14-06-2022, 01:32 AM
(This post was last modified: 14-06-2022, 02:14 AM by raj4bestfun. Edited 2 times in total. Edited 2 times in total.)
यह कहानी है मेरठ शहर की। जैसा की आप सभी जानते हैं की किसी भी शहर में बैचलर लड़के के लिए अच्छा मकान मिलना कितना मुश्किल होता हैं ठीक ऐसा ही मेरे साथ हुआ।
अच्छे मकान की तलाश में मोहल्ले के एक दुकानदार से मेरी बात होने लगी। वों जनरल स्टोर का दुकान चलाता था और अपने रोज की जरूरत और खाने पीने का सामान उसके दुकान से लेने लगा। दुकानदार का नाम रमेश था जो निहायती ही आलसी और लालची किस्म का इंसान था। एक दिन शाम में ऑफिस से लौटते वक्त दुकान पर मैंने दो लड़कियों को देखा जो मानो दो बहने हो और मकान मालिक की रिश्तेदार। मैंने उसदिन उन दोनों को ताड़ने के लिए दुकान से ज्यादा सामान लिया। दोनों ने एकदम कमर से कसी हुई जीन्स और टॉप पहना हुआ था। दोनों के बड़े बड़े बूब्स ऐसे दिख रहें थे की मन कर रहा था दबोच लू लेकिन खुद को किसी तरह काबू में किया। अपने कमरे पर आकर उन दोनों के नाम से बाथरूम में जमकर मेहनत की।
अगले दिन फिर शाम में लौटते वक्त देखा वों लालची दुकानदार खाली बैठा है। मौके का फायदा उठाते हुए मैं वहाँ बैठ गया और उससे इधर उधर की बाते करने लगा। बातें करते करते उस चूतिये से मैंने यह पता कर लिया की वों दोनों दुकानदार की बीबी और बेटी है। यह देखकर मैं चौंक गया। साथ में यह भी जान गया की दुकानदार का एक बेटा और भी है जो छोटा है। साथ ही वों अपने घर की पहली मंजिल पर उसने किरायेदार रखा हुआ है जिससे उसकी बीबी की नहीं बनती हैं। अब मेरे दिमाग में यह क्लियर हो चुका था कि इस दुकानदार के घर का ही किरायेदार बनना है और कैसे बनूं किरायेदार मैं इसका प्लान बनाने लगा।
अब मैं रोज शाम में ऑफिस से लौटते वक्त उसके दुकान में बैठ जाता, उससे इधर उधर की बातें करता और फिर सामान ले जाता। मैंने उसके दुकान से सामान ले जाना बढ़ा दिया जिससे वों भी मुझे डेली ढूंढता। इसी तरह बात करते करते मैंने उससे कह दिया की मैं एक ढंग का मकान ढूंढ रहा हूँ। बैचलर होने की वजह से ढंग का मकान नहीं मिल रहा नहीं तो मैं थोड़ा ज्यादा किराया दें दूँ। उस लालची दुकानदार के मन में लड्डू फूटने लगे और मैं समझ गया की निशाना सही जगह लगा है। दो दिन बाद वों लालची दुकानदार मुझसे कहता है कि तुम कहो तो मैं अपने किरायेदार को ऊपर का फ्लैट खाली करने को कह देता हूँ और तुम रह लो। मैंने भी कहाँ तुम देख लो, मैं तैयार हूँ। किराए जो उसको मिल रहा था उससे मैंने दो हजार बढ़ा के देने को राजी हो गया। जैसा मैंने बताया उसको मुझमे पैसे का लालच था और मुझे उसके बीबी और बेटी का।
अब मैं उनके घर पुराने किरायदार के खाली करते ही शिफ्ट हो गया। ऊपर पहली मंज़िल पर 2bhk फ्लैट जैसा बना रखा था और नीचे दुकान और उसके पीछे 3bhk मकान था जिसमे दुकानदार अपने परिवार के साथ रहता था।
शुरुआत में मैं खुद को शांत और अच्छे इंसान के रूप में प्रस्तुत करना प्रारम्भ किया ताकि सबको समझ सकूँ।
दुकानदार के परिवार में उसकी बीबी थी जिसका नाम मंजू (काल्पनिक नाम) था जो की काफी सुन्दर और सेक्सी थी। उसकी उम्र 38 थी लेकिन पूरा बदन कसा हुआ था और कपड़े इतनी टाइट पहनती की मानो सब कुछ बाहर निकलने को बेताब हो।
दुकानदार रमेश की बेटी का नाम शिल्पी था जो की बला की खूबसूरत थी। पतला बदन और छोटे छोटे कपड़े हर वक्त मेरे होश उड़ाते थे। उसकी उम्र भी लगभग 19 साल थी। मंजू की शादी 18 वर्ष होते ही उसके माँ बाप ने कर दी थी परन्तु उसने अपने शरीर का अच्छे से ख्याल रखा था इसलिए जब वों अपनी बेटी के साथ चलती तो ऐसा लगता दो बहन हो।
