15-06-2022, 03:19 PM
सुपारे के अंदर जाते ही मालती दर्द के मारे चिल्ला उठी, बोली- साहब, मैं मर जाऊंगी, यह क्या लठ डाल दिया मेरी चूत में ! बहुत ज्यादा दर्द हो रहा है, मेरी चूत फट जायेगी, इसे बाहर निकालिये !
वह चिल्लाती रही लेकिन मैंने उसकी बात की परवाह किये बगैर धक्के मारने लगा और पूरे लौड़े को चूत में डाल कर ही दम लिया। वह रो रही थी और कह रही थी- साहिब, मुझे छोड़ दीजिए, मैंने गांड कभी नहीं मराई, हाय मेरी जान निकल रही है !
वह तड़प रही थी, उसकी टांगें कांप रही थी और जोर जोर से रो रही थी !
तब मैंने उसे कहा- चुप हो जाओ, मैं अभी निकाल लेता हूँ।
और जैसे ही आहिस्ता आहिस्ता मैंने लौड़े को बाहर खींचना शुरू किया वह चुप हो गई।लेकिन जैसे ही मैंने देखा कि सिर्फ सुपारा अंदर रह गया है तब मैंने फिर से धक्का मार कर पूरे लौड़े को चूत के अंदर घुसा दिया। मालती शायद इसके लिए तैयार नहीं थी और लौड़े के अंदर जाते ही जोर से चिल्लाने लगी- मार डाला रे, मेरी चूत फट गई रे, हाय दैया रे मैं मर गई !
मैंने मालती को चुप कराने के लिए उसके मुँह पर हाथ रख दिया और धीरे धीरे धक्के मार कर लौड़े को उसकी चूत के अंदर-बाहर करने लगा। कुछ देर के बाद जैसे ही मालती को कुछ राहत मिली तब वह भी मेरे साथ सहयोग करने लगी और मेरे धक्कों के अनुसार हिल कर चूत मराने लगी। पन्द्रह मिनट तक मालती की चूत मारने के बाद जब मेरे लौड़े का रस उसकी चूत में छूट गया तब मैंने लौड़ा बाहर निकाला और उसके मुँह में दे दिया। मालती ने लौड़े को चूस तथा चाट कर साफ़ कर दिया और सीधी खड़ी होकर बोली- साहब, अपने तो पहले मेरी जान ही निकाल दी थी लेकिन बाद में बहुत मजे भी दे दिए !
तीन बजे थे जब हम दोनों एक साथ नहा कर बिस्तर पर लेट गए और एक दूसरे से चिपक कर सो गए। जब नींद खुली तो पांच बज चुके थे और मालती अभी भी मेरे साथ चिपक के सो रही थी। मैंने उसके मम्मों के भूरे अंगूरों को सहलाया तो वह चौंक कर जाग गई और मुझे देख कर उठ कर बैठ गई।
मैंने उससे पूछा- बहुत थक गई थी क्या?
तो उसने सिर हिला कर हाँ कर दी और उठ कर रसोई में जाकर चाय बना लाई और हमने साथ ही बैठ कर चाय पी। फिर उसने कपड़े पहने और रसोई में जाकर रात के लिए खाना बनाया। रात को सात बजे से पहले ही मालती मेरे पास आकर बोली- साहब, मैं अब जाऊँगी, खाना बना दिया है, आप खा लीजिएगा !
तब मैंने उसे पांच सौ रुपये दिए तो वह कहने लगी- साहब, मैंने चूत पैसों के लिए नहीं मरवाई !
तब मैंने कहा- यह चूत के लिए नहीं है, यह मैं तेरी गांड की सील तोड़ने की खुशी में दे रहा हूँ !
तो उसने खुशी से पैसे ले लिए और मेरे खड़े लौड़े को देख कर उसने झुक कर पहले तो चूमा और फिर पता नहीं क्या सोच कर उस चूसने भी लगी !
पांच मिनट में ही मेरा रस उसके मुँह में छूट गया जो उसने पी लिया।
वह चिल्लाती रही लेकिन मैंने उसकी बात की परवाह किये बगैर धक्के मारने लगा और पूरे लौड़े को चूत में डाल कर ही दम लिया। वह रो रही थी और कह रही थी- साहिब, मुझे छोड़ दीजिए, मैंने गांड कभी नहीं मराई, हाय मेरी जान निकल रही है !
वह तड़प रही थी, उसकी टांगें कांप रही थी और जोर जोर से रो रही थी !
तब मैंने उसे कहा- चुप हो जाओ, मैं अभी निकाल लेता हूँ।
और जैसे ही आहिस्ता आहिस्ता मैंने लौड़े को बाहर खींचना शुरू किया वह चुप हो गई।लेकिन जैसे ही मैंने देखा कि सिर्फ सुपारा अंदर रह गया है तब मैंने फिर से धक्का मार कर पूरे लौड़े को चूत के अंदर घुसा दिया। मालती शायद इसके लिए तैयार नहीं थी और लौड़े के अंदर जाते ही जोर से चिल्लाने लगी- मार डाला रे, मेरी चूत फट गई रे, हाय दैया रे मैं मर गई !
मैंने मालती को चुप कराने के लिए उसके मुँह पर हाथ रख दिया और धीरे धीरे धक्के मार कर लौड़े को उसकी चूत के अंदर-बाहर करने लगा। कुछ देर के बाद जैसे ही मालती को कुछ राहत मिली तब वह भी मेरे साथ सहयोग करने लगी और मेरे धक्कों के अनुसार हिल कर चूत मराने लगी। पन्द्रह मिनट तक मालती की चूत मारने के बाद जब मेरे लौड़े का रस उसकी चूत में छूट गया तब मैंने लौड़ा बाहर निकाला और उसके मुँह में दे दिया। मालती ने लौड़े को चूस तथा चाट कर साफ़ कर दिया और सीधी खड़ी होकर बोली- साहब, अपने तो पहले मेरी जान ही निकाल दी थी लेकिन बाद में बहुत मजे भी दे दिए !
तीन बजे थे जब हम दोनों एक साथ नहा कर बिस्तर पर लेट गए और एक दूसरे से चिपक कर सो गए। जब नींद खुली तो पांच बज चुके थे और मालती अभी भी मेरे साथ चिपक के सो रही थी। मैंने उसके मम्मों के भूरे अंगूरों को सहलाया तो वह चौंक कर जाग गई और मुझे देख कर उठ कर बैठ गई।
मैंने उससे पूछा- बहुत थक गई थी क्या?
तो उसने सिर हिला कर हाँ कर दी और उठ कर रसोई में जाकर चाय बना लाई और हमने साथ ही बैठ कर चाय पी। फिर उसने कपड़े पहने और रसोई में जाकर रात के लिए खाना बनाया। रात को सात बजे से पहले ही मालती मेरे पास आकर बोली- साहब, मैं अब जाऊँगी, खाना बना दिया है, आप खा लीजिएगा !
तब मैंने उसे पांच सौ रुपये दिए तो वह कहने लगी- साहब, मैंने चूत पैसों के लिए नहीं मरवाई !
तब मैंने कहा- यह चूत के लिए नहीं है, यह मैं तेरी गांड की सील तोड़ने की खुशी में दे रहा हूँ !
तो उसने खुशी से पैसे ले लिए और मेरे खड़े लौड़े को देख कर उसने झुक कर पहले तो चूमा और फिर पता नहीं क्या सोच कर उस चूसने भी लगी !
पांच मिनट में ही मेरा रस उसके मुँह में छूट गया जो उसने पी लिया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.