25-05-2022, 03:08 PM
मैं लगभग एक साल से सूखा पड़ा था. लंड में काफ़ी तनाव हो रहा था. वो काले नाग की तरह बिल में घुसने के लिए बार बार फन फैला रहा था.
आख़िर जुमे का वो मुबारक दिन आ ही गया. शाम को सादगी से 7 बजे निकाह और 9 बजे डिनर हुआ. फिर 11 बजते बजते सब कार्यक्रम समाप्त हो गए.
खाला और उनकी बेटियों ने मेरा हाथ पकड़ कर उस कमरे में पहुंचा दिया … जहां ज़ेबा घूंघट में सिर झुकाए बैठी थी. बगल की टेबल पर केसर बादाम वाला दूध दो गिलासों में रखा था. चाँदी के वर्क़ लगे पान और गोले के लेट की शीशी भी रखी थी.
नारियल तेल देखते ही मैं मन ही मन मुस्करा दिया. फिर दरवाजे को बंद करके मैं ज़ेबा के पास बैठ गया.
मैंने घूंघट उठा कर उसके चेहरे को देखा और मुँह दिखाई में गोल्ड की रिंग उसकी उंगली में पहना दी. मैंने अपने दोनों हाथों में उसके चेहरे को ले लिया और उसके लबों पर अपने लब रख कर चुम्बन किया.
कुछ देर तक की बातचीत के बाद धीरे धीरे उसके सारे ज़ेवर उतार कर उसे अपनी बांहों में भर कर दस मिनट तक चूमाचाटी की. ज़ेबा बुरी तरह शर्मा रही थी … जब मैंने उसके मम्मों पर हाथ रखा, तो उसने अपने आपको सिकोड़ लिया.
वो सिहरते हुए बोल पड़ी- भ..आ.ई. यहां … गुदगदी लगती है.
मैं बोला- ज़ेबा, अब तुम मेरी बहन नहीं, मेरी बीवी हो.
मैं धीरे धीरे उसके नाज़ुक अंगों को सहलाने व दबाने लगा. कुछ पल के बाद मैंने उसके जिस्म से कपड़े उतारना शुरू कर दिए.
वो ना-नुकुर और हल्का विरोध करती रही … लेकिन उससे बहला फुसला कर मैं उसका जम्पर और ब्रा उतारने में कामयाब हो गया.
ज़ेबा की दूध की तरह गोरे बदन को और उसकी गोल व सख़्त चुचियों को देख कर मैं बेक़ाबू हो गया. ज़ेबा ने अपनी दोनों हथेलियों से अपनी चुचियों को छिपा लिया. मेरा लंड फनफना कर तन चुका था.
ज़ेबा के लगातार विरोध करने और ये कहने कि ‘भाई प्लीज़ … ऐसा नहीं करो. … आंह भाई ..’ करते रहने के बावजूद मैंने उसका लहंगा और पैंटी को भी उतार कर ही दम लिया.
अब ज़ेबा मेरे सामने पूरी तरह नंगी थी. मैं उसकी भरपूर जवानी को देख बौखला गया था. उसका पका हुआ जिस्म देख कर मेरे लिए अपने आपको रोकना मुश्किल हो गया था.
ज़ेबा ने अपनी दोनों हथेलियों से अपनी कुंवारी चुत छिपा रखी थी.
मैंने चालाकी से उसके दोनों मम्मों की तारीफ की, तो बेध्यानी में चुत से हथेलियों को हटा कर उसने अपने दोनों हाथों से चुचियों को छिपा लिया.
तभी मैंने उसकी चुत को देख लिया. छोटी सी थोड़ा उभरी हुई मक्खन जैसी चुत देख कर मैं बेक़ाबू हो गया और मैंने जल्दी से अपने सारे कपड़े उतार दिए.
ज़ेबा मेरे 9 इंच लंबे और 3 इंच मोटे लंड देख कर सहम गयी.
