06-06-2022, 04:01 PM
एक दिन की बात है कि ऐसे ही हम लोग टीवी देख रहे थे. कूलर की हवा से उसका टीशर्ट उड़कर ऊपर हो गया. मुझे उसके चूतड़ों पर चढ़ी हुई लाल रंग की चड्डी हल्की सी दिख गयी. उसकी गोरी सी गांड पर वो लाल चड्डी देख कर मैं तो अपने आपे में नहीं रहा. मन कर रहा था उसकी गांड को चाट लूं और उसमें लंड दे दूं.
मेरा लंड बेकाबू हो गया था. मगर हैरानी की बात ये थी कि उसने भी अपनी टीशर्ट को सही नहीं किया. मैं सोच रहा था कि शायद ये भी कहीं चुदने के लिए तैयार तो नहीं है? फिर मैंने सोचा कि नहीं ऐसा नहीं हो सकता है. इतनी पटाखा माल भला मुझसे क्यों चुदेगी?
दीपू को स्कूटी चलानी नहीं आती थी. कई बार जब उसको गांव से बाहर शहर जाना होता था तो वो मुझे ही लेकर जाती थी. एक दिन की बात है कि दीपू के पिताजी कहीं गये हुए थे. उनके रिश्तेदार बहुत थे. आये दिन वो किसी न किसी के यहां गये हुए होते थे.
मुझसे दीपू की मां ने कहा कि दीपू को शहर लेकर चला जाऊं. उसको कुछ जरूरी काम था शहर में. मैं तो वैसे भी ऐसे मौके के लिए तैयार ही रहता था. जब हम घर से निकले तो हवा काफी तेज चल रही थी. स्कूटी के ब्रेक लगाते ही दीपू की चूची मेरी पीठ से सट जाती थी.
रास्ते में जाते हुए दीपू ने बताया कि वो वैक्सिंग करवाने के लिए जा रही है. जब हम लोग शहर से वापस गांव की ओर आ रहे थे तो बीच रास्ते में ही बारिश शुरू हो गयी. बारिश में स्कूटी नहीं चलाई जा सकती थी. मुझे आसपास कोई रुकने की जगह भी नहीं दिख रही थी.
दीपू मुझे कहीं रुकने के लिए कह रही थी. अचानक से मुझे जमींदार के खेत की मोटर का ध्यान आया. वहां पर काफी ऊंची चारदीवारी थी और एक कमरा भी बना हुआ था. हमने वहीं पर जाने के लिए सोचा और दीपू भी मान गयी.
खेत पर जाकर मैंने स्कूटी को पास में ही पार्क किया और हम लोग जल्दी से कमरे में जाकर घुस गये. हम दोनों पूरी तरह से भीग चुके थे.
मुझे बारिश में नहाने का बहुत शौक था. इसलिए मैं खुद को रोक नहीं पाया. मैंने दीपू से अंदर रुकने के लिए कहा.
मैंने अपने सारे कपड़े उतारे और सिर्फ चड्डी में ही बाहर जाकर बारिश में नहाने लगा. फिर मैं मोटर के पास बने उस तालाब में नहाने लगा. मैं पानी में तैर रहा था. दीपू मुझे देख रही थी.
उसने अंदर से आवाज देकर पूछा- तुम्हें तैरना आता है?
मैंने कहा- हां, देखो, तुम्हारे सामने ही तैर रहा हूं.
वो बोली- मेरा मन भी पानी में तैरने को कर रहा है लेकिन डरती हूं.
मैंने कहा- इसमें डरने की क्या बात है? मैं हूं ना तुम्हारे लिये!
पता नहीं जोश जोश में मेरे मुंह से ये बात कैसे निकल गयी. मगर दीपू ने भी इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. अगर मैंने ये बात नहीं कही होती तो शायद ये कहानी भी नहीं होती.
वो बोली- अच्छा ठीक है, लेकिन मैं तुम्हारे सामने कपड़े नहीं उतार सकती, तुम दूसरी ओर मुंह करो.
मैंने उसके कहने पर मुंह घुमा लिया. दो मिनट के बाद वो उस तालाब के अंदर थी. पानी उसकी गर्दन तक आ रहा था. मगर साफ पानी होने की वजह से मुझे दीपू की सफेद ब्रा और नीचे लाल चड्डी साफ दिख रही थी.
दोस्तो, मैंने उसको पहली बार इस रूप में देखा था. मेरा मन ऐसा कर रहा था कि उसको काट कर खा ही लूं. बारिश में भीगता उसका गोरा जिस्म और उसके उभार देख कर मेरा लंड पानी के अंदर ही तंबू बना रहा था.
