25-05-2022, 04:43 PM
स सब काम में बाबूजी को लगभग 15 मिनट लगे थे, करीब दो मिनट बाद बाबूजी ने भाभी के होंठ चूमे और गाल थपथपाये और बिस्तर से उतरने लगे.
अब मुझे लगा कि बाबूजी सीधे बाहर ही आएंगे. मैंने तुरंत दरवाजे से आँख हटाई और अपने कमरे में बिस्तर पर बैठ गयी।
बस एक मिनट बाद ही भाभी के कमरे दरवाजा खुलने आयी और मैंने गैलरी में बाबूजी को जल्दी जल्दी माँ के कमरे में जाते देखा.
तो मेरा अंदाज सच था कि बाबू जी भाभी को चोद कर निकले हैं अभी।
मैं बिस्तर पर लेट कर सोचती रही कि बाबूजी तो बहुत तगड़े धसकी (ठरकी) हैं औरत के।
और गजब यह कि इस उम्र में भी बाबूजी के अंदर पूरा करेंट है.
मैं करीब करीब 15 मिनट तक इंतजार करती रही फिर मैं टोर्च लेकर भाभी के कमरे की तरफ गयी तो उनके कमरे खुला हुआ था. अंदर से कोई भी आवाज नहीं आ रही थी.
मैंने सावधानी से टोर्च की ररोशनी इधर उधर डाली ताकि भाभी जगी हो तो पूछ लें कि ‘अरे रमा इतनी रात क्या ढूंढ रही हो?’
फिर मैंने बिस्तर पर नजर डाली भाभी बेखबर करवट ले कर सोई हुई थी, उनकी गांड मेरी तरफ थी और उनका दायाँ घुटना आगे मुड़ा हुआ था और बायीं जांघ सीधी थी.
भाभी की चूत काफी उभरी हुई थी और फटी हुई चूत से गाढ़ा गाढ़ा सफ़ेद वीर्य निकल कर उनकी गोरी जांघ पर फैला हुआ था. लग रहा था कि भाभी की अच्छी तरह रगड़ाई हुई है. तभी थक कर सोई हुई हैं. उनके बाल बिखरे थे और गाल पर हल्के से दांतों के निशान बने हुए थे.
यह मेरे लिए बहुत ही कौतुहल का विषय था कि मेरा बाप अपनी ही बहू (पुत्रवधू) को चोद रहा था और मेरे सिवा किसी को भनक तक नहीं लगी.
मेरी फुद्दी इस काण्ड को देख कर मचलने लगी थी. मैंने नीचे हाथ लगाया तो पूरी दरार गीली हो चुकी थी. मैंने एक नजर अपने बेटे पर डाली, वो गहरी नींद में सोया हुआ था.
मैंने अपनी उंगली छेद में घुसेड़ दी और काफी तेजी से 35-40 बार चलायी और झड़ गयी.
बाबूजी ने भाभी की चीखें निकलवा दी थी. ऐसा तो मेरा पति भी नहीं कर सका था. मेरा पति रमेश कुछ ही मिनट में पसर जाता था.
और इधर बाबूजी ने भाभी को बिस्तर पर चित कर रखा था.
इसके बाद मुझे भी नींद आ गयी.
सुबह सब घर के काम में ऐसे लगे हुए थे जैसे कुछ हुआ ही न हो!
भाभी भी मेरे पिताजी को आवाज दे रही थी- पापा जी … चाय पी लो!
यह देख कर मेरा सिर चकरा गया कि ‘अरे कैसी बहू है जो रात भर ससुर के नीचे चुदती, कराहती रही और आज इतने प्यार से उन्हें चाय के लिए बोल रही है.’
अगली रात मैं इंतजार करती रही पर बेकार … यह नजारा मुझे देखने को नहीं मिला.
पर मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी थी.
तीसरे दिन रात को फिर वो ही घटनाक्रम … बाबूजी ने दरवाजा भेड़ा, मैं उठी और दोनों ने पहले बिना कुछ बोले काम क्रीड़ा की और भाभी उनके बिना कहे बिस्तर पर मुंधी(उलटी) हुई और फिर उनके पीछे बाबूजी खड़े हो गए फर्श पर और फिर कैसे 12 मिनट बीते, ये पता ही नहीं चला. भाभी की सिसकारियों से पूरा कमरा भर गया था और बाबूजी एक नवयुवती की जवानी का भरपूर मजा ले रहे थे।
बाबूजी काफी देर में झड़ते थे, यह देख कर मुझे भाभी से ईर्ष्या होने लगी कि कैसे इस औरत ने मेरे बाप को कब्जे में कर रखा है; और वो भी सिर्फ अपने सुन्दर जवान बदन से!
