27-05-2022, 11:17 AM
भाग 88
बाहर बारिश के साथ-साथ अब आंधी और तेज हवाएं चलने लगी थी…
मनोरमा ने दूध का बोतल सरयू सिंह को पकड़ाया और बोली
" मैं मोमबत्ती लेकर आती हूं…" मनोरमा का अंदेशा बिल्कुल सही था। जब तक कि वह रसोई घर में प्रवेश करती बिजली गुल हो गई। दूधिया रोशनी में चमकने वाला मनोरमा का ड्राइंग रूम अचानक काले स्याह अंधेरे की गिरफ्त में आ गया।
मनोरमा रसोई घर में प्रवेश कर गई तभी सरयू सिंह को धड़ाम की आवाज सुनाई थी…
मैडम क्या हुआ…..
घायल सरयू सिंह एक पल में ही उठकर खड़े हो गए और रसोई घर की तरफ बढ़ चले। उन्हें अपना दुख मनोरमा मैडम के दुख के सामने छोटा प्रतीत हो रहा था वैसे भी दर्द निवारक दवा ने उनमें स्फूर्ति भर दी थी..
मैडम….
अब आगे..
सरयू सिंह पिंकी को गोद में लिए किचन की तरफ भागे.. अंदर मनोरमा जमीन पर गिरी हुई थी और उठने का प्रयास रही थी।
मनोरमा अफसोस कर रही थी कि क्यों उसने आज ही अपनी मेड को छुट्टी दे दी थी।
सरयू सिंह ने पिंकी को ड्राइंग रूम में फर्श पर बैठाया और रसोई घर में गिरी मनोरमा को उठाने की कोशिश करने लगे…कमरे में अंधेरा होने के बावजूद बाहर कड़क रही बिजली सरयू सिंह का मार्ग प्रशस्त कर रही थी।
बिजली की चमकती रोशनी में खूबसूरत मनोरमा को देखकर सरयू सिंह उत्साहित हो गए। सुंदर महिलाओं का कष्ट उनसे वैसे भी देखा न जाता था…और मनोरमा वह तो निराली थी…
परंतु वह उत्साह में यह बात भूल गए कि मनोरमा किसी न किसी कारण वश गिरी थी… दरअसल बाहर हो रही बारिश का पानी रसोई घर की खिड़की से अंदर आ गया था… और फर्श गीला होने की वजह से फिसलन भरा हो गया था…
जिस कारण से मनोरमा गिरी थी उसी कारण से सरयू सिंह भी अपना संतुलन खो बैठे और नीचे गिर पड़े।
सरयू सिंह की मजबूत भुजाओं ने उन्हें मनोरमा के ऊपर गिरने से बचा लिया पर वह मनोरमा के ठीक ऊपर अवश्य थे…पर अपने शरीर का भार अपनी भुजाओं पर लेकर सरयू सिंह ने मनोरमा को और घायल होने से बचा लिया था। अन्यथा मनोरमा मैडम दोहरी चोट का शिकार हो जाती। सरयू सिंह जैसा मजबूत कद काठी का व्यक्ति यदि उनके ऊपर गिर पड़ता तो निश्चित ही उनका कचूमर निकल जाता …
सरयू सिंह की यह स्थिति देखकर मनोरमा मुस्कुरा उठी और बोली…
*अरे यहां बहुत फिसलन है आप भी गिर गए ना आपको चोट तो नहीं लगी..?"
स्वयं को असहज स्थिति से बचाने के लिए सरयू सिंह ने करवट ली। परंतु हाथ में उन गुंडों द्वारा की गई मार कुटाई की वजह से लगी चोट के कारण उन्हें तीव्र पीड़ा हुई और अब अपना संतुलन कायम न रख पाए और मनोरमा के बगल में करवट ले कर लेट गए।
सरयू सिंह और मनोरमा दोनो मुश्किल से ऊपर उठे.. किसने किसकी ज्यादा मदद की यह कहना कठिन था पर मनोरमा और सरयू सिंह दोनों के कपड़े फर्श पर फैले हुए पानी से भीग चुके थे…
मनोरमा ने मोमबत्ती जलाई और अपनी तथा सरयू सिंह की स्थिति का आकलन किया।
मनोरमा ने सरयू सिंह के भीगे हुए कपड़े देख कर कहा "आप रुकिए मैं आपके लिए कुछ कपड़े लेकर आती हूं "
मनोरमा अपने कमरे में आ गई…मनोरमा को यह याद ही ना रहा कि अब वह सेक्रेटरी साहब के घर में नहीं थी। जब से वह यहां आई थी वह अकेली थी। यहां मर्दाना कपड़े होने का प्रश्न ही नहीं उठता था। उसने अपनी अलमारी खोलकर देखी परंतु एक अदद तोलिया के अलावा वह सरयू सिंह के लिए कोई कपड़े ना खोज पाई।
अचानक उसे सरयू सिंह का वह लंगोट ध्यान में आया जो वह बनारस महोत्सव से ले आई थी…
मनोरमा मुस्कुराने लगी उसने वह लंगोट निकाला और लंगोट और तोलिया लेकर सरयू सिंह के करीब आई और बोली…
"…आप अपने कपड़े निकाल कर कुर्सी पर डाल दीजिए कुछ देर में सूख जाएंगे तब तक यह पहन लीजिए.. गीले कपड़े आपके जख्म को और भी खराब कर सकते हैं।"
सरयू सिंह हिचकिचा रहे थे..
"कुछ देर के लिए यह भूल जाइए कि मैं आपकी मैडम हूं …."
सरयू सिंह ने मनोरमा के हाथ से वह कपड़े लिए और मनोरमा एक बार फिर अपने कमरे में आकर कमरे मे आकर कपड़े बदलने लगी…
मनोरमा ने स्वभाविक तौर पर अपने नाइट सूट को पहन लिया उसे यह आभास भी ना रहा कि वह अपनी मादक काया लिए एक पराए मर्द के सामने जा रही है..
अंधेरा अवचेतन मन में चल रहे कामुक विचारों को साहस देता है। मनोरमा ने अपने संशय को दरकिनार किया और अपनी सांसो पर नियंत्रण किया तथा अपने कमरे का दरवाजा खोल बाहर हाल में आ गए..
मनोरमा के मन में साहस भरने का काम सरयू सिंह ने ही किया था। कई बार पुरुष का मर्यादित और संतुलित व्यक्तित्व स्त्री को सहज कर देता है और सरयू सिंह तो इस कला के माहिर थे। मनोरमा हाल में आ चुकी थी..वह अपनी एक शाल भी सरयू सिंह के लिए ले आई थी..जिसे सरयु सिंह ठंड लगने की दशा में ओढ़ सकते थे..
