23-05-2022, 05:01 PM
“हां … जैसे आज तो आपने हां कर दी हो!”
“वो अलग मैटर है। और वैसे भी तेरी गर्लफ्रैंड है ना?”
“है नहीं … थी!”
“हां तो?”
“तो आप बन जाओ!”
“जूते मारने तेरे सिर पे मैंने … बेशरम”
“हद है यार … पहले बोलती हो बोला नहीं, अब बोल दिया है तो मान नहीं रही हो।”
“किस अच्छा करना आता है तेरे को, कहाँ से सीखा?”
“सीखा तो बहुत कुछ है, आप मौका तो दो।”
“चपेड़ न दूँ बुत्थे पे तेरे?” (चपेड़= थप्पड़, बुत्थे= चेहरा)
अब मुझे एहसास होने लगा था कि हो न हो ये लौंडिया आज ठुक के ही मानेगी.
और इसके साथ ही दौड़ना शुरू किया, राइट आर्म, ओवर द विकेट, अंपायर को पार करते हुए … निर्वस्त्र का ये लाजवाब यॉर्कर और सिम्मी क्लीन बोल्ड!!!
“ठीक है, मारो चपेड़! मैं आपसे बात ही नहीं करूंगा। घर जा रहा हूं … बाय।”
इतना बोलकर पलटा ही था मैं … कि मौसी ने पीछे से हाथ पकड़कर मुझे खींचकर अपनी ओर घुमाया … और चटाक!!!
एक और थप्पड़ …
दूसरा थप्पड़!
इससे पहले मैं सम्भलता, तीसरा थप्पड़ …
थप्पड़ों के बाद ताबड़तोड़ चुम्बनों की बरसात और उसके बाद हमारे होंठ ऐसे मिले जैसे कभी किसी समय इनके बीच कोई जगह रही होगी.
ये सोचना भी जैसे मुमकिन न हो।
10 मिनट का वो दीर्घकालीन चुम्बन दो जवान जिस्मों की अन्तर्वासना जगाने के लिए काफी था।
अब हमने कोठरी की ओर रुख किया। कोठरी में काफी पुआल (धान का कचरा) रखी हुई थी। झटपट उसी का गद्दा बना लिया गया।
एक अजीब विचार मेरे मन में आया कि मामा ने अपना सामान सुरक्षित रखने के लिए ये कोठरी बनवायी होगी. और अब इसी कोठरी में उनकी बहन चुदने वाली है।
कोठरी में सिम्मी तो साहब … टूट पड़ी मुझ पे!
टीशर्ट मैं उतार चुका था, मेरे नंगे जिस्म के अनगिनत चुम्बन लेती जा रही सिम्मी को मैं सिर्फ देख रहा था। देख रहा था कामुकता की मूरत बनी अपनी उस मौसी को … जिसे पाने की लालसा आज पूरी होने जा रही थी।
अब बारी मेरी थी, सबसे पहले मैंने सिम्मी के कमीज को उतार दिया। सफेद ब्रा उसके गोरे जिस्म पे खूब जच रही थी। और मौसी के सफेद चिट्टे मम्मों की तो कुछ बात ही अलग थी।
माथे पर एक चुम्मी के साथ शुरुआत करने के बाद मैं धीरे-धीरे नीचे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने लगा।
मेरे दोनों हाथ अपना काम बखूबी कर रहे थे। इनके द्वारा मौसी की कमर और नितंबों का जायजा लिया जा रहा था।
मौसी भी अब कामुक आहें भरने लगीं थी- आह … शोना रुक जाओ … मत करो … मुझे कुछ हो रहा है … रुको आहह।
मैं अपने काम में पूरी शिद्दत के साथ जुटा हुआ था। किस करते हुए जैसे ही मैंने मौसी की ब्रा को खोला, 36″ आकार के कबूतर बाहर आकर मुझे काम-आमंत्रण देने लगे।
उसपे गुलाबी रंग के निप्पल और भी सेक्सी लग रहे थे। मैं अपने हाथों को रोक न सका और सिम्मी के बूब्स को पकड़कर जोर से दबा दिया।
उम्म्ह… अहह… हय… याह… सिम्मी कराह उठी-
धीरे करो, लग रही है.
मौसी की बात को अनसुना कर मैं अपने काम में जुटा रहा।
अब मैं एक हाथ से मौसी के बूब्स दबा रहा था, वहीं दूसरे सलवार के ऊपर से मौसी के जांघों के उस संधिस्थल को तलाश रहा था जो अब तक लीटर भर पानी फेंक कर लगभग आधी पुआल को नहला चुका था।
अब मौसी का एक मम्मा मेरे मुंह में था और दूसरा हाथ में। दूसरे हाथ से मैं मौसी की सलवार का नाड़ा खोलने में कामयाब हो चुका था।
अब तक मौसी मुझपे सवार थी लेकिन अब ऊपर आके बागडोर मैंने संभाल ली थी। मौसी के जिस्म का को चाटने चूसने के उपरांत मैंने मौसी की सलवार उतार दी, जिसे उतारने में मौसी ने मेरी पूरी मदद की।
चिकनी गोरी जांघों पर हल्के हल्के रोयें। दूसरी लड़कियों से कुछ अलग ज़िस्म था मौसी का।
मौसी की कच्छी भीगकर पारदर्शी हो चुकी थी।
कोई ड्रामा नहीं … कोई ना-नुकुर नहीं … सिर्फ मेरे बालों को सहलाती जा रही मौसी मेरा पूरा साथ देने के साथ लगातार आहें भर रही थी।
“वो अलग मैटर है। और वैसे भी तेरी गर्लफ्रैंड है ना?”
