26-05-2022, 02:22 PM
दीदी ने मेरे हाथो को जोर से झटक दिया और एक दम सीधी बैठती हुई बोली “हरामी…सूअर…क्या कर रहा….था…शर्म नहीं आती तुझे….” कहते हुए आगे बढ़ कर चटक से मेरी गाल पर एक जोर दार थप्पड़ रशीद कर दिया. इस जोरदार झापड़ ने मुझे ऊपर से निचे तक एक दम झन-झना दिया. मेरे होश उर चुके थे. गाल पर हाथ रखे वही हतप्रभ सा खड़ा मैं निचे देख रहा था. दीदी से नज़र मिलाने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था. दीदी ने एक बार फिर से मेरा हाथ पकर लिया और अपने पास खींचते हुए मुझे ऊपर से निचे तक देखा. मैं काँप रहा था. मुझे लग रहा था जैसे मेरे पैरों की सारी ताकत खत्म हो चुकी है और मैं अब निचे गिर जाऊंगा. तभी दीदी ने एक बार फिर कड़कती हुई आवाज़ में पूछा “कमीने…क्या कर रहा था…जवाब क्यों नहीं देता….” फिर उनकी नज़रे मेरे हाफ पैंट पर पड़ी जो की आगे से अभी भी थोड़ा सा उभरा हुआ दिख रहा था. हिकारत भरी नजरो से मुझे देखते हुए बोली “यही काम करने के लिए तू….मेरे पास….छि….उफ़….कैसा सूअर…..”. मेरे पास बोलने के लिए कुछ भी नहीं था मगर फिर भी हिम्मत करके हकलाते हुए मैं बोला “वो दीदी…माफ़..मैं…..मुझे…माफ़…मैं अब…आ….आगे…” पर दीदी ने फिर से जोर से अपना हाथ चलाया. चूँकि वो बैठी हुई थी और मैं खड़ा था इसलिए उनका हाथ सीधा मेरे पैंट के लगा. ऐसा उन्होंने जान-बूझ कर किया था या नहीं मुझे नहीं पता मगर उनका हाथ थोड़ा मेरे लण्ड पर लगा और उन्होंने अपना हाथ झटके से ऐसे पीछे खिंच लिया जैसे बिजली के नंगे तारो ने उन को छू लिया हो और एकदम दुखी स्वर में रुआंसी सी होकर बोली “उफ़….कैसा लड़का है…..अगर माँ सुनेगी….तो क्या बोलेगी…ओह…मेरी तो समझ में नहीं आ रहा…मैं क्या करू…”. बात माँ तक पहुचेगी ये सुनते ही मेरी गांड फट गई. घबरा कर कैसे भी बात को सँभालने के इरादे से हकलाता हुआ बोला “दीदी…प्लीज़….माफ़…कर दो…प्लीज़….अब कभी…ऐसा…नहीं होगा….मैं बहक गया…था…आज के बाद…प्लीज़ दीदी…प्लीज़…मैं कही मुंह नहीं दिखा पाउँगा…मैं आपके पैर….” कहते हुए मैं दीदी के पैरों पर गिर पड़ा. दीदी इस समय एक पैर घुटनों के पास से मोर कर बिस्तर पर पालथी मारने के अंदाज में रखा हुआ था और दूसरा पैर घुटना मोर कर सामने सीधा रखे हुए थी. मेरी आँखों से सच में आंसू निकलने लगे थे और वो दीदी के पैर के तलवे के उपरी भाग को भींगा रहे थे. मेरी आँखों से निकलते इन प्रायश्चित के आंसुओं ने शायद दीदी को पिघला दिया और उन्होंने धीरे से मेरे सर को ऊपर की तरफ उठाया. हालाँकि उनका गुस्सा अभी भी कम नहीं हुआ था और वो उनकी आँखों में दिख रहा था मगर अपनी आवाज़ में थोड़ी कोमलता लाते हुए बोली “ये क्या कर रहा था तू…..तुझे लोक लाज…मान मर्यादा किसी भी चीज़ की चिंता नहीं….मैं तेरी बड़ी बहन हूँ….मेरी और तेरी उम्र के बीच…नौ साल का फासला है….ओह मैं क्या बोलू मेरी समझ में नहीं आ रहा….ठीक है तू बड़ा हो गया है…मगर…..क्या यही तरीका मिला था तुझे….उफ़…” दीदी की आवाज़ की कोमलता ने मुझे कुछ शांति प्रदान की हालाँकि अभी भी मेरे गाल उनके तगड़े झापर से झनझना रहे थे और शायद दीदी की उँगलियों के निशान भी मेरी गालों पर उग गए थे. मैं फिर से रोते हुए बोला “प्लीज़ दीदी मुझे…माफ़ कर दो…मैं अब दुबारा ऐसी…गलती….”. दीदी मुझे बीच में काटते हुए बोली “मुझे तो तेरे भविष्य की चिंता हो रही है….तुने जो किया सो किया पर मैं जानती हूँ…तू अब बड़ा हो चूका है….तू क्या करता है…. कही तू अपने शरीर को बर्बाद….तो नहीं…कर रहा है”
