14-06-2022, 06:07 PM
मेरा लंड चूसते चूसते गुड्डो ने मेरे हाथ पकड़ कर अपनी चूचियों पर रख दिए। मैं भी मस्ती में लंड चुसवाते हुए गुड्डो की चुचियों को मसलने लगा। दोनों के बदन वासना के तूफ़ान की गिरफ्त में आ चुके थे। दिन-दुनिया को भूल बस बदन की आग को ठंडा करने की तड़प थी बस।
कुछ देर लंड चूसने के बाद गुड्डो ने मेरा लंड मुँह से निकाला और अपनी पेंटी उतार मेरे ऊपर आ गई और अपनी चुत मेरे मुँह पर रख दी और बोली- कब से लंड चुसवा रहा है… अब चाट मेरी चुत… खा जा मेरी चुत को!
मैं भी किसी आज्ञाकारी शिष्य की तरह उसकी चिकनी चुत को चाटने लगा और बीच बीच में अपने होंठों और दाँतों से काटने लगा।
वो अब मस्त हो चिल्ला रही थी- चाट… बहनचोद… चाट… चाट मेरी चुत… बहुत तड़पाया है तूने भी आज पूरा बदला लूँगी… बूंद बूंद निचोड़ लूँगी तेरे लंड की… तू भी खाली कर दे मेरी चुत… पानी निकाल निकाल के!
और फिर उसका बदन थोड़ा अकड़ा और झर से मेरे मुँह के ऊपर ही झड़ गई। उसकी चुत का स्वादिष्ट नमकीन पानी मेरी जीभ से होता हुआ मेरे गले में उतर गया कुछ मेरे मुँह पर टपक गया।
झड़ने के बाद वो थोड़ा सुस्त सी हुई और उसने नीचे होकर मेरे मुँह पर लगे उसकी चुत से निकलने वाले कामरस को चाटना शुरू किया और पूरा मुँह साफ़ करने के बाद उसने फिर से मेरे लंड को पकड़ लिया। लंड पहले से ही अकड़ कर लोहे की छड़ सा तना हुआ था।
थोड़ा मसलने के बाद उसने मेरे लंड को फिर से मुँह में भर लिया और चाटने लगी। मेरा लंड अकड़ने की वजह से दुखने लगा था। मैंने उसके मुँह से लंड बाहर निकाला तो वो पहले तो बच्चों की तरह इठलाई और फिर बिना देर किये मेरे ऊपर आ गई और लंड को अपनी चुत पर सेट करके उसके ऊपर बैठती चली गई और मेरा लंड भी उसकी चुत को भेदता हुआ गहराई में उतरने लगा।
मेरा लंड क्यूंकि महेश के लंड से मोटा था तो उसकी चुत थोड़ा फ़ैल गई जिससे उसे थोड़ा दर्द भी हुआ। दर्द उसके चेहरे पर नजर आ रहा था पर वासना दर्द पर भारी थी इसीलिए वो बिना दर्द की परवाह करते हुए मेरे लंड पर चुत को दबाती चली गई और फिर मेरा लगभग आठ इंच का लंड जड़ तक उसकी चुत में समा गया।
पूरा लंड अपनी चुत में लेने के बाद गुड्डो थोड़ा रुकी और मेरे ऊपर झुक गई। उसकी बड़ी बड़ी चुचियाँ मेरी आँखों के सामने थी जिन्हें मैंने बिना देर किया अपनी हाथों में दबोच लिया और मसलने लगा। गुड्डो ने भी झुक कर अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। गुड्डो की चुत शादी के चार साल बाद भी बहुत टाइट थी। मुझे मेरा लंड किसी शिकंजे में जकड़ा महसूस हो रहा था।
“राज… कितना मोटा लंड है तेरा… मेरी चुत तो पूरा भर गई तेरे लंड से… कितना कड़क है तेरा यार… ऐसा लग रहा है जैसे कीला ठोक दिया हो चुत में किसी ने…”
अपने लंड की तारीफ़ सुन मैं फूला नहीं समा रहा था। मैंने मस्ती के मारे अपनी गांड उछाल कर गुड्डो को आगे बढ़ने के लिए कहा तो वो भी मेरा इशारा समझते हुए मेरे लंड पर ऊपर नीचे होते हुए मेरे लंड को अन्दर बाहर करने लगी। गुड्डो को थोड़ा दर्द महसूस हो रहा था तो इसी वजह से वो थोड़ा धीरे धीरे लंड पर ऊपर नीचे हो रही थी पर मेरा मन जोर जोर से चुदाई करने का हो रहा था।
जब मुझ से नहीं रहा गया तो मैंने पलटी मारी और गुड्डो को अपने नीचे कर लिया और लंड को अन्दर बाहर कर गुड्डो की कड़क चुत को चोद कर मजे लेने लगा।
मैंने दो चार धक्के ही धीरे धीरे मारे पर फिर मैं अपनी गति बढ़ाता चला गया और जोर जोर से धक्के मार गुड्डो की चुत की बैंड बजाने लगा। दर्द से गुड्डो की आहें निकल रही थी। हर धक्के के साथ वो कराह उठती थी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ पर मेरा ध्यान अब सिर्फ चुदाई पर था और मैं बिना रुके धक्के पर धक्के लगा रहा था।
कुछ देर बाद गुड्डो की चुत ने भी पानी छोड़ दिया और लंड ने भी चुत में अपनी जगह बना ली थी। अब लंड आराम से चुत की गहराई तक जा रहा था। अब तो गुड्डो भी हर धक्के के साथ अपनी गांड उठा उठा कर मेरे हर धक्के का जवाब देने लगी थी। हम दोनों में से अब कोई भी बोल नहीं रहा था, बस मस्ती भरी आहें और सिसकारियाँ ही कमरे में गूंज रही थी। या फिर लंड चुत के मिलन से होने वाली थप थप और चुदाई की मस्ती भरी धुन फच फच ही सुनाई दे रही थी।
कुछ देर लंड चूसने के बाद गुड्डो ने मेरा लंड मुँह से निकाला और अपनी पेंटी उतार मेरे ऊपर आ गई और अपनी चुत मेरे मुँह पर रख दी और बोली- कब से लंड चुसवा रहा है… अब चाट मेरी चुत… खा जा मेरी चुत को!
