14-06-2022, 06:06 PM
बुआ का घर शहर की एक अच्छी कॉलोनी में था। घर था भी काफी बड़ा। दो मंजिला मकान जो उस समय के हिसाब से कोठी कही जाती थी। कुल मिला कर आलिशान घर कह सकते हैं। फूफा जी का शहर में अच्छा खासा बिज़नस था।
बुआ ने घर पहुँचते ही मेरे घर पर फ़ोन मिला दिया और पिता जी को बता दिया कि अब से मैं उनके साथ ही रहा करूँगा। फ़ोन पर हो रही बातचीत तो नहीं सुन पाया पर बातों से लगा कि शायद पिता जी ने भी इसके लिए पहले मना किया था पर बुआ ने पूरे हक से बोल दिया कि वो चाहे कुछ भी कहें पर अब मैं उनके साथ ही रहूँगा।
मैं उसी दिन हॉस्टल से अपना सामान ले आया और बुआ ने मुझे एक कमरा दे दिया जो मेरे आने से पहले उनके बेटे रोहित का था। रोहित बोर्डिंग कॉलेज में पढ़ रहा था जिस वजह से वो कमरा खाली था। कमरे में सभी सुविधाएँ थी। पढ़ने के लिए अलग मेज, सोने के लिए बढ़िया बेड और कुछ खेल का सामान भी था जो अब मेरा ही था।
अब शुरू हुआ कहानी का दूसरा पहलू मतलब कहानी के टाइटल वाला किस्सा।
मुझे आये एक दिन ही हुआ था कि वो आ गई। वो मतलब गुड्डो, बुआ की ननद।
वैसे तो उसका नाम सुषमा था पर घर में सब उसे गुड्डो के नाम से बुलाते थे। लगभग 26-27 साल की मस्त पटाखा थी गुड्डो। अभी 4 साल पहले ही शादी हुई थी उसकी। पर ससुराल वालों से बनती नहीं थी तो अक्सर आपने मायके यानि बुआ के घर आ जाती थी।
बुआ ने घर पहुँचते ही मेरे घर पर फ़ोन मिला दिया और पिता जी को बता दिया कि अब से मैं उनके साथ ही रहा करूँगा। फ़ोन पर हो रही बातचीत तो नहीं सुन पाया पर बातों से लगा कि शायद पिता जी ने भी इसके लिए पहले मना किया था पर बुआ ने पूरे हक से बोल दिया कि वो चाहे कुछ भी कहें पर अब मैं उनके साथ ही रहूँगा।
मैं उसी दिन हॉस्टल से अपना सामान ले आया और बुआ ने मुझे एक कमरा दे दिया जो मेरे आने से पहले उनके बेटे रोहित का था। रोहित बोर्डिंग कॉलेज में पढ़ रहा था जिस वजह से वो कमरा खाली था। कमरे में सभी सुविधाएँ थी। पढ़ने के लिए अलग मेज, सोने के लिए बढ़िया बेड और कुछ खेल का सामान भी था जो अब मेरा ही था।
अब शुरू हुआ कहानी का दूसरा पहलू मतलब कहानी के टाइटल वाला किस्सा।
मुझे आये एक दिन ही हुआ था कि वो आ गई। वो मतलब गुड्डो, बुआ की ननद।
वैसे तो उसका नाम सुषमा था पर घर में सब उसे गुड्डो के नाम से बुलाते थे। लगभग 26-27 साल की मस्त पटाखा थी गुड्डो। अभी 4 साल पहले ही शादी हुई थी उसकी। पर ससुराल वालों से बनती नहीं थी तो अक्सर आपने मायके यानि बुआ के घर आ जाती थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.