आखिर इसे मेरे बाप में ऐसा क्या दिखा कि ये रात को कुछ भी नहीं बोलती और न ही मना करती है, सब कुछ ऐसे होता था जैसे मशीन करती थी।
अब मुझे लगा कि बाबूजी सीधे बाहर ही आएंगे. मैंने तुरंत दरवाजे से आँख हटाई और अपने कमरे में बिस्तर पर बैठ गयी।
बस एक मिनट बाद ही भाभी के कमरे दरवाजा खुलने आयी और मैंने गैलरी में बाबूजी को जल्दी जल्दी माँ के कमरे में जाते देखा.
तो मेरा अंदाज सच था कि बाबू जी भाभी को चोद कर निकले हैं अभी।
मैं बिस्तर पर लेट कर सोचती रही कि बाबूजी तो बहुत तगड़े धसकी (ठरकी) हैं औरत के।
और गजब यह कि इस उम्र में भी बाबूजी के अंदर पूरा करेंट है.
मैं करीब करीब 15 मिनट तक इंतजार करती रही फिर मैं टोर्च लेकर भाभी के कमरे की तरफ गयी तो उनके कमरे खुला हुआ था. अंदर से कोई भी आवाज नहीं आ रही थी.
मैंने सावधानी से टोर्च की ररोशनी इधर उधर डाली ताकि भाभी जगी हो तो पूछ लें कि ‘अरे रमा इतनी रात क्या ढूंढ रही हो?’
फिर मैंने बिस्तर पर नजर डाली भाभी बेखबर करवट ले कर सोई हुई थी, उनकी गांड मेरी तरफ थी और उनका दायाँ घुटना आगे मुड़ा हुआ था और बायीं जांघ सीधी थी.
भाभी की चूत काफी उभरी हुई थी और फटी हुई चूत से गाढ़ा गाढ़ा सफ़ेद वीर्य निकल कर उनकी गोरी जांघ पर फैला हुआ था. लग रहा था कि भाभी की अच्छी तरह रगड़ाई हुई है. तभी थक कर सोई हुई हैं. उनके बाल बिखरे थे और गाल पर हल्के से दांतों के निशान बने हुए थे.
यह मेरे लिए बहुत ही कौतुहल का विषय था कि मेरा बाप अपनी ही बहू (पुत्रवधू) को चोद रहा था और मेरे सिवा किसी को भनक तक नहीं लगी.
मेरी फुद्दी इस काण्ड को देख कर मचलने लगी थी. मैंने नीचे हाथ लगाया तो पूरी दरार गीली हो चुकी थी. मैंने एक नजर अपने बेटे पर डाली, वो गहरी नींद में सोया हुआ था.
मैंने अपनी उंगली छेद में घुसेड़ दी और काफी तेजी से 35-40 बार चलायी और झड़ गयी.
बाबूजी ने भाभी की चीखें निकलवा दी थी. ऐसा तो मेरा पति भी नहीं कर सका था. मेरा पति रमेश कुछ ही मिनट में पसर जाता था.
और इधर बाबूजी ने भाभी को बिस्तर पर चित कर रखा था.
इसके बाद मुझे भी नींद आ गयी.
सुबह सब घर के काम में ऐसे लगे हुए थे जैसे कुछ हुआ ही न हो!
भाभी भी मेरे पिताजी को आवाज दे रही थी- पापा जी … चाय पी लो!
यह देख कर मेरा सिर चकरा गया कि ‘अरे कैसी बहू है जो रात भर ससुर के नीचे चुदती, कराहती रही और आज इतने प्यार से उन्हें चाय के लिए बोल रही है.’
अगली रात मैं इंतजार करती रही पर बेकार … यह नजारा मुझे देखने को नहीं मिला.
पर मैंने उम्मीद नहीं छोड़ी थी.
तीसरे दिन रात को फिर वो ही घटनाक्रम … बाबूजी ने दरवाजा भेड़ा, मैं उठी और दोनों ने पहले बिना कुछ बोले काम क्रीड़ा की और भाभी उनके बिना कहे बिस्तर पर मुंधी(उलटी) हुई और फिर उनके पीछे बाबूजी खड़े हो गए फर्श पर और फिर कैसे 12 मिनट बीते, ये पता ही नहीं चला. भाभी की सिसकारियों से पूरा कमरा भर गया था और बाबूजी एक नवयुवती की जवानी का भरपूर मजा ले रहे थे।
बाबूजी काफी देर में झड़ते थे, यह देख कर मुझे भाभी से ईर्ष्या होने लगी कि कैसे इस औरत ने मेरे बाप को कब्जे में कर रखा है; और वो भी सिर्फ अपने सुन्दर जवान बदन से!
आखिर इसे मेरे बाप में ऐसा क्या दिखा कि ये रात को कुछ भी नहीं बोलती और न ही मना करती है, सब कुछ ऐसे होता था जैसे मशीन करती थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.