06-06-2022, 03:50 PM
बात तब की है जब वो दिल्ली यूनिवर्सिटी से ठंडी की छुट्टियों में घर आती थी, घर में सब लोग उन छुट्टियों में जमा हुए थे. मैं भी कानपुर में पढ़ाई करता हूं तो मैं भी छुट्टियों में घर गया हुआ था। सब मजे में एक दूसरे के साथ मस्ती करते हसी मजाक करते घूमते फिरते। छुट्टियां अच्छी बीत रही थी.
उस ठंड के मौसम में अनुपमा को देख देख कर घर पर मैंने दो तीन बार मुट्ठियां पेल दी थी। बस सोचता ही रहता था कि कैसा इसकी जवानी को पाऊंगा।
पर तभी एक ऐसा दिन आया जिसने मेरी जिंदगी बदल दी।
हुआ यूं कि घर वाले रिश्तेदारी में शादी में जाने वाले थे. सभी का जाना तय हुआ लेकिन तभी हमारी दादी कि तबीयत खराब हुई और कहा गया कि अनुपमा घर पे रहे ताकि दादी को उठाना बैठना, नहलाना करा सके. दादी की उम्र काफी थी और सुनती भी कम थी।
मेरी नजर अनुपमा पे तभी से टिकी थी जब से वो दिल्ली से वापस आई थी. कुछ सोचने के बाद मैं भी दादी की सेवा के बहाने रुक गया और घर वाले चले गए।
उस दिन मैंने सोचा कि आज इस मिठाई को चख कर जरूर रहूंगा.
दादी को दवा देकर सुलाने के बाद हम लोग लैपटॉप पर मूवी देखने बैठे, ठंड थी तो एक ही रजाई में हम दोनों मूवी देख रहे थे।
तभी मैंने बातों ही बातों में उससे उसके कॉलेज लाइफ के बारे में जानना चाहा. वो भी कुछ देर बाद मूवी से ध्यान हटा कर मुझसे अच्छे से बात करने लगी. बातों में पता चला कि उसका वहां एक बॉयफ्रेंड भी है, मुझे उस वक़्त लगा कि गई भैंस पानी में।
पर मैंने सोचा प्रयास करने में क्या हर्ज है मुझे कौन सा प्रेम के पींगें बढ़ानी हैं इसके साथ … बातों बातों में मैंने पूछ लिया- क्या तुम अपने ब्वॉयफरेंड के साथ सब कर चुकी हो?
तब वो चुप हो गई.
मुझे लगा कि मैंने जल्दबाजी कर डाली.
लेकिन उसने जवाब दिया- नहीं, अभी तक कुछ वैसा नहीं किया जैसा तुम सोच रहे हो।
मैं समझ गया कि अब लोहा गर्म हो रहा है, मैं अब माहौल बनाने में लग गया।
तकरीबन बारह बजे इधर उधर की बात करते करते मैंने कहा- चलो चाय बनाते हैं.
उसने हामी भरी और हम रसोई में चले गए.
चाय बनाते वक़्त मैंने उससे कहा- तुम जबसे दिल्ली गई हो, बहुत खूबसूरत हो गई हो.
तो वो हंसने लगी और शुक्रिया कहा.
फिर उसने कहा- तुम भी हैंडसम बन गए हो, कोई मिल गई क्या?
मैंने भी कहा- नहीं मिली तो नहीं … पर लग रहा है जल्दी मिल जाएगी.
शायद इशारों में कहीं बात उसने पकड़ ली थी।
तभी उसने कहा- जब से दिल्ली से आईं हूं, देख रही हूं तुम्हें, मेरे ऊपर से नजर हट नहीं रही तुम्हारी?
चोरी पकड़े जाने पर मैं सकपका गया और कुछ ना बोल पाया.
फिर उसने कहा- अब इतनी बातें हो गई तो बता दो क्या चल रहा है दिमाग में?
उसने मजाकिया लहजे में ही पूछा.
लेकिन मैंने बहुत ही प्यार से कहा- तुम अच्छी लग रही हो मुझे!
और सब सांस में कह डाला कि क्यों मैंने रुकने का फैसला किया।
चाय उबल के गिर गई और उसने मुझे ऐसे देखा की बस जैसे सन्न रह गई हो.
मैंने कहा- चाय उबल गयी.
मुझपे से नजर हटाते हुए उसने चाय उतारी और मंद मंद मुस्कुराने लगी.
मैं समझ गया तीर निशाने पे लगा है।
चाय लेकर हम अंदर कमरे में आए और रजाई में घुस गए. बाहर ठंड भी काफी थी. रजाई के अंदर हमारे पैर टकराने लगे.
उसने पहले कोई हरकत नहीं की पर बाद में वो भी धीरे से अपना पैर मेरे पैर के पास ले आई।
चाय पीकर मैंने उससे कहा- इस ठंड में गर्मी चाय से भला कहाँ मिलेगी?
इशारों में उसने भी कहा- हां, इसकी गर्मी तो पल भर की ही है।
फिर मैंने उसके गले में हाथ डाला और कहा- तो क्या तुम्हें लंबी गर्मी दे दूँ अगर तुम कहो?
