06-06-2022, 05:58 PM
फिर थोड़ा रुककर भाभी को गाउन उतार कर बेड पर सीधे लिटा दिया। उनकी खूबसूरती देखने लायक थी.
मैं उनके ऊपर चढ़कर फिर उन्हें चूमने लगा।
चूमते हुए मैंने नीचे सरकना शुरू किया। माथा गाल, आंखें, होंठ से सीने पे आया उनको दूधघाटी को चूमते मसलते हुए उनकी ब्रा खिसका दी और उनके बेहद ही ख़ूबसूरत बूब्स को चूसने और मसलने लगा।
वो भी मेरा सर अपनी छाती में दबा रही थी।
मैं उनके अंडरआर्म को चूस और चाट रहा था। पसीने की हल्की सी गंध परफ्यूम और साबुन की खुश्बू के साथ मिलकर मुझे पागल किये दे रही थी।
फिर नीचे खिसकते हुए मैंने उनकी पैंटी पर दस्तक दी।
बहुत हद तक पहले ही गीली हो चुकी पैंटी मैं सूंघ रहा था. यह वही पैंटी थी जिसे मैंने कई बार बाथरूम में सूंघा और लंड पे रगड़ा था।
आखिर पैंटी को भाभी के शरीर से जुदा होना पड़ा। इस दौरान मेरा तौलिया जाने कब मेरा साथ छोड़कर फर्श पे पड़ा था. अब हम दोनों एकदम नंगे एक दूसरे के सामने थे.
फिर मैंने भाभी की जांघों को चूमना शुरू किया। वो कसमसाने लगीं.
मैंने धीरे धीरे उनके पैरों को खोलना शुरू किया और मुझे वो दिख ही गया जिसके लिए मैं बेचैन था। एक संकरी से लकीर थी जो जांघें फैलाने पर खुलकर अपना जादू दिखाने पर आमादा थी; हल्का भूरापन लिये भाभी की चूत बहुत ही खूबसूरत लग रही थी।
मैंने बिना देर किए अपना मुंह उनकी चूत पर लगा दिया। तुरंत खुशबूदार साबुन से नहाने और कामरस की मिश्रित सुगन्ध मुझे पागल कर रही थी।
मैंने अपनी जीभ से उन्हें चोदना शुरू किया। वो पागल हुई जा रही थी, मेरा सर दोनों जांघों के बीच में घुसा लेना चाहती थीं। वो अपनी एड़ियां मेरी पीठ पर घिस रहीं थी। मैं जीभ को नुकीला कर के उनकी गांड के छेद से लेकर ऊपर चूत के दाने तक घिस रहा था. बीच में चूत का छेद का स्टॉप पड़ता तो उसमें जीभ थोड़ी लपलपा देता।
ऊपर मेरे दोनों फावड़े जैसे हाथ उनके स्तनों का मर्दन कर रहे थे. उनके निप्पल्स को मैं मटर के दाने जैसा तीन उंगलियों से मसल रहा था। इन सब के सामने भाभी ज्यादा देर न टिक पाई और नमकीन कसैली सी रसधार छोड़ दी जिसे मैं पूरा गटक गया।
उन्होंने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया और मैं वापस उन्हें चूमता हुआ ऊपर की ओर बढ़ने लगा और बगल में लेट गया।
मेरा लंड छत की ओर तना हुआ था। मैंने उसे भाभी के हाथ में पकड़ा दिया। लंड पकड़ के वो मुझसे चिपक गई। फिर वो बेड के किनारे पैर नीचे करके बैठी और मैं अपना लंड उनके मुख के पास लेकर खड़ा था.
वो मेरा इशारा समझ गई पर उन्होंने नाक सिकोड़ कर मुँह में न लेने का इशारा किया।
मैंने जबरजस्ती नहीं की।
जो कामक्रिया स्वेच्छा से हो वही करनी चाहिए।
मैं फिर फर्श पर बैठ गया और उन्हें बेतरतीबी से सभी जगह चूमने लगा। हम दोनों का शरीर अब लंड और चूत का मिलन माँग रहे थे।
देर न करते हुए मैंने उनके पैर फैलाये और लंडराज को उनकी गुफा के मुहाने पर रख दिया। मध्यम ताकत के धक्के से मेरा लंड आधा उनकी चूत में घुस गया.