इधर सरयू सिंह अपना लंगोट बदलकर तौलिया लपेट चुके थे परंतु उनके शरीर का ऊपरी भाग नग्न था …सरयू सिंह अभी भी यही सोच रहे थे कि यह लंगोट मनोरमा के घर में क्या कर रहा था न तो सेक्रेटरी साहब लंगोट पहनने वाले लगते थे और नहीं संभ्रांत परिवारों में लंगोट पहनने का प्रचलन था…
सरयू सिंह के मन में आया की मनोरमा से लंगोट के बारे में पूछ लें पर हिम्मत ना जुटा पाए।
मनोरमा की भरी भरी चूचियां नाइट सूट से उभर कर बाहर झांक रही थी। मनोरमा के हाथ में जल रही मोमबत्ती की रोशनी में उनकी खूबसूरती और बढ़ गई थी। सरयू सिंह की निगाहों को अपनी चुचियों पर देख वो शर्मा गई। उसने मोमबत्ती को टेबल पर रखा और मधु को अपनी गोद में ले लिया। अपनी बेटी को गोद में लेकर अपनी चूची छिपाने का मनोरमा का यह प्रयास सफल रहा।
पता नहीं क्यों उसे सरयू सिंह का इस तरह देखना कतई बुरा ना लगा था अपितु शरीर में एक अजीब सी सिहरन उत्पन्न हो गई थी…जाने यह हल्की हल्की ठंड का असर था या सरयू सिंह की नजरों में छुपी लालसा का..
बारिश अभी भी लगातार जारी थी.. खान पान का प्रबंध अभी तक न हुआ था…
मनोरमा ने टेलीफोन का रिसीवर उठाया और डायल टोन सुनकर सुकून की सांस ली.. उसने काले फोन पर अपनी उंगलियां कई बार घुमाईं और कुछ देर बाद बोली..
" रेडिसन होटल ….कुछ खाना पार्सल कर सकते हैं..
"हां हां… बारिश रुकने के बाद ही" मनोरमा ने एक बार फिर कहा।
मनोरमा ने खाना ऑर्डर किया और सरयू सिंह की तरफ देख कर बोली …
उफ आज ही ऐसी बारिश होनी थी..
सरयू सिंह मुस्कुरा कर रह गए . मोमबत्ती की रोशनी में उनका गठीला शरीर चमक रहा था मनोरमा दूर से ही उनके शारीरिक सौष्ठव को अपनी निगाहों से महसूस कर रही थी। वह बार-बार सरयू सिंह की तुलना अपने पूर्व पति सेक्रेटरी साहब से करती और उसे यह यकीन ही ना होता की दो अलग-अलग व्यक्तियों की कद काठी और शारीरिक संरचनाओं में उतना ही अंतर हो सकता है जितना उनकी ज्ञान क्षमता में।
सेक्रेटरी साहब जहां दिमाग और बुद्धि के चतुर् थे वही सरयू सिंह भोले भाले आम आदमी थे परंतु जहां मर्दानगी की बात हो सरयू सिंह और सेक्रेटरी साहब में कोई समानता न थी। सूरज और दिए का न तो कोई मेल हो सकता था और ना उनकी तुलना करना संभव था.. मनोरमा को अपने आप में खोए देखकर सरयू सिंह ने कहा…
" मैडम सुगना और सोनू मेरा इंतजार कर रहे हैं अब मुझे जाना चाहिए..
"आप जरूर चले जाइएगा पर यह बारिस रुके तब तो…" सरयू सिंह सोफे पर से उठे और दरवाजे पर पहुंचकर उन्होंने बाहर का नजारा लिया। बाहर मूसलाधार बारिश बदस्तूर जारी थी.. और रह रहकर बिजली का कड़कना भी जारी था…. ऐसी अवस्था में घायल सरयू सिंह का बाहर निकलना कतई उचित न था और वह यह बात वह भली-भांति जानते थे… वह मन मसोसकर वापस आकर मनोरमा के सोफे पर बैठ गए…
मनोरमा की पुत्री पिंकी भी अब सो चुकी थी। उसे बाहर की परिस्थितियों से कोई सरोकार ना था। बोतल के दूध ने उसका पेट भर दिया था और वह सरयू सिंह के बगल में ही सोफे पर लेटे-लेटे सो गई थी..
खाना आने में विलंब था। मनोरमा ने इस खूबसूरत मौसम का आनंद लेने की सोची और ड्राइंग रूम में सजी अलमीरा से एक वाइन की बोतल निकाल लाई।
संभ्रांत परिवारों में उस समय भी मदिरापान चलन था और मनोरमा को उसमें खींचने वाले सेक्रेटरी साहब ही थे। मनोरमा को इन अपव्यसनों की लत तो न थी पर सेक्रेटरी साहब से अलग होने के उपरांत एकांत में वह कभी-कभी इनका आनंद ले लिया करती थी।
आज कई दिनों बाद वह वाइन का आनंद उठाने के लिए मन बना चुकी थी। रंग बिरंगी सुंदर बोतल मनोरमा के हाथों में देखकर सरयू सिंह को यकीन ही नहीं हुआ की एक महिला भी शराब का सेवन कर सकती है।
सरयू सिंह ने आज से पहले कभी शराब को हाथ न लगाया था। उन्हें उसके दुष्प्रभाव की जानकारी अवश्य थी इसीलिए वह उन्हें हमेशा हेय दृष्टि से देखते थे।
परंतु आज मनोरमा के हाथ में वाइन की बोतल देखकर सरयू सिंह से रहा न गया। उनकी आदर्श मनोरमा मैडम भी शराब का सेवन करती हैं यह जानकर वह आश्चर्य में थे। अपनी जिज्ञासा को वह रोक ना पाए और मनोरमा से कहा..
" मैडम यह आपको नुकसान करेगी आपको यह नहीं पीना चाहिए…"
मनोरमा ने मुस्कुराते हुए कहा…
" सरयू जी आप बहुत अच्छे हैं….पर यकीन करिए शराब उन लोगों के लिए ही जानलेवा है जो इस पर नियंत्रण नहीं कर पाते ..बाकी यह अमृत है…आपको लगता है मैं अपने साथ ऐसा कुछ करूंगी?
सरयू सिंह निरुत्तर थे. मनोरमा अपने लिए गिलास में पैग बना चुकी थी। सरयू सिंह के विचार सुनकर उसकी सरयू सिंह के लिए पैग बनाने हिम्मत ना हुई परंतु सरयू सिंह बड़े ध्यान से गिलास में गिरती रंगहीन वाइन को देखे जा रहे थे…
"मैडम इसका स्वाद कड़वा होता है न?" सरयू सिंह उत्सुकता पर नियंत्रण न रख पाए और मनोरमा से पूछ बैठे। और यही अवसर था जब मनोरमा ने दूसरे गिलास में वाइन डाली और सरयू सिंह को देते हुए बोली
" यदि मुझ पर विश्वास है तो इसे पी लीजिए आपको अच्छा लगेगा और आपको दर्द में भी आराम मिलेगा " सरयू सिंह हिचक रहे थे परंतु मनोरमा की बात को टाल पाना उनके वश में न था…उन्होंने अपने इष्ट को याद किया और वह गिलास हाथ ले लिया..
