06-06-2022, 05:55 PM
मैंने भाई भाभी के घर आना जाना, बाहर साथ में घूमना फिरना शुरू कर दिया था. मेरा स्वभाव उन सबको बहुत पसंद आता था खासकर भाभी को।
मैं भाभी का बहुत ख्याल रखता था। हम दोनों की पसंद बहुत मिलती थी। धीरे धीरे व्हाट्सएप पे चैट और जोक्स शुरू हो गए। बहुत वाहियात तो नहीं फिर भी थोड़े-थोड़े दोअर्थी मेसेज आना जाना भी शुरू हो गए।
जब भी मैं उनके घर जाता उनके बाथरूम में टंगी उनकी ब्रा पेंटी को जरूर सूंघता, चूमता चाटता और अपने लंड पे रगड़ कर मुठ मारता।
उनकी बेटी थोड़ी बड़ी हो गई तो भाभी ने भी जॉब जॉइन कर लिया।
एक दिन भैया ने बताया कि उन्हें दो महीने के लिए लंदन जाना पड़ेगा। निर्णय यह हुआ कि भाभी जॉब जारी रखेंगी और बेटी को दादा दादी के पास भेज दिया जाएगा।
मेरे मन में लड्डू फूटना शुरू हो गए।
फिर वो दिन भी आ गया जब भाई को मैं ही एयरपोर्ट ड्राप करके आया भाभी साथ में ही थी।
लौट कर भाभी की सोसाइटी के नीचे ड्राप करके लौटने लगा तो वो बोली- एकदम से अकेले मुझे बुरा लग रहा है. आप थोड़ी देर रुक चाय पीकर चले जाना।
मैं मान गया और उनके साथ ऊपर चला गया उनके फ्लैट पर।
मैं भाभी को हंसाने की पूरी कोशिश कर रहा था पर भाभी कुछ उदास थी जो स्वाभाविक भी था।
इस दौरान मैंने भाभी की खूबसूरती को जी भर के निहारा जो उन्हें समझ में आ रहा था। चाय का राउंड हुआ तो मैं आने लगा हालांकि मेरा मन नहीं था आने के और उनका भी मन नहीं था मुझे वापस भेजने का।
फिर वो ही बोली- अब डिनर कर के चले जाना.
मैं थोड़ी न नुकुर करने के बाद मान गया.
पर इतनी देर हम दोनों क्या करते … मैंने सुझाव दिया- चलो मार्किट हो के आते हैं.
वो मान गई।
मैंने अपनी कार उनकी पार्किंग में लगाई और भाई की पल्सर लेकर मार्किट जाने लगे। अब भाई की गाड़ी और बीवी दोनों मेरे पास थे।
मुझे थोड़ा संकोच लग रहा था पर भाभी मेरे पीछे दोनों पैर डाल के बैठ गई। मैं बहुत खुश था। लेना तो कुछ था नहीं … ऐसे ही टाइमपास कर रहे थे हम लोग बाजार में घूमते फिरते।
इतने में बारिश का मौसम हो गया और हम लोगों ने घर लौटना ही ठीक समझा.