वो घबराई सी बोली- भ..आ.ई … प्लीज़ इतने बड़े से नहीं होगा.
उसने डर कर दोनों हथेलियों से चुत को छिपा ली. मगर मैं कहां रुकने वाला था. मैं ज़ेबा से लिपट गया. कोई दस मिनट तक उसकी चुचियों के मुनक्का चूसने के बाद सारे जिस्म पर चुंबनों की बारिश कर दी.
मेरी इन हरकतों से ज़ेबा भी धीरे धीरे गर्म होने लगी. ज़ाहिर सी बात थी वो एक इक्कीस साल की भरपूर जवानी से लबरेज़ लड़की थी और मैं एक तजुर्बा कर मर्द था. मैंने उसकी कामेच्छा को पूरी तरह जगा दिया था.
अब उसके मुँह से सिसकारियां और नाक से गरम सांसें निकलनी शुरू हो गईं. उसकी दोनों चुचियां ऊपर नीचे हो रही थीं, जो इस बात की अलामत थीं कि ज़ेबा में सेक्स करने की ख्वाहिश जाग चुकी थी. मैं बहुत खुश था.
अब हम दोनों भाई बहन का रिश्ता कुछ पल का मेहमान रह गया था. कुछ लम्हों में हम दोनों एक दूसरे में समा जाने वाले थे और एक नये रिश्ते में शुरुआत होने वाली थी. मैं ज़ेबा के जिस्म के हर हिस्से को सहलाते व रगड़ते हुए अपने मंज़िल की तरफ बढ़ रहा था, तभी ज़ेबा का हाथ मेरे लंड पर चला गया.
मेरी बहन ने मेरे लंड को धीरे से पकड़ लिया, लेकिन लंड की लंबाई और मोटाई को महसूस कर, बदहवास हो गयी. बात भी सही थी. मेरे लंड का यह विकराल रूप देखकर अच्छे अच्छों की हालत खराब हो जाती है, यह तो फिर भी एक सील बंद कली थी. कली से फूल बनने का सफ़र एक कुंवारी लड़की के लिए कष्टदायक तो होती ही है.
ज़ेबा रोनी सी सूरत बनाते हुए बोली- भाई … प्लीज़ आप आज कुछ मत कीजिएगा. … आपका यह बहुत बड़ा और मोटा है.
मैंने उसे प्यार से समझाया- कुछ नहीं होगा.
ये कह कर मैंने उसकी दोनों टांगों को फैला कर उसके पेट की तरफ मोड़ दिया. ऐसा करते ही ज़ेबा की भीग चुकी चुत की फांक खुल गयी. उसकी बुर पर छोटी सी क्लिटोरिस नन्हें कबूतर की चोंच की तरह बाहर निकल आई.
मैंने अपनी दो उंगलियों से दरार को और फैलाया.
वाह … क्या मस्त नज़ारा था … चुत के नीचे छोटा सा पिंक छेद अपने आप ऐसे खुल और बंद हो रहा था, जैसे कि तितली के दोनों पर खुलते और बंद होते हैं. मुझे लग रहा था कि मेरे लंड के स्वागत के लिए यह छेद खुल और बंद हो रहा था.
अब मैं अपने आपे से बाहर हो गया और ज़ेबा की फ्रेश चुत की दरार में जीभ डाल कर चाटना और चूसना शुरू कर दिया. दस मिनट में ही वो हाय तौबा मचाने लगी. उसने अपने दोनों हाथों से बेडशीट पकड़ ली और तकिये पर सर को इधर उधर करने लगी. तभी अचानक अपने दोनों हाथों से मेरे सर के बालों को पकड़ कर 6-7 झटके लेकर निढाल हो गयी.
ज़ेबा झड़ चुकी थी. मेरा मुँह चुत से निकले पानी से भर गया था. बुर के हल्के नमकीन पानी को मैं बेहिचक पी गया.
