25-05-2022, 03:06 PM
मेरी अम्मी, छोटी बहन ज़ेबा, बीवी शमा और खाला, इस कहानी के अहम पात्र हैं. उन सभी की प्राइवेसी का ख्याल रखते हुए मैंने अपना और बाकी सभी का नाम बदल दिया है. ताकि रिश्तेदारों और समाज में कोई गलत संदेश ना जाए.
मेरा नाम परवेज़ अख़्तर है. मेरी उम्र 30 साल है. मेरे अब्बू की मौत 5 साल पहले ट्रक एक्सिडेंट में हो चुकी है. चूंकि अब्बू रेलवे में क्लर्क थे, तो अनुकंपा के आधार पर उनकी जगह मेरी नौकरी लग गयी.
अब्बू के जाने के एक साल बाद अब्बू के दोस्त की बेटी शमा से मेरी शादी हो गयी. चार साल बाद शमा हमल (गर्भ) से हो गयी. घर में हम सभी बहुत खुश थे, बात भी खुशी की थी. क्योंकि घर का वारिस जो पैदा होने वाला था.
वक़्त गुज़रते देर नहीं लगता, नौ महीने कब गुज़र गए, पता ही नहीं चला. डेलिवरी का दिन आ गया … लेकिन बदकिस्मती से डेलिवरी के समय मामला कुछ फंस गया और बच्चे के जन्म के साथ ही शमा की मृत्यु हो गयी. डॉक्टर ने शमा को बचाने के बहुत कोशिश की, लेकिन खुदा को शायद कुछ और ही मंज़ूर था.
इस हादसे से मेरे परिवार पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा. दुध-मुँहे बच्चे की परवरिश की सारी ज़िम्मेदारी अम्मी और मेरी जवान हो चुकी बहन ज़ेबा पर आ पड़ी.
उस वक्त घर में उदासी और गम का माहौल था. दो महीने बाद ज़ेबा का फाइनल एग्जाम होने वाला था. उसके बावजूद ज़ेबा बच्चे का बड़े प्यार से ख्याल एक माँ की तरह रख रही थी. दो महीने गुज़रते देर नहीं लगे. ज़ेबा ने आधी अधूरी तैयारी के साथ जैसे तैसे एग्जाम दिया और सेकेंड डिविजन से पास भी कर गयी.
चूंकि ज़ेबा उम्र में मुझसे लगभग 9 साल छोटी थी. इसलिए वो घर की दुलारी थी. मैंने गिफ्ट में उससे एंड्रायड फोन ला कर दिया, जिसे पाकर वो बहुत खुश हुई और … ‘थैंक्स भाईजान …’ बोल कर मेरे गले से लग गयी. उसके चूचे मेरे सीने से टच कर गए.
आज पहली बार ज़ेबा के गुंदाज़ जिस्म का स्पर्श मुझे काफ़ी मस्त लगा. उस रोज़ दिन भर मैं काफ़ी उत्तेजित रहा.
ज़ेबा निहायत ही खूबसूरत लड़की थी. गोरा रंग, भरा भरा जिस्म, उसका फिगर 34 28 34 होगा, जवानी टूट कर उस पर आई थी. आज से पहले मैंने कभी उसको ऐसी नज़रों से नहीं देखा था. लेकिन आज उसके सीने के मुलायम स्पर्श से मेरे दिल में हलचल सी मची हुई थी. मैं बार बार बच्चे को देखने के बहाने ज़ेबा के क़रीब होने का मौका तलाश करने लगा. मैं अपने दिलो-दिमाग से ऐसे ख्याल को झटकने की कोशिश कर रहा था.
लेकिन कहते हैं ना कि दिल है कि मानता नहीं.
ज़ेबा लाख मेरी सग़ी बहन थी, लेकिन थी तो एक हूर सी लड़की.
मेरी पत्नी के जाने के बाद मेरी ज़िंदगी बिल्कुल वीरान हो चुकी थी. लेकिन अचानक हुई इस घटना … और ज़ेबा का मेरे बच्चे से प्यार और ममता को देख कर उसके प्रति मेरा आकर्षण और उत्सुकता का पैमाना बढ़ता ही जा रहा था.