"घूंट घूंट का पीजीयेगा …चीयर्स.." मनोरमा ने मुस्कुराते हुए सरयू सिंह की तरफ देखा और उनका उत्साहवर्धन किया।
सरयू सिंह को स्वाद थोड़ा अटपटा लगा परंतु उन्होंने मुंह में लिया हुआ घूंट पी लिया …मनोरमा ने उनकी तरफ देखते हुए बोला
"स्वाद थोड़ा खट्टा है ना ? पर चिंता मत कीजिए कुछ ही देर में यह स्वाद आपको अच्छा लगने लगेगा "
सरयू सिंह ने गिलास नीचे रख दी और मनोरमा को ध्यान से देखने लगे जो अपने गिलास से एक-एक करके वाइन के घूंट अपने हलक के नीचे उतार रही थी…
जैसे ही वाइन का घूंट मनोरमा के गले में जाता उसके गोरे गाल थोड़े फूलते और फिर मनोरमा की सुराही दार गर्दन में हरकत होती और वह हलक से नीचे उतरकर मनोरमा के सीने से होता हुआ मनोरमा के शरीर में विलीन हो जाता।
मनोरमा के सीने का ध्यान आते ही सरयू सिंह की निगाहें एक बार फिर मनोरमा की भरी-भरी चुचियों पर टिक गई लंड में अचानक रक्त की लहर दौड़ गई और वह काला नाग सर उठाने की कोशिश करने लगा सरयू सिंह ने अपना ध्यान भटकाना चाहा और अपना गिलास उठा लिया…उत्तेजना पर नियंत्रण करने के लिए उन्होंने कुछ ज्यादा ही बड़ा घूंट अपने हलक में उतार लिया जिसे मनोरमा ने देख लिया और मुस्कुरा कर कहा
"सरयू जी धीरे धीरे.."
और धीरे-धीरे गिलास में पढ़ा रंगहीन द्रव्य गले से उतरता हुआ शरीर सिंह के रक्त में विलीन होता गया..
कामुक और सुंदर स्त्री के साथ शराब के असर को दोगुना करती है।
सरयू सिंह तो आज पहली बार वाइन पी रहे थे वह भी मनोरमा जैसी खूबसूरत और मादक स्त्री के साथ। एक ही गिलास में उन्हें जन्नत नजर आने लगी मनोरमा ने एक गिलास और उनकी तरफ बढ़ाया और मनोरमा के मोह पास में बंधे उन्होंने दूसरा गिलास भी अपनी हलक के नीचे उतार लिया।
सरयू सिंह पर शराब अपना रंग दिखाने लगी। उसने सरयू सिंह की हिचक बिल्कुल खत्म कर दी.. सरयू सिंह सोफे से उठ खड़े हुए और बोले
"मैडम आपकी इजाजत हो तो एक बात पूछूं "
"हां हां आराम से पूछीए?" मनोरमा अब भी सहजता से बरताव कर रही थी…
"मैडम साहब लंगोट पहनते हैं क्या?"
सरयू सिंह का यह प्रश्न सुनकर मनोरमा खिलखिला कर हंस पड़ी …शराब के नशे ने उसकी खिलखिलाहट में मादकता और कामुकता भर दी…
मनोरमा अपना पेट पकड़ कर हंसने लगी। सरयू सिंह उसकी हंसी का कारण जानने को उत्सुक थे…उनके चेहरे पर अजीब से भाव आ रहे थे…
अपनी हंसी पर नियंत्रण कर मनोरमा ने कहा
"सरयू जी ध्यान से देखिए यह आपका ही है…बनारस महोत्सव ….मेरा कमरा … कुछ याद आया…"
सरयू सिंह को बनारस की वह रात याद आ गई जब मनोरमा से संभोग के उपरांत वह अपना लंगोट वही छोड़कर हड़बड़ी में बाहर निकल गए थे और बाद में लाख ढूंढने के बावजूद वह लंगोट उन्हें नहीं मिला था।
सरयू सिंह निरुत्तर हो गए उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या बोलें।
तभी मनोरमा ने गिलास में एक बार फिर वाइन डाल दिया और अपने बहक रहे कदमों पर खड़ी होकर सरयू सिंह को गिलास देने लगी.. उसी समय किसी खुली खिड़की से हवा का एक तेज झोंका आया और जल रही मोमबत्ती को बुझा गया।
मनोरमा का पैर न जाने कहां टकराया और वह लड़खड़ा कर सरयू सिंह की गोद में गिर पड़ी ..
सरयू सिंह ने उसे सहारा दिया और जब तक दोनों संभलते मनोरमा सरयू सिंह की जांघों पर बैठी हुई थी।
अपनी अवस्था देखकर मनोरमा ने शर्म से अपना चेहरा झुका लिया। परंतु सरयू सिंह अब पूरी तरह उत्तेजित हो चुके थे। मनोरमा का उनकी गोद में आना और उसकी कोमल जांघों के अहसास ने उनके लंड में तनाव बढ़ाना शुरू कर दिया था… ऐसा लग रहा था जैसे वह पुराने लंगोट को चीर कर बाहर आ जाएगा।
सरयू सिंह के हाथ मनोरमा की पीठ की तरफ से कमर पर आ चुके थे। हाथ में मक्खन का गोला हो और उंगलियां उनकी कोमलता का आनंद न ले यह असंभव था। सरयू सिंह की हथेलियां न जाने कब और कैसे ऊपर की तरफ बढ़ती गईं।
मन में छुपी वासना पर पड़े सभ्यता के आडंबर को शराब ने एक पल में धो दिया…
मनोरमा अपनी चुचियों की तरफ बढ़ती मजबूत उंगलियों को महसूस कर रही थी…उसकी धड़कन लगातार बढ़ रही थी। सरयू सिंह की आतुरता उसे असहज कर रही थी परंतु वह आंखें नीचे किए इस पल कों महसूस कर रही थी।हो…मनोरमा के कोमल गाल सरयू सिंह कि होठों से रगड़ खा रहे थे। उंगलियां चूचियों को छुएं इसके ठीक पहले मनोरमा ने अपनी गर्दन सरयू सिंह की तरफ घूमाई जैसे सरयू सिंह से कुछ कहना चाहती हो..
