25-05-2022, 03:13 PM
लड़के में दम था; मुझे खूब पेला उसने। एक बार मैं झड़ चुकी थी, तो इस बार मुझे टाइम ज़्यादा लगने वाला था। मगर वो भी कम नहीं था। वो पेलता रहा, मैं भी भर भर के पानी अपनी फुद्दी से छोड़ती रही। कई बार उसने बिस्तर की चादर से मेरी फुद्दी के पानी में भीगा अपना लंड साफ किया और सूखा लंड अंदर डाल कर फिर से चोदा।
कुछ देर सीधा चोदने के बाद फिर घोड़ी बना कर चोदा, फिर मुझे उल्टा लेटा कर चोदा, खड़ी करके चोदा, हर तरह से उसने अपने शौक मुझसे पूरे किए।
मैंने पूछा- पहले कभी किया है?
वो बोला- हाँ, सिर्फ दो बार अपनी पहली गर्ल फ्रेंड के साथ। मगर वो नखरे बड़े करती थी इसीलिए छोड़ दिया।
मैंने पूछा- और मैं?
वो बोला- अरे आप तो बहुत को ओपेरेटिव हो। और आपको ये सब पहले से पता है तो मुझसे ज़्यादा तजुर्बेकार हो। बचपन से इच्छा थी कि कोई शादीशुदा, आंटी या भाभी मिल जाए चोदने को। आज वो इच्छा भी पूरी हो गई।
वक्त कैसे गुज़रता है पता ही नहीं चला। वो मुझे धीरे धीरे चोदता रहा, चूमता रहा, प्यार करता रहा। मुझे तब अहसास हुआ जब मेरा दूसरी बार पानी गिरा। मैं उससे बात करते करते एकदम से उस से चिपक गई और इतना उत्तेजित हो गई कि जब मैं झड़ी तो मैंने उसकी गर्दन पर काट लिया।
बेशक उसे दर्द हुआ पर उसने दर्द की कोई परवाह नहीं की। शायद इसी लिए कहते हैं कि मर्द को दर्द नहीं होता।
अपनी 23 साल की ज़िंदगी में और 2 साल की शादीशुदा ज़िंदगी में पहली बार, लंड से चुद कर मैं झड़ी। यह फीलिंग तो मेरे लिए बहुत ही ज़्यादा खुशी और संतुष्टि की थी। अपनी उंगली से या पति की जीभ से मिलने वाली फीलिंग से भी कहीं बड़ी।
मैं उसके साथ पूरा कस कर चिपक गई, इतनी ज़ोर से कि उसको हिलना मुश्किल हो गया। मगर मैं तो उसके अंदर घुस जाना चाहती थी। एकदम से जैसे मेरे सारे बदन पर पसीना आ गया। मैं भाव शून्य हो गई … न मरी न ज़िंदा, जिस्म एकदम से हल्का।
कुछ देर मैं आँख बंद किए इसी अहसास को जीती रही। फिर मेरी पकड़ ढीली हुई, तो उसने फिर से अपनी कमर हिलानी शुरू की। मैं अब बिल्कुल निढाल होकर बिस्तर पर गिरी पड़ी थी और वो दबादब मुझे चोद रहा था, अपना लंड पूरे ज़ोर से अंदर तक डाल डाल कर मुझे चोद रहा था। शायद उसने भी झड़ना था।
मगर मैं तो जैसे किसी जादू में बांध ली गई थी। फिर मुझे लगा जैसे कोई गर्म गर्म शहद गिरा हो! और … और … और! भर गई मैं … इतना भर गई कि मैं उसकी मर्दानगी को संभाल नहीं पाई, और उसकी मर्दानगी का रस मेरे जिस्म को भर कर बाहर तक बह गया, आज मैं परिपूर्ण हो गई। पूरी तरह से संतुष्ट, पूरी तरह से तृप्त। अब मेरी कोई ख़्वाहिश अधूरी नहीं रही थी।
जब उसका हो गया तो मेरी बगल में लेट गया, मेरे मम्मों से खेलने लगा। हम दोनों एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे।
उसने पूछा- क्या देख रही हो?