मेरे लंड में झटके लगना शुरू हो गये थे. उसकी ब्रा के अंदर कैद उसके उभारों की मस्त सी शेप देख कर कोई भी पागल हो सकता था. सच में जमींदारनी बहुत सेक्सी होती हैं. मेरे दोस्तों ने सच ही कहा था कि जमींदारनी को चोदने का मजा ही कुछ और है.
मेरा लंड बेकाबू हो गया था. मगर हैरानी की बात ये थी कि उसने भी अपनी टीशर्ट को सही नहीं किया. मैं सोच रहा था कि शायद ये भी कहीं चुदने के लिए तैयार तो नहीं है? फिर मैंने सोचा कि नहीं ऐसा नहीं हो सकता है. इतनी पटाखा माल भला मुझसे क्यों चुदेगी?
दीपू को स्कूटी चलानी नहीं आती थी. कई बार जब उसको गांव से बाहर शहर जाना होता था तो वो मुझे ही लेकर जाती थी. एक दिन की बात है कि दीपू के पिताजी कहीं गये हुए थे. उनके रिश्तेदार बहुत थे. आये दिन वो किसी न किसी के यहां गये हुए होते थे.
मुझसे दीपू की मां ने कहा कि दीपू को शहर लेकर चला जाऊं. उसको कुछ जरूरी काम था शहर में. मैं तो वैसे भी ऐसे मौके के लिए तैयार ही रहता था. जब हम घर से निकले तो हवा काफी तेज चल रही थी. स्कूटी के ब्रेक लगाते ही दीपू की चूची मेरी पीठ से सट जाती थी.
रास्ते में जाते हुए दीपू ने बताया कि वो वैक्सिंग करवाने के लिए जा रही है. जब हम लोग शहर से वापस गांव की ओर आ रहे थे तो बीच रास्ते में ही बारिश शुरू हो गयी. बारिश में स्कूटी नहीं चलाई जा सकती थी. मुझे आसपास कोई रुकने की जगह भी नहीं दिख रही थी.
दीपू मुझे कहीं रुकने के लिए कह रही थी. अचानक से मुझे जमींदार के खेत की मोटर का ध्यान आया. वहां पर काफी ऊंची चारदीवारी थी और एक कमरा भी बना हुआ था. हमने वहीं पर जाने के लिए सोचा और दीपू भी मान गयी.
खेत पर जाकर मैंने स्कूटी को पास में ही पार्क किया और हम लोग जल्दी से कमरे में जाकर घुस गये. हम दोनों पूरी तरह से भीग चुके थे.
मुझे बारिश में नहाने का बहुत शौक था. इसलिए मैं खुद को रोक नहीं पाया. मैंने दीपू से अंदर रुकने के लिए कहा.
मैंने अपने सारे कपड़े उतारे और सिर्फ चड्डी में ही बाहर जाकर बारिश में नहाने लगा. फिर मैं मोटर के पास बने उस तालाब में नहाने लगा. मैं पानी में तैर रहा था. दीपू मुझे देख रही थी.
उसने अंदर से आवाज देकर पूछा- तुम्हें तैरना आता है?
मैंने कहा- हां, देखो, तुम्हारे सामने ही तैर रहा हूं.
वो बोली- मेरा मन भी पानी में तैरने को कर रहा है लेकिन डरती हूं.
मैंने कहा- इसमें डरने की क्या बात है? मैं हूं ना तुम्हारे लिये!
पता नहीं जोश जोश में मेरे मुंह से ये बात कैसे निकल गयी. मगर दीपू ने भी इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया. अगर मैंने ये बात नहीं कही होती तो शायद ये कहानी भी नहीं होती.
वो बोली- अच्छा ठीक है, लेकिन मैं तुम्हारे सामने कपड़े नहीं उतार सकती, तुम दूसरी ओर मुंह करो.
मैंने उसके कहने पर मुंह घुमा लिया. दो मिनट के बाद वो उस तालाब के अंदर थी. पानी उसकी गर्दन तक आ रहा था. मगर साफ पानी होने की वजह से मुझे दीपू की सफेद ब्रा और नीचे लाल चड्डी साफ दिख रही थी.
दोस्तो, मैंने उसको पहली बार इस रूप में देखा था. मेरा मन ऐसा कर रहा था कि उसको काट कर खा ही लूं. बारिश में भीगता उसका गोरा जिस्म और उसके उभार देख कर मेरा लंड पानी के अंदर ही तंबू बना रहा था.
मेरे लंड में झटके लगना शुरू हो गये थे. उसकी ब्रा के अंदर कैद उसके उभारों की मस्त सी शेप देख कर कोई भी पागल हो सकता था. सच में जमींदारनी बहुत सेक्सी होती हैं. मेरे दोस्तों ने सच ही कहा था कि जमींदारनी को चोदने का मजा ही कुछ और है.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.