उस परिवार का सबसे छोटा सदस्य था रमेश का बेटा मनीष जो की लगभग 12 साल का था और सातवीं में पढ़ता था।
अच्छे मकान की तलाश में मोहल्ले के एक दुकानदार से मेरी बात होने लगी। वों जनरल स्टोर का दुकान चलाता था और अपने रोज की जरूरत और खाने पीने का सामान उसके दुकान से लेने लगा। दुकानदार का नाम रमेश था जो निहायती ही आलसी और लालची किस्म का इंसान था। एक दिन शाम में ऑफिस से लौटते वक्त दुकान पर मैंने दो लड़कियों को देखा जो मानो दो बहने हो और मकान मालिक की रिश्तेदार। मैंने उसदिन उन दोनों को ताड़ने के लिए दुकान से ज्यादा सामान लिया। दोनों ने एकदम कमर से कसी हुई जीन्स और टॉप पहना हुआ था। दोनों के बड़े बड़े बूब्स ऐसे दिख रहें थे की मन कर रहा था दबोच लू लेकिन खुद को किसी तरह काबू में किया। अपने कमरे पर आकर उन दोनों के नाम से बाथरूम में जमकर मेहनत की।
अगले दिन फिर शाम में लौटते वक्त देखा वों लालची दुकानदार खाली बैठा है। मौके का फायदा उठाते हुए मैं वहाँ बैठ गया और उससे इधर उधर की बाते करने लगा। बातें करते करते उस चूतिये से मैंने यह पता कर लिया की वों दोनों दुकानदार की बीबी और बेटी है। यह देखकर मैं चौंक गया। साथ में यह भी जान गया की दुकानदार का एक बेटा और भी है जो छोटा है। साथ ही वों अपने घर की पहली मंजिल पर उसने किरायेदार रखा हुआ है जिससे उसकी बीबी की नहीं बनती हैं। अब मेरे दिमाग में यह क्लियर हो चुका था कि इस दुकानदार के घर का ही किरायेदार बनना है और कैसे बनूं किरायेदार मैं इसका प्लान बनाने लगा।
अब मैं रोज शाम में ऑफिस से लौटते वक्त उसके दुकान में बैठ जाता, उससे इधर उधर की बातें करता और फिर सामान ले जाता। मैंने उसके दुकान से सामान ले जाना बढ़ा दिया जिससे वों भी मुझे डेली ढूंढता। इसी तरह बात करते करते मैंने उससे कह दिया की मैं एक ढंग का मकान ढूंढ रहा हूँ। बैचलर होने की वजह से ढंग का मकान नहीं मिल रहा नहीं तो मैं थोड़ा ज्यादा किराया दें दूँ। उस लालची दुकानदार के मन में लड्डू फूटने लगे और मैं समझ गया की निशाना सही जगह लगा है। दो दिन बाद वों लालची दुकानदार मुझसे कहता है कि तुम कहो तो मैं अपने किरायेदार को ऊपर का फ्लैट खाली करने को कह देता हूँ और तुम रह लो। मैंने भी कहाँ तुम देख लो, मैं तैयार हूँ। किराए जो उसको मिल रहा था उससे मैंने दो हजार बढ़ा के देने को राजी हो गया। जैसा मैंने बताया उसको मुझमे पैसे का लालच था और मुझे उसके बीबी और बेटी का।
अब मैं उनके घर पुराने किरायदार के खाली करते ही शिफ्ट हो गया। ऊपर पहली मंज़िल पर 2bhk फ्लैट जैसा बना रखा था और नीचे दुकान और उसके पीछे 3bhk मकान था जिसमे दुकानदार अपने परिवार के साथ रहता था।
शुरुआत में मैं खुद को शांत और अच्छे इंसान के रूप में प्रस्तुत करना प्रारम्भ किया ताकि सबको समझ सकूँ।
दुकानदार के परिवार में उसकी बीबी थी जिसका नाम मंजू (काल्पनिक नाम) था जो की काफी सुन्दर और सेक्सी थी। उसकी उम्र 38 थी लेकिन पूरा बदन कसा हुआ था और कपड़े इतनी टाइट पहनती की मानो सब कुछ बाहर निकलने को बेताब हो।
दुकानदार रमेश की बेटी का नाम शिल्पी था जो की बला की खूबसूरत थी। पतला बदन और छोटे छोटे कपड़े हर वक्त मेरे होश उड़ाते थे। उसकी उम्र भी लगभग 19 साल थी। मंजू की शादी 18 वर्ष होते ही उसके माँ बाप ने कर दी थी परन्तु उसने अपने शरीर का अच्छे से ख्याल रखा था इसलिए जब वों अपनी बेटी के साथ चलती तो ऐसा लगता दो बहन हो।
उस परिवार का सबसे छोटा सदस्य था रमेश का बेटा मनीष जो की लगभग 12 साल का था और सातवीं में पढ़ता था।