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Adultery कामवासना की तृप्ति
#10
पर- नीचे होती अपनी साँसों को संभालते हुए ज्ञान बोला- अब मुझे चलना चाहिए, कल मिलते हैं।

इससे पहले कि मैं अपनी ऊपर नीचे होती साँसों को संभालकर उठ पाती, ज्ञान दरवाज़े से बाहर निकल चुका था।
मैं उसी मुद्रा में बेसुध सी पड़ी रही और सोचने लगी कि इसी को शायद कहते हैं ‘हाथ तो आया पर मुँह को न लगा।’
लेकिन अब मैं भला कर भी क्या सकती थी।
आग तो भंयकर लग चुकी थी मेरी चूत में! मैं खुद को संभालते हुए उठी और सीधे फ्रिज से एक लंबा मोटा खीरा निकाल वहीं फर्श पर पसर गयी। अपनी साड़ी और पैंटी सरका कर खीरे को चूत में डाल लिया।
चूत मेरी पहले से ही पानी पानी हो रही थी। ठंडा ठंडा खीरा मेरी चूत में सट्ट से अंदर घुस गया। मैं लगभग चिल्लाती हुई खीरे को ज्ञान का लण्ड समझ कर अंदर बाहर करने लगी।
कुछ देर की मशक्कत के बाद मैं अपने चरम पर पहुंच गयी और झड़ने के बाद सोचने लगी कि क्या आज ज्ञान ने भी मेरे नाम की मुठ मारी होगी।
फिर वही सब कुछ नार्मल हुआ। पतिदेव आफिस से आये, डिनर के बाद मेरी 2-3 मिनट चुदाई की और सो गए।
लेकिन मुझे तो बस कल का इंतज़ार था। मुझे ज्ञान की कही तूफान वाली बात और आज का 5 मिनट का ट्रेलर मेरे दिलोदिमाग खासकर मेरी चूत में हिलौरें मार रहे थे।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी  हम अकेले हैं.



thanks
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RE: कामवासना की तृप्ति - by neerathemall - 14-06-2022, 12:02 PM



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