06-06-2022, 05:12 PM
मेरा पहला दिन तो आराम करने में ही बीता. सफर की थकान जो निकालनी थी। दूसरे दिन जब सुबह उठा तो जल्दी से नहा-धो कर आस पास के घरों में मिलने जा पहुँचा। कुछ घरों में गांव वालों से मिलने के बाद एक घर मे पहुंचा. वहां एक भैया-भाभी अपने बच्चों के साथ रहते थे।
आंगन में पहुंचने के बाद मैंने भाई को आवाज लगाई तो भाभी ने जवाब दिया- देवर जी अभी घर में कोई नहीं है इस वक्त. मैं यहां हूं गुसलखाने में।
मुझे अंदाजा हो गया कि भाभी वहां कपड़े धो रही थी। गुसलखाने से फट-फट कपड़े जमीन पर लगने की आवाज आ रही थी.
मैंने कहा- भाभी वहीं आ जाऊं क्या मिलने?
“हां जी, आ जाओ.” भाभी ने पलट कर जवाब दिया.
मैं वहां पहुँचा, मैंने भाभी को नमस्ते की तो देखा भाभी दरवाजा खोल कर कपड़े धो रही थी। उनका पल्लू नीचे खिसक गया था औऱ उनकी चूचियों की घाटी साफ दिख रही थी। उनकी बड़ी-बड़ी चूचियाँ अच्छी लग रही थीं। मेरी नजर तो वहां से हट ही नहीं रही थी। भाभी बड़ी मस्त माल लग रही थी।
उनके हाथ कपड़ों पर ऊपर नीचे चलने के कारण उनकी चूचियाँ भी ऊपर नीचे हो रही थी। मेरी नजर तो वहां से हिलने का नाम ही नहीं ले रही थी। भाभी ने मुझे उनकी चूचियाँ घूरते देख लिया।
“देवर जी ध्यान कहाँ है, क्या देख रहे हो”? भाभी ने मेरे मन को टटोलने के इरादे से पूछा.
मैंने कहा- भाभी आज बहुत दिनों बाद नींबू देखे हैं, उन्हें चूसने का दिल कर रहा है।
भाभी मुस्कुराने लगी। भाभी भी मुझ से मजे लेने लगी।
बोली- देवर जी, नींबू का पेड़ भाई साहब का है। उन से पूछ लो और नींबू चूस लो।
मैं- ना जी, हम तो पेड़ से ही पूछेंगे। वो अपने नींबू चुसवायेगी या नहीं।
जब मैं छोटा था तो उन भाभी के घर पर ही रहता था। बहुत बार मैंने उन्हें किस भी किया था और उनके मम्में भी दबाये थे. लेकिन ये सब बहुत पहले की बात थी। आज तो मैं एक लण्ड धारी, चूत का पुजारी बन चुका था।
थोड़ी देर के हँसी मजाक के बाद उनके कपड़े धुल गए।
वो बोली- आपके भाई साहब तो बाजार गए हैं और अभी बच्चे भी कॉलेज चले गए हैं। सभी से बाद में आकर मिल लेना। चलो अब मैं नहाने जा रही हूँ।
मैंने कहा- भाभी मैं नहला दूं क्या? आप भी क्या याद रखोगी, देवर ने नहलाया है।
वो बोली- नहीं, तुम बड़े बेशरम हो गए हो; अभी जाओ यहाँ से।
मैंने कहा- अच्छा चलो तुम नहा लो, फिर बातें करेंगे। अभी सभी लोग व्यस्त हैं, कोई भी घर पर नहीं है। बोर हो जाऊंगा मैं. आप से ही बातें कर लेंगे।
भाभी ने कहा- ठीक है, फिर तुम बैठो. मैं नहाकर आती हूं।
मैं बाथरूम के सामने ही कुर्सी लगा कर बैठ गया।
भाभी- अरे यहां क्यों बैठे हो? बरामदे में बैठो न?