मैं भी किसी आज्ञाकारी शिष्य की तरह उसकी चिकनी चुत को चाटने लगा और बीच बीच में अपने होंठों और दाँतों से काटने लगा।
वो अब मस्त हो चिल्ला रही थी- चाट… बहनचोद… चाट… चाट मेरी चुत… बहुत तड़पाया है तूने भी आज पूरा बदला लूँगी… बूंद बूंद निचोड़ लूँगी तेरे लंड की… तू भी खाली कर दे मेरी चुत… पानी निकाल निकाल के!
और फिर उसका बदन थोड़ा अकड़ा और झर से मेरे मुँह के ऊपर ही झड़ गई। उसकी चुत का स्वादिष्ट नमकीन पानी मेरी जीभ से होता हुआ मेरे गले में उतर गया कुछ मेरे मुँह पर टपक गया।
झड़ने के बाद वो थोड़ा सुस्त सी हुई और उसने नीचे होकर मेरे मुँह पर लगे उसकी चुत से निकलने वाले कामरस को चाटना शुरू किया और पूरा मुँह साफ़ करने के बाद उसने फिर से मेरे लंड को पकड़ लिया। लंड पहले से ही अकड़ कर लोहे की छड़ सा तना हुआ था।
थोड़ा मसलने के बाद उसने मेरे लंड को फिर से मुँह में भर लिया और चाटने लगी। मेरा लंड अकड़ने की वजह से दुखने लगा था। मैंने उसके मुँह से लंड बाहर निकाला तो वो पहले तो बच्चों की तरह इठलाई और फिर बिना देर किये मेरे ऊपर आ गई और लंड को अपनी चुत पर सेट करके उसके ऊपर बैठती चली गई और मेरा लंड भी उसकी चुत को भेदता हुआ गहराई में उतरने लगा।
मेरा लंड क्यूंकि महेश के लंड से मोटा था तो उसकी चुत थोड़ा फ़ैल गई जिससे उसे थोड़ा दर्द भी हुआ। दर्द उसके चेहरे पर नजर आ रहा था पर वासना दर्द पर भारी थी इसीलिए वो बिना दर्द की परवाह करते हुए मेरे लंड पर चुत को दबाती चली गई और फिर मेरा लगभग आठ इंच का लंड जड़ तक उसकी चुत में समा गया।
पूरा लंड अपनी चुत में लेने के बाद गुड्डो थोड़ा रुकी और मेरे ऊपर झुक गई। उसकी बड़ी बड़ी चुचियाँ मेरी आँखों के सामने थी जिन्हें मैंने बिना देर किया अपनी हाथों में दबोच लिया और मसलने लगा। गुड्डो ने भी झुक कर अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए। गुड्डो की चुत शादी के चार साल बाद भी बहुत टाइट थी। मुझे मेरा लंड किसी शिकंजे में जकड़ा महसूस हो रहा था।
“राज… कितना मोटा लंड है तेरा… मेरी चुत तो पूरा भर गई तेरे लंड से… कितना कड़क है तेरा यार… ऐसा लग रहा है जैसे कीला ठोक दिया हो चुत में किसी ने…”
अपने लंड की तारीफ़ सुन मैं फूला नहीं समा रहा था। मैंने मस्ती के मारे अपनी गांड उछाल कर गुड्डो को आगे बढ़ने के लिए कहा तो वो भी मेरा इशारा समझते हुए मेरे लंड पर ऊपर नीचे होते हुए मेरे लंड को अन्दर बाहर करने लगी। गुड्डो को थोड़ा दर्द महसूस हो रहा था तो इसी वजह से वो थोड़ा धीरे धीरे लंड पर ऊपर नीचे हो रही थी पर मेरा मन जोर जोर से चुदाई करने का हो रहा था।
जब मुझ से नहीं रहा गया तो मैंने पलटी मारी और गुड्डो को अपने नीचे कर लिया और लंड को अन्दर बाहर कर गुड्डो की कड़क चुत को चोद कर मजे लेने लगा।
मैंने दो चार धक्के ही धीरे धीरे मारे पर फिर मैं अपनी गति बढ़ाता चला गया और जोर जोर से धक्के मार गुड्डो की चुत की बैंड बजाने लगा। दर्द से गुड्डो की आहें निकल रही थी। हर धक्के के साथ वो कराह उठती थी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ पर मेरा ध्यान अब सिर्फ चुदाई पर था और मैं बिना रुके धक्के पर धक्के लगा रहा था।
कुछ देर बाद गुड्डो की चुत ने भी पानी छोड़ दिया और लंड ने भी चुत में अपनी जगह बना ली थी। अब लंड आराम से चुत की गहराई तक जा रहा था। अब तो गुड्डो भी हर धक्के के साथ अपनी गांड उठा उठा कर मेरे हर धक्के का जवाब देने लगी थी। हम दोनों में से अब कोई भी बोल नहीं रहा था, बस मस्ती भरी आहें और सिसकारियाँ ही कमरे में गूंज रही थी। या फिर लंड चुत के मिलन से होने वाली थप थप और चुदाई की मस्ती भरी धुन फच फच ही सुनाई दे रही थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.