मैंने कहा- देख रही हूँ, एक सम्पूर्ण मर्द कैसा होता है।
उसने पूछा- कैसा होता है?
मैंने कहा- तेरे जैसे … जो अपनी संगिनी को अपनी मर्दानगी से तृप्त कर दे।
उसने पूछा- आप तृप्त हुई?
मैंने कहा- हाँ पूरी तरह से।
वो बोला- मगर मेरा मन नहीं भरा; मैं एक बार और करूंगा।
मैंने कहा- मेरी क्या औकात जो मैं अपने तन मन के मालिक को ना कह सकूँ।
वो उठा और आकर मेरी छाती पर बैठ गया- तो ले चूस इसे थोड़ा सा।
मैंने उसका ढीला सा लंड अपने मुँह में लिया, थोड़ी देर चूसा तो वो फिर से अकड़ गया, जब उसका लंड पूरा अकड़ गया तो उसने मेरी टाँगें खोली और बिस्तर की चादर से मेरी फुद्दी साफ की और अपना लंड फिर से मेरी फुद्दी में डाल दिया।
मगर इस बार उसका बर्ताव ऐसा था कि जैसे मैं उसकी पत्नी ही होऊं। पूरे अधिकार के साथ वो फिर से मुझे चोदने लगा। मैं इस बार उत्साहित नहीं थी क्योंकि उसका दम-खम मैं देख चुकी थी।
इस बार भी उसने मुझे बहुत जम कर पेला। इस बार मैं भी खूब उछली, नीचे से पूरे ज़ोर से मैंने कमर चलाई। ऊपर से वो। फिर उसने मुझे ऊपर बुलाया। मैं उसके ऊपर बैठी, उसका लंड पकड़ कर अपनी फुद्दी पर रखा और अंदर लिया, मैंने भी अपनी पूरी ताकत लगा दी, हम दोनों में जैसे कोई मुक़ाबला हो रहा हो, एक दूसरे को पछाड़ने, एक दूसरे को पहले स्खलित करने का। मगर इस मामले में मैं हार गई। उसके लंड के मेरी जिस्म अंदर चोट करने से मैं बेहाल हुई जा रही थी।
फिर मैंने पाला बदला- तुम ऊपर आ जाओ, मैं और नहीं रुक पाऊँगी।
एक ही झटके में वो ऊपर और मैं नीचे आ गई। मैंने खुद ही उसका लंड पकड़ कर अपनी फुद्दी पर रखा, उसने अंदर डाला- बहुत बेताब हो रही हो।
उसने कहा- मैं बस मरने ही वाली हूँ।
और बस उसकी दो मिनट चुदाई से ही मैं फिर से बिखर गई। फिर से वही आनन्द का समंदर मेरे जिस्म से फूटा, मैं इतनी ज़्यादा भावविहल हो गई कि मैं रो पड़ी, मेरी आँखों से आँसू निकल पड़े।
उसने पूछा भी- क्या हुआ?