जैसे-जैसे मनोरमा घूमती गई उसके होंठ सरयू सिंह के होठों के करीब आते गए और जैसे ही लबों ने लबों को छुआ सरयू सिंह ने मनोरमा के कोमल और रसीले होंठ अपने होंठों के बीच भर लिए…
मनोरमा न जाने क्या कहने आई थी और क्या कर रही थी। उसकी बात उसके हलक में ही दफन हो गई और उसके होंठ सरयू सिंह के होठों से में समाहित होते चले गए।
उसे अपनी चुचियों का ध्यान भी न रहा जो अब सरयू सिंह के हाथों में आ चुकी थी…सरयू सिंह की उंगलियों का एहसास उसे तब हुआ जब उसके तने हुए निप्पल उंगलियों के बीच आए और सरयू सिंह ने अपनी उंगलियों से उनके तनाव को महसूस करने की कोशिश की। मनोरमा चिहुंक उठी…
आह ……तनी धीरे से…
मनोरमा कि यह कराह कुछ ज्यादा ही तीव्र थी शायद शराब के नशे में सरयू सिंह की उंगलियों ने कोमल निप्पलों को कुछ ज्यादा ही मसल दिया था…
सरयू सिंह लगातार मनोरमा को चूमे जा रहे थे …ऐसा लग रहा था जैसे जो दर्द उन्होंने मनोरमा के निप्पलों को दबा कर दिया था वह उसकी भरपाई करना चाह रहे थे।
उनकी उंगलियों ने चुचियों को छोड़कर वस्त्रों पर अपना ध्यान लगा लिया था…..नाइट सूट के बटन लगातार लगातार खुल रहे थे…. और मनोरमा का भरा हुआ सीना नग्न होता जा रहा था था सरयू सिंह के इशारे पर मनोरमा ने अपने दोनों हाथ फैलाए और सरयू सिंह ने नाइट सूट के ऊपरी भाग को मनोरमा के शरीर से अलग कर दिया…
सरयू सिंह यही न रुके.. मनोरमा की तनिक भी विरोध न करने की वजह से उनका उत्साह चरम पर पहुंच गया और एक ही झटके में मनोरमा के नाइट सूट का पजामा जमीन पर आ गया..
मनोरमा पूरी तरह नग्न हो चुकी थी। उसने भीतर पेंटिं न पहनी थी। उसकी तनी हुई चूचियां सरयू सिंह के मजबूत सीने से टकरा रही थी और उन्हें अपनी कोमलता का एहसास करा रही थीं। सरयू सिंह अभी भी मनोरमा को चूमे जा रहे थे।
सोफे पर लेटी हुई पिंकी पूरी शांति और तन्मयता से सो रही। और इधर उसकी मां मनोरमा उसके पिता की गोद में मोम की तरह पिघलती जा रही थी। हलक से नीचे उतर चुकी शराब अब शरीर के अंग अंग तक पहुंच चुकी थी और सरयू सिंह को एक अलग ही साहस दे रही थी उन्हें मनोरमा मैडम अब और अपनी लगने लगी थीं।
इस मिलन में व्यवधान तब आया जब सरयू सिंह की लंगोट खोलने की बारी आई। मामला फंस गया.. अंधेरे के कारण सरयू सिंह अपनी लंगोट का बंधन खोल पाने में असमर्थ हो रहे थे।
आज वही अंधेरा प्रेम क्रीडा में बाधक बन रहा था जिसने पिछली मुलाकात में दोनों को मिलाने में हम भूमिका अदा की थी।
आखिर मनोरमा को उनकी गोद से उठकर मोमबत्ती लेने टेबल के पास जाना पड़ा।
सरयू सिंह नंगी मनोरमा को अपनी गोद से कतई उतारना नहीं चाहते थे परंतु बिना औजार के फ्री में युद्ध हो नहीं सकता था मनोरमा और सधे हुए कदमों से बाहर कड़क रही बिजली की क्षणिक रोशनी में टेबल की तरफ बढ़ने लगी जब जब बिजली की रोशनी मनोरमा पर पड़ती उसकी मदमस्त काया सरयू सिंह के दिमाग में छप जाती गजब सुंदर काया थी मनोरमा की..
सरयू सिंह मनोरमा को नग्न देखने के लिए तड़प उठे..
मनोरमा ने मोमबत्ती एक बार फिर जला ली.. शायद शराब के नशे में वह यह भूल गई थी कि वह पूरी तरह नग्न थी..
नग्न मनोरमा वापस सरयू सिंह के पास आ रही थी..नंगी मनोरमा को कमरे में चलते हुए देखकर सरयू सिंह मदहोश हो रहे थे। ऐसी सुंदर और नग्न काया वह कई वर्षों बाद देख रहे थे। एक बार के लिए उनके मन में सुगना घूम गई…दिमाग ने सरयू सिंह को रोकना चाहा पर उनका लंड पूरे आवेग से थिरक उठा ऐसा लगा जैसे वह लंगोट के मजबूत आवरण को चीर कर बाहर आ जाएगा।
अपनी सम्मानित और प्रतिष्ठित मैडम को नग्न देखकर सरयू सिंह की आंखें झुक रही थी पर उनका मर्दाना स्वभाव कामातुर मनोरमा की खूबसूरती का आनद लेना चाहा रहा था।
दूसरी तरफ मनोरमा सरयू सिंह की कसरती और गठीली काया को निहारती हुई खुद को असहज महसूस कर रही थी। बाहर कड़क रही बिजली का प्रकाश जब शरीर सिंह के कसे हुए शरीर पर पड़ता वह और चमक उठता और मनोरमा उनके गठीला शरीर को देखकर मन ही मन सिहर रही थी उनकी मर्दानगी का अनुभव वह एक बार पहले ले चुकी थी और आज…. भी उसका तन बदन स्वत ही सरयू सिंह के आगोश में आने को तैयार हो चुका था।
मोमबत्ती की रोशनी लाल लंगोट पर पड़ रही थी लंगोट में पड़ चुकी गांठ के खुलने का वक्त आ चुका था… सरयू सिंह के हांथ बहक रहे हाथ वह उस गांठ को खोलने में खुद को असमर्थ महसूस कर रहे थे अंततः मनोरमा ने अपनी पतली उंगलियों को मैदान में उतारा और सरयू सिंह के लंगोट की गांठ खुल गई। सरयू सिंह का तन्नाया हुआ लंड पूरी ताकत से उछलकर मनोरमा के सामने आ गया……
मनोरमा…. सरयू सिंह ने खड़े लंड को देखकर पानी पानी हो गई…. उसकी शर्म उस पर हावी हुई और वह अपनी आंखें और न खोल पाई….
पर सरयू सिंह अब अपनी रौ में आ चुके थे शराब ने उनके मन में हिम्मत भर दी थी..उन्होंने मोर्चा संभाल लिया…
शेष अगले भाग में….