उसे देखने का मेरा नज़रिया बदल चुका था. अब मेरी नज़रें बहन के भरे भरे कूल्हों और मम्मों पर जा टिकतीं. ज़ेबा जब चलती. तो उसके नितंबों की थिरकन और उछलन देखने लायक होती.
अब तो मैं अक्सर जानबूझ कर अम्मी के सामने ही बच्चे को चुम्बन करते समय, ज़ेबा की तरफ इशारा करते हुए शरारत से कह देता जाओ- अपनी मम्मी की गोद में. अब तेरी अम्मी यही है.
ज़ेबा यह सुन कर बुरी तरह शर्मा जाती. मेरी अम्मी काफ़ी तजुर्बेकार औरत थीं. कई बार मुझे ज़ेबा को चोरी चोरी देखते हुए अम्मी ने आखिर पकड़ ही लिया. वो मेरी नज़रों में ज़ेबा के प्रति एक भाई के प्यार की जगह एक पुरुष की वासना भरी भूखी नज़र को पहचान गयी थीं.
ज़ेबा के लिए मेरी चाहत और प्यार को देख वो कुछ सोचने पर मजबूर हो चुकी थीं.
आख़िर एक दिन अवसर देख कर अम्मी ने मुझसे पूछ ही लिया- बेटा, आख़िर तुमने अपनी ज़िंदगी के बारे में क्या सोचा है? अब तुझे अपने भविष्य और बच्चे के लिए दूसरी शादी कर ही लेनी चाहिए.
मैंने कहा- नहीं अम्मी नहीं … मुझे शादी नहीं करनी. एक सौतेली माँ सौतेली ही होती है, ना जाने मेरे बेटे (शान) से कैसा बर्ताव करे.
तब अम्मी ने कहा- अगर तू बुरा ना माने, तो एक बात कहूँ बेटा?
मैंने कहा- हां कहो न अम्मी.
अम्मी- जब तेरे बच्चे को ज़ेबा एक अम्मी का प्यार दे सकती है, तो तुझे एक पत्नी का प्यार क्यों नहीं दे सकती?
अम्मी ने मेरे दिल की बात कह दी थी, मैं दिखावे के लिए ऊपरी मन से बोला- अम्मी, तुम भी क्या अनाप-शनाप बोल देती हो. ज़ेबा मेरी सग़ी बहन है, यह कभी नहीं हो सकता. समाज क्या कहेगा?
मेरा नाम परवेज़ अख़्तर है. मेरी उम्र 30 साल है. मेरे अब्बू की मौत 5 साल पहले ट्रक एक्सिडेंट में हो चुकी है. चूंकि अब्बू रेलवे में क्लर्क थे, तो अनुकंपा के आधार पर उनकी जगह मेरी नौकरी लग गयी.
अब्बू के जाने के एक साल बाद अब्बू के दोस्त की बेटी शमा से मेरी शादी हो गयी. चार साल बाद शमा हमल (गर्भ) से हो गयी. घर में हम सभी बहुत खुश थे, बात भी खुशी की थी. क्योंकि घर का वारिस जो पैदा होने वाला था.
वक़्त गुज़रते देर नहीं लगता, नौ महीने कब गुज़र गए, पता ही नहीं चला. डेलिवरी का दिन आ गया … लेकिन बदकिस्मती से डेलिवरी के समय मामला कुछ फंस गया और बच्चे के जन्म के साथ ही शमा की मृत्यु हो गयी. डॉक्टर ने शमा को बचाने के बहुत कोशिश की, लेकिन खुदा को शायद कुछ और ही मंज़ूर था.
इस हादसे से मेरे परिवार पर गमों का पहाड़ टूट पड़ा. दुध-मुँहे बच्चे की परवरिश की सारी ज़िम्मेदारी अम्मी और मेरी जवान हो चुकी बहन ज़ेबा पर आ पड़ी.
उस वक्त घर में उदासी और गम का माहौल था. दो महीने बाद ज़ेबा का फाइनल एग्जाम होने वाला था. उसके बावजूद ज़ेबा बच्चे का बड़े प्यार से ख्याल एक माँ की तरह रख रही थी. दो महीने गुज़रते देर नहीं लगे. ज़ेबा ने आधी अधूरी तैयारी के साथ जैसे तैसे एग्जाम दिया और सेकेंड डिविजन से पास भी कर गयी.
