14-06-2022, 11:30 AM
मैं अब बहुत ही असमंजस में थी कि क्या करूं.
मेरे सामने कोई चारा नहीं था तो मैंने निश्चय किया कि बाथरूम से भाग कर निकलूंगी.
यह सोचकर मैंने सावधानी से दरवाजा खोलकर इधर उधर देखा और जल्दी से भागने की कोशिश की कि जल्दी से अपने बेडरूम में पहुंच जाऊं.
पर मेरी फूटी किस्मत कि हड़बड़ी में मेरा पैर फिसल गया और मैं वहीं बैठक के सामने गिर पड़ी.
इसे कहते हैं अनहोनी, कहां मैं मनीष के सामने जाना नहीं चाहती थी और अब वहीं उसके सामने जमीन पर नंगी पड़ी थी.
मेरी तौलिया भी मेरे जिस्म से अलग हो गई थी.
मनीष भी भागकर मेरे पास आ गया और पूछने लगा- अरे जीजी, कहीं लगी तो नहीं?
वो मुझे आंखें फाड़ कर देख रहा था.
मैं शर्म के कारण जमीन में धंसी जा रही थी क्योंकि मेरा नंगा जिस्म मनीष के सामने था.
मैंने जल्दी से टॉवल उठा कर अपने ऊपर डाल लिया.
लेकिन टॉवल से सिर्फ मेरे मम्मों और मेरी चूत के ऊपर का थोड़ा सा हिस्सा ही ढका हुआ था.
गिरने की वजह से मेरी कमर में धमक लग गयी थी.
मैं दोहरी मार से मरी जा रही थी.
मैंने उठने की कोशिश की लेकिन मेरी कमर मेरा साथ नहीं दे रही थी.
फिर मैंने याचना भरी नजरों से मनीष की तरफ देखा तो उसने मेरी स्थिति देखकर मुझे सहारा देकर उठाया.
इससे मैं एक बार से फिर नंगी हो गयी.
मनीष ने ही नीचे से टॉवल उठाकर मुझे लपेट दी. उसके हाथों ने जब मुझे टॉवल पहनाई, तब उसके हाथ कांप रहे थे.
इसका मुझे अहसास मुझे उसकी पैंट के उभार ने बता दिया था.
वो मेरे एकदम सामने बस कुछ इंच की दूरी पर ही था जिससे मैं उसकी बढ़ती हुई सांसों की आवाज को सुन सकती थी.
फिर वो मुझे सहारा देते हुए मेरे बेडरूम में लेकर आ गया.
जब वो मुझे पकड़कर बेडरुम में ला रहा था तब उसकी उंगलियां मेरे मम्मों के ऊपरी हिस्से को टच कर रही थीं.
मेरे सामने कोई चारा नहीं था तो मैंने निश्चय किया कि बाथरूम से भाग कर निकलूंगी.
यह सोचकर मैंने सावधानी से दरवाजा खोलकर इधर उधर देखा और जल्दी से भागने की कोशिश की कि जल्दी से अपने बेडरूम में पहुंच जाऊं.
पर मेरी फूटी किस्मत कि हड़बड़ी में मेरा पैर फिसल गया और मैं वहीं बैठक के सामने गिर पड़ी.
इसे कहते हैं अनहोनी, कहां मैं मनीष के सामने जाना नहीं चाहती थी और अब वहीं उसके सामने जमीन पर नंगी पड़ी थी.
मेरी तौलिया भी मेरे जिस्म से अलग हो गई थी.
मनीष भी भागकर मेरे पास आ गया और पूछने लगा- अरे जीजी, कहीं लगी तो नहीं?
वो मुझे आंखें फाड़ कर देख रहा था.
मैं शर्म के कारण जमीन में धंसी जा रही थी क्योंकि मेरा नंगा जिस्म मनीष के सामने था.
मैंने जल्दी से टॉवल उठा कर अपने ऊपर डाल लिया.
लेकिन टॉवल से सिर्फ मेरे मम्मों और मेरी चूत के ऊपर का थोड़ा सा हिस्सा ही ढका हुआ था.
गिरने की वजह से मेरी कमर में धमक लग गयी थी.
मैं दोहरी मार से मरी जा रही थी.
मैंने उठने की कोशिश की लेकिन मेरी कमर मेरा साथ नहीं दे रही थी.
फिर मैंने याचना भरी नजरों से मनीष की तरफ देखा तो उसने मेरी स्थिति देखकर मुझे सहारा देकर उठाया.
इससे मैं एक बार से फिर नंगी हो गयी.
मनीष ने ही नीचे से टॉवल उठाकर मुझे लपेट दी. उसके हाथों ने जब मुझे टॉवल पहनाई, तब उसके हाथ कांप रहे थे.
इसका मुझे अहसास मुझे उसकी पैंट के उभार ने बता दिया था.
वो मेरे एकदम सामने बस कुछ इंच की दूरी पर ही था जिससे मैं उसकी बढ़ती हुई सांसों की आवाज को सुन सकती थी.
फिर वो मुझे सहारा देते हुए मेरे बेडरूम में लेकर आ गया.
जब वो मुझे पकड़कर बेडरुम में ला रहा था तब उसकी उंगलियां मेरे मम्मों के ऊपरी हिस्से को टच कर रही थीं.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.