बाहर बारिश के साथ-साथ अब आंधी और तेज हवाएं चलने लगी थी…
मनोरमा ने दूध का बोतल सरयू सिंह को पकड़ाया और बोली
" मैं मोमबत्ती लेकर आती हूं…" मनोरमा का अंदेशा बिल्कुल सही था। जब तक कि वह रसोई घर में प्रवेश करती बिजली गुल हो गई। दूधिया रोशनी में चमकने वाला मनोरमा का ड्राइंग रूम अचानक काले स्याह अंधेरे की गिरफ्त में आ गया।
मनोरमा रसोई घर में प्रवेश कर गई तभी सरयू सिंह को धड़ाम की आवाज सुनाई थी…
मैडम क्या हुआ…..
घायल सरयू सिंह एक पल में ही उठकर खड़े हो गए और रसोई घर की तरफ बढ़ चले। उन्हें अपना दुख मनोरमा मैडम के दुख के सामने छोटा प्रतीत हो रहा था वैसे भी दर्द निवारक दवा ने उनमें स्फूर्ति भर दी थी..
मैडम….
अब आगे..
सरयू सिंह पिंकी को गोद में लिए किचन की तरफ भागे.. अंदर मनोरमा जमीन पर गिरी हुई थी और उठने का प्रयास रही थी।
मनोरमा अफसोस कर रही थी कि क्यों उसने आज ही अपनी मेड को छुट्टी दे दी थी।
सरयू सिंह ने पिंकी को ड्राइंग रूम में फर्श पर बैठाया और रसोई घर में गिरी मनोरमा को उठाने की कोशिश करने लगे…कमरे में अंधेरा होने के बावजूद बाहर कड़क रही बिजली सरयू सिंह का मार्ग प्रशस्त कर रही थी।
बिजली की चमकती रोशनी में खूबसूरत मनोरमा को देखकर सरयू सिंह उत्साहित हो गए। सुंदर महिलाओं का कष्ट उनसे वैसे भी देखा न जाता था…और मनोरमा वह तो निराली थी…
परंतु वह उत्साह में यह बात भूल गए कि मनोरमा किसी न किसी कारण वश गिरी थी… दरअसल बाहर हो रही बारिश का पानी रसोई घर की खिड़की से अंदर आ गया था… और फर्श गीला होने की वजह से फिसलन भरा हो गया था…
जिस कारण से मनोरमा गिरी थी उसी कारण से सरयू सिंह भी अपना संतुलन खो बैठे और नीचे गिर पड़े।
सरयू सिंह की मजबूत भुजाओं ने उन्हें मनोरमा के ऊपर गिरने से बचा लिया पर वह मनोरमा के ठीक ऊपर अवश्य थे…पर अपने शरीर का भार अपनी भुजाओं पर लेकर सरयू सिंह ने मनोरमा को और घायल होने से बचा लिया था। अन्यथा मनोरमा मैडम दोहरी चोट का शिकार हो जाती। सरयू सिंह जैसा मजबूत कद काठी का व्यक्ति यदि उनके ऊपर गिर पड़ता तो निश्चित ही उनका कचूमर निकल जाता …
सरयू सिंह की यह स्थिति देखकर मनोरमा मुस्कुरा उठी और बोली…
*अरे यहां बहुत फिसलन है आप भी गिर गए ना आपको चोट तो नहीं लगी..?"
स्वयं को असहज स्थिति से बचाने के लिए सरयू सिंह ने करवट ली। परंतु हाथ में उन गुंडों द्वारा की गई मार कुटाई की वजह से लगी चोट के कारण उन्हें तीव्र पीड़ा हुई और अब अपना संतुलन कायम न रख पाए और मनोरमा के बगल में करवट ले कर लेट गए।
सरयू सिंह और मनोरमा दोनो मुश्किल से ऊपर उठे.. किसने किसकी ज्यादा मदद की यह कहना कठिन था पर मनोरमा और सरयू सिंह दोनों के कपड़े फर्श पर फैले हुए पानी से भीग चुके थे…
मनोरमा ने मोमबत्ती जलाई और अपनी तथा सरयू सिंह की स्थिति का आकलन किया।
मनोरमा ने सरयू सिंह के भीगे हुए कपड़े देख कर कहा "आप रुकिए मैं आपके लिए कुछ कपड़े लेकर आती हूं "
मनोरमा अपने कमरे में आ गई…मनोरमा को यह याद ही ना रहा कि अब वह सेक्रेटरी साहब के घर में नहीं थी। जब से वह यहां आई थी वह अकेली थी। यहां मर्दाना कपड़े होने का प्रश्न ही नहीं उठता था। उसने अपनी अलमारी खोलकर देखी परंतु एक अदद तोलिया के अलावा वह सरयू सिंह के लिए कोई कपड़े ना खोज पाई।
अचानक उसे सरयू सिंह का वह लंगोट ध्यान में आया जो वह बनारस महोत्सव से ले आई थी…
मनोरमा मुस्कुराने लगी उसने वह लंगोट निकाला और लंगोट और तोलिया लेकर सरयू सिंह के करीब आई और बोली…
"…आप अपने कपड़े निकाल कर कुर्सी पर डाल दीजिए कुछ देर में सूख जाएंगे तब तक यह पहन लीजिए.. गीले कपड़े आपके जख्म को और भी खराब कर सकते हैं।"
सरयू सिंह हिचकिचा रहे थे..
"कुछ देर के लिए यह भूल जाइए कि मैं आपकी मैडम हूं …."
सरयू सिंह ने मनोरमा के हाथ से वह कपड़े लिए और मनोरमा एक बार फिर अपने कमरे में आकर कमरे मे आकर कपड़े बदलने लगी…
मनोरमा ने स्वभाविक तौर पर अपने नाइट सूट को पहन लिया उसे यह आभास भी ना रहा कि वह अपनी मादक काया लिए एक पराए मर्द के सामने जा रही है..
अंधेरा अवचेतन मन में चल रहे कामुक विचारों को साहस देता है। मनोरमा ने अपने संशय को दरकिनार किया और अपनी सांसो पर नियंत्रण किया तथा अपने कमरे का दरवाजा खोल बाहर हाल में आ गए..
मनोरमा के मन में साहस भरने का काम सरयू सिंह ने ही किया था। कई बार पुरुष का मर्यादित और संतुलित व्यक्तित्व स्त्री को सहज कर देता है और सरयू सिंह तो इस कला के माहिर थे। मनोरमा हाल में आ चुकी थी..वह अपनी एक शाल भी सरयू सिंह के लिए ले आई थी..जिसे सरयु सिंह ठंड लगने की दशा में ओढ़ सकते थे..