भाभी जान के मुख से प्यारी सी सिसकारी निकली ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’
भैया दो महीने के लिए जाने से पहले उनकी अच्छी मरम्मत करके गए थे शायद।
एक और झटके के साथ मैंने पूरा लंड अंदर उतार दिया। फिर धकमपेल चुदाई का सिलसिला शुरू हुआ।
पता नहीं कितनी देर बाद हम दोनों देवर भाभी फ़ारिग़ होने को हुए। आंखें खोल कर एक दूसरे से इशारों में तय हुआ कि मैं उनके अंदर ही झड़ जाऊं।
कुछ धक्कों के बाद मैं झड़ने लगा, वो भी साथ ही आ गई ,फिर से एक दूसरे से को अपने अंदर समा लेने की कोशिश शुरू हुई। पता नहीं कितनी देर हम एक दूसरे में लिपटे पड़े रहे।
नज़र पड़ी तो घड़ी साढ़े दस बजा रही थी।
भाभी बोली- खाना बना लेती हूँ.
लेकिन मैंने बाहर ऑर्डर करके समय बचाने का सुझाव दिया।
वो मान गई।
मैंने ऑनलाइन ऑर्डर कर दिया और हम फिर प्यार करने में जुट गए।
थोड़ी देर में खाना आ गया, एक दूसरे को प्यार से खाना खिलाने के बाद फिर सेक्स का दौर शुरू हुआ.
और सच कहूँ दोस्तो … मुझे याद नहीं कि रात कब तक ये दौर चला।
सुबह नींद खुली तो भाभी भी नींद से जागी हुई थी पर बेड पर साथ में लेटी थी।
वो दो दिन शनिवार रविवार थे और हमने छुट्टी का पूरा लुत्फ उठाया। फिर अगले दो महीने तो मेरी बेरोकटोक मज़े थे.
मैं उनके ऊपर चढ़कर फिर उन्हें चूमने लगा।
चूमते हुए मैंने नीचे सरकना शुरू किया। माथा गाल, आंखें, होंठ से सीने पे आया उनको दूधघाटी को चूमते मसलते हुए उनकी ब्रा खिसका दी और उनके बेहद ही ख़ूबसूरत बूब्स को चूसने और मसलने लगा।
वो भी मेरा सर अपनी छाती में दबा रही थी।
मैं उनके अंडरआर्म को चूस और चाट रहा था। पसीने की हल्की सी गंध परफ्यूम और साबुन की खुश्बू के साथ मिलकर मुझे पागल किये दे रही थी।
फिर नीचे खिसकते हुए मैंने उनकी पैंटी पर दस्तक दी।
बहुत हद तक पहले ही गीली हो चुकी पैंटी मैं सूंघ रहा था. यह वही पैंटी थी जिसे मैंने कई बार बाथरूम में सूंघा और लंड पे रगड़ा था।
आखिर पैंटी को भाभी के शरीर से जुदा होना पड़ा। इस दौरान मेरा तौलिया जाने कब मेरा साथ छोड़कर फर्श पे पड़ा था. अब हम दोनों एकदम नंगे एक दूसरे के सामने थे.
फिर मैंने भाभी की जांघों को चूमना शुरू किया। वो कसमसाने लगीं.