“है नहीं … थी!”
“हां तो?”
“तो आप बन जाओ!”
“जूते मारने तेरे सिर पे मैंने … बेशरम”
“हद है यार … पहले बोलती हो बोला नहीं, अब बोल दिया है तो मान नहीं रही हो।”
“किस अच्छा करना आता है तेरे को, कहाँ से सीखा?”
“सीखा तो बहुत कुछ है, आप मौका तो दो।”
“चपेड़ न दूँ बुत्थे पे तेरे?” (चपेड़= थप्पड़, बुत्थे= चेहरा)
अब मुझे एहसास होने लगा था कि हो न हो ये लौंडिया आज ठुक के ही मानेगी.
और इसके साथ ही दौड़ना शुरू किया, राइट आर्म, ओवर द विकेट, अंपायर को पार करते हुए … निर्वस्त्र का ये लाजवाब यॉर्कर और सिम्मी क्लीन बोल्ड!!!
“ठीक है, मारो चपेड़! मैं आपसे बात ही नहीं करूंगा। घर जा रहा हूं … बाय।”
इतना बोलकर पलटा ही था मैं … कि मौसी ने पीछे से हाथ पकड़कर मुझे खींचकर अपनी ओर घुमाया … और चटाक!!!
एक और थप्पड़ …
दूसरा थप्पड़!
इससे पहले मैं सम्भलता, तीसरा थप्पड़ …
थप्पड़ों के बाद ताबड़तोड़ चुम्बनों की बरसात और उसके बाद हमारे होंठ ऐसे मिले जैसे कभी किसी समय इनके बीच कोई जगह रही होगी.
ये सोचना भी जैसे मुमकिन न हो।
10 मिनट का वो दीर्घकालीन चुम्बन दो जवान जिस्मों की अन्तर्वासना जगाने के लिए काफी था।
अब हमने कोठरी की ओर रुख किया। कोठरी में काफी पुआल (धान का कचरा) रखी हुई थी। झटपट उसी का गद्दा बना लिया गया।
एक अजीब विचार मेरे मन में आया कि मामा ने अपना सामान सुरक्षित रखने के लिए ये कोठरी बनवायी होगी. और अब इसी कोठरी में उनकी बहन चुदने वाली है।
कोठरी में सिम्मी तो साहब … टूट पड़ी मुझ पे!
टीशर्ट मैं उतार चुका था, मेरे नंगे जिस्म के अनगिनत चुम्बन लेती जा रही सिम्मी को मैं सिर्फ देख रहा था। देख रहा था कामुकता की मूरत बनी अपनी उस मौसी को … जिसे पाने की लालसा आज पूरी होने जा रही थी।
अब बारी मेरी थी, सबसे पहले मैंने सिम्मी के कमीज को उतार दिया। सफेद ब्रा उसके गोरे जिस्म पे खूब जच रही थी। और मौसी के सफेद चिट्टे मम्मों की तो कुछ बात ही अलग थी।
माथे पर एक चुम्मी के साथ शुरुआत करने के बाद मैं धीरे-धीरे नीचे अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने लगा।
मेरे दोनों हाथ अपना काम बखूबी कर रहे थे। इनके द्वारा मौसी की कमर और नितंबों का जायजा लिया जा रहा था।
मौसी भी अब कामुक आहें भरने लगीं थी- आह … शोना रुक जाओ … मत करो … मुझे कुछ हो रहा है … रुको आहह।
मैं अपने काम में पूरी शिद्दत के साथ जुटा हुआ था। किस करते हुए जैसे ही मैंने मौसी की ब्रा को खोला, 36″ आकार के कबूतर बाहर आकर मुझे काम-आमंत्रण देने लगे।
उसपे गुलाबी रंग के निप्पल और भी सेक्सी लग रहे थे। मैं अपने हाथों को रोक न सका और सिम्मी के बूब्स को पकड़कर जोर से दबा दिया।
उम्म्ह… अहह… हय… याह… सिम्मी कराह उठी-
धीरे करो, लग रही है.
मौसी की बात को अनसुना कर मैं अपने काम में जुटा रहा।
अब मैं एक हाथ से मौसी के बूब्स दबा रहा था, वहीं दूसरे सलवार के ऊपर से मौसी के जांघों के उस संधिस्थल को तलाश रहा था जो अब तक लीटर भर पानी फेंक कर लगभग आधी पुआल को नहला चुका था।
अब मौसी का एक मम्मा मेरे मुंह में था और दूसरा हाथ में। दूसरे हाथ से मैं मौसी की सलवार का नाड़ा खोलने में कामयाब हो चुका था।
अब तक मौसी मुझपे सवार थी लेकिन अब ऊपर आके बागडोर मैंने संभाल ली थी। मौसी के जिस्म का को चाटने चूसने के उपरांत मैंने मौसी की सलवार उतार दी, जिसे उतारने में मौसी ने मेरी पूरी मदद की।
चिकनी गोरी जांघों पर हल्के हल्के रोयें। दूसरी लड़कियों से कुछ अलग ज़िस्म था मौसी का।
मौसी की कच्छी भीगकर पारदर्शी हो चुकी थी।
कोई ड्रामा नहीं … कोई ना-नुकुर नहीं … सिर्फ मेरे बालों को सहलाती जा रही मौसी मेरा पूरा साथ देने के साथ लगातार आहें भर रही थी।
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.