इधर सरयू सिंह अपना लंगोट बदलकर तौलिया लपेट चुके थे परंतु उनके शरीर का ऊपरी भाग नग्न था …सरयू सिंह अभी भी यही सोच रहे थे कि यह लंगोट मनोरमा के घर में क्या कर रहा था न तो सेक्रेटरी साहब लंगोट पहनने वाले लगते थे और नहीं संभ्रांत परिवारों में लंगोट पहनने का प्रचलन था…
सरयू सिंह के मन में आया की मनोरमा से लंगोट के बारे में पूछ लें पर हिम्मत ना जुटा पाए।
मनोरमा की भरी भरी चूचियां नाइट सूट से उभर कर बाहर झांक रही थी। मनोरमा के हाथ में जल रही मोमबत्ती की रोशनी में उनकी खूबसूरती और बढ़ गई थी। सरयू सिंह की निगाहों को अपनी चुचियों पर देख वो शर्मा गई। उसने मोमबत्ती को टेबल पर रखा और मधु को अपनी गोद में ले लिया। अपनी बेटी को गोद में लेकर अपनी चूची छिपाने का मनोरमा का यह प्रयास सफल रहा।
पता नहीं क्यों उसे सरयू सिंह का इस तरह देखना कतई बुरा ना लगा था अपितु शरीर में एक अजीब सी सिहरन उत्पन्न हो गई थी…जाने यह हल्की हल्की ठंड का असर था या सरयू सिंह की नजरों में छुपी लालसा का..
बारिश अभी भी लगातार जारी थी.. खान पान का प्रबंध अभी तक न हुआ था…
मनोरमा ने टेलीफोन का रिसीवर उठाया और डायल टोन सुनकर सुकून की सांस ली.. उसने काले फोन पर अपनी उंगलियां कई बार घुमाईं और कुछ देर बाद बोली..
" रेडिसन होटल ….कुछ खाना पार्सल कर सकते हैं..
"हां हां… बारिश रुकने के बाद ही" मनोरमा ने एक बार फिर कहा।
मनोरमा ने खाना ऑर्डर किया और सरयू सिंह की तरफ देख कर बोली …
उफ आज ही ऐसी बारिश होनी थी..
सरयू सिंह मुस्कुरा कर रह गए . मोमबत्ती की रोशनी में उनका गठीला शरीर चमक रहा था मनोरमा दूर से ही उनके शारीरिक सौष्ठव को अपनी निगाहों से महसूस कर रही थी। वह बार-बार सरयू सिंह की तुलना अपने पूर्व पति सेक्रेटरी साहब से करती और उसे यह यकीन ही ना होता की दो अलग-अलग व्यक्तियों की कद काठी और शारीरिक संरचनाओं में उतना ही अंतर हो सकता है जितना उनकी ज्ञान क्षमता में।
सेक्रेटरी साहब जहां दिमाग और बुद्धि के चतुर् थे वही सरयू सिंह भोले भाले आम आदमी थे परंतु जहां मर्दानगी की बात हो सरयू सिंह और सेक्रेटरी साहब में कोई समानता न थी। सूरज और दिए का न तो कोई मेल हो सकता था और ना उनकी तुलना करना संभव था.. मनोरमा को अपने आप में खोए देखकर सरयू सिंह ने कहा…
" मैडम सुगना और सोनू मेरा इंतजार कर रहे हैं अब मुझे जाना चाहिए..
"आप जरूर चले जाइएगा पर यह बारिस रुके तब तो…" सरयू सिंह सोफे पर से उठे और दरवाजे पर पहुंचकर उन्होंने बाहर का नजारा लिया। बाहर मूसलाधार बारिश बदस्तूर जारी थी.. और रह रहकर बिजली का कड़कना भी जारी था…. ऐसी अवस्था में घायल सरयू सिंह का बाहर निकलना कतई उचित न था और वह यह बात वह भली-भांति जानते थे… वह मन मसोसकर वापस आकर मनोरमा के सोफे पर बैठ गए…
मनोरमा की पुत्री पिंकी भी अब सो चुकी थी। उसे बाहर की परिस्थितियों से कोई सरोकार ना था। बोतल के दूध ने उसका पेट भर दिया था और वह सरयू सिंह के बगल में ही सोफे पर लेटे-लेटे सो गई थी..
खाना आने में विलंब था। मनोरमा ने इस खूबसूरत मौसम का आनंद लेने की सोची और ड्राइंग रूम में सजी अलमीरा से एक वाइन की बोतल निकाल लाई।
संभ्रांत परिवारों में उस समय भी मदिरापान चलन था और मनोरमा को उसमें खींचने वाले सेक्रेटरी साहब ही थे। मनोरमा को इन अपव्यसनों की लत तो न थी पर सेक्रेटरी साहब से अलग होने के उपरांत एकांत में वह कभी-कभी इनका आनंद ले लिया करती थी।
आज कई दिनों बाद वह वाइन का आनंद उठाने के लिए मन बना चुकी थी। रंग बिरंगी सुंदर बोतल मनोरमा के हाथों में देखकर सरयू सिंह को यकीन ही नहीं हुआ की एक महिला भी शराब का सेवन कर सकती है।
सरयू सिंह ने आज से पहले कभी शराब को हाथ न लगाया था। उन्हें उसके दुष्प्रभाव की जानकारी अवश्य थी इसीलिए वह उन्हें हमेशा हेय दृष्टि से देखते थे।
परंतु आज मनोरमा के हाथ में वाइन की बोतल देखकर सरयू सिंह से रहा न गया। उनकी आदर्श मनोरमा मैडम भी शराब का सेवन करती हैं यह जानकर वह आश्चर्य में थे। अपनी जिज्ञासा को वह रोक ना पाए और मनोरमा से कहा..
" मैडम यह आपको नुकसान करेगी आपको यह नहीं पीना चाहिए…"
मनोरमा ने मुस्कुराते हुए कहा…
" सरयू जी आप बहुत अच्छे हैं….पर यकीन करिए शराब उन लोगों के लिए ही जानलेवा है जो इस पर नियंत्रण नहीं कर पाते ..बाकी यह अमृत है…आपको लगता है मैं अपने साथ ऐसा कुछ करूंगी?
सरयू सिंह निरुत्तर थे. मनोरमा अपने लिए गिलास में पैग बना चुकी थी। सरयू सिंह के विचार सुनकर उसकी सरयू सिंह के लिए पैग बनाने हिम्मत ना हुई परंतु सरयू सिंह बड़े ध्यान से गिलास में गिरती रंगहीन वाइन को देखे जा रहे थे…
"मैडम इसका स्वाद कड़वा होता है न?" सरयू सिंह उत्सुकता पर नियंत्रण न रख पाए और मनोरमा से पूछ बैठे। और यही अवसर था जब मनोरमा ने दूसरे गिलास में वाइन डाली और सरयू सिंह को देते हुए बोली
" यदि मुझ पर विश्वास है तो इसे पी लीजिए आपको अच्छा लगेगा और आपको दर्द में भी आराम मिलेगा " सरयू सिंह हिचक रहे थे परंतु मनोरमा की बात को टाल पाना उनके वश में न था…उन्होंने अपने इष्ट को याद किया और वह गिलास हाथ ले लिया..
