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Misc. Erotica मस्तराम की डायरी के पन्नों से........... ़
#9
एक दोपहर, ओमप्रकाश बागा चुन्नी आत्माराम गोल घेरा बनाकर आपस में बतिया रहे हैं। आंचल इस समय कॉलेज में है। ये लोग बगीचे में किसी बड़े से पीपल के पेड़ की छांव में बैठे हैं।
बागा-“अबे सालों, सब के सब लंड खड़ा करके बैठे हो”
चुन्नी-“ तुम्हारी गांड काहे जल रही है बे”
सभी हंस पड़ते हैं।
ओमप्रकाश-“ गांड तो जलेगी ही ना भाई , इसको मौका जो नहीं मिलता है आंख सेंकने का”
हा हा हा
बागा-“ सालों तुम लोग तो मैडम की गांड में ही घुसे रहते हो और मैं पागलों की तरह मंडी की गलियों की खाक छानता रहता हूं”
ओमप्रकाश-“ सिर्फ गांड में घुसे ही नहीं रहते , उनके मम्मों पर लटके भी रहते हैं”
आत्माराम-“ तुम लोगों को शर्म नहीं आती, मेमसाब के बारे में गंदी बातें करते हुए”
बागा-“ क्यों बे तेरी मौसी लगती है क्या”
हा हा हा
आत्माराम-“ मेरे लिए तो मौसी जैसी ही हैं”
बागा-“ अच्छा! भला कैसे”
आत्माराम-“ देखा नहीं, कितनी फ्रेंडली है मैमसाब अपने साथ”
चुन्नी-“ ई बात तो सही है,मेमसाब हमारे साथ मालिक नौकर की तरह का रिश्ता नहीं रखती। हमसे हमारे बीवी बच्चों की सेहत का पूछती है। हमारे बच्चों की पढ़ाई के बारे में जानकारी लेती रहती हैं। आजकल कौन मालिक अपने नौकर के परिवार के बारे में इतना सोचता है”
ओमप्रकाश- “मेमसाब की आवाज कितनी सुरीली है। जी करता है कि बस उन्हें सुनते ही जाओ”
चुन्नी-“और मेमसाब हैं भी कितनी खुशमिजाज और मजाकिया टाइप की”
आत्माराम-“और नहीं तो क्या बिल्कुल मौसी की तरह अच्छी-अच्छी बातें भी सिखाती हैं कि कैसे हाथ धोना चाहिए, कैसे नहाना चाहिए, कैसे अपने शरीर व अपने कपड़ों की साफ-सफाई और आसपास की साफ सफाई का ध्यान रखना चाहिए, किस बीमारी में कौन सी दवा लेनी चाहिए। सब कुछ बड़े ही प्यार से समझाती हैं। मेरे लिए तो मेरी मौसी से भी बढ़कर है”
बागा-“आत्माराम वैसे तू बहुत लकी है”
आत्माराम-“कैसे”
बागा-“तेरे को उनके बेडरूम में घुसने का मौका जो मिल जाता है”
आत्माराम-“नहीं भाई बेडरूम क्या, मैं तो उनके लिविंग रूम तक भी नहीं जा सकता अगर मैडम इजाजत ना दे तो”
बागा-“अच्छा!”
चुन्नी-“ अबे लिविंग रूम, बेडरूम, बाथरूम यह तो बहुत पर्सनल होता है ना, हर कोई मुंह उठाकर थोड़ी ना चला जा सकता है वहां पर”
बागा-“अबे आत्माराम, तू तो व्यायाम के समय भी मेमसाब के साथ ही चिपका रहता है। यह बड़े-बड़े मम्मे और मोटी ताजी गांड इतने टाइट फिटिंग कपड़ों में इतने पास से आंखें फाड़ फाड़ कर देखता होगा। साला ये देखकर तो प्रेमचंद का भी खड़ा हो जाए”
आत्माराम-“ यार तुम लोग भी कैसी गंदी गंदी बातें करते हो मेमसाब के बारे में, मैं तो जा रहा हूं यहां से”
आत्माराम खीझकर उठकर वहां से चला जाता है।
ओमप्रकाश-“मैं इसको अच्छी तरह से जानता हूं। यह चाहता है कि मेमसाब की चूत मैं अकेले अकेले ही चाटूं और किसी दूसरे को जीभ भी ना लगाने दूं “
हा हा हा
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RE: मस्तराम की डायरी के पन्नों से........... ़ - by Sitman - 29-05-2022, 11:38 PM



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