23-05-2022, 05:00 PM
“मौसी चलो नहाते हैं.”
मेरी अगली चाल।
मैं ये सब कर तो रहा था पर अंदर से फटी पड़ी थी। अगर मौसी को अच्छा न लगा तो? मेरी हरकत के बारे में अगर उन्होंने घर पे बता दिया तो?
“‘छपाक!!’
तब तक मौसी टंकी में कूद चुकी थी।
हमारे गाँव से में पानी को सहेजने के लिए ट्यूबवेल-पाइप के मुहाने के नीचे सीमेंट की टंकियां बनाई जाती हैं।
“शोना तू भी आ जा।
”
“यार आप दो कदम आगे हो, मैंने यूं ही पूछा था, ठंड लग जायेगी आपको।”
“ओ मतलबी कहीं के … तेरे लिए ही घुसी हूं पानी में। तू आ रहा है या बाहर आऊँ?”
“नहीं मैं…”
और फिर 5 मिनट बेमतलब बहस।
मैं सिर्फ दिखावे के लिए मना कर रहा था; अंदर से तो मैं कब का टंकी में कूद चुका था।
भीगी हुई मौसी का वो शरीर से चिपका हुआ सूट पानी और लंड दोनों में आग लगाने के लिये काफी था।
आख़िरकार मैदान में उतरना ही पड़ा।
टीशर्ट मैंने उतार दी थी सिर्फ जीन्स पहने हुए था।
पानी से खेलते खेलते मुझे शैतानी सूझी और मैंने मौसी पे पानी उछालना शुरू कर दिया। जिसकी उम्मीद थी … बदले में मौसी भी मुझपे पानी उछालने लगी।
मैंने एक बार दूर तक नज़र घुमाई … आसपास कोई नहीं था। ट्यूबवेल के पास एक कोठरी भी बनी हुई थी जो शायद मामू ने ही बनवाई थी ट्यूबवेल से संबंधित औजार रखने के लिये।
अब मुझे काम बनता नजर आया।
पता नहीं कहाँ से मुझमे हिम्मत आ गयी और मौसी की 26″ की कमर को दोनों हाथों से जकड़कर मैंने पानी में डुबकी लगा दी। ये सब पलक झपकते ही हो गया; सिम्मी को संभलने का मौका ही नहीं मिल पाया।
अब स्थिति यह थी कि मैं पानी के अन्दर मौसी से सटा हुआ था और उनके जिस्म से निकलती वो प्राकृतिक महक … ओह्ह!
और मौसी गुस्से में मुझे घूर रही थी।
जैसे-तैसे उन्होंने खुद को मुझसे छुड़ाया और लगी मुझे गालियां देने- साले मेरे सारे बाल भीग गए!
तू …
इससे आगे वो कुछ कह पाती कि पता नहीं मुझमें कहाँ से इतनी हिम्मत आ गयी, मैंने सिम्मी को दोबारा दबोचा और इस बार सीधे होंठों पे हमला कर दिया।
छूटने की तमाम बेकार-नाकाम कोशिशें!
सिम्मी मौसी के गुलाबी अधरों का रसपान करने में मैं पूरी शिद्दत के साथ लगा हुआ था। लगभग 5 मिनट स्मूच के बाद मैंने उसके होंठों को आजाद किया।
सिम्मी मेरे इस दुस्साहस से हक्की-बक्की थी- तेरी हिम्मत कैसे हुई? तू घर चल … भैया को तेरी करतूत बताऊँगी साले! मासी माँ समान होती है. तुझे शर्म नहीं आई मेरे साथ ऐसा करते हुए?
और फिर
चटाक!!!
मेरे मुँह पे सिम्मी के नाज़ुक हाथों से एक तमाचा रसीद हुआ।
मैं भी ठहरा एक नम्बर का ड्रामेबाज! आंखों से झर-झर बहते आंसू और सॉरी … सॉरी … सॉरी के सटीक समागम ने 5 मिनट लगाए मौसी को पिघलाने में।
“अच्छा ठीक है, तू रो मत, नहीं बोलूंगी।”
“थैंक यू मौसी … थैंक यू सो मच।”
“अब ज्यादा बन मत, ये बता तेरी इतनी हिम्मत कैसे हो गयी? सबके सामने तू बड़ा शरीफ़ बनता है।”
“वो मौसी मैं …”
“वो मौसी तू क्या?”
“यार … प्यार करता हूं आपसे!”
“क्या… रियली? तो बताया क्यों नहीं अब तक?”
