14-06-2022, 06:08 PM
गुड्डो की चुदाई की याद आते ही बदन में एक बार फिर से सरसराहट सी दौड़ गई। दिल ख़ुशी के मारे उछल रहा था। जैसे ही मैं अपने कमरे से बाहर निकला तो कमलेश बुआ से आमना सामना हो गया।
“आज ऐसा कौन सा पहाड़ तोड़ कर आया था जो आते ही घोड़े बेच कर सो गया? कम से कम खाना तो खा लेता आने के बाद… कितना उठाया तुझे पर तू है कि हिला तक नहीं?”
बुआ की बात सुनने के बाद मैंने बुआ को सॉरी बोला और तुरंत रसोई की तरफ चल दिया। मुझे लगा था कि गुड्डो जरूर रसोई में होगी और मैं अपनी महबूबा के पास जल्द से जल्द पहुँच जाना चाहता था।
गुड्डो मुझे रसोई में नहीं मिली।
जब बुआ से पूछा तो बुआ ने बताया कि गुड्डो बाजार गई है कुछ खरीददारी करने। इसीलिए तो तुझे उठा रही थी पर तू है कि उठा ही नहीं।
मैं खुद को कोसने लगा कि गुड्डो के साथ बाजार जाने का मौका छुट गया पर ख़ुशी भी थी कि अब तो गुड्डो मेरी है।
रात को सबने एक साथ खाना खाया और फिर हर रोज की तरह उठ कर अपने अपने कमरे में चल दिए। दस बजने को थे। मुझे कॉलेज का कुछ काम पूरा करना था जो दिन में नहीं कर पाया था। किताब खोल कर बैठा पर पढ़ाई में दिल ही नहीं लग रहा था; दिलो-दिमाग में सिर्फ गुड्डो छाई हुई थी। मन कर रहा था कि गुड्डो अभी के अभी मेरे पास आ जाए और फिर सारी रात सिर्फ गुड्डो और मैं। बीच में कोई नहीं… कोई कपड़ा भी नहीं।
गुड्डो रात को करीब साढ़े बारह बजे मेरे कमरे में आई। उसने गुलाबी रंग की नाईटी पहनी हुई थी; बाल खुले थे और आँखों में नशा भरा था।
जैसे ही मेरी नजर गुड्डो से मिली … मैं भी होश में नहीं रहा और फिर सुबह छ: बजे तक कमरे में घपाघप होती रही। रात को गुड्डो दिल खोल कर चुदी और पूरी मस्ती में चुदी।
“आज ऐसा कौन सा पहाड़ तोड़ कर आया था जो आते ही घोड़े बेच कर सो गया? कम से कम खाना तो खा लेता आने के बाद… कितना उठाया तुझे पर तू है कि हिला तक नहीं?”
बुआ की बात सुनने के बाद मैंने बुआ को सॉरी बोला और तुरंत रसोई की तरफ चल दिया। मुझे लगा था कि गुड्डो जरूर रसोई में होगी और मैं अपनी महबूबा के पास जल्द से जल्द पहुँच जाना चाहता था।
गुड्डो मुझे रसोई में नहीं मिली।
जब बुआ से पूछा तो बुआ ने बताया कि गुड्डो बाजार गई है कुछ खरीददारी करने। इसीलिए तो तुझे उठा रही थी पर तू है कि उठा ही नहीं।
मैं खुद को कोसने लगा कि गुड्डो के साथ बाजार जाने का मौका छुट गया पर ख़ुशी भी थी कि अब तो गुड्डो मेरी है।
रात को सबने एक साथ खाना खाया और फिर हर रोज की तरह उठ कर अपने अपने कमरे में चल दिए। दस बजने को थे। मुझे कॉलेज का कुछ काम पूरा करना था जो दिन में नहीं कर पाया था। किताब खोल कर बैठा पर पढ़ाई में दिल ही नहीं लग रहा था; दिलो-दिमाग में सिर्फ गुड्डो छाई हुई थी। मन कर रहा था कि गुड्डो अभी के अभी मेरे पास आ जाए और फिर सारी रात सिर्फ गुड्डो और मैं। बीच में कोई नहीं… कोई कपड़ा भी नहीं।
गुड्डो रात को करीब साढ़े बारह बजे मेरे कमरे में आई। उसने गुलाबी रंग की नाईटी पहनी हुई थी; बाल खुले थे और आँखों में नशा भरा था।
जैसे ही मेरी नजर गुड्डो से मिली … मैं भी होश में नहीं रहा और फिर सुबह छ: बजे तक कमरे में घपाघप होती रही। रात को गुड्डो दिल खोल कर चुदी और पूरी मस्ती में चुदी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.