14-06-2022, 11:55 AM
मेरी उम्र 44 वर्ष भले ही हो परंतु मन अभी भी 24 का ही है। यदि आप लोग मेरे बदन(फिगर) या लुक्स की तुलना करना चाहें तो मैं एक नाम लेना चाहूंगी-विद्या बालन। बस, उनसे थोड़ी सी लंबी होऊँगी।
इस साइट पर लिखी कहानियाँ मैं भी विगत कई वर्षों से पढ़ती आई हूँ। सुबह पतिदेव ही मुझे कॉलेज तक छोड़ते हैं और उसके बाद वो अपने आफिस चले जाते हैं। लेकिन शाम को मेरा लौटना पहले होता है इसलिए मैं ऑटो लेकर वापिस आ जाती हूँ।
अरे मैं तो भूल ही गयी, अपने पतिदेव से तो आपका परिचय ही नहीं करवाया। गोपनीयता की वजह से में उनका उल्लेख ज्यादा तो नहीं कर सकती लेकिन आप ये जान ही सकते हैं कि मेरे पतिदेव भनोट जी सरकारी मुलाजिम हैं। उम्र के 48 बसंत देख चुके, निहायती सभ्य, मिलनसार और अपने काम के प्रति बेहद ईमानदार हैं।
27 वर्ष की अपनी आग उगलती जवानी से आज तक लगातार मेरी चूत की कामाग्नि शान्त करते चले आये हैं। तब से अब तक में बस फर्क ये है कि अब वो जवानी वाली आग उनका लण्ड उगल नहीं पाता लेकिन वो मुझे प्यार बहुत करते हैं और तन मन से मैं भी उन्हें।
हमारे दो बच्चे भी हैं। बड़ी वाली लड़की दिल्ली में पढ़ती है और छोटा लड़का तैयारी के लिए इसी वर्ष कोटा गया है। जब से लड़का कोटा गया है, तब से घर में अकेलापन सा महसूस होने लगा। मुझे थोड़ी स्वतंत्रता भी मिल गयी कि मैं वर्षों से दबी इच्छाओं को बाहर आने दूँ।
इस साइट पर लिखी कहानियाँ मैं भी विगत कई वर्षों से पढ़ती आई हूँ। सुबह पतिदेव ही मुझे कॉलेज तक छोड़ते हैं और उसके बाद वो अपने आफिस चले जाते हैं। लेकिन शाम को मेरा लौटना पहले होता है इसलिए मैं ऑटो लेकर वापिस आ जाती हूँ।
अरे मैं तो भूल ही गयी, अपने पतिदेव से तो आपका परिचय ही नहीं करवाया। गोपनीयता की वजह से में उनका उल्लेख ज्यादा तो नहीं कर सकती लेकिन आप ये जान ही सकते हैं कि मेरे पतिदेव भनोट जी सरकारी मुलाजिम हैं। उम्र के 48 बसंत देख चुके, निहायती सभ्य, मिलनसार और अपने काम के प्रति बेहद ईमानदार हैं।
27 वर्ष की अपनी आग उगलती जवानी से आज तक लगातार मेरी चूत की कामाग्नि शान्त करते चले आये हैं। तब से अब तक में बस फर्क ये है कि अब वो जवानी वाली आग उनका लण्ड उगल नहीं पाता लेकिन वो मुझे प्यार बहुत करते हैं और तन मन से मैं भी उन्हें।
हमारे दो बच्चे भी हैं। बड़ी वाली लड़की दिल्ली में पढ़ती है और छोटा लड़का तैयारी के लिए इसी वर्ष कोटा गया है। जब से लड़का कोटा गया है, तब से घर में अकेलापन सा महसूस होने लगा। मुझे थोड़ी स्वतंत्रता भी मिल गयी कि मैं वर्षों से दबी इच्छाओं को बाहर आने दूँ।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.