इस तरह ज़ेबा को मैंने 2 बार झाड़ दिया और तीसरी बार मैंने तोप की नाल की तरह खड़े लंड को चुत की दरार के बीच सैट करके रख दिया. कोई 10-12 मर्तबा अप-डाउन करने के बाद मैंने जेबा की कमसिन जवानी क़िले के फाटक को तोड़ कर घुसने की कोशिश की, लेकिन असफल रहा.
इस तरह मैंने 7-8 बार किले में दाखिल होने की कोशिश की. उधर ज़ेबा बुरी तरह कराह रही थी और मुझे धकेलने की कोशिश कर रही थी. वो बार बार मुझसे विनती कर रही थी … रो-रो कर दुहाई देती रही … लेकिन आज मैंने भी ज़िद पकड़ ली थी.
फिर नारियल तेल की याद आई, तो साइड की टेबल से नारियल तेल लेकर मैंने अपने लंड पर और ज़ेबा की चुत की फांक के बीच अच्छी तरह लगा दिया. अब मैंने फिर से मोर्चा संभाल लिया.
दोबार तो लंड इधर उधर फिसल गया, लेकिन तीसरी बार सैट करके आगे की तरफ पूरी ताक़त से एक भरपूर झटका मारा.
ज़ेबा के मुँह से भंयकर चीख निकलती, उससे पहले मैंने अपना मुँह उसके मुँह पर रख दिया. उसकी चीख घुट कर रह गयी.
मेरे लंड का सुपारा ज़ेबा की चुत को ‘खछ..’ की आवाज़ से फाड़ते हुए अन्दर घुस गया. ज़ेबा बुरी तरह छटपटा रही थी, मुझसे अपने आपको छुड़वाने का असफल प्रयास कर रही थी. लेकिन कहां शेर और कहां बकरी … सारी कोशिशें नाकाम हो गईं.
जेबा का दर्द से बुरा हाल था. मैं जानता था कि अभी अगर मैंने दया दिखाई, तो ये फिर दोबारा छोड़ने नहीं देगी. इसलिए मैंने उसे दबोचे रखा और धीरे धीरे लंड को इंच दर इंच अन्दर सरकाता रहा.
मुझे ऐसा फील हो रहा था कि मेरा लौड़ा रबरबैंड में फंसा हुआ सा अन्दर जा रहा है.
ज़ेबा के ज़बरदस्त विरोध के बावजूद आख़िरकार मैंने 5 इंच लंड चुत में पेल दिया. बाकी बचे 4 इंच को दो जोरदार धक्के लगा कर पूरा 9 इंच लंड अन्दर पेल दिया. मेरे कुछ धक्कों ने भाई बहन के रिश्ते को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया था. रिश्तों के मायने ही बदल गए थे.
ज़ेबा की हालत पतली थी. मैं प्यार से उसे ढांढस बंधाता रहा- बस … बस … अब हो गया मेरी जान.
मैंने प्यार से उसके आंसुओं को पौंछा. कुछ देर रुक कर फिर से लिपलॉक किस किया और धीरे धीरे लंड आगे पीछे करने लगा. मेरा लंड बुर के खून से लथपथ हो गया था.
धीरे धीरे चुदाई रफ़्तार पकड़ती चली गयी. अब ज़ेबा का विरोध ख़त्म हो चुका था. वो खामोशी से मुझे देख रही थी. शायद उसे भी चुदाई में मज़ा आने लगा था. मैं उसकी दोनों चुचियों को पकड़ कर तेज़ी से धक्का लगाने लगा. चुदाई का मधुर संगीत ‘फ़च … फ़च..पच..’ से कमरा गूँज रहा था.
लगभग 40 मिनट के मेरे 80-90 शॉट लगने के बीच ज़ेबा दो मर्तबा झड़ चुकी थी. ज़ेबा चुदाई की मस्ती में आंखें बंद किए पड़ी थी. आख़िर 15 – 20 धक्के लगाने के बाद मैं भी 10-12 झटकों के साथ झड़ गया.