मगर मैंने उसका कंधा थपथपा कर उसे करते रहने को कहा।
वो लगा रहा और कितनी देर मुझे भोगता रहा, मैं भी उस दिन बहुत रोई, इस आनन्द के लिए, इस काम तृप्ति के लिए मैं कब से तरस रही थी। पति से बहुत कोशिश की कि यही तृप्ति मुझे मिले।
मगर मिली तो कहाँ मिली … अपने पड़ोस के एक लड़के से, अपने से छोटी उम्र का … शादी के पवित्र बंधन को तोड़ कर।
लेकिन इस तृप्ति के लिए मुझे कोई भी कीमत कम लगती है। अगर आप खुश नहीं, तृप्त नहीं, तो क्या फायदा जीने का।
कुछ देर और … और फिर वो भी झड़ा, मगर इस बार उसने कुछ ज़्यादा ही ज़ोर लगाया, जिससे उसका लिंग मेरी योनि के बहुत अंदर तक जा कर चोट कर रहा था। मेरे जिस्म के अंदर तक दर्द हो रहा था।
मगर जब उसका गर्म वीर्य फिर से मेरी वजूद को भर गया। मैं फिर से पपीहे की तरह स्वाति बूंद पी कर जैसे अनंत काल के लिए संतुष्ट हो गई।
कुछ देर वो मेरे साथ लेटा रहा, फिर उसने कहा- अब मुझे जाना है।
वो उठा और कपड़े पहन कर चला गया।
मैं कितनी देर नंगी ही लेटी रही। बहुत देर बाद मैं उठ कर बाथरूम में गई, बाथरूम में मेरे पूरा आदम कद शीशा लगा है। मैंने उसमे खुद को देखा। गोरे बदन पर कई जगह निशान बन गए थे। मगर मैं अपने आप को इतना खूबसूरत कभी नहीं देखा था। बाल बिखरे थे, लिपस्टिक चूस ली गई, सारा मेकअप चाट लिया गया।
एक तरह से लुटी हुई … मगर फिर भी कितनी आभा थी मेरे चेहरे पर!
मेरे पहले प्रेम की … या पहले विश्वासघात की!
मगर जो भी हो, मुझे कभी शीशे ने इतना सुंदर नहीं दिखाया था।
पहले मैं नहाई, फिर से तैयार हुई, अपने कमरे को ठीक किया, फिर घर के काम में लग गई।
उसके बाद हम दोनों में ऐसे बहुत से मिलन हुये। हर बार वो मुझे और ज़्यादा संतुष्ट करके जाता। अब अपने पति में मुझे कोई भी दिलचस्पी नहीं रही। जब वो कहते तो मैं करती तो उनसे भी, मगर उन्हें सिर्फ मेरा तन मिलता, मन तो मैं अपने उस प्रेमी को दे चुकी थी।
इस तरह शुरू हुई, मेरी शादी से बाहर सेक्स करने की शुरुआत। उसके बाद तो कई लोग आए और गए। यहाँ तक के मैंने अपने एक स्टूडेंट से भी सेक्स किया। मगर वो कमीना प्यार प्यार करते करते मुझे एक बार अपने रूम में ले गया, और वहाँ उन 4 लड़को ने मिल कर मेरे से सेक्स किया।
वो कहानी फिर कभी!
कुछ देर सीधा चोदने के बाद फिर घोड़ी बना कर चोदा, फिर मुझे उल्टा लेटा कर चोदा, खड़ी करके चोदा, हर तरह से उसने अपने शौक मुझसे पूरे किए।
मैंने पूछा- पहले कभी किया है?
वो बोला- हाँ, सिर्फ दो बार अपनी पहली गर्ल फ्रेंड के साथ। मगर वो नखरे बड़े करती थी इसीलिए छोड़ दिया।
मैंने पूछा- और मैं?
वो बोला- अरे आप तो बहुत को ओपेरेटिव हो। और आपको ये सब पहले से पता है तो मुझसे ज़्यादा तजुर्बेकार हो। बचपन से इच्छा थी कि कोई शादीशुदा, आंटी या भाभी मिल जाए चोदने को। आज वो इच्छा भी पूरी हो गई।
वक्त कैसे गुज़रता है पता ही नहीं चला। वो मुझे धीरे धीरे चोदता रहा, चूमता रहा, प्यार करता रहा। मुझे तब अहसास हुआ जब मेरा दूसरी बार पानी गिरा। मैं उससे बात करते करते एकदम से उस से चिपक गई और इतना उत्तेजित हो गई कि जब मैं झड़ी तो मैंने उसकी गर्दन पर काट लिया।
बेशक उसे दर्द हुआ पर उसने दर्द की कोई परवाह नहीं की। शायद इसी लिए कहते हैं कि मर्द को दर्द नहीं होता।