पर घर आते आते बारिश शुरू हो गई और हम लोग पूरे भीग गए। लिफ्ट में दाखिल हुए तब मैंने भाभी को देखा उनकी टॉप भीग कर उनके शरीर चिपक गयी थी और उनके जिस्म का एक-एक कटाव उभर के दिख रहा था।
मैं भी अंदर से धधक रहा था जो मेरे पैंट में साफ दिख रहा था और भाभी की नज़रों से छिपा नहीं था।
खैर हम दोनों फ्लैट में दाखिल हुए भाभी मुझे तौलिया देकर झट बाथरूम में घुस गई। इधर मैंने अपने पूरे गीले कपड़े उतार कर तौलिया लपेट लिया।
उतने में भाभी की बाथरूम से आवाज़ आई- भैया ज़रा मेरे कपड़े पकड़ा दो … बालकनी में सूखने डले हैं।
उन्होंने साफ साफ नहीं बोला कि ब्रा पैंटी भी चाहिए, बस ये बोली कि अंदर के कपड़े और गाउन दे दो।
मैं भाभी का बहुत ख्याल रखता था। हम दोनों की पसंद बहुत मिलती थी। धीरे धीरे व्हाट्सएप पे चैट और जोक्स शुरू हो गए। बहुत वाहियात तो नहीं फिर भी थोड़े-थोड़े दोअर्थी मेसेज आना जाना भी शुरू हो गए।
जब भी मैं उनके घर जाता उनके बाथरूम में टंगी उनकी ब्रा पेंटी को जरूर सूंघता, चूमता चाटता और अपने लंड पे रगड़ कर मुठ मारता।
उनकी बेटी थोड़ी बड़ी हो गई तो भाभी ने भी जॉब जॉइन कर लिया।
एक दिन भैया ने बताया कि उन्हें दो महीने के लिए लंदन जाना पड़ेगा। निर्णय यह हुआ कि भाभी जॉब जारी रखेंगी और बेटी को दादा दादी के पास भेज दिया जाएगा।
मेरे मन में लड्डू फूटना शुरू हो गए।
फिर वो दिन भी आ गया जब भाई को मैं ही एयरपोर्ट ड्राप करके आया भाभी साथ में ही थी।
लौट कर भाभी की सोसाइटी के नीचे ड्राप करके लौटने लगा तो वो बोली- एकदम से अकेले मुझे बुरा लग रहा है. आप थोड़ी देर रुक चाय पीकर चले जाना।
मैं मान गया और उनके साथ ऊपर चला गया उनके फ्लैट पर।
मैं भाभी को हंसाने की पूरी कोशिश कर रहा था पर भाभी कुछ उदास थी जो स्वाभाविक भी था।
इस दौरान मैंने भाभी की खूबसूरती को जी भर के निहारा जो उन्हें समझ में आ रहा था। चाय का राउंड हुआ तो मैं आने लगा हालांकि मेरा मन नहीं था आने के और उनका भी मन नहीं था मुझे वापस भेजने का।
फिर वो ही बोली- अब डिनर कर के चले जाना.
मैं थोड़ी न नुकुर करने के बाद मान गया.
पर इतनी देर हम दोनों क्या करते … मैंने सुझाव दिया- चलो मार्किट हो के आते हैं.
वो मान गई।
मैंने अपनी कार उनकी पार्किंग में लगाई और भाई की पल्सर लेकर मार्किट जाने लगे। अब भाई की गाड़ी और बीवी दोनों मेरे पास थे।
मुझे थोड़ा संकोच लग रहा था पर भाभी मेरे पीछे दोनों पैर डाल के बैठ गई। मैं बहुत खुश था। लेना तो कुछ था नहीं … ऐसे ही टाइमपास कर रहे थे हम लोग बाजार में घूमते फिरते।
इतने में बारिश का मौसम हो गया और हम लोगों ने घर लौटना ही ठीक समझा.
पर घर आते आते बारिश शुरू हो गई और हम लोग पूरे भीग गए। लिफ्ट में दाखिल हुए तब मैंने भाभी को देखा उनकी टॉप भीग कर उनके शरीर चिपक गयी थी और उनके जिस्म का एक-एक कटाव उभर के दिख रहा था।
मैं भी अंदर से धधक रहा था जो मेरे पैंट में साफ दिख रहा था और भाभी की नज़रों से छिपा नहीं था।
खैर हम दोनों फ्लैट में दाखिल हुए भाभी मुझे तौलिया देकर झट बाथरूम में घुस गई। इधर मैंने अपने पूरे गीले कपड़े उतार कर तौलिया लपेट लिया।
उतने में भाभी की बाथरूम से आवाज़ आई- भैया ज़रा मेरे कपड़े पकड़ा दो … बालकनी में सूखने डले हैं।
उन्होंने साफ साफ नहीं बोला कि ब्रा पैंटी भी चाहिए, बस ये बोली कि अंदर के कपड़े और गाउन दे दो।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.