25-05-2022, 03:12 PM
मेरा नाम अर्चना गुप्ता है, मैं अभी चालीस साल की नहीं हुई हूँ; हो जाऊँगी जल्दी ही।
मैं एक शादीशुदा औरत हूँ, तीन बच्चे हैं मेरे, गोरखपुर में रहती हूँ। मैं एक बड़े सरकारी कॉलेज में प्रोफेसर हूँ। मेरे बारे में सब सच मत मान लेना, ये सब परिवर्तित नाम और स्थान हैं। मेरे पति बिज़नस करते हैं। शादी को 18 साल हो गए हैं.
मगर एक बात जो मैं आपको बताना चाहती हूँ, वो यह है कि शादीशुदा ज़िंदगी हमारी शुरू से ही डिस्टर्ब रही है। दरअसल जो कुछ मैं अपनी पति से चाहती थी, जो कुछ मैंने सोचा था, वैसे पतिदेव मुझे नहीं मिले। सुहागरात को ही वो बुरी तरह से फेल रहे। बड़ी मुश्किल से 3 मिनट टिक पाये, जब तक मैंने अपनी सुहागरात का मज़ा लेते हुये अपनी जवानी का रस छोड़ना शुरू किया, वो अपनी मर्दानगी मेरे ऊपर झाड़ चुके थे।
मुझे लगा कि चलो कोई बात नहीं, कभी कभी जोश में इंसान होश खो बैठता है।
मगर उसके बाद तो हर रात की यही बात; बड़ी मुश्किल से ये दो-तीन मिनट लगाते।
पहले तो मैं चुप रही मगर फिर धीरे धीरे मैंने इनसे कहना शुरू किया कि आप थोड़ा टाइम और लगाया करो।
इन्होंने भी बहुत कोशिश की, बहुत से उपाय किए, मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात।
लंड का साइज़ अच्छा था, तनाव भी पूरा था, मगर दिक्कत टाइम की थी।
फिर होने ये लगा कि ये पहले उंगली डाल कर मेरा पानी निकाल देते, फिर अपना लंड पेलते। मगर जब कभी मैं अपनी सहेलियों से या और रिशतेदार औरतों से बात करती और वो बताती कि उनके पति तो उनके ऊपर से उतरते ही नहीं हैं, आध पौन घंटा लंड डाल कर उनको पेलते हैं, तो मुझे बड़ा दुख होता, मैं भी झूठ-मूट ही कह देती- इनका भी यही हाल है।
मगर असल में इनका क्या हाल था, वो तो मैं ही जानती थी।
धीरे धीरे मुझे अपनी शादीशुदा ज़िंदगी भारी लगने लगी। मैं चाहती थी कि मुझे कोई ऐसा मिले जो टिका कर मुझे पेले। क्योंकि मेरे पति ज़्यादा से ज़्यादा 4-5 मिनट ही मुझे पेल सकते हैं, इसके बाद तो वो किसी भी तरह से नहीं रुक पाते और झड़ जाते हैं। मगर मैं कम से कम 12-15 मिनट तक लेती हूँ एक बार झड़ने में, तो मुझे तो लगता है कि या तो मेरे पति जैसे ही 2-3-4 मर्द हों जो बारी बारी मुझे पेलें ताकि मुझे भी अपनी फुद्दी में लंड की चुदाई से झड़ने का मौका मिले, या फिर कोई अकेला मर्द ही ऐसा हो जो झड़े ही नहीं, बस मैं ही झड़ूँ, और पेले जाए … पेले जाए … पेले जाए।
इसी वजह से शादी के दो साल बाद ही जब मैंने देख लिया कि मेरे पति में कोई दम नहीं है, तो मैंने आसपास देखना शुरू किया, और फिर मुझे मेरे जीवन का पहला बॉयफ्रेंड मिला।
हमारे पड़ोसी का ही लड़का था, 24-25 साल का था; मुझे बहुत घूरता था। पहले तो मुझे उसका घूरना बुरा लगता था, मगर जब मेरी अपनी कामुक ज़रूरत मेरे चरित्र से बड़ी हो गई, तो मैंने अपना चरित्रवान रूप एक तरफ रख कर त्रिया चरित्र दिखाना ही ठीक समझा।
