14-06-2022, 11:59 AM
उस रात तो मैं सो न सकी। पतिदेव जी भी देर से आये और खाना खाकर सो गए। मैं अजीब पशोपेश में थी कि किसी अजनबी आदमी से दोस्ती ठीक रहेगी। और बात केवल दोस्ती की तो है नहीं, उससे कहीं ज्यादा की बात है।
मेरी इज़्ज़त, मेरी आबरू, मेरा परिवार, सब कुछ दांव पर होगा।
अगले ही पल मुझे मेरी चूत की भी याद आ गयी। कितने सालों से मेरी चूत की संतुष्टि से चुदाई नहीं हुई। मैं अपने पति के सूखे लण्ड से असंतुष्ट होकर कितना तड़पी हूँ। अपनी भरपूर जवानी में परिवार के लिए, बच्चों के लिए, पति के लिए कितना त्याग-तपस्या की है। क्या मैं अपनी कुछ वर्षों की शेष जवानी भी ऐसे ही गुज़ार दूंगी? अगले ही पल मेरा एक हाथ मेरी चूत पर पहुंचकर रगड़ने और सहलाने की क्रिया करने लगा और मैं अपनी विचारों की दुनिया में गोते लगाने लगी।
अब मेरे दिमाग ने सोचना बंद कर दिया और चूत ने सोचना शुरू कर दिया था।
दो दिन बाद हमने मिलने का प्लान बनाया। मैं हर कदम फूँक फूँक कर रखना चाहती थी इसलिए तय ये हुआ कि स्कूल से छुट्टी के बाद मैं ऑटो नहीं लूंगी बल्कि ज्ञान जी मुझे घर छोड़ देंगे। छुट्टी के बाद मैंने ज्ञान जी को फ़ोन लगाया तो उसने बताया कि वह बस स्टॉप पर खड़ा है।
मैं मन ही मन उत्साहित होकर मानो उड़ते हुए बस स्टॉप तक पहुंची। सामने एक सफेद कार खड़ी थी। मैंने कन्फर्म करने के लिए फ़ोन लगाना चाहा कि तभी ज्ञान जी का मैसेज आया कि सफेद कार में आकर बैठ जायें।
मैं इधर उधर देखते हुए कार में बैठ गयी। ड्राइवर सीट बैठे एक मनमोहक, हैंडसम, जवान, 27-28 वर्ष के युवक ने हाथ मिलाने के लिए अपना दाहिना हाथ मेरे तरफ बढ़ा दिया- हेलो मैम, मैं ज्ञान।
“हेलो ज्ञान जी!” कहते हुए मैंने भी अपना हाथ बढ़ा दिया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.