझ कर उसे छेड़ा।

पर उसने अब धक्के लगाने शुरू कर दिये थे, लण्ड अन्दर बाहर आ जा रहा था, उसका लण्ड मेरी चूत को भी गुदगुदा रहा था। मेरी चूत की मांसपेशियाँ भी सम्भोग के तैयार हो कर अन्दर से खिंच कर कड़ी हो गई थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: मुझे दीदी ना कहो - by neerathemall - 17-06-2022, 02:03 PM



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