मैंने धीरे धीरे उनके पैरों को खोलना शुरू किया और मुझे वो दिख ही गया जिसके लिए मैं बेचैन था। एक संकरी से लकीर थी जो जांघें फैलाने पर खुलकर अपना जादू दिखाने पर आमादा थी; हल्का भूरापन लिये भाभी की चूत बहुत ही खूबसूरत लग रही थी।
मैंने बिना देर किए अपना मुंह उनकी चूत पर लगा दिया। तुरंत खुशबूदार साबुन से नहाने और कामरस की मिश्रित सुगन्ध मुझे पागल कर रही थी।
मैंने अपनी जीभ से उन्हें चोदना शुरू किया। वो पागल हुई जा रही थी, मेरा सर दोनों जांघों के बीच में घुसा लेना चाहती थीं। वो अपनी एड़ियां मेरी पीठ पर घिस रहीं थी। मैं जीभ को नुकीला कर के उनकी गांड के छेद से लेकर ऊपर चूत के दाने तक घिस रहा था. बीच में चूत का छेद का स्टॉप पड़ता तो उसमें जीभ थोड़ी लपलपा देता।
ऊपर मेरे दोनों फावड़े जैसे हाथ उनके स्तनों का मर्दन कर रहे थे. उनके निप्पल्स को मैं मटर के दाने जैसा तीन उंगलियों से मसल रहा था। इन सब के सामने भाभी ज्यादा देर न टिक पाई और नमकीन कसैली सी रसधार छोड़ दी जिसे मैं पूरा गटक गया।
उन्होंने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया और मैं वापस उन्हें चूमता हुआ ऊपर की ओर बढ़ने लगा और बगल में लेट गया।
मेरा लंड छत की ओर तना हुआ था। मैंने उसे भाभी के हाथ में पकड़ा दिया। लंड पकड़ के वो मुझसे चिपक गई। फिर वो बेड के किनारे पैर नीचे करके बैठी और मैं अपना लंड उनके मुख के पास लेकर खड़ा था.
वो मेरा इशारा समझ गई पर उन्होंने नाक सिकोड़ कर मुँह में न लेने का इशारा किया।
मैंने जबरजस्ती नहीं की।
जो कामक्रिया स्वेच्छा से हो वही करनी चाहिए।
मैं फिर फर्श पर बैठ गया और उन्हें बेतरतीबी से सभी जगह चूमने लगा। हम दोनों का शरीर अब लंड और चूत का मिलन माँग रहे थे।
देर न करते हुए मैंने उनके पैर फैलाये और लंडराज को उनकी गुफा के मुहाने पर रख दिया। मध्यम ताकत के धक्के से मेरा लंड आधा उनकी चूत में घुस गया.
भाभी जान के मुख से प्यारी सी सिसकारी निकली ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’
भैया दो महीने के लिए जाने से पहले उनकी अच्छी मरम्मत करके गए थे शायद।
एक और झटके के साथ मैंने पूरा लंड अंदर उतार दिया। फिर धकमपेल चुदाई का सिलसिला शुरू हुआ।
पता नहीं कितनी देर बाद हम दोनों देवर भाभी फ़ारिग़ होने को हुए। आंखें खोल कर एक दूसरे से इशारों में तय हुआ कि मैं उनके अंदर ही झड़ जाऊं।
कुछ धक्कों के बाद मैं झड़ने लगा, वो भी साथ ही आ गई ,फिर से एक दूसरे से को अपने अंदर समा लेने की कोशिश शुरू हुई। पता नहीं कितनी देर हम एक दूसरे में लिपटे पड़े रहे।
नज़र पड़ी तो घड़ी साढ़े दस बजा रही थी।
भाभी बोली- खाना बना लेती हूँ.
लेकिन मैंने बाहर ऑर्डर करके समय बचाने का सुझाव दिया।
वो मान गई।
मैंने ऑनलाइन ऑर्डर कर दिया और हम फिर प्यार करने में जुट गए।
थोड़ी देर में खाना आ गया, एक दूसरे को प्यार से खाना खिलाने के बाद फिर सेक्स का दौर शुरू हुआ.
और सच कहूँ दोस्तो … मुझे याद नहीं कि रात कब तक ये दौर चला।
सुबह नींद खुली तो भाभी भी नींद से जागी हुई थी पर बेड पर साथ में लेटी थी।
वो दो दिन शनिवार रविवार थे और हमने छुट्टी का पूरा लुत्फ उठाया। फिर अगले दो महीने तो मेरी बेरोकटोक मज़े थे.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