ज़ेबा की चुत मेरे रस से भर गयी थी. उस रात मैं ज़ेबा को 2-3 बार और चोदना चाहता था, लेकिन उसने हाथ जोड़ कर माफ़ी मांग ली.
सुबह बेडशीट पर जगह जगह खून और वीर्य के धब्बे देख कर खाला रात की सारी कहानी समझ गयी.
दो दिन तक उस को चलने फिरने में तकलीफ़ रही. तीसरे दिन मैंने 2 बार चुदाई की. दस दिन बाद मैंने ज़ेबा की गांड भी मार ली. गांड मरवाने में भी उस ने काफ़ी प्रोटेस्ट किया … लेकिन मैं उसकी गांड के दरवाजे से भी अन्दर दाखिल होने में कामयाब हो गया.
इस तरह वक़्त को तेज़ी से गुज़रते देर नहीं लगा. एक दिन जब मैं ऑफिस से आया, तो खाला ने ज़ेबा के पेट से होने की खुशखबरी सुनाई. मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. नौ महीने बाद ज़ेबा ने 8 पौंड के स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया. इस तरह 5 साल में ज़ेबा ने मेरे 3 बच्चों को जन्म दिया. आज हम खुशहाल ज़िंदगी गुजार रहे हैं.
परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे से 2-2 रिश्ते में बँधे हुए थे. ज़ेबा मेरी सग़ी बहन भी थी और पत्नी भी. शान को छोड़ कर ज़ेबा से जन्मे बच्चे मेरे बेटे भी थे और भांजे भी थे. अम्मी मेरे बच्चों की नानी भी थी और दादी भी. कितनी सुखद थी हमारी ज़िंदगी … और एक दूसरे से रिश्ते.
दोस्तो, सग़ी बहन की चुदाई में जो मज़ा है … वो किसी और में नहीं. साथ ही वो आपके बच्चों की अम्मी भी बनी हो … तो क्या कहने.
आख़िर जुमे का वो मुबारक दिन आ ही गया. शाम को सादगी से 7 बजे निकाह और 9 बजे डिनर हुआ. फिर 11 बजते बजते सब कार्यक्रम समाप्त हो गए.
खाला और उनकी बेटियों ने मेरा हाथ पकड़ कर उस कमरे में पहुंचा दिया … जहां ज़ेबा घूंघट में सिर झुकाए बैठी थी. बगल की टेबल पर केसर बादाम वाला दूध दो गिलासों में रखा था. चाँदी के वर्क़ लगे पान और गोले के लेट की शीशी भी रखी थी.
नारियल तेल देखते ही मैं मन ही मन मुस्करा दिया. फिर दरवाजे को बंद करके मैं ज़ेबा के पास बैठ गया.
मैंने घूंघट उठा कर उसके चेहरे को देखा और मुँह दिखाई में गोल्ड की रिंग उसकी उंगली में पहना दी. मैंने अपने दोनों हाथों में उसके चेहरे को ले लिया और उसके लबों पर अपने लब रख कर चुम्बन किया.
कुछ देर तक की बातचीत के बाद धीरे धीरे उसके सारे ज़ेवर उतार कर उसे अपनी बांहों में भर कर दस मिनट तक चूमाचाटी की. ज़ेबा बुरी तरह शर्मा रही थी … जब मैंने उसके मम्मों पर हाथ रखा, तो उसने अपने आपको सिकोड़ लिया.
वो सिहरते हुए बोल पड़ी- भ..आ.ई. यहां … गुदगदी लगती है.
मैं बोला- ज़ेबा, अब तुम मेरी बहन नहीं, मेरी बीवी हो.
मैं धीरे धीरे उसके नाज़ुक अंगों को सहलाने व दबाने लगा. कुछ पल के बाद मैंने उसके जिस्म से कपड़े उतारना शुरू कर दिए.