मैंने इसका मतलब नहीं समझ पाया. हक्का बक्का सा दीदी का मुंह ताकता रहा. दीदी ने मेरे से फिर पूछा “कही….तू कही….अपने हाथ से तो नहीं….”. अब दीदी की बात मेरी समझ में आ गई. दीदी का ये सवाल पूछना वाजिब था क्योंकि मेरी हरकतों से उन्हें इस बात का अहसास तो हो ही चूका था की मैंने आज तक किसी लड़की के साथ कुछ किया नहीं था और उन्हें ये भी पता था की मेरे जैसे लड़के अपने हाथो से काम चलाते है. पर मैं ये सवाल सुन कर हक्का बक्का सा रह गया गया. मेरे होंठ सुख गए और मैं कुछ बोल नहीं पाया. दीदी ने फिर से मेरी बाँहों को पकड़ मुझे झकझोरा और पूछा “बोलता क्यों नहीं है….मैं क्या पूछ रही हूँ….तू अपने हाथो से तो नहीं करता…” मैंने नासमझ होने का नाटक किया और बोला “हाथो से दीदी…म म मैं समझा नहीं…”
“देख….इतना तो मैं समझ चुकी हु की तू लड़कियों के बारे में सोचता..है…इसलिए पूछ रही हु तू अपने आप को शांत करने के लिए….जैसे तू अभी मेरे साथ…उफ़ बोलने में भी शर्म आ रही पर….अभी जब तेरा….ये तन जाता है तो अपने हाथो से शांत करता है क्या…इसे…” मेरे पैंट के उभरे हुए भाग की तरफ इशारा करते हुए बोली. अब दीदी अपनी बात को पूरी तरह से स्पष्ट कर चुकी थी मैं कोई बहाना नहीं कर सकता था गर्दन झुका कर बोला “दी…दीदी…वो वो…मुझे माफ़ कर…माफ़…” एक बार फिर से दीदी का हाथ चला और मेरी गाल फिर से लाल हो गई “क्या दीदी, दीदी कर रहा है…जो पूछ रही हूँ साफ़ साफ़ क्यों नहीं बताता….हाथ से करता है….यहाँ ऊपर पलंग पर बैठ…बता मुझे…” कहते हुए दीदी ने मेरे कंधो को पकड़ ऊपर उठाने की कोशिश की. दीदी को एक बार फिर गुस्से में आता देख मैं धीरे से उठ कर दीदी के सामने पलंग पर बैठ गया और एक गाल पर हाथ रखे हुए अपनी गर्दन निचे किये हुए धीरे से बोला “हाँ…हाथ से……हाथ से…करता…” मैं इतना बोल कर चुप हो गया. हम दोनों के बीच कुछ पल की चुप्पी छाई रही फिर दीदी गहरी सांस लेते हुए बोली “इसी बात का मुझे डर था….मुझे लग रहा था की इन सब चक्करों में तू अपने आप को बर्बाद कर रहा है…” फिर मेरी ठोढी पकड़ कर मेरे चेहरे को ऊपर उठा कर ध्यान से देखते हुए बोली “मैंने…तुझे मारा…उफ़…देख कैसा निशान पर गया है…पर क्या करती मैं मुझे गुस्सा आ गया था….खैर मेरे साथ जो किया सो किया……पर भाई…सच में मैं बहुत दुखी हूँ…..तुम जो ये काम करते हो ये…..ये तो…” मेरे अन्दर ये जान कर थोड़ी सी हिम्मत आ गई की मैंने दीदी के बदन को देखने की जो कोशिश की थी उस बात से दीदी अब नाराज़ नहीं है बल्कि वो मेरे मुठ मरने की आदत से परेशान है. मैं दीदी की ओर देखते हुए बोला “सॉरी दीदी…मैं अब नहीं….करूँगा…”
“भाई मैं तुम्हारे भले के लिए ही बोल रही हूँ…तुम्हारा शरीर बर्बाद कर देगा…ये काम…..ठीक है इस उम्र में लड़कियों के प्रति आकर्षण तो होता है….मगर…ये हाथ से करना सही नहीं है….ये ठीक नहीं है… राजू तुम ऐसा मत करो आगे से….”
“ठीक है दीदी….मुझे माफ़ कर दो मैं आगे से ऐसा नहीं करूँगा…मैं शर्मिंदा हूँ….” मैंने अपनी गर्दन और ज्यादा झुकाते हुए धीरे से कहा. दीदी एक पल को चुप रही फिर मेरी ठोड़ी पकड़ कर मेरे चेहरे को ऊपर उठाती हुई हल्का सा मुस्कुराते हुई बोली “मैं तुझे अच्छी लगती हूँ क्या….” मैं एकदम से शर्मा गया मेरे गाल लाल हो गए और झेंप कर गर्दन फिर से निचे झुका ली. मैं दीदी के सामने बैठा हुआ था दीदी ने हाफ पैंट के बाहर झांकती मेरी जांघो पर अपना हाथ रखा और उसे सहलाती हुई धीरे से अपने हाथ को आगे बढा कर मेरे पैंट के उभरे हुए भाग पर रख दिया.