"घूंट घूंट का पीजीयेगा …चीयर्स.." मनोरमा ने मुस्कुराते हुए सरयू सिंह की तरफ देखा और उनका उत्साहवर्धन किया।
सरयू सिंह को स्वाद थोड़ा अटपटा लगा परंतु उन्होंने मुंह में लिया हुआ घूंट पी लिया …मनोरमा ने उनकी तरफ देखते हुए बोला
"स्वाद थोड़ा खट्टा है ना ? पर चिंता मत कीजिए कुछ ही देर में यह स्वाद आपको अच्छा लगने लगेगा "
सरयू सिंह ने गिलास नीचे रख दी और मनोरमा को ध्यान से देखने लगे जो अपने गिलास से एक-एक करके वाइन के घूंट अपने हलक के नीचे उतार रही थी…
जैसे ही वाइन का घूंट मनोरमा के गले में जाता उसके गोरे गाल थोड़े फूलते और फिर मनोरमा की सुराही दार गर्दन में हरकत होती और वह हलक से नीचे उतरकर मनोरमा के सीने से होता हुआ मनोरमा के शरीर में विलीन हो जाता।
मनोरमा के सीने का ध्यान आते ही सरयू सिंह की निगाहें एक बार फिर मनोरमा की भरी-भरी चुचियों पर टिक गई लंड में अचानक रक्त की लहर दौड़ गई और वह काला नाग सर उठाने की कोशिश करने लगा सरयू सिंह ने अपना ध्यान भटकाना चाहा और अपना गिलास उठा लिया…उत्तेजना पर नियंत्रण करने के लिए उन्होंने कुछ ज्यादा ही बड़ा घूंट अपने हलक में उतार लिया जिसे मनोरमा ने देख लिया और मुस्कुरा कर कहा
"सरयू जी धीरे धीरे.."
और धीरे-धीरे गिलास में पढ़ा रंगहीन द्रव्य गले से उतरता हुआ शरीर सिंह के रक्त में विलीन होता गया..
कामुक और सुंदर स्त्री के साथ शराब के असर को दोगुना करती है।
सरयू सिंह तो आज पहली बार वाइन पी रहे थे वह भी मनोरमा जैसी खूबसूरत और मादक स्त्री के साथ। एक ही गिलास में उन्हें जन्नत नजर आने लगी मनोरमा ने एक गिलास और उनकी तरफ बढ़ाया और मनोरमा के मोह पास में बंधे उन्होंने दूसरा गिलास भी अपनी हलक के नीचे उतार लिया।
सरयू सिंह पर शराब अपना रंग दिखाने लगी। उसने सरयू सिंह की हिचक बिल्कुल खत्म कर दी.. सरयू सिंह सोफे से उठ खड़े हुए और बोले
"मैडम आपकी इजाजत हो तो एक बात पूछूं "
"हां हां आराम से पूछीए?" मनोरमा अब भी सहजता से बरताव कर रही थी…
"मैडम साहब लंगोट पहनते हैं क्या?"
सरयू सिंह का यह प्रश्न सुनकर मनोरमा खिलखिला कर हंस पड़ी …शराब के नशे ने उसकी खिलखिलाहट में मादकता और कामुकता भर दी…
मनोरमा अपना पेट पकड़ कर हंसने लगी। सरयू सिंह उसकी हंसी का कारण जानने को उत्सुक थे…उनके चेहरे पर अजीब से भाव आ रहे थे…
अपनी हंसी पर नियंत्रण कर मनोरमा ने कहा
"सरयू जी ध्यान से देखिए यह आपका ही है…बनारस महोत्सव ….मेरा कमरा … कुछ याद आया…"
सरयू सिंह को बनारस की वह रात याद आ गई जब मनोरमा से संभोग के उपरांत वह अपना लंगोट वही छोड़कर हड़बड़ी में बाहर निकल गए थे और बाद में लाख ढूंढने के बावजूद वह लंगोट उन्हें नहीं मिला था।
सरयू सिंह निरुत्तर हो गए उन्हें समझ ही नहीं आ रहा था कि वह क्या बोलें।
तभी मनोरमा ने गिलास में एक बार फिर वाइन डाल दिया और अपने बहक रहे कदमों पर खड़ी होकर सरयू सिंह को गिलास देने लगी.. उसी समय किसी खुली खिड़की से हवा का एक तेज झोंका आया और जल रही मोमबत्ती को बुझा गया।
मनोरमा का पैर न जाने कहां टकराया और वह लड़खड़ा कर सरयू सिंह की गोद में गिर पड़ी ..
सरयू सिंह ने उसे सहारा दिया और जब तक दोनों संभलते मनोरमा सरयू सिंह की जांघों पर बैठी हुई थी।
अपनी अवस्था देखकर मनोरमा ने शर्म से अपना चेहरा झुका लिया। परंतु सरयू सिंह अब पूरी तरह उत्तेजित हो चुके थे। मनोरमा का उनकी गोद में आना और उसकी कोमल जांघों के अहसास ने उनके लंड में तनाव बढ़ाना शुरू कर दिया था… ऐसा लग रहा था जैसे वह पुराने लंगोट को चीर कर बाहर आ जाएगा।
सरयू सिंह के हाथ मनोरमा की पीठ की तरफ से कमर पर आ चुके थे। हाथ में मक्खन का गोला हो और उंगलियां उनकी कोमलता का आनंद न ले यह असंभव था। सरयू सिंह की हथेलियां न जाने कब और कैसे ऊपर की तरफ बढ़ती गईं।
मन में छुपी वासना पर पड़े सभ्यता के आडंबर को शराब ने एक पल में धो दिया…
मनोरमा अपनी चुचियों की तरफ बढ़ती मजबूत उंगलियों को महसूस कर रही थी…उसकी धड़कन लगातार बढ़ रही थी। सरयू सिंह की आतुरता उसे असहज कर रही थी परंतु वह आंखें नीचे किए इस पल कों महसूस कर रही थी।हो…मनोरमा के कोमल गाल सरयू सिंह कि होठों से रगड़ खा रहे थे। उंगलियां चूचियों को छुएं इसके ठीक पहले मनोरमा ने अपनी गर्दन सरयू सिंह की तरफ घूमाई जैसे सरयू सिंह से कुछ कहना चाहती हो..