वो ना-नुकुर और हल्का विरोध करती रही … लेकिन उससे बहला फुसला कर मैं उसका जम्पर और ब्रा उतारने में कामयाब हो गया.
ज़ेबा की दूध की तरह गोरे बदन को और उसकी गोल व सख़्त चुचियों को देख कर मैं बेक़ाबू हो गया. ज़ेबा ने अपनी दोनों हथेलियों से अपनी चुचियों को छिपा लिया. मेरा लंड फनफना कर तन चुका था.
ज़ेबा के लगातार विरोध करने और ये कहने कि ‘भाई प्लीज़ … ऐसा नहीं करो. … आंह भाई ..’ करते रहने के बावजूद मैंने उसका लहंगा और पैंटी को भी उतार कर ही दम लिया.
अब ज़ेबा मेरे सामने पूरी तरह नंगी थी. मैं उसकी भरपूर जवानी को देख बौखला गया था. उसका पका हुआ जिस्म देख कर मेरे लिए अपने आपको रोकना मुश्किल हो गया था.
ज़ेबा ने अपनी दोनों हथेलियों से अपनी कुंवारी चुत छिपा रखी थी.
मैंने चालाकी से उसके दोनों मम्मों की तारीफ की, तो बेध्यानी में चुत से हथेलियों को हटा कर उसने अपने दोनों हाथों से चुचियों को छिपा लिया.
तभी मैंने उसकी चुत को देख लिया. छोटी सी थोड़ा उभरी हुई मक्खन जैसी चुत देख कर मैं बेक़ाबू हो गया और मैंने जल्दी से अपने सारे कपड़े उतार दिए.
ज़ेबा मेरे 9 इंच लंबे और 3 इंच मोटे लंड देख कर सहम गयी.
वो घबराई सी बोली- भ..आ.ई … प्लीज़ इतने बड़े से नहीं होगा.
उसने डर कर दोनों हथेलियों से चुत को छिपा ली. मगर मैं कहां रुकने वाला था. मैं ज़ेबा से लिपट गया. कोई दस मिनट तक उसकी चुचियों के मुनक्का चूसने के बाद सारे जिस्म पर चुंबनों की बारिश कर दी.
मेरी इन हरकतों से ज़ेबा भी धीरे धीरे गर्म होने लगी. ज़ाहिर सी बात थी वो एक इक्कीस साल की भरपूर जवानी से लबरेज़ लड़की थी और मैं एक तजुर्बा कर मर्द था. मैंने उसकी कामेच्छा को पूरी तरह जगा दिया था.
अब उसके मुँह से सिसकारियां और नाक से गरम सांसें निकलनी शुरू हो गईं. उसकी दोनों चुचियां ऊपर नीचे हो रही थीं, जो इस बात की अलामत थीं कि ज़ेबा में सेक्स करने की ख्वाहिश जाग चुकी थी. मैं बहुत खुश था.
अब हम दोनों भाई बहन का रिश्ता कुछ पल का मेहमान रह गया था. कुछ लम्हों में हम दोनों एक दूसरे में समा जाने वाले थे और एक नये रिश्ते में शुरुआत होने वाली थी. मैं ज़ेबा के जिस्म के हर हिस्से को सहलाते व रगड़ते हुए अपने मंज़िल की तरफ बढ़ रहा था, तभी ज़ेबा का हाथ मेरे लंड पर चला गया.
मेरी बहन ने मेरे लंड को धीरे से पकड़ लिया, लेकिन लंड की लंबाई और मोटाई को महसूस कर, बदहवास हो गयी. बात भी सही थी. मेरे लंड का यह विकराल रूप देखकर अच्छे अच्छों की हालत खराब हो जाती है, यह तो फिर भी एक सील बंद कली थी. कली से फूल बनने का सफ़र एक कुंवारी लड़की के लिए कष्टदायक तो होती ही है.