मैंने इसका मतलब नहीं समझ पाया. हक्का बक्का सा दीदी का मुंह ताकता रहा. दीदी ने मेरे से फिर पूछा “कही….तू कही….अपने हाथ से तो नहीं….”. अब दीदी की बात मेरी समझ में आ गई. दीदी का ये सवाल पूछना वाजिब था क्योंकि मेरी हरकतों से उन्हें इस बात का अहसास तो हो ही चूका था की मैंने आज तक किसी लड़की के साथ कुछ किया नहीं था और उन्हें ये भी पता था की मेरे जैसे लड़के अपने हाथो से काम चलाते है. पर मैं ये सवाल सुन कर हक्का बक्का सा रह गया गया. मेरे होंठ सुख गए और मैं कुछ बोल नहीं पाया. दीदी ने फिर से मेरी बाँहों को पकड़ मुझे झकझोरा और पूछा “बोलता क्यों नहीं है….मैं क्या पूछ रही हूँ….तू अपने हाथो से तो नहीं करता…” मैंने नासमझ होने का नाटक किया और बोला “हाथो से दीदी…म म मैं समझा नहीं…”
“देख….इतना तो मैं समझ चुकी हु की तू लड़कियों के बारे में सोचता..है…इसलिए पूछ रही हु तू अपने आप को शांत करने के लिए….जैसे तू अभी मेरे साथ…उफ़ बोलने में भी शर्म आ रही पर….अभी जब तेरा….ये तन जाता है तो अपने हाथो से शांत करता है क्या…इसे…” मेरे पैंट के उभरे हुए भाग की तरफ इशारा करते हुए बोली. अब दीदी अपनी बात को पूरी तरह से स्पष्ट कर चुकी थी मैं कोई बहाना नहीं कर सकता था गर्दन झुका कर बोला “दी…दीदी…वो वो…मुझे माफ़ कर…माफ़…” एक बार फिर से दीदी का हाथ चला और मेरी गाल फिर से लाल हो गई “क्या दीदी, दीदी कर रहा है…जो पूछ रही हूँ साफ़ साफ़ क्यों नहीं बताता….हाथ से करता है….यहाँ ऊपर पलंग पर बैठ…बता मुझे…” कहते हुए दीदी ने मेरे कंधो को पकड़ ऊपर उठाने की कोशिश की. दीदी को एक बार फिर गुस्से में आता देख मैं धीरे से उठ कर दीदी के सामने पलंग पर बैठ गया और एक गाल पर हाथ रखे हुए अपनी गर्दन निचे किये हुए धीरे से बोला “हाँ…हाथ से……हाथ से…करता…” मैं इतना बोल कर चुप हो गया. हम दोनों के बीच कुछ पल की चुप्पी छाई रही फिर दीदी गहरी सांस लेते हुए बोली “इसी बात का मुझे डर था….मुझे लग रहा था की इन सब चक्करों में तू अपने आप को बर्बाद कर रहा है…” फिर मेरी ठोढी पकड़ कर मेरे चेहरे को ऊपर उठा कर ध्यान से देखते हुए बोली “मैंने…तुझे मारा…उफ़…देख कैसा निशान पर गया है…पर क्या करती मैं मुझे गुस्सा आ गया था….खैर मेरे साथ जो किया सो किया……पर भाई…सच में मैं बहुत दुखी हूँ…..तुम जो ये काम करते हो ये…..ये तो…” मेरे अन्दर ये जान कर थोड़ी सी हिम्मत आ गई की मैंने दीदी के बदन को देखने की जो कोशिश की थी उस बात से दीदी अब नाराज़ नहीं है बल्कि वो मेरे मुठ मरने की आदत से परेशान है. मैं दीदी की ओर देखते हुए बोला “सॉरी दीदी…मैं अब नहीं….करूँगा…”
“भाई मैं तुम्हारे भले के लिए ही बोल रही हूँ…तुम्हारा शरीर बर्बाद कर देगा…ये काम…..ठीक है इस उम्र में लड़कियों के प्रति आकर्षण तो होता है….मगर…ये हाथ से करना सही नहीं है….ये ठीक नहीं है… राजू तुम ऐसा मत करो आगे से….”
“ठीक है दीदी….मुझे माफ़ कर दो मैं आगे से ऐसा नहीं करूँगा…मैं शर्मिंदा हूँ….” मैंने अपनी गर्दन और ज्यादा झुकाते हुए धीरे से कहा. दीदी एक पल को चुप रही फिर मेरी ठोड़ी पकड़ कर मेरे चेहरे को ऊपर उठाती हुई हल्का सा मुस्कुराते हुई बोली “मैं तुझे अच्छी लगती हूँ क्या….” मैं एकदम से शर्मा गया मेरे गाल लाल हो गए और झेंप कर गर्दन फिर से निचे झुका ली. मैं दीदी के सामने बैठा हुआ था दीदी ने हाफ पैंट के बाहर झांकती मेरी जांघो पर अपना हाथ रखा और उसे सहलाती हुई धीरे से अपने हाथ को आगे बढा कर मेरे पैंट के उभरे हुए भाग पर रख दिया.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.