जैसे-जैसे मनोरमा घूमती गई उसके होंठ सरयू सिंह के होठों के करीब आते गए और जैसे ही लबों ने लबों को छुआ सरयू सिंह ने मनोरमा के कोमल और रसीले होंठ अपने होंठों के बीच भर लिए…
मनोरमा न जाने क्या कहने आई थी और क्या कर रही थी। उसकी बात उसके हलक में ही दफन हो गई और उसके होंठ सरयू सिंह के होठों से में समाहित होते चले गए।
उसे अपनी चुचियों का ध्यान भी न रहा जो अब सरयू सिंह के हाथों में आ चुकी थी…सरयू सिंह की उंगलियों का एहसास उसे तब हुआ जब उसके तने हुए निप्पल उंगलियों के बीच आए और सरयू सिंह ने अपनी उंगलियों से उनके तनाव को महसूस करने की कोशिश की। मनोरमा चिहुंक उठी…
आह ……तनी धीरे से…
मनोरमा कि यह कराह कुछ ज्यादा ही तीव्र थी शायद शराब के नशे में सरयू सिंह की उंगलियों ने कोमल निप्पलों को कुछ ज्यादा ही मसल दिया था…
सरयू सिंह लगातार मनोरमा को चूमे जा रहे थे …ऐसा लग रहा था जैसे जो दर्द उन्होंने मनोरमा के निप्पलों को दबा कर दिया था वह उसकी भरपाई करना चाह रहे थे।
उनकी उंगलियों ने चुचियों को छोड़कर वस्त्रों पर अपना ध्यान लगा लिया था…..नाइट सूट के बटन लगातार लगातार खुल रहे थे…. और मनोरमा का भरा हुआ सीना नग्न होता जा रहा था था सरयू सिंह के इशारे पर मनोरमा ने अपने दोनों हाथ फैलाए और सरयू सिंह ने नाइट सूट के ऊपरी भाग को मनोरमा के शरीर से अलग कर दिया…
सरयू सिंह यही न रुके.. मनोरमा की तनिक भी विरोध न करने की वजह से उनका उत्साह चरम पर पहुंच गया और एक ही झटके में मनोरमा के नाइट सूट का पजामा जमीन पर आ गया..
मनोरमा पूरी तरह नग्न हो चुकी थी। उसने भीतर पेंटिं न पहनी थी। उसकी तनी हुई चूचियां सरयू सिंह के मजबूत सीने से टकरा रही थी और उन्हें अपनी कोमलता का एहसास करा रही थीं। सरयू सिंह अभी भी मनोरमा को चूमे जा रहे थे।
सोफे पर लेटी हुई पिंकी पूरी शांति और तन्मयता से सो रही। और इधर उसकी मां मनोरमा उसके पिता की गोद में मोम की तरह पिघलती जा रही थी। हलक से नीचे उतर चुकी शराब अब शरीर के अंग अंग तक पहुंच चुकी थी और सरयू सिंह को एक अलग ही साहस दे रही थी उन्हें मनोरमा मैडम अब और अपनी लगने लगी थीं।
इस मिलन में व्यवधान तब आया जब सरयू सिंह की लंगोट खोलने की बारी आई। मामला फंस गया.. अंधेरे के कारण सरयू सिंह अपनी लंगोट का बंधन खोल पाने में असमर्थ हो रहे थे।
आज वही अंधेरा प्रेम क्रीडा में बाधक बन रहा था जिसने पिछली मुलाकात में दोनों को मिलाने में हम भूमिका अदा की थी।
आखिर मनोरमा को उनकी गोद से उठकर मोमबत्ती लेने टेबल के पास जाना पड़ा।
सरयू सिंह नंगी मनोरमा को अपनी गोद से कतई उतारना नहीं चाहते थे परंतु बिना औजार के फ्री में युद्ध हो नहीं सकता था मनोरमा और सधे हुए कदमों से बाहर कड़क रही बिजली की क्षणिक रोशनी में टेबल की तरफ बढ़ने लगी जब जब बिजली की रोशनी मनोरमा पर पड़ती उसकी मदमस्त काया सरयू सिंह के दिमाग में छप जाती गजब सुंदर काया थी मनोरमा की..
सरयू सिंह मनोरमा को नग्न देखने के लिए तड़प उठे..
मनोरमा ने मोमबत्ती एक बार फिर जला ली.. शायद शराब के नशे में वह यह भूल गई थी कि वह पूरी तरह नग्न थी..
नग्न मनोरमा वापस सरयू सिंह के पास आ रही थी..नंगी मनोरमा को कमरे में चलते हुए देखकर सरयू सिंह मदहोश हो रहे थे। ऐसी सुंदर और नग्न काया वह कई वर्षों बाद देख रहे थे। एक बार के लिए उनके मन में सुगना घूम गई…दिमाग ने सरयू सिंह को रोकना चाहा पर उनका लंड पूरे आवेग से थिरक उठा ऐसा लगा जैसे वह लंगोट के मजबूत आवरण को चीर कर बाहर आ जाएगा।
अपनी सम्मानित और प्रतिष्ठित मैडम को नग्न देखकर सरयू सिंह की आंखें झुक रही थी पर उनका मर्दाना स्वभाव कामातुर मनोरमा की खूबसूरती का आनद लेना चाहा रहा था।
दूसरी तरफ मनोरमा सरयू सिंह की कसरती और गठीली काया को निहारती हुई खुद को असहज महसूस कर रही थी। बाहर कड़क रही बिजली का प्रकाश जब शरीर सिंह के कसे हुए शरीर पर पड़ता वह और चमक उठता और मनोरमा उनके गठीला शरीर को देखकर मन ही मन सिहर रही थी उनकी मर्दानगी का अनुभव वह एक बार पहले ले चुकी थी और आज…. भी उसका तन बदन स्वत ही सरयू सिंह के आगोश में आने को तैयार हो चुका था।
मोमबत्ती की रोशनी लाल लंगोट पर पड़ रही थी लंगोट में पड़ चुकी गांठ के खुलने का वक्त आ चुका था… सरयू सिंह के हांथ बहक रहे हाथ वह उस गांठ को खोलने में खुद को असमर्थ महसूस कर रहे थे अंततः मनोरमा ने अपनी पतली उंगलियों को मैदान में उतारा और सरयू सिंह के लंगोट की गांठ खुल गई। सरयू सिंह का तन्नाया हुआ लंड पूरी ताकत से उछलकर मनोरमा के सामने आ गया……
मनोरमा…. सरयू सिंह ने खड़े लंड को देखकर पानी पानी हो गई…. उसकी शर्म उस पर हावी हुई और वह अपनी आंखें और न खोल पाई….
पर सरयू सिंह अब अपनी रौ में आ चुके थे शराब ने उनके मन में हिम्मत भर दी थी..उन्होंने मोर्चा संभाल लिया…
शेष अगले भाग में….