चूंकि ज़ेबा उम्र में मुझसे लगभग 9 साल छोटी थी. इसलिए वो घर की दुलारी थी. मैंने गिफ्ट में उससे एंड्रायड फोन ला कर दिया, जिसे पाकर वो बहुत खुश हुई और … ‘थैंक्स भाईजान …’ बोल कर मेरे गले से लग गयी. उसके चूचे मेरे सीने से टच कर गए.
आज पहली बार ज़ेबा के गुंदाज़ जिस्म का स्पर्श मुझे काफ़ी मस्त लगा. उस रोज़ दिन भर मैं काफ़ी उत्तेजित रहा.
ज़ेबा निहायत ही खूबसूरत लड़की थी. गोरा रंग, भरा भरा जिस्म, उसका फिगर 34 28 34 होगा, जवानी टूट कर उस पर आई थी. आज से पहले मैंने कभी उसको ऐसी नज़रों से नहीं देखा था. लेकिन आज उसके सीने के मुलायम स्पर्श से मेरे दिल में हलचल सी मची हुई थी. मैं बार बार बच्चे को देखने के बहाने ज़ेबा के क़रीब होने का मौका तलाश करने लगा. मैं अपने दिलो-दिमाग से ऐसे ख्याल को झटकने की कोशिश कर रहा था.
लेकिन कहते हैं ना कि दिल है कि मानता नहीं.
ज़ेबा लाख मेरी सग़ी बहन थी, लेकिन थी तो एक हूर सी लड़की.
मेरी पत्नी के जाने के बाद मेरी ज़िंदगी बिल्कुल वीरान हो चुकी थी. लेकिन अचानक हुई इस घटना … और ज़ेबा का मेरे बच्चे से प्यार और ममता को देख कर उसके प्रति मेरा आकर्षण और उत्सुकता का पैमाना बढ़ता ही जा रहा था.
उसे देखने का मेरा नज़रिया बदल चुका था. अब मेरी नज़रें बहन के भरे भरे कूल्हों और मम्मों पर जा टिकतीं. ज़ेबा जब चलती. तो उसके नितंबों की थिरकन और उछलन देखने लायक होती.
अब तो मैं अक्सर जानबूझ कर अम्मी के सामने ही बच्चे को चुम्बन करते समय, ज़ेबा की तरफ इशारा करते हुए शरारत से कह देता जाओ- अपनी मम्मी की गोद में. अब तेरी अम्मी यही है.
ज़ेबा यह सुन कर बुरी तरह शर्मा जाती. मेरी अम्मी काफ़ी तजुर्बेकार औरत थीं. कई बार मुझे ज़ेबा को चोरी चोरी देखते हुए अम्मी ने आखिर पकड़ ही लिया. वो मेरी नज़रों में ज़ेबा के प्रति एक भाई के प्यार की जगह एक पुरुष की वासना भरी भूखी नज़र को पहचान गयी थीं.
ज़ेबा के लिए मेरी चाहत और प्यार को देख वो कुछ सोचने पर मजबूर हो चुकी थीं.
आख़िर एक दिन अवसर देख कर अम्मी ने मुझसे पूछ ही लिया- बेटा, आख़िर तुमने अपनी ज़िंदगी के बारे में क्या सोचा है? अब तुझे अपने भविष्य और बच्चे के लिए दूसरी शादी कर ही लेनी चाहिए.
मैंने कहा- नहीं अम्मी नहीं … मुझे शादी नहीं करनी. एक सौतेली माँ सौतेली ही होती है, ना जाने मेरे बेटे (शान) से कैसा बर्ताव करे.
तब अम्मी ने कहा- अगर तू बुरा ना माने, तो एक बात कहूँ बेटा?
मैंने कहा- हां कहो न अम्मी.
अम्मी- जब तेरे बच्चे को ज़ेबा एक अम्मी का प्यार दे सकती है, तो तुझे एक पत्नी का प्यार क्यों नहीं दे सकती?
अम्मी ने मेरे दिल की बात कह दी थी, मैं दिखावे के लिए ऊपरी मन से बोला- अम्मी, तुम भी क्या अनाप-शनाप बोल देती हो. ज़ेबा मेरी सग़ी बहन है, यह कभी नहीं हो सकता. समाज क्या कहेगा?
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.