अपनी 23 साल की ज़िंदगी में और 2 साल की शादीशुदा ज़िंदगी में पहली बार, लंड से चुद कर मैं झड़ी। यह फीलिंग तो मेरे लिए बहुत ही ज़्यादा खुशी और संतुष्टि की थी। अपनी उंगली से या पति की जीभ से मिलने वाली फीलिंग से भी कहीं बड़ी।
मैं उसके साथ पूरा कस कर चिपक गई, इतनी ज़ोर से कि उसको हिलना मुश्किल हो गया। मगर मैं तो उसके अंदर घुस जाना चाहती थी। एकदम से जैसे मेरे सारे बदन पर पसीना आ गया। मैं भाव शून्य हो गई … न मरी न ज़िंदा, जिस्म एकदम से हल्का।
कुछ देर मैं आँख बंद किए इसी अहसास को जीती रही। फिर मेरी पकड़ ढीली हुई, तो उसने फिर से अपनी कमर हिलानी शुरू की। मैं अब बिल्कुल निढाल होकर बिस्तर पर गिरी पड़ी थी और वो दबादब मुझे चोद रहा था, अपना लंड पूरे ज़ोर से अंदर तक डाल डाल कर मुझे चोद रहा था। शायद उसने भी झड़ना था।
मगर मैं तो जैसे किसी जादू में बांध ली गई थी। फिर मुझे लगा जैसे कोई गर्म गर्म शहद गिरा हो! और … और … और! भर गई मैं … इतना भर गई कि मैं उसकी मर्दानगी को संभाल नहीं पाई, और उसकी मर्दानगी का रस मेरे जिस्म को भर कर बाहर तक बह गया, आज मैं परिपूर्ण हो गई। पूरी तरह से संतुष्ट, पूरी तरह से तृप्त। अब मेरी कोई ख़्वाहिश अधूरी नहीं रही थी।
जब उसका हो गया तो मेरी बगल में लेट गया, मेरे मम्मों से खेलने लगा। हम दोनों एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे।
उसने पूछा- क्या देख रही हो?
मैंने कहा- देख रही हूँ, एक सम्पूर्ण मर्द कैसा होता है।
उसने पूछा- कैसा होता है?
मैंने कहा- तेरे जैसे … जो अपनी संगिनी को अपनी मर्दानगी से तृप्त कर दे।
उसने पूछा- आप तृप्त हुई?
मैंने कहा- हाँ पूरी तरह से।
वो बोला- मगर मेरा मन नहीं भरा; मैं एक बार और करूंगा।
मैंने कहा- मेरी क्या औकात जो मैं अपने तन मन के मालिक को ना कह सकूँ।
वो उठा और आकर मेरी छाती पर बैठ गया- तो ले चूस इसे थोड़ा सा।
मैंने उसका ढीला सा लंड अपने मुँह में लिया, थोड़ी देर चूसा तो वो फिर से अकड़ गया, जब उसका लंड पूरा अकड़ गया तो उसने मेरी टाँगें खोली और बिस्तर की चादर से मेरी फुद्दी साफ की और अपना लंड फिर से मेरी फुद्दी में डाल दिया।
मगर इस बार उसका बर्ताव ऐसा था कि जैसे मैं उसकी पत्नी ही होऊं। पूरे अधिकार के साथ वो फिर से मुझे चोदने लगा। मैं इस बार उत्साहित नहीं थी क्योंकि उसका दम-खम मैं देख चुकी थी।
इस बार भी उसने मुझे बहुत जम कर पेला। इस बार मैं भी खूब उछली, नीचे से पूरे ज़ोर से मैंने कमर चलाई। ऊपर से वो। फिर उसने मुझे ऊपर बुलाया। मैं उसके ऊपर बैठी, उसका लंड पकड़ कर अपनी फुद्दी पर रखा और अंदर लिया, मैंने भी अपनी पूरी ताकत लगा दी, हम दोनों में जैसे कोई मुक़ाबला हो रहा हो, एक दूसरे को पछाड़ने, एक दूसरे को पहले स्खलित करने का। मगर इस मामले में मैं हार गई। उसके लंड के मेरी जिस्म अंदर चोट करने से मैं बेहाल हुई जा रही थी।
फिर मैंने पाला बदला- तुम ऊपर आ जाओ, मैं और नहीं रुक पाऊँगी।
एक ही झटके में वो ऊपर और मैं नीचे आ गई। मैंने खुद ही उसका लंड पकड़ कर अपनी फुद्दी पर रखा, उसने अंदर डाला- बहुत बेताब हो रही हो।
उसने कहा- मैं बस मरने ही वाली हूँ।
और बस उसकी दो मिनट चुदाई से ही मैं फिर से बिखर गई। फिर से वही आनन्द का समंदर मेरे जिस्म से फूटा, मैं इतनी ज़्यादा भावविहल हो गई कि मैं रो पड़ी, मेरी आँखों से आँसू निकल पड़े।
उसने पूछा भी- क्या हुआ?