ज़ेबा रोनी सी सूरत बनाते हुए बोली- भाई … प्लीज़ आप आज कुछ मत कीजिएगा. … आपका यह बहुत बड़ा और मोटा है.
मैंने उसे प्यार से समझाया- कुछ नहीं होगा.
ये कह कर मैंने उसकी दोनों टांगों को फैला कर उसके पेट की तरफ मोड़ दिया. ऐसा करते ही ज़ेबा की भीग चुकी चुत की फांक खुल गयी. उसकी बुर पर छोटी सी क्लिटोरिस नन्हें कबूतर की चोंच की तरह बाहर निकल आई.
मैंने अपनी दो उंगलियों से दरार को और फैलाया.
वाह … क्या मस्त नज़ारा था … चुत के नीचे छोटा सा पिंक छेद अपने आप ऐसे खुल और बंद हो रहा था, जैसे कि तितली के दोनों पर खुलते और बंद होते हैं. मुझे लग रहा था कि मेरे लंड के स्वागत के लिए यह छेद खुल और बंद हो रहा था.
अब मैं अपने आपे से बाहर हो गया और ज़ेबा की फ्रेश चुत की दरार में जीभ डाल कर चाटना और चूसना शुरू कर दिया. दस मिनट में ही वो हाय तौबा मचाने लगी. उसने अपने दोनों हाथों से बेडशीट पकड़ ली और तकिये पर सर को इधर उधर करने लगी. तभी अचानक अपने दोनों हाथों से मेरे सर के बालों को पकड़ कर 6-7 झटके लेकर निढाल हो गयी.
ज़ेबा झड़ चुकी थी. मेरा मुँह चुत से निकले पानी से भर गया था. बुर के हल्के नमकीन पानी को मैं बेहिचक पी गया.
इस तरह ज़ेबा को मैंने 2 बार झाड़ दिया और तीसरी बार मैंने तोप की नाल की तरह खड़े लंड को चुत की दरार के बीच सैट करके रख दिया. कोई 10-12 मर्तबा अप-डाउन करने के बाद मैंने जेबा की कमसिन जवानी क़िले के फाटक को तोड़ कर घुसने की कोशिश की, लेकिन असफल रहा.
इस तरह मैंने 7-8 बार किले में दाखिल होने की कोशिश की. उधर ज़ेबा बुरी तरह कराह रही थी और मुझे धकेलने की कोशिश कर रही थी. वो बार बार मुझसे विनती कर रही थी … रो-रो कर दुहाई देती रही … लेकिन आज मैंने भी ज़िद पकड़ ली थी.
फिर नारियल तेल की याद आई, तो साइड की टेबल से नारियल तेल लेकर मैंने अपने लंड पर और ज़ेबा की चुत की फांक के बीच अच्छी तरह लगा दिया. अब मैंने फिर से मोर्चा संभाल लिया.
दोबार तो लंड इधर उधर फिसल गया, लेकिन तीसरी बार सैट करके आगे की तरफ पूरी ताक़त से एक भरपूर झटका मारा.
ज़ेबा के मुँह से भंयकर चीख निकलती, उससे पहले मैंने अपना मुँह उसके मुँह पर रख दिया. उसकी चीख घुट कर रह गयी.
मेरे लंड का सुपारा ज़ेबा की चुत को ‘खछ..’ की आवाज़ से फाड़ते हुए अन्दर घुस गया. ज़ेबा बुरी तरह छटपटा रही थी, मुझसे अपने आपको छुड़वाने का असफल प्रयास कर रही थी. लेकिन कहां शेर और कहां बकरी … सारी कोशिशें नाकाम हो गईं.
जेबा का दर्द से बुरा हाल था. मैं जानता था कि अभी अगर मैंने दया दिखाई, तो ये फिर दोबारा छोड़ने नहीं देगी. इसलिए मैंने उसे दबोचे रखा और धीरे धीरे लंड को इंच दर इंच अन्दर सरकाता रहा.
