14-06-2022, 06:06 PM
शुरू में मुझे कारण पता नहीं लगा पर बाद में पता लगा कि शादी के चार साल बाद भी वो माँ नहीं बन पाई थी तो उसकी सास और ननद अक्सर उसके साथ झगड़ा करती रहती थी. और पति भी उसका साथ देने की बजाये अपनी माँ और बहन की ही तरफदारी करता था; जिससे झगड़ा बढ़ जाता और वो रूठ कर अपने मायके आ जाती।
गुड्डो के बारे में क्या लिखूँ। गोरा रंग, भरा शरीर, मस्त उठी हुई चुचियाँ और मस्त गोलाई वाली गांड। चेहरे की खूबसूरती ऐसी कि देखने वाला देखता रह जाए। जब मैंने गुड्डो को पहली बार देखा तो मेरा दिल भी कुछ ऐसे धड़का की एक बार में ही उसका हो गया। कुछ तो मेरी उम्र ऐसी और ऊपर से उसकी खूबसूरती।
मैं घर में नया था तो अभी थोड़ा कम ही बोलता था। पर गुड्डो ने तो जैसे चुप रहना सीखा ही नहीं था, बहुत बातें करती थी और शायद यही कारण था कि हम दोनों रिश्ते नातों की दुनिया से अलग दोस्ती की दुनिया में पहुँच गए। अब वो मेरी दोस्त बन गई थी। बुआ की ननद थी तो मैंने उसको भी बुआ कहा तो भड़क गई और साफ़ बोली कि सबकी तरह मैं भी उसे गुड्डो ही कहूँ।
समय बीता और लगभग दस दिन ऐसे ही बीत गए। गुड्डो की ससुराल वाले उसको लेने आये भी पर वो उनके साथ नहीं गई। दस दिन बाद गुड्डो का पति महेश उसको लेने आया तो उन दोनों के बीच बहुत झगड़ा हुआ। मैं उन दोनों को शांत करने की नाकाम कोशिश करता रहा।
तभी गुड्डो के कुछ शब्द मेरे कानों में पड़े ‘महेश… तुम रात को कुछ कर तो पाते नहीं हो; फिर तुम्हारी माँ के लिए बच्चा क्या मैं पड़ोसियों से चुदवा कर पैदा करूँ? इतनी हिम्मत तुम में नहीं है कि अपना इलाज करवा लो। चार साल मैंने कैसे काटे है ये तुम भी अच्छी तरह जानते हो।’
उसके बाद बातें तो बहुत हुई पर मेरी सुई तो वहीं पर अटक गई थी। स्पष्ट था कि महेश गुड्डो को संतुष्ट नहीं कर पाता था और सही मायने में झगड़े की यही वजह थी।
जब महेश जाने लगा तो मैं भी उसके साथ चल पड़ा। वो बेचारा बहुत परेशान हो रहा था। रास्ते में मैंने उसको अपना इलाज करवा लेने की सलाह दी तो वो उसने मुझे घूर कर देखा पर कोई जवाब नहीं दिया।
वापिस आया तो गुड्डो ने अपने आप को कमरे में बंद कर लिया था और रोये जा रही थी। बुआ ने कमरा खुलवाने की बहुत कोशिश की पर वो दरवाजा खोल ही नहीं रही थी। बुआ थक हार कर रसोई में चली गई।
तब मैंने गुड्डो का दरवाजा खटखटाया। पहले तो उसने दरवाजा नहीं खोला पर जब मैंने कहा कि दोस्त के लिए भी दरवाजा नहीं खोलोगी तो उसने झट से दरवाजा खोल दिया। मैं जैसे ही अन्दर गया गुड्डो मेरे गले से लिपट गई और जोर जोर से रोने लगी। सब इतना जल्दी हुआ कि मैं कुछ समझ ही नहीं पाया। कब मेरे हाथ गुड्डो की कमर से लिपट गए, पता ही नहीं चला।
जैसे तैसे मैंने उसको चुप करवाया। चुप होने के बाद जैसे उसे होश आया और वो एकदम से मुझ से अलग हो गई। मैं भी बिना कुछ बोले रसोई में गया और उसके लिए पानी का गिलास लेकर आया।
उसने थोड़ा पीया और उठ कर बाथरूम में चली गई। कुछ देर बाद मुँह हाथ धो कर वो आई और मेरे पास ही बैठ गई।
मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि क्या बात करूँ। क्योंकि हम दोनों पास पास बैठे थे तो अचानक ही उसने अपना सिर मेरे कंधे पर रख दिया। मुझे थोड़ा डर था कि अगर बुआ कमरे में आ गई तो पता नहीं क्या सोचेंगी। बस इसी डर में मैं बहाना बना कर वहाँ से उठ कर अपने कमरे में चला गया।