मैंने कहा- भाभी आप नहा लो न। नहलाने तो आप दे नहीं रही हो। तुम्हें नहाते हुए ही देख लूं।
“हट बेशर्म!” भाभी ने झेंपते हुए जवाब दिया।
आंगन में पहुंचने के बाद मैंने भाई को आवाज लगाई तो भाभी ने जवाब दिया- देवर जी अभी घर में कोई नहीं है इस वक्त. मैं यहां हूं गुसलखाने में।
मुझे अंदाजा हो गया कि भाभी वहां कपड़े धो रही थी। गुसलखाने से फट-फट कपड़े जमीन पर लगने की आवाज आ रही थी.
मैंने कहा- भाभी वहीं आ जाऊं क्या मिलने?
“हां जी, आ जाओ.” भाभी ने पलट कर जवाब दिया.
मैं वहां पहुँचा, मैंने भाभी को नमस्ते की तो देखा भाभी दरवाजा खोल कर कपड़े धो रही थी। उनका पल्लू नीचे खिसक गया था औऱ उनकी चूचियों की घाटी साफ दिख रही थी। उनकी बड़ी-बड़ी चूचियाँ अच्छी लग रही थीं। मेरी नजर तो वहां से हट ही नहीं रही थी। भाभी बड़ी मस्त माल लग रही थी।
उनके हाथ कपड़ों पर ऊपर नीचे चलने के कारण उनकी चूचियाँ भी ऊपर नीचे हो रही थी। मेरी नजर तो वहां से हिलने का नाम ही नहीं ले रही थी। भाभी ने मुझे उनकी चूचियाँ घूरते देख लिया।
“देवर जी ध्यान कहाँ है, क्या देख रहे हो”? भाभी ने मेरे मन को टटोलने के इरादे से पूछा.
मैंने कहा- भाभी आज बहुत दिनों बाद नींबू देखे हैं, उन्हें चूसने का दिल कर रहा है।
भाभी मुस्कुराने लगी। भाभी भी मुझ से मजे लेने लगी।
बोली- देवर जी, नींबू का पेड़ भाई साहब का है। उन से पूछ लो और नींबू चूस लो।
मैं- ना जी, हम तो पेड़ से ही पूछेंगे। वो अपने नींबू चुसवायेगी या नहीं।
जब मैं छोटा था तो उन भाभी के घर पर ही रहता था। बहुत बार मैंने उन्हें किस भी किया था और उनके मम्में भी दबाये थे. लेकिन ये सब बहुत पहले की बात थी। आज तो मैं एक लण्ड धारी, चूत का पुजारी बन चुका था।
थोड़ी देर के हँसी मजाक के बाद उनके कपड़े धुल गए।
वो बोली- आपके भाई साहब तो बाजार गए हैं और अभी बच्चे भी कॉलेज चले गए हैं। सभी से बाद में आकर मिल लेना। चलो अब मैं नहाने जा रही हूँ।
मैंने कहा- भाभी मैं नहला दूं क्या? आप भी क्या याद रखोगी, देवर ने नहलाया है।
वो बोली- नहीं, तुम बड़े बेशरम हो गए हो; अभी जाओ यहाँ से।
मैंने कहा- अच्छा चलो तुम नहा लो, फिर बातें करेंगे। अभी सभी लोग व्यस्त हैं, कोई भी घर पर नहीं है। बोर हो जाऊंगा मैं. आप से ही बातें कर लेंगे।
भाभी ने कहा- ठीक है, फिर तुम बैठो. मैं नहाकर आती हूं।
मैं बाथरूम के सामने ही कुर्सी लगा कर बैठ गया।
भाभी- अरे यहां क्यों बैठे हो? बरामदे में बैठो न?
मैंने कहा- भाभी आप नहा लो न। नहलाने तो आप दे नहीं रही हो। तुम्हें नहाते हुए ही देख लूं।
“हट बेशर्म!” भाभी ने झेंपते हुए जवाब दिया।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.