जब मैं भी उसके देखने के बदले उसे वापिस देखने लगी, तो उसने भी स्माइल पास की; मैंने भी जवाब स्माइल से दिया. फिर उसने सर झुका कर विश की, मैंने भी जवाब दिया।
ऐसे ही कुछ दिन चलते रहे, तो एक दिन वो मुझे बाज़ार में मिला और मेरी मदद के बहाने मेरे घर तक आया। मैंने उसे बैठा कर चाय पिलाई, उससे कुछ बातें भी की। वैसे तो अच्छा लड़का था, रंग रूप, कद काठी, सब ठीक था, बस मुझे तो इस बात में दिलचस्पी थी कि पैन्ट के अंदर इसके पास क्या है।
उसके बाद और भी कई मुलाकातें हुई तो मैंने बिना कोई समय व्यर्थ गँवाए उसे अपना मोबाइल नंबर दे दिया। उसी रात उसका फोन आया, हमने बात की मगर वो भी काफी उतावला दिखा। पहली रात ही उसने मुझे दोस्ती के लिए प्रोपोज़ किया।
दोस्ती तो मैंने झट से मान ली क्योंकि मुझे पता था कि जितना मैं समय लगाऊँगी, उतनी देर लगेगी मुझे उसके बिस्तर में जाने के लिए या उसको मेरे बिस्तर में आने के लिए।
दोस्ती हुई तो वो मुझे जोकस, पिक्स, और बहुत कुछ व्हाट्सप्प पर भेजता रहता।
फिर एक दिन उसने मुझे प्रेम प्रस्ताव रखा, मुझे इसी का तो इंतज़ार था, मगर मैं थोड़ा नखरा किया और दो दिन बाद ही मैंने उसे हाँ कर दी। दोनों तरफ से ‘आई लव यू …’ कहने के बाद तो जैसे सब कुछ बदल गया। मैं खुद बहुत खुश रहने लगी। शादी से पहले मैंने कभी किसी को ‘आई लव यू’ नहीं कहा। कॉलेज कॉलेज में बहुत से लड़के मुझे देखते, पसंद करते थे, मैं भी बहुतों को पसंद करती थी मगर कभी बात इतनी नहीं बढ़ी कि किसी ने मुझे ‘आई लव यू’ कहा हो।
मैं एक शादीशुदा औरत हूँ, तीन बच्चे हैं मेरे, गोरखपुर में रहती हूँ। मैं एक बड़े सरकारी कॉलेज में प्रोफेसर हूँ। मेरे बारे में सब सच मत मान लेना, ये सब परिवर्तित नाम और स्थान हैं। मेरे पति बिज़नस करते हैं। शादी को 18 साल हो गए हैं.
मगर एक बात जो मैं आपको बताना चाहती हूँ, वो यह है कि शादीशुदा ज़िंदगी हमारी शुरू से ही डिस्टर्ब रही है। दरअसल जो कुछ मैं अपनी पति से चाहती थी, जो कुछ मैंने सोचा था, वैसे पतिदेव मुझे नहीं मिले। सुहागरात को ही वो बुरी तरह से फेल रहे। बड़ी मुश्किल से 3 मिनट टिक पाये, जब तक मैंने अपनी सुहागरात का मज़ा लेते हुये अपनी जवानी का रस छोड़ना शुरू किया, वो अपनी मर्दानगी मेरे ऊपर झाड़ चुके थे।
मुझे लगा कि चलो कोई बात नहीं, कभी कभी जोश में इंसान होश खो बैठता है।
मगर उसके बाद तो हर रात की यही बात; बड़ी मुश्किल से ये दो-तीन मिनट लगाते।
पहले तो मैं चुप रही मगर फिर धीरे धीरे मैंने इनसे कहना शुरू किया कि आप थोड़ा टाइम और लगाया करो।
इन्होंने भी बहुत कोशिश की, बहुत से उपाय किए, मगर नतीजा वही ढाक के तीन पात।
लंड का साइज़ अच्छा था, तनाव भी पूरा था, मगर दिक्कत टाइम की थी।
फिर होने ये लगा कि ये पहले उंगली डाल कर मेरा पानी निकाल देते, फिर अपना लंड पेलते। मगर जब कभी मैं अपनी सहेलियों से या और रिशतेदार औरतों से बात करती और वो बताती कि उनके पति तो उनके ऊपर से उतरते ही नहीं हैं, आध पौन घंटा लंड डाल कर उनको पेलते हैं, तो मुझे बड़ा दुख होता, मैं भी झूठ-मूट ही कह देती- इनका भी यही हाल है।