मुस्कुराते हुए उसने कहा- अच्छी चीज किसे नहीं पसंद?
बस फिर क्या था … मैंने धीरे से उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और फिर होंठों के बीच ऐसी रगड़न शुरू हुई कि बगल में रखा कप नीचे गिर पड़ा.
उस ठंड के मौसम में अनुपमा को देख देख कर घर पर मैंने दो तीन बार मुट्ठियां पेल दी थी। बस सोचता ही रहता था कि कैसा इसकी जवानी को पाऊंगा।
पर तभी एक ऐसा दिन आया जिसने मेरी जिंदगी बदल दी।
हुआ यूं कि घर वाले रिश्तेदारी में शादी में जाने वाले थे. सभी का जाना तय हुआ लेकिन तभी हमारी दादी कि तबीयत खराब हुई और कहा गया कि अनुपमा घर पे रहे ताकि दादी को उठाना बैठना, नहलाना करा सके. दादी की उम्र काफी थी और सुनती भी कम थी।
मेरी नजर अनुपमा पे तभी से टिकी थी जब से वो दिल्ली से वापस आई थी. कुछ सोचने के बाद मैं भी दादी की सेवा के बहाने रुक गया और घर वाले चले गए।
उस दिन मैंने सोचा कि आज इस मिठाई को चख कर जरूर रहूंगा.
दादी को दवा देकर सुलाने के बाद हम लोग लैपटॉप पर मूवी देखने बैठे, ठंड थी तो एक ही रजाई में हम दोनों मूवी देख रहे थे।
तभी मैंने बातों ही बातों में उससे उसके कॉलेज लाइफ के बारे में जानना चाहा. वो भी कुछ देर बाद मूवी से ध्यान हटा कर मुझसे अच्छे से बात करने लगी. बातों में पता चला कि उसका वहां एक बॉयफ्रेंड भी है, मुझे उस वक़्त लगा कि गई भैंस पानी में।
पर मैंने सोचा प्रयास करने में क्या हर्ज है मुझे कौन सा प्रेम के पींगें बढ़ानी हैं इसके साथ … बातों बातों में मैंने पूछ लिया- क्या तुम अपने ब्वॉयफरेंड के साथ सब कर चुकी हो?
तब वो चुप हो गई.
मुझे लगा कि मैंने जल्दबाजी कर डाली.
लेकिन उसने जवाब दिया- नहीं, अभी तक कुछ वैसा नहीं किया जैसा तुम सोच रहे हो।
मैं समझ गया कि अब लोहा गर्म हो रहा है, मैं अब माहौल बनाने में लग गया।
तकरीबन बारह बजे इधर उधर की बात करते करते मैंने कहा- चलो चाय बनाते हैं.
उसने हामी भरी और हम रसोई में चले गए.
चाय बनाते वक़्त मैंने उससे कहा- तुम जबसे दिल्ली गई हो, बहुत खूबसूरत हो गई हो.
तो वो हंसने लगी और शुक्रिया कहा.
फिर उसने कहा- तुम भी हैंडसम बन गए हो, कोई मिल गई क्या?
मैंने भी कहा- नहीं मिली तो नहीं … पर लग रहा है जल्दी मिल जाएगी.
शायद इशारों में कहीं बात उसने पकड़ ली थी।
तभी उसने कहा- जब से दिल्ली से आईं हूं, देख रही हूं तुम्हें, मेरे ऊपर से नजर हट नहीं रही तुम्हारी?
चोरी पकड़े जाने पर मैं सकपका गया और कुछ ना बोल पाया.
फिर उसने कहा- अब इतनी बातें हो गई तो बता दो क्या चल रहा है दिमाग में?
उसने मजाकिया लहजे में ही पूछा.
लेकिन मैंने बहुत ही प्यार से कहा- तुम अच्छी लग रही हो मुझे!
और सब सांस में कह डाला कि क्यों मैंने रुकने का फैसला किया।
चाय उबल के गिर गई और उसने मुझे ऐसे देखा की बस जैसे सन्न रह गई हो.
मैंने कहा- चाय उबल गयी.
मुझपे से नजर हटाते हुए उसने चाय उतारी और मंद मंद मुस्कुराने लगी.
मैं समझ गया तीर निशाने पे लगा है।
चाय लेकर हम अंदर कमरे में आए और रजाई में घुस गए. बाहर ठंड भी काफी थी. रजाई के अंदर हमारे पैर टकराने लगे.
उसने पहले कोई हरकत नहीं की पर बाद में वो भी धीरे से अपना पैर मेरे पैर के पास ले आई।
चाय पीकर मैंने उससे कहा- इस ठंड में गर्मी चाय से भला कहाँ मिलेगी?
इशारों में उसने भी कहा- हां, इसकी गर्मी तो पल भर की ही है।
फिर मैंने उसके गले में हाथ डाला और कहा- तो क्या तुम्हें लंबी गर्मी दे दूँ अगर तुम कहो?
मुस्कुराते हुए उसने कहा- अच्छी चीज किसे नहीं पसंद?
बस फिर क्या था … मैंने धीरे से उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और फिर होंठों के बीच ऐसी रगड़न शुरू हुई कि बगल में रखा कप नीचे गिर पड़ा.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.