मेरी अगली चाल।
मैं ये सब कर तो रहा था पर अंदर से फटी पड़ी थी। अगर मौसी को अच्छा न लगा तो? मेरी हरकत के बारे में अगर उन्होंने घर पे बता दिया तो?
“‘छपाक!!’
तब तक मौसी टंकी में कूद चुकी थी।
हमारे गाँव से में पानी को सहेजने के लिए ट्यूबवेल-पाइप के मुहाने के नीचे सीमेंट की टंकियां बनाई जाती हैं।
“शोना तू भी आ जा।
”
“यार आप दो कदम आगे हो, मैंने यूं ही पूछा था, ठंड लग जायेगी आपको।”
“ओ मतलबी कहीं के … तेरे लिए ही घुसी हूं पानी में। तू आ रहा है या बाहर आऊँ?”
“नहीं मैं…”
और फिर 5 मिनट बेमतलब बहस।
मैं सिर्फ दिखावे के लिए मना कर रहा था; अंदर से तो मैं कब का टंकी में कूद चुका था।
भीगी हुई मौसी का वो शरीर से चिपका हुआ सूट पानी और लंड दोनों में आग लगाने के लिये काफी था।
आख़िरकार मैदान में उतरना ही पड़ा।
टीशर्ट मैंने उतार दी थी सिर्फ जीन्स पहने हुए था।
पानी से खेलते खेलते मुझे शैतानी सूझी और मैंने मौसी पे पानी उछालना शुरू कर दिया। जिसकी उम्मीद थी … बदले में मौसी भी मुझपे पानी उछालने लगी।
मैंने एक बार दूर तक नज़र घुमाई … आसपास कोई नहीं था। ट्यूबवेल के पास एक कोठरी भी बनी हुई थी जो शायद मामू ने ही बनवाई थी ट्यूबवेल से संबंधित औजार रखने के लिये।
अब मुझे काम बनता नजर आया।
पता नहीं कहाँ से मुझमे हिम्मत आ गयी और मौसी की 26″ की कमर को दोनों हाथों से जकड़कर मैंने पानी में डुबकी लगा दी। ये सब पलक झपकते ही हो गया; सिम्मी को संभलने का मौका ही नहीं मिल पाया।
अब स्थिति यह थी कि मैं पानी के अन्दर मौसी से सटा हुआ था और उनके जिस्म से निकलती वो प्राकृतिक महक … ओह्ह!
और मौसी गुस्से में मुझे घूर रही थी।
जैसे-तैसे उन्होंने खुद को मुझसे छुड़ाया और लगी मुझे गालियां देने- साले मेरे सारे बाल भीग गए!
तू …
इससे आगे वो कुछ कह पाती कि पता नहीं मुझमें कहाँ से इतनी हिम्मत आ गयी, मैंने सिम्मी को दोबारा दबोचा और इस बार सीधे होंठों पे हमला कर दिया।
छूटने की तमाम बेकार-नाकाम कोशिशें!
सिम्मी मौसी के गुलाबी अधरों का रसपान करने में मैं पूरी शिद्दत के साथ लगा हुआ था। लगभग 5 मिनट स्मूच के बाद मैंने उसके होंठों को आजाद किया।
सिम्मी मेरे इस दुस्साहस से हक्की-बक्की थी- तेरी हिम्मत कैसे हुई? तू घर चल … भैया को तेरी करतूत बताऊँगी साले! मासी माँ समान होती है. तुझे शर्म नहीं आई मेरे साथ ऐसा करते हुए?
और फिर
चटाक!!!
मेरे मुँह पे सिम्मी के नाज़ुक हाथों से एक तमाचा रसीद हुआ।
मैं भी ठहरा एक नम्बर का ड्रामेबाज! आंखों से झर-झर बहते आंसू और सॉरी … सॉरी … सॉरी के सटीक समागम ने 5 मिनट लगाए मौसी को पिघलाने में।
“अच्छा ठीक है, तू रो मत, नहीं बोलूंगी।”
“थैंक यू मौसी … थैंक यू सो मच।”
“अब ज्यादा बन मत, ये बता तेरी इतनी हिम्मत कैसे हो गयी? सबके सामने तू बड़ा शरीफ़ बनता है।”
“वो मौसी मैं …”
“वो मौसी तू क्या?”
“यार … प्यार करता हूं आपसे!”
“क्या… रियली? तो बताया क्यों नहीं अब तक?”
जिंदगी की राहों में रंजो गम के मेले हैं.
भीड़ है क़यामत की फिर भी हम अकेले हैं.