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Misc. Erotica पारस्परिक हस्त मैथुन
#12
स समय मुझे ऐसा लग रहा था कि बाथरूम में दिवाली की बत्तियों की तरह एक लाईट जल बुझ रही है।

मैं उस लुभावने दृश्य को देखने में इतनी लीन थी कि मुझे समय गुजरने का पता ही नहीं चला और मेरी तन्द्रा तब टूटी जब सिद्धार्थ का स्वर मेरे कानों में पड़ा।
वह छत की ओर मुँह करके कह रहा था– ओह इश्वर, तेरी भी क्या अजब माया है। मुझे तो घरवाली चाहिए थी और तुमने यह आधी घरवाली को क्यों भेज दिया?
फिर मेरी ओर देखते हुए बोला– दीदी, आप कब आईं? मुझे तो आपके आने की कोई आहाट ही नहीं सुनाई दी। कृपया मुझे इस दशा में आपके सामने खड़े रहने के लिए क्षमा कर देवें।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: पारस्परिक हस्त मैथुन - by neerathemall - 15-06-2022, 04:01 PM



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