गुड्डो के बारे में क्या लिखूँ। गोरा रंग, भरा शरीर, मस्त उठी हुई चुचियाँ और मस्त गोलाई वाली गांड। चेहरे की खूबसूरती ऐसी कि देखने वाला देखता रह जाए। जब मैंने गुड्डो को पहली बार देखा तो मेरा दिल भी कुछ ऐसे धड़का की एक बार में ही उसका हो गया। कुछ तो मेरी उम्र ऐसी और ऊपर से उसकी खूबसूरती।
मैं घर में नया था तो अभी थोड़ा कम ही बोलता था। पर गुड्डो ने तो जैसे चुप रहना सीखा ही नहीं था, बहुत बातें करती थी और शायद यही कारण था कि हम दोनों रिश्ते नातों की दुनिया से अलग दोस्ती की दुनिया में पहुँच गए। अब वो मेरी दोस्त बन गई थी। बुआ की ननद थी तो मैंने उसको भी बुआ कहा तो भड़क गई और साफ़ बोली कि सबकी तरह मैं भी उसे गुड्डो ही कहूँ।
समय बीता और लगभग दस दिन ऐसे ही बीत गए। गुड्डो की ससुराल वाले उसको लेने आये भी पर वो उनके साथ नहीं गई। दस दिन बाद गुड्डो का पति महेश उसको लेने आया तो उन दोनों के बीच बहुत झगड़ा हुआ। मैं उन दोनों को शांत करने की नाकाम कोशिश करता रहा।
तभी गुड्डो के कुछ शब्द मेरे कानों में पड़े ‘महेश… तुम रात को कुछ कर तो पाते नहीं हो; फिर तुम्हारी माँ के लिए बच्चा क्या मैं पड़ोसियों से चुदवा कर पैदा करूँ? इतनी हिम्मत तुम में नहीं है कि अपना इलाज करवा लो। चार साल मैंने कैसे काटे है ये तुम भी अच्छी तरह जानते हो।’
उसके बाद बातें तो बहुत हुई पर मेरी सुई तो वहीं पर अटक गई थी। स्पष्ट था कि महेश गुड्डो को संतुष्ट नहीं कर पाता था और सही मायने में झगड़े की यही वजह थी।
जब महेश जाने लगा तो मैं भी उसके साथ चल पड़ा। वो बेचारा बहुत परेशान हो रहा था। रास्ते में मैंने उसको अपना इलाज करवा लेने की सलाह दी तो वो उसने मुझे घूर कर देखा पर कोई जवाब नहीं दिया।
वापिस आया तो गुड्डो ने अपने आप को कमरे में बंद कर लिया था और रोये जा रही थी। बुआ ने कमरा खुलवाने की बहुत कोशिश की पर वो दरवाजा खोल ही नहीं रही थी। बुआ थक हार कर रसोई में चली गई।
तब मैंने गुड्डो का दरवाजा खटखटाया। पहले तो उसने दरवाजा नहीं खोला पर जब मैंने कहा कि दोस्त के लिए भी दरवाजा नहीं खोलोगी तो उसने झट से दरवाजा खोल दिया। मैं जैसे ही अन्दर गया गुड्डो मेरे गले से लिपट गई और जोर जोर से रोने लगी। सब इतना जल्दी हुआ कि मैं कुछ समझ ही नहीं पाया। कब मेरे हाथ गुड्डो की कमर से लिपट गए, पता ही नहीं चला।
जैसे तैसे मैंने उसको चुप करवाया। चुप होने के बाद जैसे उसे होश आया और वो एकदम से मुझ से अलग हो गई। मैं भी बिना कुछ बोले रसोई में गया और उसके लिए पानी का गिलास लेकर आया।
उसने थोड़ा पीया और उठ कर बाथरूम में चली गई। कुछ देर बाद मुँह हाथ धो कर वो आई और मेरे पास ही बैठ गई।
मुझे कुछ सूझ ही नहीं रहा था कि क्या बात करूँ। क्योंकि हम दोनों पास पास बैठे थे तो अचानक ही उसने अपना सिर मेरे कंधे पर रख दिया। मुझे थोड़ा डर था कि अगर बुआ कमरे में आ गई तो पता नहीं क्या सोचेंगी। बस इसी डर में मैं बहाना बना कर वहाँ से उठ कर अपने कमरे में चला गया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.