मुझे ऐसा फील हो रहा था कि मेरा लौड़ा रबरबैंड में फंसा हुआ सा अन्दर जा रहा है.
ज़ेबा के ज़बरदस्त विरोध के बावजूद आख़िरकार मैंने 5 इंच लंड चुत में पेल दिया. बाकी बचे 4 इंच को दो जोरदार धक्के लगा कर पूरा 9 इंच लंड अन्दर पेल दिया. मेरे कुछ धक्कों ने भाई बहन के रिश्ते को पूरी तरह ध्वस्त कर दिया था. रिश्तों के मायने ही बदल गए थे.
ज़ेबा की हालत पतली थी. मैं प्यार से उसे ढांढस बंधाता रहा- बस … बस … अब हो गया मेरी जान.
मैंने प्यार से उसके आंसुओं को पौंछा. कुछ देर रुक कर फिर से लिपलॉक किस किया और धीरे धीरे लंड आगे पीछे करने लगा. मेरा लंड बुर के खून से लथपथ हो गया था.
धीरे धीरे चुदाई रफ़्तार पकड़ती चली गयी. अब ज़ेबा का विरोध ख़त्म हो चुका था. वो खामोशी से मुझे देख रही थी. शायद उसे भी चुदाई में मज़ा आने लगा था. मैं उसकी दोनों चुचियों को पकड़ कर तेज़ी से धक्का लगाने लगा. चुदाई का मधुर संगीत ‘फ़च … फ़च..पच..’ से कमरा गूँज रहा था.
लगभग 40 मिनट के मेरे 80-90 शॉट लगने के बीच ज़ेबा दो मर्तबा झड़ चुकी थी. ज़ेबा चुदाई की मस्ती में आंखें बंद किए पड़ी थी. आख़िर 15 – 20 धक्के लगाने के बाद मैं भी 10-12 झटकों के साथ झड़ गया.
ज़ेबा की चुत मेरे रस से भर गयी थी. उस रात मैं ज़ेबा को 2-3 बार और चोदना चाहता था, लेकिन उसने हाथ जोड़ कर माफ़ी मांग ली.
सुबह बेडशीट पर जगह जगह खून और वीर्य के धब्बे देख कर खाला रात की सारी कहानी समझ गयी.
दो दिन तक उस को चलने फिरने में तकलीफ़ रही. तीसरे दिन मैंने 2 बार चुदाई की. दस दिन बाद मैंने ज़ेबा की गांड भी मार ली. गांड मरवाने में भी उस ने काफ़ी प्रोटेस्ट किया … लेकिन मैं उसकी गांड के दरवाजे से भी अन्दर दाखिल होने में कामयाब हो गया.
इस तरह वक़्त को तेज़ी से गुज़रते देर नहीं लगा. एक दिन जब मैं ऑफिस से आया, तो खाला ने ज़ेबा के पेट से होने की खुशखबरी सुनाई. मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा. नौ महीने बाद ज़ेबा ने 8 पौंड के स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया. इस तरह 5 साल में ज़ेबा ने मेरे 3 बच्चों को जन्म दिया. आज हम खुशहाल ज़िंदगी गुजार रहे हैं.
परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे से 2-2 रिश्ते में बँधे हुए थे. ज़ेबा मेरी सग़ी बहन भी थी और पत्नी भी. शान को छोड़ कर ज़ेबा से जन्मे बच्चे मेरे बेटे भी थे और भांजे भी थे. अम्मी मेरे बच्चों की नानी भी थी और दादी भी. कितनी सुखद थी हमारी ज़िंदगी … और एक दूसरे से रिश्ते.
दोस्तो, सग़ी बहन की चुदाई में जो मज़ा है … वो किसी और में नहीं. साथ ही वो आपके बच्चों की अम्मी भी बनी हो … तो क्या कहने.
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