मगर मैंने उसका कंधा थपथपा कर उसे करते रहने को कहा।
वो लगा रहा और कितनी देर मुझे भोगता रहा, मैं भी उस दिन बहुत रोई, इस आनन्द के लिए, इस काम तृप्ति के लिए मैं कब से तरस रही थी। पति से बहुत कोशिश की कि यही तृप्ति मुझे मिले।
मगर मिली तो कहाँ मिली … अपने पड़ोस के एक लड़के से, अपने से छोटी उम्र का … शादी के पवित्र बंधन को तोड़ कर।
लेकिन इस तृप्ति के लिए मुझे कोई भी कीमत कम लगती है। अगर आप खुश नहीं, तृप्त नहीं, तो क्या फायदा जीने का।
कुछ देर और … और फिर वो भी झड़ा, मगर इस बार उसने कुछ ज़्यादा ही ज़ोर लगाया, जिससे उसका लिंग मेरी योनि के बहुत अंदर तक जा कर चोट कर रहा था। मेरे जिस्म के अंदर तक दर्द हो रहा था।
मगर जब उसका गर्म वीर्य फिर से मेरी वजूद को भर गया। मैं फिर से पपीहे की तरह स्वाति बूंद पी कर जैसे अनंत काल के लिए संतुष्ट हो गई।
कुछ देर वो मेरे साथ लेटा रहा, फिर उसने कहा- अब मुझे जाना है।
वो उठा और कपड़े पहन कर चला गया।
मैं कितनी देर नंगी ही लेटी रही। बहुत देर बाद मैं उठ कर बाथरूम में गई, बाथरूम में मेरे पूरा आदम कद शीशा लगा है। मैंने उसमे खुद को देखा। गोरे बदन पर कई जगह निशान बन गए थे। मगर मैं अपने आप को इतना खूबसूरत कभी नहीं देखा था। बाल बिखरे थे, लिपस्टिक चूस ली गई, सारा मेकअप चाट लिया गया।
एक तरह से लुटी हुई … मगर फिर भी कितनी आभा थी मेरे चेहरे पर!
मेरे पहले प्रेम की … या पहले विश्वासघात की!
मगर जो भी हो, मुझे कभी शीशे ने इतना सुंदर नहीं दिखाया था।
पहले मैं नहाई, फिर से तैयार हुई, अपने कमरे को ठीक किया, फिर घर के काम में लग गई।
उसके बाद हम दोनों में ऐसे बहुत से मिलन हुये। हर बार वो मुझे और ज़्यादा संतुष्ट करके जाता। अब अपने पति में मुझे कोई भी दिलचस्पी नहीं रही। जब वो कहते तो मैं करती तो उनसे भी, मगर उन्हें सिर्फ मेरा तन मिलता, मन तो मैं अपने उस प्रेमी को दे चुकी थी।
इस तरह शुरू हुई, मेरी शादी से बाहर सेक्स करने की शुरुआत। उसके बाद तो कई लोग आए और गए। यहाँ तक के मैंने अपने एक स्टूडेंट से भी सेक्स किया। मगर वो कमीना प्यार प्यार करते करते मुझे एक बार अपने रूम में ले गया, और वहाँ उन 4 लड़को ने मिल कर मेरे से सेक्स किया।
वो कहानी फिर कभी!
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