मगर असल में इनका क्या हाल था, वो तो मैं ही जानती थी।
धीरे धीरे मुझे अपनी शादीशुदा ज़िंदगी भारी लगने लगी। मैं चाहती थी कि मुझे कोई ऐसा मिले जो टिका कर मुझे पेले। क्योंकि मेरे पति ज़्यादा से ज़्यादा 4-5 मिनट ही मुझे पेल सकते हैं, इसके बाद तो वो किसी भी तरह से नहीं रुक पाते और झड़ जाते हैं। मगर मैं कम से कम 12-15 मिनट तक लेती हूँ एक बार झड़ने में, तो मुझे तो लगता है कि या तो मेरे पति जैसे ही 2-3-4 मर्द हों जो बारी बारी मुझे पेलें ताकि मुझे भी अपनी फुद्दी में लंड की चुदाई से झड़ने का मौका मिले, या फिर कोई अकेला मर्द ही ऐसा हो जो झड़े ही नहीं, बस मैं ही झड़ूँ, और पेले जाए … पेले जाए … पेले जाए।
इसी वजह से शादी के दो साल बाद ही जब मैंने देख लिया कि मेरे पति में कोई दम नहीं है, तो मैंने आसपास देखना शुरू किया, और फिर मुझे मेरे जीवन का पहला बॉयफ्रेंड मिला।
हमारे पड़ोसी का ही लड़का था, 24-25 साल का था; मुझे बहुत घूरता था। पहले तो मुझे उसका घूरना बुरा लगता था, मगर जब मेरी अपनी कामुक ज़रूरत मेरे चरित्र से बड़ी हो गई, तो मैंने अपना चरित्रवान रूप एक तरफ रख कर त्रिया चरित्र दिखाना ही ठीक समझा।
जब मैं भी उसके देखने के बदले उसे वापिस देखने लगी, तो उसने भी स्माइल पास की; मैंने भी जवाब स्माइल से दिया. फिर उसने सर झुका कर विश की, मैंने भी जवाब दिया।
ऐसे ही कुछ दिन चलते रहे, तो एक दिन वो मुझे बाज़ार में मिला और मेरी मदद के बहाने मेरे घर तक आया। मैंने उसे बैठा कर चाय पिलाई, उससे कुछ बातें भी की। वैसे तो अच्छा लड़का था, रंग रूप, कद काठी, सब ठीक था, बस मुझे तो इस बात में दिलचस्पी थी कि पैन्ट के अंदर इसके पास क्या है।
उसके बाद और भी कई मुलाकातें हुई तो मैंने बिना कोई समय व्यर्थ गँवाए उसे अपना मोबाइल नंबर दे दिया। उसी रात उसका फोन आया, हमने बात की मगर वो भी काफी उतावला दिखा। पहली रात ही उसने मुझे दोस्ती के लिए प्रोपोज़ किया।
दोस्ती तो मैंने झट से मान ली क्योंकि मुझे पता था कि जितना मैं समय लगाऊँगी, उतनी देर लगेगी मुझे उसके बिस्तर में जाने के लिए या उसको मेरे बिस्तर में आने के लिए।
दोस्ती हुई तो वो मुझे जोकस, पिक्स, और बहुत कुछ व्हाट्सप्प पर भेजता रहता।
फिर एक दिन उसने मुझे प्रेम प्रस्ताव रखा, मुझे इसी का तो इंतज़ार था, मगर मैं थोड़ा नखरा किया और दो दिन बाद ही मैंने उसे हाँ कर दी। दोनों तरफ से ‘आई लव यू …’ कहने के बाद तो जैसे सब कुछ बदल गया। मैं खुद बहुत खुश रहने लगी। शादी से पहले मैंने कभी किसी को ‘आई लव यू’ नहीं कहा। कॉलेज कॉलेज में बहुत से लड़के मुझे देखते, पसंद करते थे, मैं भी बहुतों को पसंद करती थी मगर कभी बात इतनी नहीं बढ़ी कि किसी ने मुझे ‘आई लव यू’ कहा हो।
(25-05-2022, 03:11 PM)neerathemall Wrote:चरमसुख का सुखद एहसास
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
